
How to Grow Liquorice in Hindi: अपने मीठे स्वाद और औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध, मुलेठी, एक बारहमासी जड़ी बूटी है जिसकी खेती भारत में सदियों से की जाती रही है और जिसने पारंपरिक चिकित्सा और स्थानीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जैसे-जैसे प्राकृतिक उपचारों और हर्बल उत्पादों में वैश्विक रुचि बढ़ रही है, भारत में मुलेठी की खेती के महत्व पर नए सिरे से ध्यान दिया जा रहा है।
यह लेख देश में मुलेठी (Liquorice) की खेती के बहुआयामी पहलुओं पर प्रकाश डालता है, इसके इतिहास, आदर्श उत्पादन स्थितियों, खेती की तकनीकों और किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों का पता लगाता है। इस फसल के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों और आर्थिक प्रभावों की जाँच करके, हमारा उद्देश्य मुलेठी की खेती की भविष्य की संभावनाओं पर प्रकाश डालना है।
मुलेठी के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for liquorice)
मुलेठी शुष्क, धूपदार और गर्म, समशीतोष्ण या उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में पनपती है। यह इष्टतम विकास के लिए लंबी, गर्म ग्रीष्मकाल पसंद करती है और एक बार स्थापित होने के बाद यह कुछ हद तक ठंड के प्रति प्रतिरोधी हो जाती है, लेकिन पाला सहन नहीं कर सकती।
मुलेठी (Liquorice) के लिए आदर्श तापमान 15°C और 30°C (59°F–86°F) के बीच होता है। आमतौर पर इसे सालाना 50-100 सेमी बारिश की आवश्यकता होती है। उच्च आर्द्रता वाले वातावरण से बचना चाहिए, क्योंकि इससे फफूंद जनित रोग हो सकते हैं।
मुलेठी के लिए भूमि का चयन (Selection of land for liquorice)
मुलेठी (Liquorice) की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है, जिसमें कार्बनिक पदार्थों की मात्रा अच्छी हो और पीएच मान 6.0 से 8.2 के बीच हो। यह भी जरूरी है कि खेत में अच्छी जल निकासी हो, क्योंकि जलभराव से फंगल रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, ऐसी भूमि का चुनाव करें जहां जलभराव न होता हो, और जगह पर पूरी धूप आनी चाहिए और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु होनी चाहिए।
मुलेठी के लिए खेत की तैयारी (Field preparation for liquorice)
मुलेठी (Liquorice) की खेती के लिए खेत की तैयारी में जमीन को अच्छी तरह जोतना, दो-तीन गहरी जुताई करना, पानी के जमाव को रोकने के लिए उसे समतल करना, और अंतिम जुताई के समय गोबर की खाद (FYM) या वर्मीकम्पोस्ट जैसे जैविक पदार्थ डालना शामिल है। जड़ों के अच्छे विकास के लिए, खेत खरपतवार मुक्त होना चाहिए और पंक्तियाँ 45-60 सेमी ऊँची होनी चाहिए।
मुलेठी की उन्नत किस्में (Improved Liquorice Varieties)
मुलेठी की खेती के लिए कोई विशेष किस्म नहीं है, बल्कि इसके पौधे सामान्य वैज्ञानिक नाम ग्लिसराइजा ग्लबरा के तहत उगाए जाते हैं। हालांकि, मुलेठी की प्राथमिक और सबसे उन्नत किस्म मिश्री (सीआईएमएपी एल- 1) है, जो केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीएसआईआर-सीआईएमएपी) द्वारा विकसित एक उच्च उपज वाली, आनुवंशिक रूप से श्रेष्ठ किस्म है।
एक अन्य उल्लेखनीय मुलेठी (Liquorice) की किस्म हरियाणा मुलहट्टी- 1 है, जिसे चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किया गया है। आप कृषि संस्थानों या नर्सरी से ग्लिसराइजा ग्लबरा के प्रमाणित पौधे खरीद सकते हैं।
मुलेठी की बुवाई या रोपाई का समय (Planting time of liquorice)
मुलेठी (Liquorice) की बुवाई या रोपाई का सबसे अच्छा समय फरवरी-मार्च या जुलाई-अगस्त है। इसके लिए पहले जनवरी-फरवरी में नर्सरी तैयार की जाती है। सीधे खेत में बुवाई के लिए तने की कटिंग या जड़ के टुकड़े इस्तेमाल किए जाते हैं, जिन्हें उचित दवाओं से उपचारित करके लगाया जाता है। बुवाई या रोपण के बाद, सिंचाई का ध्यान रखें और सुनिश्चित करें कि खेत में पानी न रुके, क्योंकि इससे जड़ें सड़ सकती हैं।
मुलेठी के पौधे तैयार करना (Preparation of Liquorice plants)
मुलेठी के पौधे मुख्य रूप से तने या जड़ की कटिंग से तैयार किये जाते है। इसके लिए 15-25 सेमी लंबी, 2-3 आँख वाली कटिंग को नर्सरी में पॉलीथीन बैग में लगाकर तैयार किया जाता है। एक अन्य विधि में बीज का भी उपयोग किया जाता है, लेकिन यह विधि भारत में कम प्रचलित है क्योंकि इसका अंकुरण प्रतिशत कम होता है। मुलेठी (Liquorice) की खेती के लिए पौधे तैयार करने की विधियाँ इस प्रकार है, जैसे-
तने/जड़ की कटिंग द्वारा:-
कटिंग तैयार करना: 15-25 सेमी लंबी, 2-3 आँख वाली कटिंग या जड़ के टुकड़े चुनें।
नर्सरी: पॉलीथीन बैग में मिट्टी और वर्मीकंपोस्ट के मिश्रण में इन कटिंग्स को लगाएं और एक नर्सरी तैयार करें।
रोपाई: जब पौधे अच्छी तरह से स्थापित हो जाएं, तो उन्हें खेत में रोपा जा सकता है।
दूरी: लाइन से लाइन की दूरी 3 फीट और पौधे से पौधे की दूरी 1.5 फीट रखें।
बीज द्वारा:-
बीज उपचार: बीजों को अंकुरण में सुधार के लिए 24 घंटे के लिए गुनगुने पानी में भिगो दें।
बुआई: बीजों को 1/4 इंच की गहराई पर अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में बोएं।
देखभाल: अंकुरण तक मिट्टी को नम रखें लेकिन गीली नहीं।
प्रत्यारोपण: जब पाले का खतरा टल जाए और रात का तापमान लगातार 50°F से ऊपर हो, तो पौधों को बाहर रोपें।
मुलेठी के लिए रोपाई की विधि (Transplanting method for licorice)
मुलेठी (Liquorice) की रोपाई के लिए, खेत को गहरी जुताई और हैरो चलाकर तैयार करें, फिर गोबर की खाद डालें। रोपाई के लिए 15-25 सेंटीमीटर लंबी जड़ या तने की कटिंग, जिसमें 2-3 कलियाँ हों, का इस्तेमाल करें। इन्हें बसंत (फरवरी-मार्च) या जुलाई-अगस्त के रोपण मौसम में 60×45 सेंटीमीटर या 90×45 सेंटीमीटर की दूरी पर 6-8 सेंटीमीटर गहराई पर लगाएँ। रोपाई के बाद, कटिंग में जड़ें जमने तक हल्का पानी दें और फिर स्वस्थ फसल के लिए नियमित रूप से सिंचाई करते रहें।
मुलेठी में खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizer for Licorice)
मुलेठी (Liquorice) की खेती के लिए एक एकड़ में लगभग 10-15 टन सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डाली जाती है। इसके अतिरिक्त, अंतिम जुताई के समय 40 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो फॉस्फोरस और पोटाश 20 किलो डालें, तथा बाकी 20 किलो नाइट्रोजन का छिड़काव पौधों के फुटाव के दौरान करें। जैविक खाद जैसे कि कंपोस्ट, वर्मी-कंपोस्ट और हरी खाद का भी उपयोग किया जा सकता है।
मुलेठी में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Liquorice)
मुलेठी (Liquorice) की खेती में सिंचाई प्रबंधन के लिए, रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें और फिर पहले हफ्ते तक हर 3 दिन पर सिंचाई करें। पौधा स्थापित होने के बाद, गर्मियों में महीने में एक बार और सर्दियों में सिंचाई की कोई आवश्यकता नहीं होती है। पानी के ठहराव से बचें, क्योंकि इससे जड़ सड़न रोग हो सकता है। कुल मिलाकर, फसल को पूरे मौसम में 7-10 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है।
मुलेठी में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in liquorice)
मुलेठी की खेती में प्रभावी खरपतवार नियंत्रण के लिए यांत्रिक निराई, मल्चिंग और सावधानीपूर्वक लक्षित शाकनाशी के उपयोग का संयोजन आवश्यक है। विशेष रूप से पहले वर्ष में, कुदाल चलाना और हाथ से निराई जैसी यांत्रिक विधियाँ आवश्यक हैं, जबकि मल्चिंग खरपतवारों को दबाने और मिट्टी की नमी बनाए रखने में मदद करती है।
यदि शाकनाशी का उपयोग किया जाता है, तो उन्हें विशिष्ट विकास चरणों के दौरान उगने के बाद के उपचार के रूप में और अत्यधिक सावधानी के साथ प्रयोग किया जाना चाहिए क्योंकि ये मुलेठी (Liquorice) की फसल की गुणवत्ता और सुरक्षा को प्रभावित कर सकते हैं।
मुलेठी में कीट और रोग नियंत्रण (Pest and Disease Control in Licorice)
मुलेठी (Liquorice) की फसल में कीटों और रोगों के नियंत्रण के लिए नियमित जांच और उचित देखभाल महत्वपूर्ण है। कीटों जैसे मकड़ी के कण, स्लग और इल्ली को नियंत्रित करने के लिए नीम तेल या जैविक कीटनाशकों का उपयोग करें। प्रमुख रोगों में जड़ सड़न, तना सड़न और पाउडरी फफूंद शामिल हैं, जिनसे बचाव के लिए जल निकासी में सुधार, अत्यधिक नमी से बचना और उचित सिंचाई प्रबंधन आवश्यक है।
मुलेठी की फसल की खुदाई या कटाई (Digging the liquorice crop)
मुलेठी (Liquorice) की फसल की खुदाई 2.5 से 3 साल बाद, पतझड़ में की जाती है जब पौधे की पत्तियां गिर जाती हैं। खुदाई के लिए सबसे अच्छा समय नवंबर-दिसंबर का महीना है ताकि उच्च ग्लाइसीराइज़िन वाली जड़ें मिलें। इस प्रक्रिया में, जड़ों के आसपास की मिट्टी को ढीला करके मुख्य जड़ों को सावधानी से खोदकर निकाला जाता है, और भविष्य में फिर से उगाने के लिए कुछ मोटी क्षैतिज जड़ों को छोड़कर पतली और गहरी जड़ों को हटा दिया जाता है।
मुलेठी की फसल से उपज (Yield from liquorice crop)
मुलेठी (Liquorice) की फसल की उपज में काफी अंतर हो सकता है, कुछ स्रोत 12-14 महीनों के बाद प्रति हेक्टेयर 2 टन सूखी जड़ का उल्लेख करते हैं, जबकि अन्य तीन वर्षों में 6.0-7.9 टन प्रति हेक्टेयर जड़ बायोमास की रिपोर्ट करते हैं। चारे की उपज भी काफी अच्छी हो सकती है, जो सालाना 2.4-6.1 टन प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है। कुछ स्रोत के अनुसार, तीन वर्षों की वृद्धि के बाद कुछ मामलों में 17-28 टन प्रति हेक्टेयर तक की उच्च उपज संभव है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
मुलेठी (Liquorice) की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है, जिसमें जल निकासी अच्छी हो और पीएच मान 6 से 8.2 के बीच हो। बुवाई के लिए, 15-25 सेमी लंबे 2-3 आंखों वाले तने या जड़ के टुकड़े लें। बुवाई फरवरी-मार्च या जुलाई-अगस्त में की जा सकती है और रोपण के बाद हल्की सिंचाई बहुत जरूरी है।
मुलेठी (Liquorice) की खेती के लिए सबसे अच्छी परिस्थितियाँ हैं पूरी धूप, अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी, और पीएच मान 6.0 से 8.2 के बीच होना। इसके लिए 15°C से 30°C तापमान और 50 से 100 सेंटीमीटर वर्षा की आवश्यकता होती है, और सिंचाई भी लाभदायक होती है।
मुलेठी (Liquorice) की कोई एक सबसे अच्छी किस्म नहीं है, बल्कि इसकी कई किस्में अलग-अलग गुणों और उपयोगों के लिए जानी जाती हैं, जैसे कि मीठी मुलेठी, नमकीन मुलेठी और जड़ी-बूटी के रूप में उपयोग की जाने वाली किस्में। सबसे अच्छी किस्म आपकी जरूरत पर निर्भर करती है।
मुलेठी (Liquorice) लगाने का सबसे अच्छा समय बसंत के अंत या गर्मियों की शुरुआत में होता है, जब पाले का खतरा टल जाता है। यदि आप बीज से उगा रहे हैं, तो आखिरी पाले से लगभग छह से आठ हफ्ते पहले घर के अंदर बीज बोएं और जब सभी पाले खत्म हो जाएं तब उन्हें बाहर रोपित करें।
मुलेठी (Liquorice) को पहली बार रोपण के तुरंत बाद पानी देना चाहिए, फिर एक सप्ताह तक हर तीसरे दिन सिंचाई करनी चाहिए। उसके बाद, गर्मियों में 30-45 दिन के अंतराल पर और सर्दियों में लगभग महीने में एक बार या बहुत कम पानी दें, और ध्यान रखें कि खेत में पानी जमा न हो।
मुलेठी (Liquorice) के लिए जैविक उर्वरक, जैसे कि गोबर की खाद या कम्पोस्ट, सबसे अच्छी होती हैं। ये धीमी गति से पोषक तत्व प्रदान करती हैं, जो इस औषधीय पौधे के लिए आवश्यक है। रासायनिक उर्वरकों से बचें, क्योंकि वे मुलेठी के औषधीय गुणों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
मुलेठी (Liquorice) की निराई-गुड़ाई करने के लिए रोपण के पहले साल में 3-4 बार और उसके बाद के वर्षों में 2 बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। इसका उद्देश्य खेत को खरपतवार मुक्त रखना है ताकि पौधे की स्वस्थ वृद्धि हो सके।
मुलेठी (Liquorice) को प्रभावित करने वाले प्रमुख कीट और रोग हैं: जड़ सड़न (पाइथियम), तना सड़न (राइजोक्टोनिया), धूसर फफूंदी (बोट्राइटिस), और पत्ती धब्बा (अल्टरनेरिया) जैसे फंगल रोग, तथा इसके प्रबंधन के लिए उचित सिंचाई और कवकनाशी का उपयोग करना आवश्यक है। कुछ शोध में मुलेठी के अर्क को विभिन्न कीटों के खिलाफ़ भी प्रभावी पाया गया है।
मुलेठी (Liquorice) में कीटों और रोगों के प्रबंधन के लिए अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी और अत्यधिक पानी देने से बचना सबसे महत्वपूर्ण है ताकि जड़ सड़न जैसी फंगल बीमारियों को रोका जा सके। सामान्य कीटों, जैसे कि एफिड्स, व्हाइटफ्लाइज़ और स्पाइडर माइट्स, की नियमित निगरानी करें और उनके लिए नीम तेल या जैविक कीटनाशकों का प्रयोग करें। प्रभावित तनों को हटाना और उचित वायु परिसंचरण सुनिश्चित करना भी संक्रमण को नियंत्रित करने में मदद करता है।
मुलेठी (Liquorice) को तैयार होने में आमतौर पर तीन से चार साल का समय लगता है। इसके बाद, अच्छी फसल के लिए जड़ों की कटाई सालाना की जा सकती है, जिसमें सबसे अच्छा समय पतझड़ का होता है, जब पौधे पर फूल खिलते हैं।
मुलेठी (Liquorice) की खेती से प्रति एकड़ 25 से 30 क्विंटल (2500 से 3000 किलोग्राम) सूखी जड़ों की पैदावार प्राप्त होती है, जो कि फसल के ढाई से तीन साल बाद मिलती है। एक बार फसल लगाने के बाद, बची हुई जड़ों से दोबारा भी सिंचाई करने पर फसल आती रहती है।
हाँ, मुलेठी (Liquorice) को गमलों और बगीचों दोनों में उगाया जा सकता है। इसके लिए उपजाऊ, नम, लेकिन अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी और पूरी धूप या आंशिक छाया वाली जगह की आवश्यकता होती है। ठंडे मौसम में, गमलों में लगे पौधों को सर्दियों में घर के अंदर ले जाया जा सकता है।
मुलेठी (Liquorice) उत्पादक क्षेत्रों में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्से शामिल हैं, जहाँ की जलवायु और मिट्टी की परिस्थितियाँ इसके विकास के लिए अनुकूल हैं।
मुलेठी (Liquorice) किसानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिनमें पर्यावरणीय कारक जैसे बदलती जलवायु परिस्थितियाँ, कीट और रोग प्रबंधन, और मूल्य निर्धारण और लाभप्रदता को प्रभावित करने वाले बाज़ार पहुँच संबंधी मुद्दे शामिल हैं।
मुलेठी (Liquorice) का उपयोग मुख्यत: पारंपरिक चिकित्सा, हर्बल चाय, मिष्ठान्न और विभिन्न उत्पादों में स्वाद बढ़ाने वाले एजेंट के रूप में किया जाता है। इसके संभावित स्वास्थ्य लाभों, जैसे सूजन-रोधी और पाचन संबंधी गुणों के लिए भी इसे महत्व दिया जाता है।
हाँ, मुलेठी (Liquorice) की बाजार में अच्छी मांग है, खासकर आयुर्वेदिक और हर्बल उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण। इसके औषधीय गुणों जैसे गले की खराश, पाचन और त्वचा संबंधी समस्याओं के इलाज के लिए इसका उपयोग बहुत होता है।





Leave a Reply