
Banana Farming in Hindi: केले की खेती देश के कृषि परिदृश्य में महत्वपूर्ण स्थान रखती है, जो न केवल पोषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, बल्कि अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण घटक भी है। दुनिया में केले के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक के रूप में, भारत घरेलू खपत और अंतर्राष्ट्रीय निर्यात दोनों में महत्वपूर्ण योगदान देता है। यह बहुमुखी फसल विभिन्न राज्यों में विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में पनपती है, जिससे यह भारतीय व्यंजनों और संस्कृति का एक प्रमुख हिस्सा बन जाती है।
अपनी समृद्ध ऐतिहासिक जड़ों और आर्थिक महत्व के साथ, केले की खेती जलवायु परिवर्तन और बाजार में उतार-चढ़ाव जैसी आधुनिक चुनौतियों का सामना करते हुए विकसित होती रहती है। यह लेख भारत में केले की खेती (Banana Cultivation) के बहुमुखी पहलुओं पर प्रकाश डालता है, इसके ऐतिहासिक महत्व, खेती के तरीकों, चुनौतियों और इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में नवाचार की भविष्य की संभावनाओं की खोज करता है।
केला के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for banana)
केले गर्म, आर्द्र, उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में लगातार तापमान और पर्याप्त वर्षा के साथ पनपते हैं। केले की खेती के लिए आदर्श जलवायु में 25-30 डिग्री सेल्सियस (77-86 डिग्री फ़ारेनहाइट) की औसत तापमान सीमा, 150-200 सेमी (59-79 इंच) की वार्षिक वर्षा और उच्च सापेक्ष आर्द्रता (75-85%) शामिल है। इसलिए यदि आप केला (Banana) उगाना चाहते हैं, तो सुनिश्चित करें कि आप ठंडी हवाओं और पाले से दूर रहें, क्योंकि केला ठंडे मौसम के प्रशंसक नहीं हैं।
केला के लिए मृदा का चयन (Soil selection for banana)
केले की सफल खेती के लिए सही मिट्टी का चयन करना बहुत ज़रूरी है। आदर्श केले की मिट्टी गहरी, अच्छी जल निकासी वाली, कार्बनिक पदार्थों से भरपूर होती है और इसका पीएच 6.5 से 7.5 के बीच होता है। दोमट और जलोढ़ मिट्टी विशेष रूप से उपयुक्त होती है, जबकि खारी या चूने वाली मिट्टी से बचें, क्योंकि वे केले (Banana) की खेती के लिए उपयुक्त नहीं हैं। जलोढ़ और ज्वालामुखीय मिट्टी भी अच्छे विकल्प हैं।
केला के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for banana)
केले (Banana) की खेती के लिए खेत की तैयारी में सबसे पहले खेत में गहरी जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बनाना चाहिए, ताकि जल निकासी ठीक से हो सके। इसके बाद, जैविक खाद, गोबर की खाद और सड़ी हुई खाद मिलाकर मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाया जा सकता है।
खेत को समतल और खरपतवार मुक्त रखना भी जरूरी है। फिर गड्ढे खोदे जाते हैं और उनमें खाद या खाद जैसे कार्बनिक पदार्थ भरे जाते हैं, जिन्हें खरपतवारों को नियंत्रित करने और मिट्टी में वायु संचार को बढ़ावा देने के लिए कई दिनों तक धूप में रखा जाता है।
केला की उन्नत किस्में (Improved varieties of banana)
आपको केले (Banana) की कई किस्में मिलेंगी, जिनमें से प्रत्येक की अपनी अलग पहचान है। सबसे आम प्रकार कैवेंडिश, द्वारका और नेंड्रान हैं। कैवेंडिश केले फलों के गलियारे के रॉक स्टार हैं, जो अपनी चिकनी बनावट और मिठास के लिए जाने जाते हैं।
द्वारका और नेंड्रान थोड़े अधिक विशिष्ट हैं, जो अपने स्वाद और खाना पकाने में बहुमुखी प्रतिभा के लिए प्रिय हैं। चाहे आप उन्हें कच्चा खा रहे हों, उन्हें तल कर खा रहे हों या उन्हें स्मूदी में मिला रहे हों, हर स्वाद के लिए एक केला है।
इसके आलावा केला (Banana) की कुछ उन्नत किस्में, जिनमें जी- 9, रस्ताली, रोबस्टा, मलभोग, चिनिया चंपा, अल्पना, बत्तीसा और पूवन आदि शामिल हैं। जी-9 किस्म बंपर उत्पादन के लिए जानी जाती है, जबकि अन्य किस्में भी अपनी विशिष्ट विशेषताओं के लिए लोकप्रिय हैं।
केला के लिए प्रवर्धन के तरीके (Propagation methods for bnana)
केला को आमतौर पर अलैंगिक रूप से, वानस्पतिक प्रसार के माध्यम से, मुख्य रूप से सकर (पप्स) को विभाजित करके या प्रकंदों और कंदों का उपयोग करके प्रचारित किया जाता है। खेती किए गए केले (Banana) ज्यादातर बीज रहित होते हैं, इसलिए बीजों के माध्यम से प्रचार एक व्यवहार्य विकल्प नहीं है। ऊतक संवर्धन एक और तरीका है जिसका उपयोग विशेष रूप से रोग-मुक्त पौधों के उत्पादन के लिए किया जाता है।
सकर: स्वस्थ पौधे से रोग विमुक्त सकर केला (Banana) की खेती करने के लिए उपयुक्त माना जाता है। जिस सकर की पत्तियाँ तलवार की तरह नुकीली हो, वही सकर खेत में लगाने योग्य होता है।
कन्द: व्यवसायिक रूप से केला (Banana) की खेती करने के लिए कन्द ही लगाना चाहिए। कन्द लगाने से करीब 80% पौधों में फलन एक समय होता है। कन्द का वजन लगभग एक से डेढ़ किलोग्राम होना चाहिए।
ऊतक संवर्द्धन (टिशुकल्चर): विगत कुछ वर्षों से ऊतक संवर्द्धन विधि द्वारा केले की उन्नत प्रजातियों के पौधे तैयार किये जा रहे हैं। इस विधि द्वारा तैयार पौधों से केले (Banana) की खेती करने का अनेकों लाभ है। ये पौधे स्वस्थ, रोग रहित होते हैं। पौधे समान रूप से वृद्धि करते हैं। अत: सभी पौधों में पुष्पण, फलन कटाई करीब-करीब एक साथ होती है, जिसकी वजह से विपणन में सुविधा होती है। फलों का आकार-प्रकार एक समान होता है।
केला लगाने का समय और विधि (Time and method of planting banana)
रोपण का समय: केला पौधों का रोपन 25 जून से 10 जुलाई के बीच करने से अच्छी पैदावार होती है। केले के टिशू कल्चर के पौधे लगाने का सबसे उपयुक्त समय मानसून का मौसम है, खास तौर पर भारी बारिश वाले इलाकों में जून से जुलाई तक या मानसून के मौसम के बाद, कम बारिश वाले इलाकों में सितंबर से अक्टूबर तक। जिन इलाकों में सिंचाई की सुविधा है, वहां फरवरी से मार्च में पौधे लगाए जा सकते हैं। पहाड़ी इलाकों में आमतौर पर अप्रैल में पौधे लगाए जाते हैं।
लगाने की दूरी: लगाने की दूरी का प्रभाव उत्पाद पर पड़ता है। उचित दूरी पर लगाने से सूर्य का प्रकाश समुचित रूप से पौधों पर पड़ता है, जिससे इसकी वृद्धि तीव्र गति से होती है। पौधे कीट व्याधियों से कम क्षतिग्रस्त होते हैं। केला (Banana) की कृषि के अन्य आवश्यक कार्य बाग से करने में आसानी होती है।
लम्बा किस्म: 2X2 मीटर की दूरी पर लगाई जानी चाहिए।
बौना किस्म: 1.5 X 1.5 मीटर की दूरी पर लगाई जानी चाहिए।
गड्डे का आकार: जड़ों को 45x 45×45 सेमी में लगाया जाना चाहिए।
केला में खाद का प्रयोग एवं मात्रा (Use and quantity of fertilizer in bnana)
केले के पौधों में खाद का प्रयोग करने के लिए, आपको मिट्टी के परीक्षण के आधार पर संतुलित मात्रा में खाद और उर्वरक का उपयोग करना चाहिए। पोषक तत्वों के अभाव से घौद एवं फलियाँ छोटी निकलती है। जिससे उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। किसी फसल की उत्पादकता इस पर निर्भर करता है कि इन पोषक तत्वों को किस समय एवं कितनी मात्रा में दिया जाये।
खाद पौधे के जड़ से 15 सेमी की दूरी पर कुदाल से चारों ओर घेरा बना कर डालें । घेरा में डाले गये खादों को मिट्टी से ढंक दें। अगर मिट्टी में उपयुक्त नमी न हो तो सिंचाई अवश्य कर देना चाहिए। केला (Banana) फसल में समय के अनुसार प्रति गड्ढ़ा या पौधा खाद और उर्वरक देने की अनुशंसा इस प्रकार की जाती है, जैसे-
वर्ष | जून – जुलाई | अक्टूबर – नवम्बर |
प्रथम वर्ष में | कम्पोस्ट- 5 किलोग्राम यूरिया – 200 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट – 300 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटास- 225 ग्राम | कम्पोस्ट- 5 किलोग्राम यूरिया – 200 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट – 300 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटास- 225 ग्राम |
अन्य वर्षों में | कम्पोस्ट- 10 किलोग्राम यूरिया – 300 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट – 300 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटास – 225 ग्राम | कम्पोस्ट- 10 किलोग्राम यूरिया – 300 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट – 300 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटास – 225 ग्राम |
केला में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Banana)
केला (Banana) को अधिक पानी की आवश्यकता पड़ती है। सिंचाई का उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है। इसके अभाव में पौधों की वृद्धि रूक जाती है। पौधे के फलन में अधिक समय लगता है। यदि फल आ गये तो घौद एवं छिमियाँ छोटी निकलती हैं। जिन्हें तैयार होने में अधिक समय लगता है। सिंचाई निम्नवत अनुसार की जानी चाहिए, जैसे-
- जुलाई – अक्टूबर में आवश्यकतानुसार सिंचाई की जानी चाहिए।
- नवम्बर से फरवरी में 15 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई की जानी चाहिए।
- मार्च – जून में 7 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई की जानी चाहिए।
केला फसल में सकर नियंत्रण (Sucker control in banana crop)
केला के एक मातृवृक्ष में लगभग 10-13 सकर निकलते हैं। अगर इसे नहीं निकाला गया तो केला के बाग अंधकारमय दिखाई पड़ता है एवं पौधों का सामान्य रूप से सूर्य की प्रकाश और पोषक तत्वों के सही रूप से प्राप्त हो जाना असंभव हो जाता है। सभी पौधे कमजोर हो जाते हैं और कीट व्याधियों से ग्रसित हो जाते है।
जिसके फलस्वरूप इनसे घौद एवं फल जो प्राप्त होते हैं, वे बहुत ही निम्नस्तर के होते हैं। अत: अधिक उत्पादन के लिए आवश्यक है कि इनके सकर को नियंत्रित किया जाये। केला (Banana) में सकर का नियंत्रण “हम एक हमारे एक” के सिद्धांत पर किया जाता है।
केला में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in banana)
खरपतवार के बाग में रहने के कारण केला (Banana) उत्पादन में 20-30 प्रतिशत कमी आती हैं। यह खरपतवार पौधों से नमी सूर्य की रोशनी, पोषक तत्वों के लेने में स्पर्धा करते हैं, जिसके कारण ये सभी चीजें पौधों को पूर्णरूप से प्राप्त नहीं हो पाती हैं, जिसके कारण घौद एवं छिमियाँ छोटी प्राप्त होती है। खरपतवार कीट व्याधियों के घर भी है, जिनमें छिपे रहते हैं एवं समयानुसार पौधे एवं फलियों को क्षतिग्रस्त करते हैं।
अत: इन्हें नियंत्रित कर उत्पादन में वृद्धि लायी जा सकती है। इन्हें नियंत्रित करने के लिए बाग की निकाई-गुड़ाई समयानुसार कुदाल से करते रहें। खरपतवारों को चुनकर बाग से बाहर कर दें। राउण्ड अप (ग्लाइफोसेट) दवा का 10-12 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव से खरपतवारों को नियंत्रण करना चाहिए।
केले में कीट और रोग नियंत्रण (Pest and disease control in bnana)
केले (Banana) के पौधों को भी कीटों और बीमारियों के रूप में अपने दुश्मनों का सामना करना पड़ता है। आम कीटों में केला के घुन और एफिड शामिल हैं, अगर इन पर ध्यान न दिया जाए तो ये कहर बरपा सकते हैं। इन कीटों को दूर रखने के लिए एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) रणनीतियाँ अपनाई जाती हैं – जैसे नियमित निगरानी और लाभकारी कीटों को लाना।
रोग के मोर्चे पर, ब्लैक सिगाटोका जैसे फंगल खतरे बहुत परेशानी का सबब बन सकते हैं, जिससे किसानों को फसल चक्र अपनाने और बीमारी प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करने के लिए प्रेरित होना पड़ता है।
केला फसल में अन्य क्रियाएं (Other activities in banana crop)
सकर की कटाई: केला (Banana) मातृ पौधे के बगल में उग रहे सकर (पौधा) को समय-समय पर चाकू की सहायता से काटते रहते हैं।
पौधों को सहारा देना: पौधों पर फूल आने के बाद तेज हवा से केला (Banana) पौधा टूटने न पाये इसलिये बांस या नायलान की रस्सी से सहारा देना चाहिये।
नर पुष्प की काटई: जब गहर पूर्णरूप से विकसित हो जाता है और फल लगने बन्द हो जाते है, तब नीचे के अन्तिम फल के बाद 10 सेंमी छोड़कर काट देना चाहिये।
गहर/ घार की कटाई: जून में रोपित केला के पौधें में प्राय: अप्रैल-मई में फूल निकलने लगते है। फूल दिखाई देने की तिथि से लगभग 25-30 दिन में पूरी फलियाँ निकल आती है, जब फलियों की चारों धारियाँ तिकोनी न रहकर गोलाई लेकर पीली होने लगे उस समय फलों को पूर्ण विकसित समझ लेना चाहिये और घार को काट लेते हैं।
केला की फसल से उपज (Yield from banana crop)
आधुनिक तकनीक से केले (Banana) की खेती करने पर इसकी उपज प्रजाति एवं क्षेत्र के हिसाब से अलग-अलग होती है। केला की उपज विभिन्न कारकों जैसे कि केले की किस्म, रोपण दूरी, मिट्टी की गुणवत्ता, जलवायु और खेती के तरीकों पर निर्भर करती है। सामान्यत: केले की फसल से प्रति एकड़ 30 से 75 टन तक की उपज प्राप्त की जा सकती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
केले की खेती आमतौर पर बीजों के बजाय सकर या टिशू कल्चर का उपयोग करके वानस्पतिक प्रसार के माध्यम से की जाती है। सकर, जो मूल पौधे से निकलने वाली शाखाएँ हैं, एक सामान्य विधि है, लेकिन प्रयोगशाला में उगाए जाने वाले टिशू कल्चर से एक समान और रोग-मुक्त पौधे मिलते हैं। केले (Banana) की खेती के लिए विशिष्ट मिट्टी के प्रकार, जल प्रबंधन और पोषक तत्वों की व्यवस्था की भी आवश्यकता होती है।
केले की खेती के लिए गर्म, नम और उष्णकटिबंधीय जलवायु आदर्श होती है। यह फसल 25°C से 30°C तापमान और 1700 मिमी वार्षिक वर्षा के साथ अच्छी तरह से बढ़ती है। केले (Banana) को ठंडी और शुष्क जलवायु से बचना चाहिए, क्योंकि इससे पौधों की वृद्धि प्रभावित हो सकती है, और इससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में कमी आ सकती है।
केले की बुवाई के लिए मध्य फरवरी से मार्च का पहला सप्ताह उपयुक्त होता है। हालांकि, जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा है, वहां इसे सालभर उगाया जा सकता है। बारिश के मौसम में, जून से जुलाई के बीच केले (Banana) की बुवाई करना भी एक अच्छा विकल्प होता है।
केला (Banana) की बुवाई के लिए, सबसे पहले खेत को तैयार करें, फिर 60x60x60 सेमी के गड्ढे खोदें, और उनमें खाद, नीम खल्ली, और कीटनाशक मिलाएं। फिर केले के पौधों को गड्ढों में रोपित करें और पानी दें। रोपाई के बाद, पौधों को नियमित रूप से पानी और खाद दें।
केले (Banana) की कई अलग-अलग किस्में हैं, लेकिन सबसे लोकप्रिय और अच्छी किस्मों में जी- 9 (G9), ड्वार्फ कैवेंडिश (Dwarf Cavendish), और रोबेस्ट (Robusta) शामिल है।
केले (Banana) का फल आमतौर पर रोपण के 9 से 12 महीने के भीतर तैयार हो जाता है। कुछ किस्मों को 11-14 महीने और कुछ को 14-16 महीने लग सकते हैं। एक गुच्छा को अंकुर से लेकर कटाई तक लगभग 3-4 महीने लगते हैं।
केला (Banana) की खेती में, एनपीके उर्वरक, जैविक खाद, और सूक्ष्म पोषक तत्वों का उपयोग किया जाता है। एनपीके में नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P), और पोटेशियम (K) होते हैं, जो केले के पौधे के लिए आवश्यक पोषक तत्व हैं। जैविक खाद मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में मदद करती है, जबकि सूक्ष्म पोषक तत्व जिंक, बोरोन, और मैग्नीशियम जैसे आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करते हैं।
केले की फसल में सिंचाई के लिए, सबसे पहले रोपण के तुरंत बाद पानी दें, फिर 4 दिनों के बाद जीवन रक्षक सिंचाई करें, और उसके बाद साप्ताहिक अंतराल पर सिंचाई करें। सिंचाई की मात्रा और अंतराल मौसम और फसल की अवस्था पर निर्भर करता है। ड्रिप सिंचाई से पानी की बचत होती है और यह केला (Banana) की फसल के लिए सबसे उपयुक्त है।
केला (Banana) की फसल में कीट नियंत्रण के लिए जैविक और रासायनिक दोनों तरह के तरीके इस्तेमाल किए जा सकते हैं। जैविक तरीकों में खरपतवारों को हटाना, स्वस्थ पौधों को लगाना और प्राकृतिक शिकारियों को बढ़ावा देना शामिल है। रासायनिक तरीकों में कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन उनका उपयोग सावधानी से करना चाहिए।
केले (Banana) की फसल में रोगों को नियंत्रित करने के लिए, रोग प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें, अच्छी जल निकासी सुनिश्चित करें, और रोग के प्रारंभिक लक्षणों पर ध्यान दें। फसल कटाई के बाद फलों को कवकनाशकों में डुबोकर भी रोग के प्रसार को नियंत्रित किया जा सकता है।
केले की फसल से उपज विभिन्न कारकों जैसे कि किस्म, क्षेत्र, रोपण दूरी और पर्यावरणीय परिस्थितियों पर निर्भर करती है। आमतौर पर, केला की फसल से प्रति एकड़ 30 से 40 टन उपज प्राप्त होती है। यदि सभी प्रबंधन तकनीकें सही ढंग से लागू की जाएं, तो प्रति पौधा 45-50 किलो तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। कुछ क्षेत्रों में, जहां अच्छी जलवायु और पानी की उपलब्धता होती है, केले (Banana) की फसल से प्रति एकड़ 170 टन तक उपज प्राप्त की जा सकती है।
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