
Zaid Millet Farming in Hindi: जायद बाजरा की खेती भारत के कृषि परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण आजीविका में महत्वपूर्ण योगदान देती है। अपने अनूठे खेती के मौसम और विशिष्ट आवश्यकताओं के साथ, जायद बाजरा की खेती देश भर के किसानों के लिए अवसर और चुनौतियाँ दोनों प्रस्तुत करती है।
जलवायु और मिट्टी की स्थितियों के महत्व को समझना, उपयुक्त किस्मों का चयन करना, कीटों और बीमारियों का प्रबंधन करना और बाजार की गतिशीलता को समझना सफल जायद बाजरा की खेती के आवश्यक पहलू हैं। यह लेख भारत में जायद बाजरा की खेती की पेचीदगियों पर प्रकाश डालता है, इस क्षेत्र में किसानों की उत्पादकता और लाभप्रदता बढ़ाने के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं, बाजार की अंतर्दृष्टि और सरकारी सहायता की खोज करता है।
जायद बाजरा के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable Climate for Zaid Millet)
जायद बाजरा (Zaid Millet) लंबे दिनों और भरपूर धूप वाली गर्म, शुष्क जलवायु में सबसे अच्छी तरह से उगता है। अंकुरण के लिए आदर्श तापमान 23°C और 25°C के बीच है, जबकि 20°C और 32°C के बीच का तापमान विकास के लिए अच्छा है। बाजरे के बीज ठंडे मौसम और पाले से नुकसान के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं, इसलिए गर्म, समशीतोष्ण जलवायु आदर्श है।
जायद बाजरा के लिए भूमि का चयन (Land selection for Zaid Bajra)
बाजरा कई तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है, जिसमें रेतीली, दोमट और चिकनी मिट्टी शामिल है। जायद बाजरे (Zaid Millet) की खेती के लिए सबसे अच्छी मिट्टी अच्छी जल निकासी वाली, मध्यम उपजाऊ और अच्छी जैविक सामग्री वाली होती है, अर्थात बलुई दोमट या दोमट भूमि बाजरा के लिए अच्छी रहती है। यह फसल अम्लीय या जलभराव वाली मिट्टी में नहीं पनपती, इसलिए इसे संतृप्त मिट्टी में उगाने से बचना चाहिए।
जायद बाजरा के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for Zaid millet)
एक समान समतल भूमि पर जायद बाजरा (Zaid Millet) की खेती करने और पर्याप्त जैविक तत्व होने से उच्च उपज प्राप्त की जा सकती है। समतलीकरण के बाद खेत तैयार करें और 10-12 सेमी की एक गहरी जुताई के बाद कल्टीवेटर या देशी हल से 2-3 जुताई करें और समतल करें। पानी का एक समान वितरण सुनिश्चित करें और जलभराव को रोकें। मिट्टी की संरचना और पोषक तत्वों की उपलब्धता को बेहतर बनाने के लिए खाद या खाद डालें।
जायद बाजरा के लिए उन्नत किस्में (Improved varieties for zaid millet)
जायद बाजरे (Zaid Millet) की खेती के लिए कई उन्नत किस्में उपलब्ध हैं। इनमें से कुछ आरएचबी 121, आरएचबी 177, जीएचबी 538, आईसीएमएच 356, एमपीएमएच 17, एमपीएमएच 21, एचएचबी 226, एचएचबी 67, सुपर 82, जेसीबी 4 (एमपी 403), 86 एम 52, जीएचबी 526, पीबी 180 और जीएचबी 558 प्रमुख किस्में है।
जायद बाजरा की बुवाई का समय और बीज दर (Sowing time and seed rate of Zaid millet)
बुवाई का समय: जायद बाजरा (Zaid Millet) के लिए कृषकों को जल्दी पकने वाली किस्मों का चयन करना चाहिए। क्योंकि बाजरे की बुआई का समय, बारिश और बाजरे की किस्म पर निर्भर करता है। जायद बाजरा की बोवाई मार्च के प्रथम सप्ताह से अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है।
बीज की मात्रा: दाने के लिए 4-5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है, बीज को 2.5 ग्राम थीरम या 20 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किग्रा की दर से शोधित कर लेना चाहिए। बीज को नत्रजन जैव उर्वरक एजोस्प्रीलिनम तथा स्फूर जैव उर्वरक फास्फेटिका द्वारा उपचारित कर बोने से भूमि के स्वास्थ्य में सुधार होता है तथा उपज भी अधिक मिलती है।
जायद बाजरा के लिए बुवाई का तरीका (Sowing method for zaid millet)
जायद बाजरे (Zaid Millet) की बुआई लाईन में करने से अधिक उपज प्राप्त होती है। जायद बाजरा की खेती के लिए बुवाई विधि में 2-3 सेमी की गहराई पर पंक्तियों में बीज बोने के लिए सीड ड्रिल का उपयोग करना शामिल है। पंक्तियों के बीच 20-30 सेमी की दूरी होनी चाहिए, और पौधों के बीच 10-15 सेमी की दूरी होनी चाहिए।
जायद बाजरा के लिए खाद और उर्वरकों (For Zaid millet, use manure and fertilizers)
उर्वरकों का प्रयोग जायद बाजरा (Zaid Millet) में मृदा परीक्षण से प्राप्त संस्तुतियों के आधार पर करें। मृदा परीक्षण की सुविधा उपलब्ध न हो तो संकुल प्रजातियों के लिए 60 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश तथा संकर प्रजातियों के लिए 80 किग्रा नत्रजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हे प्रयोग करना चाहिए।
फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा बेसल ड्रेसिंग के रूप में बुआई के समय तथा नत्रजन की आधी मात्रा टापड्रेसिंग के रूप में बुआई के 20-25 दिन बाद खेत में पर्याप्त नमी होने पर प्रयोग करनी चाहिए। यदि पूर्व में बोयी गयी फसल में गोबर की खाद का प्रयोग न किया गया हो तो 5 से 10 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर देने से भूमि का स्वास्थ्य भी सही रहता है तथा उपज भी अधिक प्राप्त होती है।
जायद बाजरा में विरलीकरण (थिनिंग) (Thinning in Zaid Millet)
जायद बाजरे (Zaid Millet) की फसल में बुवाई के 15-20 दिन बाद सायं के समय खेत में पर्याप्त नमी होने पर घने पौधों वाले स्थान के पौधों को उखाड़ कर कम पौधे वाले स्थान पर रोपित कर देना चाहिए तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी कर लेना चाहिए और रोपित पौधे किये गये पौधों में पानी लगा देना चाहिए।
जायद बाजरा की फसल में सिंचाई (Irrigation in Zaid Millets Crop)
जायद में सिंचाई जल की समुचित व्यवस्था होने पर बाजरे की फसल से अच्छी पैदावार मिलती है। जायद बाजरा (Zaid Millet) की फसल में 4-5 सिंचाइयाँ पर्याप्त होती है। 15-20 दिन के अन्तर से सिंचाई करते रहना चाहिए। कल्ले निकलते समय व फूल आने पर खेत में पर्याप्त नमी आवश्यक है। इससे दाने का विकास अच्छा होता है और उपज बढ़ती है।
जायद बाजरे की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in Zaid millet crop)
जायद बाजरे (Zaid Millet) की फसल में खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए बुआई के बाद जमाव से पूर्व एट्राजीन 0.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 700-800 लीटर पानी में घोलकर एक छिड़काव समान रूप से करना चाहिए। खरपतवार दिखाई देने पर निकाई के बाद गहरी गुड़ाई करने से खरपतवारों पर नियंत्रण के साथ-साथ नमी का संरक्षण भी हो जाता है।
जायद बाजरे में रोग और कीट नियंत्रण (Disease and Pest Control in Zaid Millets)
बाजरा एक तेजी से बढ़ने वाली फसल है तथा जायद में बोने पर कीट तथा रोग का प्रभाव भी कम होता है। जायद बाजरे (Zaid Millet) की फसल में रोग और कीट रोकथाम के उपाय इस प्रकार है, जैसे-
अरगट: यह फफूँदी से उत्पन्न होने वाला रोग है। इसके लक्षण बालों पर दिखाई देते है। इसमें दाने के स्थान पर भूरे काले रंग से सींक के आकार की गांठे बन जाती है। संक्रमित फूलों में फफूँदी विकसित हो जाती है। रोग ग्रसित दाने मनुष्यों एवं जानवरों के स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद होते है।
नियंत्रण: जायद बाजरा (Zaid Millet) की रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का चयन किया जाना चाहिए, और शोधित बीज का प्रयोग करें। यदि बीज उपचारित नहीं है तो 20 प्रतिशत नमक के घोल में बीज को डालने पर प्रभावित बीज फफूँदी तैर कर ऊपर आ जाएगे, जिन्हें हटाकर नीचे का शुद्ध बीज लेकर साफ पानी से 4-5 बार धोकर एवं सुखाकर प्रयोग करें।
कण्डुआ: यह फफूँदी जनित रोग है। बालियों में दाना बनते समय रोग के लक्षण दिखाई देते है। रोग ग्रसित दाने बड़े, गोल या अण्डाकार हरे रंग के दिखाई देते है, बाद में दानों के अन्दर काला चूर्ण भरा होता है ।
नियंत्रण: बीज शोधित करके बोना चाहिए, एक ही खेत में प्रति वर्ष बाजरा की खेती नहीं करनी चाहिए, रोग ग्रसित बालियों को निकालकर नष्ट कर देना चाहिए और रोग की संभावना दिखते ही फफूँदी नाशक जैसे कार्बेन्डाजिम या कार्बोक्सिन की 1.0 किग्रा मात्रा को 800-1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से 8-10 दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करना चाहिए।
मृदुरोमिल आसिता व हरित बाल रोग: रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियाँ पीली पड़ जाती है तथा निचली सतह पर फफूँद की हल्के भूरे रंग की वृद्धि दिखाई देती है। पौधों की बढ़वार रूक जाती है तथा बालियों के स्थान पर टेड़ी मेड़ी गुच्छेनुमा हरी पत्तियाँ सी बन जाती है।
नियंत्रण: जायद बाजरा (Zaid Millet) की रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का चयन किया जाना चाहिए और बीज को शोधित करके बुआई की जानी चाहिए। सर्वोगी फफूँदी नाशक जैसे कार्बेन्डाजिम या कार्बोक्सिन 100 किग्रा. मात्रा को 800-1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से 8-10 दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करना चाहिए।
जायद बाजरा फसल की कटाई (Harvesting of Zaid Millet Crop)
जायद बाजरा (Zaid Millet) की फसल की कटाई जून में होती है। बाजरे की कटाई तब करनी चाहिए, जब इसके सिट्टे हल्के भूरे रंग में बदलने लगे और पौधे सूखने लगें। इस समय दाने सख्त हो जाते हैं और नमी करीब 20 प्रतिशत रहती है। बाजरे की कटाई में बाली को काटना या पूरे पौधे को डंडे से काटना दोनों तरीके अपनाए जा सकते हैं।
जायद बाजरा फसल से पैदावार (Yield from Zaid Millet Crop)
जायद में बाजरे (Zaid Millet) की पैदावार, बाजरे की किस्म और खेत की तैयारी पर निर्भर करती है। जायद में बाजरे की पैदावार 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से लेकर 27 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
जायद में बाजरे (Zaid Millet) की खेती करने के लिए, खेत की तैयारी, बीज बोने का समय, बीज दर, और सिंचाई जैसे कई पहलुओं का ध्यान रखना होता है। बाजरे की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी का चुनाव करना चाहिए। बाजरे की बुवाई लाइन में करें।
जायद बाजरे (Zaid Millet) की बुवाई फरवरी के अंतिम सप्ताह से अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है। बाजरे की बुआई का सही समय, बाजरे की किस्म पर निर्भर करता है।
जायद बाजरा (Zaid Millet) की खेती के लिए खेत में पलेवा करने के बाद, मिट्टी पलटने वाले हल से 10-12 सेंटीमीटर गहरी जुताई करें। इसके बाद, कल्टीवेटर या देशी हल से दो-तीन जुताइयां करें जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर लें। दीमक से बचने के लिए, आखिरी जुताई के समय 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से फ़ॉरेट छिड़क दें।
जायद बाजरे (Zaid Millet) की अच्छी पैदावार के लिए हाइब्रिड किस्में उगाई जा सकती हैं। बाजरे की कुछ उन्नत किस्में आर एच बी- 121, आर एच बी- 154, सी जेड पी- 9802, राज- 171, डब्लू सी सी- 75, पूसा- 443, आर एच बी- 58, आर एच बी- 30 और आर एच बी- 90 आदि प्रचलित है।
पलेवा करने के बाद, मिट्टी पलटने वाले हल से 10-12 सेंटीमीटर गहरी जुताई करें। पाटा लगाकर खेत तैयार कर लें। बाजरे की बुआई लाइन में करनी चाहिए। जायद में बाजरा (Zaid Millet) दाने के लिए बुआई करते समय, पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 से 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेंटीमीटर रखें।
जायद में बाजरे (Zaid Millet) की खेती के लिए, नाइट्रोजन, फ़ॉस्फ़ोरस और पोटैशियम जैसे उर्वरक का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा, सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद भी दी जाती है।
जायद बाजरे (Zaid Millet) की सिंचाई तब करनी चाहिए, जब बारिश न हो या नमी कम हो। बाजरे की फसल को 3-4 बार सिंचाई करनी होती है। दाना बनने के समय खेत में नमी रहना चाहिए, ताकि दाने का विकास अच्छा हो और उपज बढ़े।
जायद बाजरे की उपज, सिंचित और असिंचित जमीन पर अलग-अलग हो सकती है। सिंचित जमीन पर बाजरे की उपज 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और असिंचित जमीन पर 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है। जायद बाजरे (Zaid Millet) की उपज बढ़ाने के लिए, उक्त उन्नत कृषि तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए।
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