
Black Gram Farming in Hindi: उड़द (Urad), जिसे काले चने या काली दाल के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय कृषि में एक विशेष स्थान रखती है। यह एक महत्वपूर्ण दलहन फसल है, जिसकी खेती सदियों से की जाती रही है और यह देश की कृषि अर्थव्यवस्था में योगदान देती रही है। उड़द की खेती उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, हरियाणा के सिंचित क्षेत्रों में की जाती है। यह एक अल्प अवधि की फसल है जो लगभग 60-65 दिनों में पककर तैयार हो जाती है।
यह लेख इस बहुमुखी फलीदार पौधे को उगाने के लिए देश भर के किसानों द्वारा अपनाई जाने वाली खेती की पद्धतियों और तकनीकों पर प्रकाश डालता है। उड़द की खेती (Urad Cultivation) के लिए आदर्श जलवायु और मिट्टी की स्थिति की खोज से लेकर विभिन्न क्षेत्रों में उगाई जाने वाली विभिन्न किस्मों पर चर्चा करने तक, इस व्यापक गाइड का उद्देश्य भारत में उड़द की खेती के हर पहलू पर प्रकाश डालना है।
उड़द की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for urad cultivation)
उड़द की खेती (Urad Cultivation) के लिए उष्ण जलवायु सबसे उपयुक्त मानी गई है, यह फसल उच्च तापक्रम को सहन करने में पूरी तरह से सक्षम है। यही कारण है कि इसकी खेती तापमान वाले क्षेत्रों में की जाती है। सामान्यतया 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान इसकी खेती के लिए उपयुक्त माना गया है। हालांकि, उड़द बड़ी आसानी से 43 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान भी सहन कर सकती है।
उड़द की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for urad cultivation)
उड़द की खेती (Urad Cultivation) बलुई मिटटी से लेकर गहरी काली मिट्टी में सफलतापूर्वक की जा सकती है। हालाँकि उचित जल निकास वाली हल्की रेतीली दोमट या मध्यम प्रकार की जिसका पीएच मान 7-8 के मध्य हो वह भूमि उड़द के खेती के लिये सर्वोत्तम मानी जाती है। उड़द का अच्छा उत्पादन लेने के लिए जल निकास की उचित व्यवस्था के साथ खेत का समतल होना भी अति आवश्यक है।
उड़द की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for cultivation of Urad)
उड़द (Urad) के खेत की तैयारी भारी मिट्टी होने पर 2 से 3 बार जुताई करना जरूरी है, जुताई के बाद पाटा चलाकर खेत को समतल बना लेना अच्छा होता है, इससे मिट्टी में नमी बनी रहती है। खेत की अच्छी तैयारी अंकुरण व फसल में एक समानता के लिए बहुत जरूरी है। खेत की अंतिम जुताई के समय 5 से 10 टन प्रति हेक्टेयर सड़े हुए गोबर की खाद का छिड़काव कर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देनी चाहिए।
उड़द की खेती के लिए उन्नत किस्में (Improved varieties for cultivation of Urad)
उड़द (Urad) की मुख्यतया दो प्रकार की प्रजातियाँ पायी जाती है, पहला खरीफ में उत्पादन हेतु जैसे कि- शेखर – 3, आजाद उड़द – 3, पन्त उड़द – 31, डब्लूवी – 108, पन्त यू – 30, आईपीयू – 94 और पीडीयू – 1 मुख्य रूप से है, वही जायद हेतु पन्त यू – 19, पन्त यू – 35, टाईप – 9, नरेन्द्र उड़द – 1, आजाद उड़द – 1, उत्तरा, आजाद उड़द – 2 एवं शेखर – 2 प्रजातियाँ है। कुछ प्रजातियाँ खरीफ एवं जायद दोनों ऋतुओ में उत्पादित की जाती है, जैसे- टाईप – 9, नरेन्द्र उड़द – 1, आजाद उड़द – 2, शेखर उड़द – 2 आदि प्रमुख है।
उड़द बुवाई का समय और बीज की मात्रा (Sowing time of Urad and quantity of seeds)
बुवाई का समय: उड़द (Urad) की खरीफ व जायद दोनों फसलो की बुवाई अलग-अलग समय पर की जाती है, खरीफ में जुलाई के प्रथम सप्ताह में बुवाई की जाती है एवं जायद में 15 फरवरी से 15 मार्च तक बुवाई की जाती है।
बीज दर: उड़द (Urad) की खरीफ ऋतु में बीज दर 12 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर एवं ग्रीष्म ऋतु में 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीजों को बोया जा सकता है।
बीज उपचार: उड़द की बुवाई से पूर्व बीज का अंकुरण क्षमता का जांच अवश्य कर लेनी चाहिये, बीज यदि उपचारित नहीं है तो बुवाई के पूर्व बीज को फफूंदी नाशक दवा थीरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम से अवश्य उपचारित कर लें।
बोआई का तरीका: आमतौर पर किसान उरद की बोआई छिटकवा विधि से करते हैं। परन्तु अधिक उपज प्राप्त करने के लिए कतार में बोआई उत्तम होती है। पंक्ति से पंक्ति 30 सेंमी तथा पौधा से पौधा 10 सेंमी की दूरी पर बोआई करनी चाहिए।
उड़द की फसल में खाद और उर्वरक (Manure and fertilizers in black gram crop)
उड़द (Urad) एक दलहनी फसल होने के कारण अधिक नत्रजन की आवश्यकता नहीं होती है। क्योकि उड़द की जड़ में उपस्थित राईजोबियम जीवाणु वायुमण्डल की स्वतन्त्र नत्रजन को ग्रहण करते है और पौधो को प्रदान करते है। पौधे की प्रारम्भिक अवस्था में जब तक जड़ो में नत्रजन इकट्ठा करने वाले जीवाणु क्रियाशील हो तब तक के लिए 15-20 किग्रा नत्रजन 40-50 किग्रा फास्फोरस तथा 40 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के समय मृदा में मिला देते है।
उड़द की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Urad Crop)
उड़द (Urad) की खरीफ ऋतु की फसल में वर्षा कम होने पर फलियों के बनते समय एक सिंचाई करने की आवश्यकता पडती है तथा जायद की फसल में पहली सिंचाई बुवाई के 30-35 दिन बाद करनी चाहिए, इसके बाद मृदा नमी के आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए।
उड़द की फसल में खरपतवार प्रबंधन (Weed Management in Black Gram Crop)
वर्षा ऋतु की उड़द की फसल (Urad Crop) में खरपतवार का अत्यधिक प्रकोप रहता है, जिससे लगभग 40-50 प्रतिशत उपज में हानि हो सकती है। रसायनिक विधि द्वारा खरपतवार नियन्त्रण के लिए फसल की बुवाई के बाद एवं बीजों के अंकुरण के पूर्व पेन्डिमिथालीन 1.25 किग्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है।
अगर खरपतवार फसल में उग जाते है, तो फसल बुवाई के 15-20 दिनों की अवस्था पर पहली निराई गुड़ाई खुरपी की मदद से कर देनी चाहिए तथा पुन: खरपतवार उग जाने पर 15 दिनों के बाद निराई करनी चाहिए।
उड़द की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in black gram crop)
उड़द की फसल में प्राय: पीला चित्रवर्ण या मोजैक रोग लगता है, इसमे रोग के विषाणु सफ़ेद मक्खी के द्वारा फैलता है, इसकी रोकथाम के लिए, समय से बुवाई करना अति आवश्यक है, दूसरा ‘मोजैक अवरोधी प्रजातियों की बुवाई करनी चाहिए। इसके साथ ही साथ मोजैक से ग्रसित पौधे फसल में दिखते ही सावधानी पूर्वक उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए और रसायनों का प्रयोग भी करते है, जैसे कि डाईमिथोएट 30 ईसी 1 लीटर प्रति हेक्टर या मिथाईल -ओ-डिमेटान 25 ईसी 1 लीटर प्रति हेक्टर की दर से छिडकाव करना चाहिए।
पीला मोजेक विषाणु रोग: यह उड़द (Urad) का सामान्य रोग है और वायरस द्वारा फैलता है, इसका वाहक सफेद मक्खी है। इसका प्रभाव 4-5 सप्ताह बाद ही दिखाई देने लगता है। इस रोग में सबसे पहले पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे गोलाकार रूप में दिखाई देने लगते हैं। कुछ ही दिनों में पूरी पत्तियां पीली हो जाती है। अंत में ये पत्तियां सफेद सी होकर सूख जाती है।
नियंत्रण: सफेद मक्खी की रोकथाम से रोग पर नियंत्रण संभव है। उड़द (Urad) का पीला मोजैक रोग प्रतिरोधी किस्म पंत यू – 19, पंत यू – 30, यूजी – 218, टीपीयू – 4, पंत उड़द – 30, बरखा, केयू – 96-3 की बुवाई करनी चाहिए।
पत्ती मोडन रोग: इसका लक्षण नई पत्तियों पर हरिमाहीनता के रूप में पत्तीयों की मध्य शिराओं पर दिखाई देते हैं। इस रोग में पत्तियां मध्य शिराओं के ऊपर की ओर मुड़ जाती है तथा नीचे की पत्तियां अंदर की ओर मुड़ जाती है तथा पत्तियों की वृद्धि रूक जाती है और अन्ततः पौधे मर जाते हैं।
नियंत्रण: यह विषाणु जनित रोग है। जिसका संचरण थ्रीप्स द्वारा होता हैं। थ्रीप्स के लिए ऐसीफेट 75 प्रतिशत एसपी या 2 मिली डाईमैथोएट प्रति लीटर के हिसाब से छिडकाव करना चाहिए और फसल की बुवाई समय पर करनी चाहिए।
पत्ती धब्बा रोग: यह रोग फफूंद द्वारा फैलता है। इसके लक्षण उरद (Urad) की पत्तियों पर छोटे-छोटे धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं।
नियंत्रण: कार्बेन्डाजिम 1 किग्रा 1000 लीटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टर की दर से छिडकाव करना चाहिए।
उड़द की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in urad crop)
उड़द की फसल (Urad Crop) में मुख्यतया थ्रिप्स, हरे फुदके, कमला कीट और फली छेदक कीट आदि लगते है, इसके नियंत्रण के लिए क्युनाल्फोस 25 ईसी 1.25 लीटर मात्रा को 700-800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टर की दर से छिडकाव करना चाहिए।
उड़द की फसल की कटाई और मड़ाई (Harvesting and threshing of Urad crop)
उड़द (Urad) लगभग 70-80 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, इसलिए ग्रीष्म ऋतु की कटाई मई-जुन में तथा वर्षा ऋतु की कटाई सितंबर से अक्टूबर में जब फलियों का रंग काला पड़ने लगे उस अवस्था में हसियाँ से कटाई करे तथा उसको सुखाते है बाद में हाथ से डण्डो द्वारा या थ्रेसर से फलियों से दानों निकाल लिया जाता है।
उड़द की फसल से उपज एवं भंडारण (Yield and storage of urad crop)
जायद में उर्द (Urad) की उपज 10-12 कुंतल प्रति हेक्टर प्राप्त होती है तथा खरीफ में 12-15 कुंतल प्रति हेक्टर प्राप्त होती है। भंडारण के लिए बीज को भंडारण करने से पहले अच्छी तरह से सुखा लेना चाहिए, बीज में 10 प्रतिशत से नमी की अवस्था में भंडारित कर सकते हैं। सुखी नीम की पत्ती को बीज में मिलाकर भंडारण करने पर कीड़ो से सुरक्षा की जा सकती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
उर्द फसल (Urad Crop) को पिछली फसल की पंक्तियों के बीच में नाली में सूखा बोया जा सकता है, उसके बाद सिंचाई की जाती है। बुवाई फरवरी (शुरुआती वसंत) या जून-जुलाई (बरसात का मौसम) या अक्टूबर-नवंबर (शरद ऋतु) में की जा सकती है, जो जलवायु और कृषि स्थितियों और उगाई जाने वाली किस्म पर निर्भर करता है। बीज की दर 10-15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखते है।
दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी उर्द की खेती (Urad Cultivation) के लिए सबसे उपयुक्त मिट्टी है। मिट्टी में अधिक कार्बनिक पदार्थ मिलाने से बीज का उत्पादन अधिक होगा।
उड़द (Urad) एक प्रकार की अत्यधिक पौष्टिक दलहनी फसल है जो मुख्य रूप से बरसात के मौसम में 25 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री सेल्सियस के तापमान वाले गर्म और आर्द्र जलवायु में उगाई जाती है। इसलिए यह रबी की फसल नहीं है क्योंकि इसे खरीफ मौसम में उगाया जाता है।
उड़द (Urad) की बुवाई खरीफ व जायद दोनों फसलो में अलग-अलग समय पर की जाती है, खरीफ में जुलाई के प्रथम सप्ताह में बुवाई की जाती है एवं जायद में 15 फरवरी से 15 मार्च तक बुवाई की जाती है।
उड़द की फसल (Urad Crop) के लिए खरीफ ऋतु में बीज दर 12 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर एवं ग्रीष्म ऋतु में 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीजों को बोया जा सकता है।
उर्द (Urad) में नत्रजन 8-12 किलोग्राम व स्फुर 20-24 किलोग्राम पोटाश 10 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से दे। सम्पूर्ण खाद की मात्रा बुबाई की समय कतारो मे बीज के ठीक नीचे डालना चाहिये। दलहनी फसलो मे गंधक युक्त उर्वरक जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, अमोनियम सल्फेट, जिप्सम आदि का उपयोग करना चाहिये।
उड़द की खेती (Urad Cultivation) में सामान्यत: सिंचाई की बहुत अधिक आवश्यकता नहीं होती है। हालंकि वर्षा के अभाव में फलियों के बनते समय सिंचाई करनी चाहिए। इसकी फसल को 3 से 4 बार सिंचाई की जरूरत पड़ती है। पहली सिंचाई पलेवा के रूप में और बाकि की सिंचाई 20 दिन के अंतराल पर होनी चाहिए।
उड़द (Urad) के बीज को पहले उचित कवकनाशी द्वारा उपचारित करते हैं। इसके बाद छाया में सुखा लेते हैं। अब उरद फसल की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए राइजोबियम कल्चर तथा फोस्फो फास्फेट सोलेवलाइजिंग बैक्टिरिया (PSB) से उपचारित करते हैं। साथ में संतुलित उर्वरक देना आवश्यक है।
यदि उन्नत विधि से उड़द की खेती (Urad Cultivation) की जाती है। तो आमतौर पर 8-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।
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