
How to Grow Pippali in Hindi: पिप्पली, जिसे वैज्ञानिक रूप से पाइपर लोंगम के नाम से जाना जाता है, एक प्रतिष्ठित औषधीय जड़ी-बूटी है जिसका पारंपरिक भारतीय चिकित्सा, विशेष रूप से आयुर्वेद में एक प्रमुख स्थान है। अपने अनेक स्वास्थ्य लाभों के लिए प्रसिद्ध, जिसमें एक शक्तिशाली श्वसन उत्तेजक और पाचन सहायक के रूप में इसकी भूमिका भी शामिल है, पिप्पली की खेती सदियों से भारत के विभिन्न क्षेत्रों में की जाती रही है।
यह जड़ी-बूटी न केवल समग्र स्वास्थ्य पद्धतियों में योगदान देती है, बल्कि कृषि अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जैसे-जैसे प्राकृतिक उपचारों की मांग बढ़ती जा रही है, किसानों, शोधकर्ताओं और हर्बल औषधि उद्योग के हितधारकों के लिए पिप्पली (Pippali) की खेती की बारीकियों को समझना आवश्यक हो गया है। यह लेख पिप्पली की खेती के विभिन्न पहलुओं पर गहराई से चर्चा करता है, इसकी खेती की तकनीकों, उपज और उत्पादकों के सामने आने वाली चुनौतियों का पता लगाता है।
पिप्पली के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable Climate for Pippali)
पिप्पली (Pippali) की खेती के लिए गर्म और नम जलवायु उपयुक्त है, जिसमें 100 से 1000 मीटर की ऊंचाई शामिल है। यह पौधा उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अच्छी तरह से पनपता है, जहाँ इसे आंशिक छाया की आवश्यकता होती है (लगभग 20-25% छाया)। यह घने पेड़ों के नीचे या नारियल और सुपारी के पेड़ों के बगीचों में अंतर-फसल के रूप में अच्छी तरह उगता है। इसके लिए उच्च आर्द्रता और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी आवश्यक है।
पिप्पली के लिए भूमि का चयन (Selection of Land for Pippali)
पिप्पली की खेती के लिए, उपजाऊ, अच्छी जल निकासी वाली, कार्बनिक पदार्थों से भरपूर दोमट मिट्टी, या अच्छी नमी धारण क्षमता वाली लैटेराइट मिट्टी चुनें, जिनमें जलनिकास की पर्याप्त व्यवस्था हो। सामान्य पीएचमान वाली ऐसी मिट्टियां जिनमें नमी सोखने की क्षमता हो इसके लिए उपयुक्त पाई जाती है।
पिप्पली (Pippali) की फसल उन मिट्टियों में भी अच्छी प्रकार उगती देखी गई है, जो चूना अथवा कैल्शियम युक्त हों। वैसे ऐसे क्षेत्र जहां पान की खेती होती हो वे इसके लिए ज्यादा उपयुक्त होते हैं।
पिप्पली के लिए भूमि की तैयारी (Land Preparation for Pipali)
पिप्पली (Pippali) के पौधे 4-5 साल तक खेत में रहते हैं। इस दृष्टि से मुख्य भुमी की अच्छी प्रकार तैयारी करने की आवश्यकता होती है। इसके लिए खेत की 2-3 बार अच्छी प्रकार जुताई करके उसमें प्रति एकड़ 7 से 10 टन गोबर की पकी हुई खाद मिला दी जाती है। तदुपरान्त खेत में 2 X 2 फीट की दूरी पर गड्ढे बना लिए जाते हैं, जिनमें अंतत: इन कलमों का रोपण करना होता है।
इन गड्डों में से प्रत्येक में अच्छी प्रकार पकी हुई गोबर की खाद डाल दी जाती है। भुमी की तैयारी करते समय सेंद्रीय खाद भी मिला सकते है। पिप्पली का आरोहरण के लिए किसी दूसरे सहारे की जरूरत होती है, अत; खेत तैयार करते समय भी ऐसे आरोहरण की व्यवस्था की जाती है।
प्राय: इस दृष्टि से प्रत्येक गड्ढे के पास एक-एक पौधा पंगार अथवा अगस्ती का लगा दिया जाता है, जो तेजी से बढ़ता है तथा पिप्पली (Pippali) की लताऐं इन पर चढ़ाई जाती हैं। आरोहण हेतु सूखी डालियां भी खड़ी की जा सकती हैं। कई क्षेत्रों में इन्हें सुबबूल अथवा नारियल के पौधों पर भी चढ़ाया जाता है।
पिप्पली की उन्नत किस्में (Improved varieties of Pippali)
पिप्पली (Pippali) की कुछ उन्नत किस्में हैं ‘विश्वम’, जो केरल कृषि विश्वविद्यालय द्वारा जारी की गई है, और ‘गोल थिप्पाली’, ‘पीपल नॉनसोरी’, ‘असली’, ‘सुवाली’, और ‘चीमथिप्पल्ली’ जैसी स्थानीय किस्में भी मौजूद हैं। खेती की बात करें तो, उन्नत किस्में चुनने के अलावा, सही मिट्टी और जलवायु का चुनाव करना भी महत्वपूर्ण है।
पिप्पली की बुवाई या रोपाई का समय (When to sow Pipali)
पिप्पली की खेती के लिए नर्सरी तैयार करने का सबसे अच्छा समय मार्च-अप्रैल है और मानसून की शुरुआत में, यानी जुलाई के आसपास, रोपाई की जाती है। पिप्पली (Pippali) की खेती के लिए बुवाई या रोपाई के समय पर अधिक विवरण इस प्रकार है, जैसे-
नर्सरी का समय: नर्सरी तैयार करने का सबसे अच्छा समय मार्च और अप्रैल है।
रोपाई का समय: जुलाई में मानसून की शुरुआत के साथ ही मुख्य खेत में रोपाई की जाती है।
सिंचित अवस्था में: अगर आपके पास सिंचाई की सुविधा है, तो इसे पूरे साल लगाया जा सकता है।
प्रसार: पिप्पली का प्रसार सकर्स, जड़ों या बेल की कलमों द्वारा किया जाता है।
पिप्पली के पौधे तैयार करना (Propagating Pippali Plants)
पिप्पली (Pippali) का प्रवर्धन बीजों से भी किया जा सकता है, सकर्स से भी, कलमों से भी तथा इसकी शाखाओं की लेयरिंग करके किया जाता है। व्यवसायिक कृषिकरण की दृष्टि से इसका कलमों द्वारा प्रवर्धन किया जाना ज्यादा उपयुक्त होता है। इसके लिए सर्वप्रथम इन्हें नर्सरी में तैयार किया जाता है। आम तौर पर पुराने पौधों कि 3-5 गांठ वाली कटिंग्स तैयार कर सीधा खेत में लगा दिया जाता हैं।
नर्सरी में भी पौधे कटिंग्स के द्वारा तैयार किये जाते हैं। 3-5 गांठ वाली कटिंग्स में 15-20 दिनो में जड उत्पन्न हो जाती हैं, जिसके 25-30 दिन बाद इसको खेत में लगाया जा सकता हैं। तनों के 3-5 गांठ वाली छाट भुमी में सीधे लगाये जाते है। मार्च अप्रैल महीनों में 8 X 15 सेमी आकार के प्लास्टिक बॅग में रोप बनाये जाते हैं। छाट लगाते समय रूटिंग हॉर्मोन्स से जड़ आने में मदद होती है।
पिप्पली के रोपण की विधि (Method of planting Pippali)
जनवरी के दुसरे सप्ताह से मार्च के पहले सप्ताह तक मानसून के प्रारंभ होते ही नर्सरी में तैयार किए गए पिप्पली (Pippali) के पौधों का मुख्य खेत में गड्ढों में रोपण कर दिया जाता है। कुछ ठिकानों में मानसून के प्रारंभ में रोपण किया जाता है। प्रायः एक गड्ढे में दो पौधों का रोपण किया जाना उपयुक्त रहता है।
एक हेक्टेयर के लिए 108,000 कटिंग लगते है। बॅग में बनाये हुये रोप लगभग 35,000 लगते है, रोपण ट्रेन्च के किनारे में करे। मुख्य खेत में इन पौधों की रोपाई 1.5 x 0.6 मीटर अथवा 1.75 x 0.75 मीटर की दूरी पर की जाती है। एक हेक्टेयर क्षेत्र में लगभग ३ हजार बेड किये जाते है। तथा इस प्रकार एक एकड़ में लगाने के लिए लगभग 20,000 से 25,000 पौधों की आवश्यकता होती है।
पिप्पली (Pippali) की लताओं को चढ़ाने के लिए आरोहण की व्यवस्था किया जाना आवश्यक होता है। इसके लिए या तो अगस्ती, पंगार रोपित किया जाता है। सूखे डंठल गाड़ दिए जाते हैं, जिन पर ये लताऐं चढ़ाई जाती है। यदि अरोहण की उचित व्यवस्था न हो तो उन लताओं पर लगने वाले फल सड़ सकते हैं। इस प्रकार इनकी लताओं के आरोहण की उपयुक्त व्यवस्था किया जाना आवश्यक होगा। आरोहण से आवश्यक छाँव भी पिप्पली के फसल को मिलती है।
पिप्पली की फसल में निंदाई-गुड़ाई (Weeding in Pippali Crop)
फसल (Pippali) की प्रारंभिक अवस्था में खेत की हाथ से निंदाई-गुड़ाई किया जाना आवश्यक होता है, ताकि पौधों के आस-पास खरपतवारों को पनपने न दिया जाए। बाद में जब इन पौधों की लताऐं फैल जाती है, तो अतिरिक्त निंदाई- गुड़ाई की आवश्यकता नहीं होती। आरोहण के लिए लगाए गए अगस्ता, सुबबूल, पंगार की ट्रेनिंग प्रूनिंग आवश्यकतानुसार करे।
पिप्पली में सिंचाई की व्यवस्था (Irrigation for Pippali)
पिप्पली (Pippali) को एक असिंचित फसल के रूप में लिया जाता है, परन्तु अच्छी फसल प्राप्त करने की दृष्टि से आवश्यक है, सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था की जाये। सिंचाई स्प्रिंकलर पद्धति से भी की जा सकती है तथा फ्लड इरीगेशन विधि से भी। वैसे इस फसल के लिए ड्रिप विधि भी काफी उपयोगी सिद्ध हो सकती है। नियमित अंतरालों पर फसल की सिंचाई की जाना फसल की उपयुक्त वृद्धि के लिए आवश्यक होता है।
पिप्पली फसल की कटाई-छंटाई (Pippali Crop Pruning)
प्रायः फसल लेने के उपरान्त फरवरी-मार्च माह में पिप्पली (Pippali) के पौधों की कटाई-छंटाई कर दी जाती है। कुछ समय के उपरान्त इन पौधों पर पुनः पत्ते आ जाते हैं, तथा ये लताएं पुनः फलने फूलने लगती हैं। इस प्रकार प्रतिवर्ष इन पौधों की कटाई-छंटाई करते रहने से ये पौधे 4-5 वर्ष तक अच्छी फसल देते रहते है।
कटाई-छंटाई से प्राप्त लताओं को आगे प्रवर्धन हेतु कलमों के रूप में भी प्रयुक्त किया जा सकता है। कुछ स्थानों पर फरवरी माह में जब पौधों की छटाई की जाती हैं, तभी इनकी कटिंग्स तैयार कर उसी समय खेत में रोपित कर नई फसल तैयार की जाती हैं।
इस प्रकार से इनके पौधे तैयार करने में समय एवं धन की बचत होती हैं। पांच वर्ष के उपरान्त पौधों को खोद कर उनसे मूल भी प्राप्त किए जा सकते हैं, जिन्हें छोटे-छोटे टुकड़ों में काट करके पिप्पलामूल के रूप में विक्रय किया जाता हैं।
पिप्पली में कीट और रोग नियंत्रण (Pest and Disease Control in Pipali)
पत्तोंपर फायटोप्थेरा तनों पर रॉट और अन्ध्राक्नोस रोग पिप्पली (Pippali) में पाए जाते है। 0.5 टक्का बोर्डो स्प्रे और 1.0 टक्का बोडों ड्रेचिंग करने से यह रोग नियंत्रित होते है। ये फसल को मिली बग तथा टिप्पा नए पत्ते, स्पाइक को नुकसान पहुँचाता है। निदान हेतु निम तेल अथवा सेंद्रिय किंड नाशक का छिड़काव करने से लाभ होता है।
जड़ पर फफूंद बढ़ने से लता मरने की संभावना दिखाई देती है। ऑर्गेनिक फफुंदनाशक का छिड़काव करने से मर रोग नियंत्रित होता है। ड्रेचिंग करने से फफुंद रोग नियंत्रित होते है।
पिप्पली फसल का पकना (Ripening of Pippali Crop)
पिप्पली (Pippali) रोपण के लगभग पांच-छह माह के उपरान्त पौधों पर फल (स्पाइक्स) बनकर तैयार हो जाते हैं। जब ये फल हरे-काले रंग के होने के बाद काटने के लिए इनको चुन लिया जाता है। कई स्थानों पर इन फलों की तुड़ाई वर्ष में 3-4 बार की जाती है। स्पाइक (फल) डंठल के साथ तोड़नी जरुरी होती है।
तुड़ाई के उपरान्त इन फलों को धूप में डालकर 4-5 दिन तक अच्छी प्रकार सुखाया जाता है। जब ये अच्छी प्रकार सूख जाएँ तो इन्हे विपणन हेतु भिजवा दिया जाता है। काले रंग वाले कड़क स्पाईक निकलने से अच्छी गुणवत्ता प्राप्त होती हैं। जादा पके हुये हरे फल (स्पाइक) निकालने से उत्पाद की गुणवत्ता कम होती है।
पिप्पली की खेती से उपज (Yield of Pippali Cultivation)
पिप्पली (Pippali) की खेती से प्रति हेक्टेयर 7 से 10 क्विंटल सूखी उपज मिल सकती है, जिसे प्रति एकड़ 3 से 5 क्विंटल (लगभग) मान सकते हैं। यह उपज रोपाई के 4-6 महीने बाद फूल आने और फिर 4-5 सप्ताह बाद फल तोड़ने के बाद मिलती है। उपज में सुधार के लिए उचित जलवायु और मिट्टी का चयन, सही किस्म का चुनाव और उचित खाद व पानी का प्रबंधन महत्वपूर्ण है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
पिप्पली (Pippali) उगाने के लिए, आप 10-15 सेमी लंबी बेल की कलमों या बीज का उपयोग कर सकते हैं। इसके लिए अच्छी जल निकासी वाली, जैविक पदार्थों से भरपूर मिट्टी का उपयोग करें और खेत या गमले को अच्छी तरह से तैयार करें। कलमों या बीजों को बोने के बाद मिट्टी को नम रखें और पौधे को धूप वाली जगह पर रखें, साथ ही सहारा देने के लिए कोई डंडा भी लगाएं।
पिप्पली (Pippali) 25°C से 35°C के तापमान वाले गर्म, आर्द्र जलवायु में पनपती है। इसके लिए अच्छी जल निकासी वाली, कार्बनिक पदार्थों से भरपूर उपजाऊ मिट्टी और 6.0 से 7.0 के बीच पीएच स्तर की आवश्यकता होती है।
पिप्पली (Pippali) की दो मुख्य किस्में हैं: छोटी पिप्पली और बड़ी पिप्पली। आयुर्वेद में, छोटी पिप्पली को आमतौर पर अधिक प्रभावी और पसंदीदा माना जाता है, हालांकि दोनों ही औषधीय उपयोगों के लिए महत्वपूर्ण हैं।
पिप्पली (Pippali) लगाने का सबसे अच्छा समय फरवरी-मार्च है, जब पुराने पौधों से 8-10 सेंटीमीटर लंबी शाखाओं को काटकर लगाया जाता है। इसे बरसात के मौसम की शुरुआत में लगाना भी एक अच्छा विकल्प है, और इस दौरान मिट्टी की उर्वरता पर निर्भर रहने के बजाय, आप खाद का भी उपयोग कर सकते हैं।
पिप्पली (Pippali) उगाने के लिए बीजों की संख्या इस बात पर निर्भर करती है कि आप कितने पौधे लगाना चाहते हैं। आमतौर पर, प्रत्येक गड्ढे में 2-3 बीज बोए जाते हैं और अंकुरण के बाद केवल एक स्वस्थ पौधा रखा जाता है।
पिप्पली (Pippali) की फसल में सिंचाई रोपाई के बाद पहले 20 दिनों तक हर दिन, और फिर बाद में सप्ताह में एक बार करें। यदि पिप्पली को अन्य फसलों के साथ अंतरफसल के रूप में उगाया जा रहा है, तो मुख्य फसल की सिंचाई ही पर्याप्त होती है। सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर प्रणाली एक अच्छा विकल्प है, और मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए पलवार का उपयोग करना फायदेमंद होता है।
पिप्पली (Pippali) की खेती के लिए, मिट्टी तैयार करते समय 18 से 20 टन सड़ी हुई गोबर की खाद, 60 किलोग्राम पोटाश और 80 किलोग्राम फास्फोरस मिलाएं। इसके अलावा, आप चिकन खाद का भी उपयोग कर सकते हैं, जो एक उत्कृष्ट और प्राकृतिक उर्वरक है और इसके उपयोग से पौधों में गर्मी का स्तर भी बेहतर होता है।
पिप्पली (Pippali) की फसल की निराई-गुड़ाई पहली बार फसल उगने के बाद और उसके बाद दो से तीन बार करनी चाहिए, खासकर जब मिट्टी नम हो या बारिश के बाद। एक बार जब फसल खेत में फैल जाती है और घनी हो जाती है, तो खरपतवार की समस्या कम हो जाती है।
पिप्पली (Pippali) के सामान्य कीटों में एफिड, सफेद मक्खी और मकड़ी के कण शामिल हैं, जबकि जड़ सड़न और फफूंद संक्रमण जैसे रोग भी खतरा पैदा कर सकते हैं। एकीकृत कीट प्रबंधन रणनीतियों को लागू करने से इन समस्याओं को कम करने में मदद मिल सकती है।
पिप्पली (Pippali) में कीटों और रोगों के प्रबंधन के लिए एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) तरीकों को अपनाना सबसे प्रभावी है, जिसमें जैविक और रासायनिक दोनों तरीकों का मिश्रण शामिल है।
खेती के तरीकों और पर्यावरणीय परिस्थितियों के आधार पर, पिप्पली (Pippali) को रोपण के बाद पकने में आमतौर पर लगभग 6 से 8 महीने लगते हैं।
पिप्पली (Pippali) की कटाई का सर्वोत्तम समय है अक्टूबर से दिसंबर के बीच जब फल पूरी तरह से पक जाते हैं और तना सूखने लगता है। इस अवधि के दौरान, फल के अंदर के बीज पूरी तरह से विकसित हो जाते हैं और कटाई के बाद, तने को सुखाने के लिए एक अच्छी जगह पर लटकाया जा सकता है।
पिप्पली (Pippali) की खेती से प्रति हेक्टेयर 7 से 10 क्विंटल सूखी फलियाँ और 5 साल बाद लगभग 1 क्विंटल जड़ प्राप्त हो सकती है। यह आर्थिक रूप से फायदेमंद है, क्योंकि सूखी फली और जड़ों दोनों का बाज़ार में अच्छा मूल्य मिलता है।
हाँ, पिप्पली (Pippali) को बगीचे में उगाया जा सकता है, चाहे वह जमीन में हो या गमले में। इसके लिए नम, उपजाऊ मिट्टी और आंशिक छाया वाली जगह की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह स्वाभाविक रूप से झाड़ियों के नीचे उगता है।
यह शरीर के दर्द, गठिया के दर्द, सर्दी और खाँसी से राहत दिलाने में लाभप्रद बताया गया है। पिप्पली (Pippali) कोमा और उनींदेपन में नसवार के रूप में उपयोग की जाती है और यह वातहर के रूप में भी प्रभावी है। यह उन लोगों को शामक के रूप में भी दी जाती है जो अनिद्रा और मिर्गी से पीड़ित होते हैं।
पिप्पली (Pippali) के मुख्य स्वास्थ्य लाभों में पाचन में सुधार, श्वसन संबंधी समस्याओं से राहत और प्रतिरक्षा को बढ़ाना शामिल है। यह खांसी, दमा और ब्रोंकाइटिस जैसी श्वसन संबंधी बीमारियों के लिए अत्यधिक फायदेमंद है, साथ ही अपच, गैस और भूख न लगने जैसी पाचन समस्याओं को दूर करती है। पिप्पली में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुण भी होते हैं, जो संक्रमण से बचाने में मदद करते हैं और दर्द निवारक गुणों के कारण सिरदर्द और मांसपेशियों के दर्द में भी राहत देती है।
जी हाँ, हर्बल दवाओं और आहार पूरकों में बढ़ती माँग के कारण पिप्पली (Pippali) का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। इसकी खेती किसानों के लिए, खासकर प्राकृतिक स्वास्थ्य के बढ़ते चलन के साथ, महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ प्रदान कर सकती है।





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