
How to Grow Brahmi in Hindi: ब्राह्मी, जिसे वैज्ञानिक रूप से बाकोपा मोनिएरी के नाम से जाना जाता है, भारतीय पारंपरिक चिकित्सा में एक प्रतिष्ठित जड़ी-बूटी है, जो अपने संज्ञानात्मक-वर्धक गुणों और अनेक स्वास्थ्य लाभों के लिए प्रसिद्ध है। जैसे-जैसे हर्बल उपचारों और जैविक खेती में रुचि बढ़ती जा रही है, ब्राह्मी की खेती न केवल एक स्थायी कृषि अवसर प्रस्तुत करती है।
बल्कि उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य और कल्याण में योगदान करने का एक अवसर भी प्रदान करती है। यह लेख ब्राह्मी (Brahmi) की खेती की बारीकियों पर प्रकाश डालता है, आदर्श विकास स्थितियों, प्रसार तकनीकों, देखभाल और इस मूल्यवान जड़ी-बूटी की खेती से उपज की पड़ताल करता है। ब्राह्मी की खेती की प्रक्रिया समझकर, किसान और उत्साही लोग कृषि के समृद्ध परिदृश्य में योगदान कर सकते हैं।
ब्राह्मी के लिए आदर्श जलवायु (Ideal Climate for Brahmi)
ब्राह्मी (Brahmi) की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु को उपयुक्त माना जाता है। इसके पौधे आद्र मौसम में अच्छे से विकास करते हैं। इसकी खेती खरीफ की फसलों के साथ की जाती है। इसके पौधे सामान्य गर्मी और सर्दी दोनों मौसम में अच्छे से विकास करते हैं।
लेकिन अधिक तेज गर्मी और और सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसके पौधों को प्रभावित करता है। बारिश के मौसम में इसके पौधे अच्छे से विकास करते हैं। लेकिन इसके पौधों को सामान्य बारिश की ही आवश्यकता होती है। इसकी खेती के लिए सामान्य तापमान सबसे उपयुक्त होता है।
सामान्य तापमान पर इसके पौधे बहुत ही अच्छे से विकास करते हैं। लेकिन गर्मी के मौसम में इसके पौधे अधिकतम 40 डिग्री और सर्दियों में न्यूनतम 10 डिग्री के आसपास तापमान को ही सहन कर पाते हैं। इससे अधिक और कम तापमान होने पर इसकी पैदावार में फर्क देखने को मिलता है।
ब्राह्मी के लिए आदर्श आदर्श मिट्टी (Ideal Soil for Brahmi)
ब्राह्मी (Brahmi) की खेती सामान्य तौर पर किसी भी तरह की उपजाऊ भूमि में की जा सकती है। इसकी खेती जलभराव और अधिक तेजाबी गुण रखने वाली भूमि में भी की जा सकती है। इसकी खेती के लिए दलदली भूमि सबसे उपयुक्त होती है। इसका पौधा जंगली रूप में नहर, तालाब और नदियों के किनारे उग आते हैं। इसकी खेती के लिए भूमि का पीएच मान 5 से 7 के बीच होनी चाहिए।
ब्राह्मी के लिए खेत की तैयारी (Field Preparation for Brahmi)
ब्राह्मी (Brahmi) की खेती के लिए मिट्टी का समतल और भुरभुरा होना जरूरी है। इसके लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के वक्त खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर उसे कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें। इस की खेती में जैविक खादों एंव उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिए। जैविक खाद और इनके फायदे इस प्रकार है, जैसे-
केचुवे का खाद या वर्मिकोमपोस्ट: पौधे के लिए पोशाक तत्व प्रदान कर्ता है।
नीम की खली: जमीन में उपस्थित किटकों को मारता है।
जिप्सम पाउडर: जमीन को भुरभुरा रखने में मदद करता है।
ट्रायकोडर्मा फफूंद नाशक पाउडर: जो जमीन में उपस्थित हानिकारक फफूंद को मारने में उपयोगी होता है।
ये चारों खाद नीचे बताए गए विधि से जमीन तयार करते समय खेत में फैलाने है। खेत की जुताई के बाद खेत में पानी चलाकर खेत का पलेव कर दें। पलेव करने के बाद जब मिट्टी हल्की सुखी हुई दिखाई दे तब खेत की फिर से कल्टीवेटर के माध्यम से जुताई कर उसमें रोटावेटर चला दें।
इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी दिखाई देने लगती है। मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद खेत को समतल बना लें। खेत को समतल बनाने के बाद ब्राह्मी (Brahmi) के पौधों की रोपाई के हिसाब से खेत में क्यारी और मेड़ों का निर्माण किया जाता है।
ब्राह्मी की उन्नत किस्में (Improved varieties of Brahmi)
ब्राह्मी की खेती में दो मुख्य प्रकार के पौधे शामिल हैं: बकोपा मोनिएरी (असली ब्राह्मी या जल ब्राह्मी) और सेंटेला एशियाटिका (मंडूकपर्णी या गोटू कोला)। बकोपा मोनिएरी की कई उन्नत किस्में केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीआईएमएपी) और क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला (आरआरएल) जैसे संस्थानों द्वारा विशिष्ट उपज और सक्रिय यौगिक सामग्री के लिए विकसित की गई हैं, जैसे सुबोधक, प्रज्ञाशक्ति और सीआईएम-जागृति। ब्राह्मी (Brahmi) के प्रकार और किस्मों पर अधिक विवरण इस प्रकार है, जैसे-
ब्राह्मी के प्रकार:-
बकोपा मोनिएरी: जिसे वाटर हिसोप भी कहा जाता है, यह एक रेंगने वाला, शाकीय पौधा है, जिसकी खेती आमतौर पर नम, दलदली क्षेत्रों में की जाती है। इसे अक्सर “असली” ब्राह्मी कहा जाता है।
सेंटेला एशियाटिका: जिसे आमतौर पर मंडूकपर्णी या गोटू कोला कहा जाता है, यह गुर्दे के आकार या पंखे के आकार के पत्तों वाला एक छोटा पौधा है। “मंडूकपर्णी” नाम संस्कृत शब्द “मेंढक के आकार” से आया है, जिसका अर्थ है पत्ती का आकार।
संवर्धित किस्में:-
सुबोधक: सीआईएमएपी द्वारा विकसित, यह किस्म जंगली संग्रहों में से चुनी गई है और लगभग 47 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उच्च शुष्क जड़ी-बूटी उपज के लिए जानी जाती है, जिसमें 1.6% बैकोसाइड ए होता है।
प्रज्ञाशक्ति: सीआईएमएपी द्वारा विकसित, यह ब्राह्मी (Brahmi) की किस्म उड़ीसा से आती है और 1.8% बैकोसाइड ए की मात्रा के साथ 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक शुष्क जड़ी-बूटी उपज दे सकती है।
सीआईएम-जागृति: सीआईएमएपी द्वारा विकसित एक अन्य किस्म, सीआईएम-जागृति की शुष्क शाक उपज लगभग 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और इसमें 85 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बैकोसाइड ए उत्पादन की क्षमता है।
आरआरएल द्वारा विकसित किस्म: क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला (आरआरएल), जम्मू ने भी 1.8% से 2.2% तक उच्च बैकोसाइड ए सामग्री वाली एक किस्म विकसित की है।
हिमालय ब्राह्मी: यह भी एक महत्वपूर्ण ब्राह्मी (Brahmi) की किस्म है, जिसे अक्सर मस्तिष्क की क्षमता बढ़ाने और याददाश्त सुधारने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
ब्राह्मी की बुवाई या रोपाई का समय (Sowing time of Brahmi)
ब्राह्मी (Brahmi) की बुवाई का सबसे अच्छा समय नर्सरी में मई से जुलाई तक होता है, जबकि विकसित पौधों को मार्च से जून तक मुख्य खेत में रोप दिया जाता है। मई-जुलाई में रोपी गई नर्सरी लगभग 35-40 दिनों में रोपाई के लिए तैयार हो जाएगी, जिससे रोपाई का समय जून-जुलाई में हो जाता है। रोपाई के लिए एक और उपयुक्त समय मानसून की शुरुआत में, आदर्श रूप से मध्य जून से जुलाई तक होता है।
ब्राह्मी के पौध को तैयार करना (Preparing Brahmi Plants)
एक एकड़ में खेती करने के लिए लगभग 10 हजार कटिंग की आवश्यकता होती है। ब्राह्मी (Brahmi) की कटिंग को प्रो-ट्रे में लगाने से पहले उन्हें उपचारित कर लेना चाहिए। इसकी कटिंग को उपचारित करने के लिए कटिंग को ट्रायकोडर्मा दवा की उचित मात्रा में डुबोकर रखा जाता है। इसके पौधे की कटिंग बनाते वक्त ध्यान रखे की प्रत्येक कटिंग की लम्बाई तीन से चार सेंटीमीटर के आसपास होनी चाहिए।
ब्राह्मी के पौधों की रोपाई की विधि (Transplanting for Brahmi Plants)
ब्राह्मी के पौधों की रोपाई समतल और मेड दोनों पर की जाती है। समतल में रोपाई करने के दौरान खेत में उचित आकार की क्यारी तैयार की जाती है। जिसमे इसके पौधों की रोपाई की जाती है । क्यारियों में इसके पौधों की रोपाई लाइन में की जाती है। लाइनों में रोपाई के दौरान प्रत्येक पौधों के बीच 20 सेंटीमीटर के आसपास दूरी होनी चाहिए।
प्रत्येक लाइनों के बीच भी लगभग 20 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए और मेड पर ब्राह्मी (Brahmi) की रोपाई के दौरान इसके पौधों की रोपाई मेड पर लगभग आधा फिट की दूरी पर की जाती है, और प्रत्येक मेड़ों के बीच लगभग 25 से 30 सेंटीमीटर के आसपास दूरी होनी चाहिए।
ब्राह्मी में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Brahmi)
ब्राह्मी के पौधों को सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती है। क्योंकि इसके पौधे गीली मिट्टी में अच्छे से विकास करते हैं। लेकिन शुरुआत में पौधों को विकास करने के लिए सामान्य आद्रता की ही जरूरत होती है। इसके पौधों की रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई कर देनी चाहिए। उसके बाद इसके पौधों के अच्छे से विकसित होने तक मिट्टी में उचित नमी बनाए रखे।
इसके पौधों को विकास करने के लिए नमी की अधिक जरूरत होती है। इसलिए जब इसके पौधे अच्छे से विकास करने लगे तब पौधों को पानी अधिक मात्रा में देना चाहिए। पौधों के विकास के दौरान पौधों में पानी की कमी ना रहने दें। इसके पौधे दलदल भूमि और जल भराव की स्थिति में अच्छे से विकास करते हैं।
अधिक गर्मी के मौसम में इसके ब्राह्मी (Brahmi) के पौधों को पानी की ज्यादा जरूरत होती है। इसलिए गर्मी में मौसम में इसके पौधों की हर तीन से चार दिन बाद गहरी सिंचाई करनी चाहिए। जबकि सदियों के मौसम में इसके पौधों की 10 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए।
ब्राह्मी में खरपतवार नियंत्रण (Weed Control in Brahmee)
ब्राह्मी की खेती औषधीय पौधों के रूप में की जाती है। इसलिए इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक तरीके से नही किया जाता है। इसकी खेती में खरपतवार नियंत्रण निराई गुड़ाई के माध्यम से प्राकृतिक तरीके से किया जाता है। प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के दौरान इसके पौधों की रोपाई के लगभग 25 से 30 दिन बाद खेत में दिखाई देने वाली खरपतवार को हाथ से निकाल दें।
ब्राह्मी (Brahmi) के पौधों की गुड़ाई नही करनी चाहिए, क्योंकि इसकी जड़ें अधिक गहराई में नही जाती। जिससे गुड़ाई के दौरान पौधों की जड़ों में नुक्सान पहुँच सकता है। पहली बार खरपतवार को उखाड़ने के बाद दूसरी बार खरपतवार नियंत्रण लगभग एक महीने बाद करना चाहिए।
ब्राह्मी में किट और रोग नियंत्रण (Pest and Disease Control in Brahmi)
ब्राह्मी (Brahmi) के पौधों में सामान्य रूप से काफी कम ही रोग दिखाई देते हैं। लेकिन इसके पौधों पर कीट रोगों का प्रभाव जरुर देखने को मिलता है। जिनमें टिड्डी का आक्रमण इसके पौधों पर प्रमुख रूप से दिखाई देता है। कीट रोग इसकी पत्तियों पर आक्रमण कर उन्हें खा जाते हैं। जिससे पौधे का विकास प्रभावित होता है, और पैदावार भी काफी कम प्राप्त होती है।
जबकि टिड्डियों का आक्रमण अधिक होने से सम्पूर्ण फसल खराब हो जाती है। जिसकी रोकथाम के लिए पौधों पर देसी गाय का गोमूत्र की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए। इसके अलावा नीम के आर्क या नीम के तेल का छिडकाव पौधों पर रोग दिखाई देने के तुरंत बाद करने से इनकी रोकथाम की जा सकती हैं।
ब्राह्मी के पौधों की कटाई (Harvesting Brahmee Plants)
ब्राह्मी के पौधों की एक बार रोपाई करने के बाद दो से तीन कटाई देते हैं। इसके पौध रोपाई के लगभग पांच महीने बाद पहली कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। जिनकी बार बार कटाई के माध्यम से पैदावार लेने के लिए इसके पौधों की कटिंग जड़ों के पास चार से पांच सेंटीमीटर की ऊंचाई से करनी चाहिए।
ब्राह्मी (Brahmi) के पौधों की साल में दो से तीन कटाई की जा सकती हैं। पौधों की कटाई करने के बाद प्राप्त होने वाले उत्पाद को साफ पानी से होकर उसे छायादार जगहों में सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके पौधों के सूखने के दौरान काफी ध्यान रखा जाता है।
क्योंकि सूखने के दौरान अगर पौधे एक ही जगह पड़े रहते हैं, तो उनमें सडन पैदा हो जाती है। इसके लिए पौधों को हर रोज पलटते रहना चाहिए। पौधों को सूखने के दौरान उन्हें हवा उचित मात्रा में मिलनी चाहिए। जिससे पौधे जल्दी सुख जाते हैं। जब इसकी पत्तियां अच्छे से सूख जाती हैं तब उन्हें बाजार में बेचने के लिए भेज दिया जाता हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
ब्राह्मी (Brahmi) उगाने के लिए, आप कलमों या बीजों का उपयोग कर सकते हैं। इसे गमले या सीधे जमीन में, विशेषकर दलदली या नम मिट्टी में उगाया जा सकता है, जिसके लिए इसे अच्छी जल निकासी वाली, नम और पोषक तत्वों से भरपूर मिट्टी की आवश्यकता होती है। रोपण के बाद पर्याप्त धूप और पानी सुनिश्चित करें।
ब्राह्मी (Brahmi) गर्म, आर्द्र जलवायु और अच्छी जल निकासी वाली, उपजाऊ मिट्टी में पनपती है। यह आंशिक छाया पसंद करती है, लेकिन पूर्ण सूर्यप्रकाश में भी उग सकती है। इष्टतम तापमान 20°C से 30°C के बीच होता है।
ब्राह्मी (Brahmi) लगाने का सबसे अच्छा समय मार्च का अंत (बीज के लिए) या जून-जुलाई (कलमों के लिए) है। यह वह समय होता है जब मौसम गर्म होना शुरू होता है और रोपण के बाद मिट्टी नम रहती है।
ब्राह्मी (Brahmi) की सबसे अच्छी किस्मों में प्रज्ञाशक्ति और सुबोधक शामिल हैं, जिन्हें केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान, लखनऊ द्वारा विकसित किया गया है। ये किस्में उच्च बैकोसाइड सामग्री (1.8-2%) के लिए जानी जाती हैं, जो इनके औषधीय लाभों को बढ़ाती हैं।
ब्राह्मी (Brahmi) की खेती के लिए बीज की बजाय, कटिंग (कलम) का उपयोग किया जाता है, जिसमें एक एकड़ खेत के लिए लगभग 25,000 कटिंग की आवश्यकता होती है। यह बीज के बजाय कलम से उगाया जाता है, क्योंकि यह कलमों के रूप में बेहतर बढ़ता है।
ब्राह्मी (Brahmi) के पौधे बीजों या वानस्पतिक विधियों, जैसे तने की कलमों, के माध्यम से तैयार किये है। बीज प्रसार में नम मिट्टी में बीज बोना शामिल है, जबकि तने की कलमों को जड़ें विकसित होने तक मिट्टी या पानी में रखा जाना चाहिए।
ब्राह्मी (Brahmi) की पहली निराई-गुड़ाई रोपाई के 15-20 दिन बाद करनी चाहिए और दूसरी निराई-गुड़ाई लगभग 2 महीने बाद करें। उसके बाद, आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करते रहें, क्योंकि खरपतवार नियंत्रण के लिए खेत को खरपतवार मुक्त रखना जरूरी है।
ब्राह्मी (Brahmi) की अच्छी पैदावार के लिए जैविक खाद और रासायनिक उर्वरक, दोनों का मिश्रण फायदेमंद होता है। खेत की तैयारी के समय लगभग 20 क्विंटल प्रति एकड़ रूड़ी की खाद या 10 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद डालें। इसके अलावा, प्रति एकड़ 40 किलो नाइट्रोजन, 24 किलो फॉस्फोरस और 24 किलो पोटाश का उपयोग करें, जिसमें फॉस्फोरस और पोटाश शुरुआती चरण में और नाइट्रोजन को तीन हिस्सों में बांटा जाना चाहिए।
ब्राह्मी (Brahmi) एक जल-प्रेमी, दलदली पौधा है जिसे निरंतर नमी की आवश्यकता होती है, और इसकी सिंचाई की जरूरतें जलवायु के अनुसार बदलती रहती हैं। हालाँकि इसे हमेशा नम रखना चाहिए, लेकिन जड़ों को सड़ने से बचाने के लिए, खासकर गमलों में लगे पौधों के लिए, ज्यादा पानी देने से बचना चाहिए।
ब्राह्मी (Brahmi) के फायदे दिखने में 4 से 6 हफ्ते लग सकते हैं, क्योंकि यह एक धीमी गति से काम करने वाली जड़ी-बूटी है। हालांकि, कुछ लोगों को 2 से 4 हफ़्ते के नियमित उपयोग के बाद ही सुधार दिखना शुरू हो सकता है। इसके प्रभाव के लिए इसे लगातार और नियमित रूप से लेना महत्वपूर्ण है।
ब्राह्मी (Brahmi) में कीटों और रोगों के प्रबंधन के लिए, जैविक और रासायनिक दोनों विधियों का उपयोग किया जा सकता है। प्रमुख कीट टिड्डे हैं, जिन्हें नियंत्रित करने के लिए नीम आधारित कीटनाशकों या 0.2% नुवोक्रोन या ड़ायमेथोएट के छिड़काव का उपयोग किया जा सकता है। फंगल रोगों के लिए, खराब जल निकासी वाली मिट्टी से बचना और नीम तेल जैसे जैविक कवकनाशी का उपयोग करना महत्वपूर्ण है।
ब्राह्मी (Brahmi) की कटाई का सबसे अच्छा समय अक्टूबर-नवंबर के बीच होता है, क्योंकि इस दौरान पौधे का बायोमास (जैव-भार) सबसे अधिक होता है। आप साल में 2-3 बार कटाई कर सकते हैं, और कटाई के लिए पौधे के तने को जमीन से लगभग 4-5 सेंटीमीटर ऊपर से काटा जाता है, ताकि जड़ें बनी रहें और दोबारा फसल आ सके।
ब्राह्मी (Brahmi) की पैदावार प्रति हेक्टेयर 24-30 क्विंटल सूखी पत्तियों की होती है। कटाई के समय पर निर्भर करते हुए, एक वर्ष में दो से तीन कटाई की जा सकती हैं, जिससे कुल पैदावार 100 क्विंटल सूखी जड़ी-बूटी प्रति हेक्टेयर तक पहुँच सकती है। सितंबर के बाद कटाई करने पर ताजी जड़ी-बूटी 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक और सूखी जड़ी-बूटी 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है।
हाँ, ब्राह्मी (Brahmi) को गमलों और बगीचों दोनों में उगाया जा सकता है क्योंकि यह एक बहुमुखी पौधा है। इसे ऐसी मिट्टी में उगाया जा सकता है जो नम और अच्छी जल निकासी वाली हो, और इसे आंशिक छाया पसंद है। आप इसे कलमों से आसानी से लगा सकते हैं और यह कम देखभाल में भी अच्छी तरह पनपता है।
हाँ, भारत में ब्राह्मी (Brahmi) की खेती के लिए सरकारी सहायता उपलब्ध है, मुख्यतः आयुष मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (एनएमपीबी) के माध्यम से। ये योजनाएँ किसानों और अन्य हितधारकों के लिए ब्राह्मी सहित औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई हैं।
ब्राह्मी (Brahmi) अपने संज्ञानात्मक-वर्धक गुणों के लिए जानी जाती है, जिसमें याददाश्त और एकाग्रता में सुधार शामिल है। इसमें चिंता-रोधी, तनाव-रोधी और एंटीऑक्सीडेंट गुण भी होते हैं, जो इसे पारंपरिक चिकित्सा में लोकप्रिय बनाते हैं।
Leave a Reply