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Home » Blog » Sorghum Varieties in Hindi: जानिए ज्वार की किस्में

Sorghum Varieties in Hindi: जानिए ज्वार की किस्में

December 5, 2024 by Bhupendra Dahiya Leave a Comment

Sorghum Varieties in Hindi: जानिए ज्वार की किस्में

Varieties of Sorghum in Hindi: ज्वार, एक बहुमुखी और लचीली फसल है, जो भारत के कृषि परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। समृद्ध ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और विविध जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल ज्वार की खेती देश में खाद्य सुरक्षा और संधारणीय कृषि पद्धतियों को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

यह लेख भारत में उगाई जाने वाली ज्वार की विभिन्न किस्मों (Sorghum Varieties), उनकी विशेषताओं, भारतीय कृषि में महत्व, किस्म के चयन को प्रभावित करने वाले कारकों और क्षेत्र में ज्वार की खेती की चुनौतियों और भविष्य की संभावनाओं के बारे में गहन जानकारी प्रदान करता है।

Table of Contents

Toggle
  • ज्वार की उन्नत किस्में (Improved sorghum varieties)
  • ज्वार किस्मों की विशेषताएं (Features of Sorghum Species)
  • अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)

ज्वार की उन्नत किस्में (Improved sorghum varieties)

ज्वार की नई किस्में अधिकतर बौनी होती हैं और उनमें अधिक उपज देने की क्षमता है। ये किस्में उपयुक्त मात्रा में खाद, उर्वरक और पानी के प्रयोग से अच्छी उपज देती हैं एवं गिरती भी नहीं हैं तथा पकने में कम समय लेती हैं। विभिन्न राज्यों के लिए अनुमोदित दाने और हरे चारे के लिए सीजन अनुसार ज्वार की किस्में (Sorghum Varieties) इस प्रकार है, जैसे-

खरीफ ज्वार की किस्में-

राज्य हाइब्रिड किस्में संकुल किस्में
महाराष्ट्रसी एस एच 14, सी एस एच 9, सी एस एच 16, सी एस एच 18सी एस वी 13, सी एस वी 15, एस पी वी 699
कर्नाटकसी एस एच 14, सी एस एच 17, सी एस एच 16, सी एस एच 13, सी एस एच 18एस वी 1066, डी एस वी 1, डी एस वी 2, सी एस वी 10, सी एस वी 11, सी एस वी 15
राजस्थानसी एस एच 14, सी एस एच 13, सी एस एच 16, सी एस एच 18सी एस वी 10, सी एस वी 13, सी एस वी 15, एस पी वी 96
आन्ध्र प्रदेशसी एस एच 14, सी एस एच 13, सी एस एच 16, सी एस एच 18, सी एस एच 9, सी एस एच 1सी एस वी 10, सी एस वी 11, सी एस वी 15, एस पी वी 462, मोती
मध्य प्रदेशसी एस एच 11, सी एस एच 13, सी एस एच 16, सी एस एच 17, सी एस एच 18सी एस वी 15, एस. पी वी 235, जे जे 741, जे जे 938, जे जे 1041
गुजरातसी एस एच 9, सी एस एच 13, सी एस एच 16, सी एस एच 17, सी एस एच 18सी एस वी 13, सी एस वी 15, जी जे 35, जी जे 38, जी जे 40, जी जे 39, जी जे 41
तमिलनाडुसी एस एच 14, सी एस एच 17, सी एस एच 13, सी एस एच 16, सी एस एच 18एस पी वी 881, सी ओ 24, सी ओ 25, सी ओ 26, सी एस वी 13, सी एस वी 15, सी ओ 27, सी ओ (एस) 28
उत्तर प्रदेशसी एस एच 13, सी एस एच 14, सी एस एच 16, सी एस एच 18सी एस वी 10, सी एस वी 11, सी एस वी 15
हरियाणाएचजेएच 1513, पीसी 6, पीसी 9, पन्त चरी 3, एचसी 308, हरियाली चरी 1711एचजे 1514, हरियाणा चरी, पी स सी 9, पूसा संकुल 701, पूसा संकुल 1201, वर्षा, सीएसवी 13, सीएसवी 15, एसपीवी 699, एसवी 1066, डीएसवी 1, डीएसवी 2, सीएसवी 10

रबी सीजन की किस्में-

राज्य हाइब्रिड किस्मेंसंकुल किस्में
महाराष्ट्रसी एस एच 13 आर, सी एस एच 15आर सी एस वी 83, सी एस वी 143, एस पी वी 21 आर स्वाति, एम 35-1
कर्नाटकसी एस एच 13 आर, सी एस एच 15 आर, सी एस एच 19आर एन टी जे 3, सी एस वी 8 आर, एम 35-1, डी एस वी 5, सी एस वी 21
आन्ध्र प्रदेशआर सी एस एच 13 आर, सी एस एच 15 आर, सी एस एच 12 आर, सी एस एच 19आर सी एस वी 14 आर, मोती, एन टी जे 2, एम 35-1, सी एस वी 216
गुजरातआर सी एस एच 8 आर, सी एस एच 12 आर, सी एस एच 15 आर, सी एस एच 19आर सी एस वी 14 आर, सी एस वी 8 आर, सी एस वी 216
तमिलनाडुसी एस एच 15 आर, सी एस एच 5, सी ओ एच 13 आर, सी ओ एच 3सी ओ 24, सी ओ 25, सी ओ 26, सी एस वी 14 आर, सी एस वी 8 आर, सी एस वी 216 आर

ज्वार किस्मों की विशेषताएं (Features of Sorghum Species)

ज्वार की किस्में (Sorghum Varieties) खेती जगत में नायक की तरह हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी अनूठी शक्तियाँ और अनुकूलन क्षमताएँ हैं। उन्ही किस्मों में से कुछ किस्मों की विशेषताएं और पैदावार क्षमता इस प्रकार है, जैसे-

सी एस एच-14: इसकी उपज 33-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर दाना और 90-95 क्विंटल प्रति हेक्टेयर चारा होती है। इसकी अवधि 100-105 दिन होती है। यह संकर किस्म है। यह ज्वार किस्म (Sorghum Varieties) हल्की व कम गहरी भूमि के लिये उपयुक्त है। हर साल बीज बदलने की जरूरत पड़ती है।

सी एस एच 5: मध्यम व अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त इस किस्म की पकाव अवधि 100 से 115 दिन है। इसकी उपज 40-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। पौधा मध्यम ऊंचाई का 150-200 सेन्टीमीटर होता है। चारे की पैदावार 80-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। दाना सफेद गेहूँआ तथा मध्यम आकार का होता है। यह किस्म भारी मिट्टी और वर्षा व पानी की सुनिश्चित सुविधा वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है।

सी एस एच 6: कम और मध्यम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त इस संकर किस्म के पौधों की ऊंचाई 125-150 सेन्टीमीटर और पैदावार 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। मध्यम अगेती 90 से 100 दिन में पकने वाली इस ज्वार किस्म (Sorghum Varieties) का दाना सफेद गेहूँआ मध्यम आकार का होता है। बारानी क्षेत्रों के लिये उपयुक्त यह किस्म अन्तराशस्य के लिये अच्छी रहती है।

सी एस एच 9: यह किस्म सी एस एच 5 तथा सी एस एच 6 से अच्छी सिद्ध हुई है। 105-120 दिन में पकने वाली इस किस्म के पौधो की ऊंचाई 180-190 सेन्टीमीटर एवं उपज 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। यह ज्वार किस्म (Sorghum Varieties) साधारणतया हैडमोल्ड रोग व माइट्स के लिए प्रतिरोधी है।

एस पी वी 475: यह किस्म 110 – 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसके पौधे की ऊंचाई 170-190 सेन्टीमीटर व इसकी उपज 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है एवं दाना मध्यम आकार का चमकीला होता है।

एस पी वी 245: यह किस्म 100-130 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसके पौधे की औसत ऊंचाई 160-180 सेन्टीमीटर एवं उपज 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। यह ज्वार किस्म (Sorghum Varieties) एन्थ्रेक्नोज रोग के प्रति सहनशील है।

एस पी वी 96 (आर जे 96 ): 85 से 90 दिन में पकने वाली इस किस्म के पौधे की ऊंचाई 150-160 सेन्टीमीटर होती है। इस ज्वार किस्म (Sorghum Varieties) का दाना मोटा व चमकीला एवं औसत उपज 30-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

एस पी वी 346 (सी एस वी 10 ): यह मध्यम समय, 100-110 दिन में पकने वाली किस्म है। इसके पौधो की ऊंचाई 180-220 सेन्टीमीटर होती है। इसके दाने सफेद चमकीले तथा बड़े होते है। इस किस्म की औसत उपज 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। चारे के लिए उपयुक्त इस किस्म से 100 से 110 क्विंटल सूखा चारा प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है।

सी एस वी 15: दोहरे उपयोग वाली यह किस्म 100 से 105 दिन में पककर तैयार होती है। इसके पौधों की ऊँचाई 230-240 सेन्टीमीटर होती है। इस किस्म की औसत उपज 35-40 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है। चारे की उपज 115-120 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है। इसका चारा मीठा पोष्टिक होता है। सामान्य वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त यह किस्म ज्वार के मुख्य कीटों एवं पत्ती धब्बा रोग के प्रति सहनशील है।

हरे चारे के लिए किस्में-

एस एस जी 59 3: इस किस्म से चारे की 2-3 कटाई आसानी से ली जा सकती है। पहली कटाई बुवाई के लगभग 55-60 दिन बाद तथा बाद की प्रत्येक कटाई 35-40 दिन की अवधि के बाद ली जा सकती है। इस ज्वार किस्म (Sorghum Varieties) की औसत 400-500 क्विंटल चारा प्रति हेक्टेयर प्राप्त किया जा सकता है।

एम पी चरी: चारे की कई कटाई के लिये उपयुक्त इस किस्म की पहली कटाई बुवाई के 55 60 दिन बाद और बाद की प्रत्येक कटाई 35 40 दिन बाद ली जा सकती है। इस ज्वार किस्म (Sorghum Varieties) से लगभग 350 400 क्विंटल चारा प्रति हेक्टेयर प्राप्त किया जा सकता है।

राजस्थान चरी 1: एक कटाई देने वाली इस किस्म के पौधो की ऊंचाई 190-220 सेन्टीमीटर होती है। इसकी कटाई 85 – 90 दिन में की जा सकती है। अधिक एवं सुनिश्चित वर्षा वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 400-500 क्विंटल चारा प्राप्त किया जा सकता है।

राजस्थान चरी 2: एक कटाई देने वाली इस किस्म के पौधो की ऊंचाई 190-220 सेन्टीमीटर होती है। यह लगभग 70 दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। सामान्य एवं कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त इस ज्वार किस्म (Sorghum Varieties) से 300-350 क्विंटल चारा प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है।

पूसा चरी- 1: यह गिरने, सूखे और कीटों के प्रति प्रतिरोधी है। यह ज्वार किस्म (Sorghum Varieties) उर्वरकों के प्रति अत्यधिक प्रतिक्रियाशील है। हरे चारे की उपज 28 टन प्रति हेक्टेयर और शुष्क पदार्थ की उपज 8.9 टन प्रति हेक्टेयर है।

हरियाणा चरी (J5-73/53): इस ज्वार किस्म (Sorghum Varieties) के पौधे मध्यम ऊंचाई के होते हैं और बीज क्रीमी सफ़ेद रंग के होते हैं। यह किस्म लाल पत्ती धब्बा और तना छेदक के प्रति संवेदनशील है। हरे चारे की उपज 30 टन प्रति हेक्टेयर और शुष्क पदार्थ की उपज 9 टन प्रति हेक्टेयर है।

यूपी चरी- 1: यह ज्वार की किस्म (Sorghum Varieties) उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त नहीं है। इसमें बहुत कम एचसीएन है और इसे किसी भी विकास अवस्था में पशुओं को खिलाया जा सकता है। हरे चारे की उपज 33 टन प्रति हेक्टेयर और शुष्क पदार्थ की उपज 8 टन प्रति हेक्टेयर है।

गुजरात चारा ज्वार- 5: पौधे की औसत ऊंचाई 276 सेमी है, तना पतला है, पत्तियां मध्यम हैं और बीच की पसली हल्की सफेद है, बालियां बहुत ढीली हैं और ग्लूम भूरे रंग के हैं। दाने का रंग मोती जैसा सफेद और मध्यम गोल है। यह अधिकांश पत्ती धब्बा रोगों और अनाज मोल्ड के लिए प्रतिरोधी है। हरे चारे की उपज 38 टन प्रति हेक्टेयर और सूखे चारे की उपज 13.5 टन प्रति हेक्टेयर है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)

ज्वार की कितनी प्रकार की किस्में होती हैं?

ज्वार कई आकार ले सकती है, एक तंग सिर वाले, गोल पैनिकल से लेकर एक खुले, लटके हुए पैनिकल तक जो छोटा या लंबा हो सकता है। अनाज ज्वार लाल, नारंगी, कांस्य, तन, सफेद और काले रंग की ज्वार किस्मों (Sorghum Varieties) में आता है।

किस प्रकार की ज्वार अच्छी होती है?

काला ज्वार: ज्वार की एक विशेष किस्म जिसका इस्तेमाल अक्सर खाद्य उद्योग में किया जाता है। इस अनाज में उच्च स्तर के एंटीऑक्सीडेंट और फाइटोकेमिकल्स होते हैं, जो संभावित स्वास्थ्य लाभ दिखाते हैं।

ज्वार की सबसे ऊंची किस्म कौन सी है?

बायोमास ज्वार: बायोमास ज्वार की ऊंचाई ज्वार की सभी किस्मों (Sorghum Varieties) में सबसे अधिक होती है, जो सामान्य बढ़ते मौसम में 6 मीटर (20 फीट) तक पहुंच जाती है।

ज्वार की हाइब्रिड किस्में कौन सी है?

जेकेएसएच- 22 हाइब्रिड ज्वार, जेबीएसएच- 222 हाइब्रिड ज्वार, जेबीएसएच- 1001 हाइब्रिड ज्वार आदि ज्वार की प्रचलित हाइब्रिड किस्में है।

ज्वार की उन्नत किस्में कौन सी है?

सीएसबी- 13, सीएसबी- 15, एसपीबी- 1388 (बुन्देला), विजेता, पीसी 6, पीसी 9, यूपी चरी- 1, यूपी चरी- 2, पन्त चरी- 3, एचसी- 308, हरियाली चरी- 1711 और कानपुरी सफ़ेद मीठी ज्वार आदि ज्वार की उन्नत प्रचलित किस्में है।

ज्वार की कटाई वाली किस्में कौन सी है?

सीएसएच- 6, सीएसएच- 14, सीएसएच- 18, जवाहर ज्वार- 741, पीसी- 6, पीसी- 9, यूपी चरी- 1, यूपी चरी- 2, पन्त चरी- 3 और एचसी 308 आदि प्रमुख ज्वार की कटाई वाली किस्में है।

ज्वार की बहु कटाई वाली किस्में कौन सी है?

पंत सकर ज्वार: 5, मीठी सूडान (एसएसजी: 59–3), एमपीचरी, पूसा चरी: 23 और जवाहर चरी: 69 ( जेसी: 69) आदि ज्वार की बहु कटाई वाली किस्में प्रमुख है।

ज्वार की एक कटाई वाली किस्में कौन सी है?

हरियाणा चरी- 136, हरियाणा चरी- 171, हरियाणा चरी- 260, हरियाणा चरी- 307, और पीससी- 9 जैसी किस्में ज्वार की एक कटाई वाली किस्में हैं।

ज्वार की बुवाई किस महीने में होती है?

सिंचित इलाकों में ज्वार की फसल 20 मार्च से 1 जुलाई तक बो देनी चाहिए। जिन क्षेत्रों में सिंचाई उपलब्ध नहीं हैं, वहां बरसात की फसल मानसून में पहला मौका मिलते ही बो देनी चाहिए। अनेक कटाई वाली किस्मों या संकर किस्मों की बीजाई अप्रैल के पहले पखवाड़े में करनी चाहिए।

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