
How to Grow Shankhpushpi in Hindi: शंखपुष्पी (कॉन्वोल्वुलस प्लुरिकाउलिस) पारंपरिक भारतीय चिकित्सा में एक प्रतिष्ठित जड़ी-बूटी है, जो विशेष रूप से अपनी संज्ञानात्मक क्षमता बढ़ाने वाले और तंत्रिका-सुरक्षात्मक गुणों के लिए जानी जाती है। आयुर्वेद में सदियों से प्रतिष्ठित, यह बहुमुखी पौधा न केवल अपने औषधीय लाभों के लिए मूल्यवान है, बल्कि भारत के कृषि परिदृश्य में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
जैसे-जैसे हर्बल उपचारों की मांग बढ़ती जा रही है, शंखपुष्पी (Shankhpushpi) की बागवानी के तरीकों, आदर्श विकास स्थितियों और आर्थिक क्षमता को समझना किसानों और हर्बल उद्योग के हितधारकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता जा रहा है।
यह लेख शंखपुष्पी (Shankhpushpi) की खेती के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करता है, इसकी वानस्पतिक विशेषताओं, पारंपरिक उपयोगों, खेती की तकनीकों और भविष्य की संभावनाओं का पता लगाता है ताकि इसके लाभों का लाभ उठाने में रुचि रखने वालों के लिए एक व्यापक मार्गदर्शिका प्रदान की जा सके।
शंखपुष्पी के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for Shankhpushpi)
शंखपुष्पी (Shankhpushpi) के नाम से जाने जाने वाले दो पौधे हैं, जिनमें से प्रत्येक की जलवायु आवश्यकताएँ थोड़ी भिन्न होती हैं। सबसे उपयुक्त जलवायु इस बात पर निर्भर करती है कि किस प्रजाति की खेती की जा रही है: कॉन्वोल्वुलस प्लुरिकाउलिस या क्लिटोरिया टर्नेटिया।
दोनों ही गर्म, धूप वाली परिस्थितियों में पनपते हैं और उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के मूल निवासी हैं। जिसमें 20-35°C का तापमान और 850-1300 मिमी की वार्षिक वर्षा सबसे अनुकूल है।
शंखपुष्पी के लिए मृदा का चयन (Soil selection for Shankhpushpi)
शंखपुष्पी (Shankhpushpi) की सफल खेती के लिए, अच्छी जल निकासी वाली, रेतीली दोमट मिट्टी और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर मिट्टी की आवश्यकता होती है। यह पौधा शुष्क परिस्थितियों के लिए अच्छी तरह अनुकूलित है और सीमांत या पथरीली भूमि को सहन कर सकता है।
लेकिन यह जलभराव के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। मृदा जिसका पीएच मान 5.5 से 7 के बीच हो। मिट्टी में जैविक खाद (जैसे गोबर की खाद) मिलाना आवश्यक है, ताकि मिट्टी उपजाऊ और भुरभुरी बन सके।
शंखपुष्पी के लिए खेत की तैयारी (Field preparation for Shankhpushpi)
शंखपुष्पी (Shankhpushpi) की खेती के लिए, खेत की तैयारी में अच्छी जल निकासी वाली, बलुई दोमट और कार्बनिक पदार्थों वाली मिट्टी का चयन करना शामिल है, जिसका पीएच मान 6.0 से 7.0 होना चाहिए। खेत को जुताई और हैरो चलाकर अच्छी तरह से जोतना चाहिए, और रोपण से पहले खरपतवार निकालना जरूरी है।
गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालने से मिट्टी उपजाऊ बनती है, और तैयारी के समय फोरेट का प्रयोग कुछ मिट्टी के कीटों को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है। खेत की जुताई करने के बाद, उसे एक महीने के लिए खुला छोड़ देना लाभदायक रहता है।
शंखपुष्पी की खेती के लिए किस्में (Varieties for Shankhpushpi Cultivation)
शंखपुष्पी (Shankhpushpi) की खेती के लिए प्रयुक्त मुख्य किस्में पारंपरिक चिकित्सा में इसी नाम से पहचाने जाने वाले विभिन्न पौधों पर आधारित हैं, जिनमें मुख्यत: कॉन्वोल्वुलस प्लुरिकाउलिस है, जिसे भारतीय आयुर्वेदिक औषधकोश में प्रामाणिक किस्म के रूप में निर्दिष्ट किया गया है।
अन्य पौधे भी शंखपुष्पी (Shankhpushpi) नाम से व्यापक रूप से उपयोग और खेती किए जाते हैं, जिनमें इवोल्वुलस अलसिनोइड्स (जिसे विष्णुकर्ण भी कहा जाता है) और क्लिटोरिया टर्नेटिया (जिसे अपराजिता या बटरफ्लाई पी भी कहा जाता है) शामिल हैं। शंखपुष्पी की खेती के लिए किस्मों का अधिक विवरण इस प्रकार है, जैसे-
कॉन्वोल्वुलस प्लुरिकाउलिस: यह वह किस्म है जिसे भारतीय आयुर्वेदिक औषधकोश में आधिकारिक तौर पर शंखपुष्पी के रूप में मान्यता प्राप्त है।
इवोल्वुलस अलसिनोइड्स: इसे विष्णुकर्ण भी कहा जाता है, यह किस्म नीले फूलों के लिए जानी जाती है।
क्लिटोरिया टर्नेटिया: आमतौर पर अपराजिता या बटरफ्लाई पी के नाम से जाना जाने वाला यह पौधा शंखपुष्पी के रूप में भी प्रयोग किया जाता है और अपने नीले फूलों के लिए लोकप्रिय है, लेकिन यह अन्य रंगों में भी उपलब्ध है। इसे कभी-कभी शंखपुष्पी भी कहा जाता है।
कैंसकोरा डिक्यूसाटा: यह एक और पौधा है, जिसका पारंपरिक रूप से शंखपुष्पी (Shankhpushpi) के स्रोत के रूप में उपयोग किया जाता रहा है।
शंखपुष्पी की बुवाई या रोपाई का समय (Sowing Time for Shankhpushpi)
शंखपुष्पी की खेती के लिए बुवाई का सबसे अच्छा समय जुलाई का महीना है। इस समय आप सीधे खेत में बीज छिड़क सकते हैं या नर्सरी में पनीरी तैयार करके रोपाई कर सकते हैं। यदि आप पौधे रोपना चाहते हैं, तो लगभग 25-30 दिन के स्वस्थ पौधों की रोपाई करें। शंखपुष्पी (Shankhpushpi) की खेती के लिए बुवाई या रोपाई के समय पर अधिक विवरण इस प्रकार है, जैसे-
बुवाई: जुलाई के महीने में शंखपुष्पी के बीजों को सीधे खेत में छिड़का जाता है।
रोपाई: यदि आपने नर्सरी तैयार की है, तो 25-30 दिनों के बाद जुलाई में ही मुख्य खेत में 30×30 सेंटीमीटर की दूरी पर पौधों की रोपाई करें।
तापमान: अंकुरण के लिए लगभग 20 डिग्री सेल्सियस और पौधों के विकास के लिए 25-30 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है।
शंखपुष्पी के पौधे तैयार करना (Propagating Shankhpushpi Plants)
शंखपुष्पी को बीजों, तने की कलमों और जड़ की कलमों के माध्यम से उगाया जा सकता है। बीजों के लिए, उन्हें मानसून के बाद, सीधे या बाद में रोपाई के लिए नर्सरी क्यारियों में बोएँ। वानस्पतिक प्रसार के लिए, किसी परिपक्व पौधे से 4-6 इंच लंबी तने की कलमों या जड़ की कलमों को विभाजित करके अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में रोपें, यह सुनिश्चित करते हुए कि कलमों को नम और अप्रत्यक्ष प्रकाश में रखा जाए। शंखपुष्पी (Shankhpushpi) के पौधे तैयार करने की विधियों का विस्तृत विवरण इस प्रकार है, जैसे-
बीजों द्वारा:-
बीज उपचार: बीजों को तेज़ अंकुरण के लिए 8-10 घंटे तक पानी में भिगो दें।
मिट्टी तैयार करना: अच्छी जल निकासी वाली, भुरभुरी और जैविक खाद से भरपूर रेतीली दोमट मिट्टी का उपयोग करें।
बुवाई: बीजों को 1-2 सेमी की गहराई पर गमलों या सीधे खेत की क्यारियों में बोएं।
समय: मानसून की पहली बारिश के बाद, जुलाई के पहले हफ्ते में बुवाई करना सबसे अच्छा रहता है।
कलमाें द्वारा:-
कलम तैयार करना: एक मजबूत, स्वस्थ पौधे से 4-6 इंच लंबी कलम (तना) लें।
कलम लगाना: कलम के निचले हिस्से से पत्तियां हटा दें और इसे अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में लगा दें। लगातार नम मिट्टी बनाए रखें।
रोपाई: कलम से तैयार पौधे को मुख्य खेत में 30×30 सेमी की दूरी पर रोपा जा सकता है।
जड़ विभाजन:-
विधि: एक परिपक्व पौधे को उखाड़कर उसे छोटे-छोटे खंडों में बाँट लें।
देखभाल: विभाजनों को अलग-अलग गमलों में या जमीन में रोपें और अच्छी तरह पानी दें।
शंखपुष्पी पौधा रोपण की विधि (Planting Method for Shankh pushpi Plants)
शंखपुष्पी (Shankhpushpi) लगाने के लिए, बीजों को अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में बोएँ और अंकुरण होने तक मिट्टी को नम रखें। जब पौधे 25-30 दिनों के हो जाएँ, तो उन्हें लगभग 30×30 सेमी की दूरी पर मुख्य खेत में रोपें। लगातार नमी बनाए रखें, खासकर शुष्क मौसम में, और स्वस्थ फसल सुनिश्चित करने के लिए खरपतवारों को नियमित रूप से नियंत्रित करें।
शंखपुष्पी में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Shankhpushpi)
शंखपुष्पी (Shankhpushpi) की खेती में सिंचाई प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य मिट्टी में नमी बनाए रखना है, बिना ज्यादा पानी के जड़ों को सड़ने से बचाना है। बीजों की बुवाई के बाद नमी के लिए हल्की सिंचाई करें। रोपाई के बाद भी हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, मिट्टी को पूरी तरह सूखने न दें और तेज गर्मी व शुष्क मौसम में नियमित रूप से पानी देते रहें।
शंखपुष्पी में खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizers in Shankhpushpi)
शंखपुष्पी (Shankhpushpi) की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर लगभग 10-17 टन कम्पोस्ट या गोबर की खाद और 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 25 किलोग्राम फास्फोरस (P₂O₅), और 40 किलोग्राम पोटाश (K₂O) की आवश्यकता होती है। पूरी मात्रा में फास्फोरस और पोटाश के साथ-साथ नाइट्रोजन का एक-तिहाई हिस्सा रोपण से पहले दिया जाता है, जबकि बाकी नाइट्रोजन को रोपाई के 6-8 सप्ताह बाद डाला जाता है। जैविक खेती के लिए, रासायनिक खाद की जगह जैविक खाद (जैसे पुरानी गोबर की खाद) का उपयोग किया जाना चाहिए।
शंखपुष्पी में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in Shankhpushpi)
शंखपुष्पी (Shankhpushpi) की खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए सबसे प्रभावी तरीका है हाथ से निराई-गुड़ाई करना। बुवाई के 20-25 दिन बाद पहली गुड़ाई करें और फिर लगभग एक-एक महीने के अंतराल पर दो और गुड़ाई करें, जिससे कुल 2-3 गुड़ाई हो जाती है। यह विधि खरपतवारों को हटाने के साथ-साथ मिट्टी को हवादार बनाने में भी मदद करती है, जिससे पौधों की वृद्धि बेहतर होती है।
शंखपुष्पी में कीट और रोग नियंत्रण (Pest and Disease Control in Shankhpushpi)
शंखपुष्पी आमतौर पर कीटों और रोगों के प्रति प्रतिरोधी होती है। हालाँकि, बगीचे में पाए जाने वाले सामान्य कीटों और स्थितियों से कुछ समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। शंखपुष्पी जैसे औषधीय पौधों के लिए, रासायनिक अवशेषों से बचने के लिए अक्सर जैविक नियंत्रण उपायों को प्राथमिकता दी जाती है। शंखपुष्पी (Shankhpushpi) की खेती में कीट और रोग नियंत्रण के उपाय इस प्रकार है, जैसे-
शंखपुष्पी के कीट और नियंत्रण:-
एफिड्स और स्पाइडर माइट्स: ये रस चूसने वाले कीट कभी-कभी शंखपुष्पी को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे पत्तियाँ पीली और मुरझा जाती हैं।
नियंत्रण: पौधों का नियमित रूप से संक्रमण के लिए निरीक्षण करें। नियंत्रण के लिए, 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की सांद्रता वाले नीम के तेल के स्प्रे जैसे जैविक कीटनाशक या 7-10 ग्राम प्रति लीटर नीम साबुन का प्रयोग करें।
शंखपुष्पी के रोग और नियंत्रण:-
पाउडरी फफूंद: यह कवक रोग पत्तियों पर सफेद, चूर्ण जैसी वृद्धि के रूप में दिखाई दे सकता है।
नियंत्रण: पौधों के आसपास अच्छी वायु संचार सुनिश्चित करें। यदि संक्रमण हो जाए, तो निर्देशानुसार उपयुक्त जैविक कवकनाशी का छिड़काव करें।
जड़ सड़न: ज्यादा पानी देना जड़ सड़न का सबसे आम कारण है, जहाँ जलभराव वाली मिट्टी में फफूंद के कारण जड़ें सड़ जाती हैं।
नियंत्रण: अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी का इस्तेमाल करें और ज्यादा पानी देने से बचें। अच्छी तरह पानी तभी डालें जब मिट्टी का ऊपरी एक इंच सूखा लगे।
शंखपुष्पी फसल की कटाई (Shankh pushpi crop harvesting)
शंखपुष्पी (Shankhpushpi) की कटाई रोपाई के लगभग 4-5 महीने बाद, जनवरी से मई के बीच की जाती है, जब फूल आने के बाद बीज विकसित हो जाते हैं। कटाई के लिए, खेत में हल्की सिंचाई करके पूरे पौधे को जड़ से उखाड़ लिया जाता है। फिर, इसे छाया में सुखाया जाता है और संसाध्रण के लिए पैक किया जाता है।
शंखपुष्पी की खेती से उपज (Yield from Shankh pushpi cultivation)
शंखपुष्पी (Shankhpushpi) की शुद्ध उपज प्रति हेक्टेयर 18.6 क्विंटल ताजी घास हो सकती है, जो सूखने के बाद लगभग एक-तिहाई रह जाती है। इसकी कटाई आमतौर पर रोपण के 4-5 महीने बाद, सितंबर-अक्टूबर के दौरान की जाती है जब फूल और बीज विकसित हो जाते हैं। उपज को अच्छी तरह सुखाकर ठंडी और सूखी जगह पर संग्रहित किया जाना चाहिए।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
शंखपुष्पी (Shankhpushpi) की खेती के लिए, उपजाऊ, भुरभुरी और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी (दोमट, रेत और कंपोस्ट का मिश्रण) की आवश्यकता होती है। खेती के लिए खेत की तैयारी में गोबर की खाद डालकर दो बार जुताई करें, मिट्टी को एक महीने तक खुला छोड़ दें, और फिर जुताई करके, पाटा लगाकर समतल करें। बीजों को नर्सरी बेड पर बोया जाता है और 25-30 दिन बाद मुख्य खेत में 30 X 30 सेंटीमीटर की दूरी पर रोपाई की जाती है।
शंखपुष्पी (Shankhpushpi) अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में अच्छी तरह पनपती है, जिसमें अच्छी मात्रा में कार्बनिक पदार्थ होते हैं, इसके लिए गर्म जलवायु और मध्यम पानी की आवश्यकता होती है। यह पूर्ण सूर्य के प्रकाश में रहना पसंद करती है और इसे भारत के विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में उगाया जा सकता है।
शंखपुष्पी (Shankhpushpi) की सबसे अच्छी किस्म श्वेत (सफेद) फूलों वाली मानी जाती है, क्योंकि पारंपरिक आयुर्वेद में इसे औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। फूलों के रंग के आधार पर इसकी तीन मुख्य प्रजातियाँ हैं: श्वेत (सफेद), रक्त (लाल) और नील (नीला) पुष्पी।
शंखपुष्पी (Shankhpushpi) की अच्छी पैदावार के लिए प्रति हेक्टेयर 4-6 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। यह बीज दर बुर्काव विधि द्वारा बोने पर लागू होती है, और अच्छी विकास सुनिश्चित करती है।
शंखपुष्पी (Shankhpushpi) की बुवाई का सबसे अच्छा समय मानसून (जुलाई-अगस्त) या बसंत (फरवरी-मार्च) है। इसके लिए गर्म और आर्द्र जलवायु उपयुक्त होती है, क्योंकि यह अधिक गर्मी और ठंड में अच्छी तरह से विकसित नहीं हो पाती है।
शंखपुष्पी (Shankhpushpi) की फसल की निराई-गुड़ाई बुवाई के लगभग 15 दिन बाद शुरू करनी चाहिए और फिर 15 से 20 दिन के अंतराल पर पूरी फसल के दौरान करते रहना चाहिए। निराई-गुड़ाई खरपतवारों को नियंत्रित करने और मिट्टी को हवादार बनाने के लिए महत्वपूर्ण है, जिससे पौधे की बढ़त बेहतर होती है।
शंखपुष्पी (Shankhpushpi) की फसल को पानी देने की आवृत्ति मौसम और फसल की अवस्था पर निर्भर करती है। अंकुरण के दौरान मिट्टी की नमी बनाए रखने के लिए 4-7 दिनों में पानी देना चाहिए, जबकि बाद में 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई कर सकते हैं। अत्यधिक पानी देने से बचें और हमेशा यह सुनिश्चित करें कि पानी देने से पहले मिट्टी की ऊपरी परत (2-3 इंच) सूख जाए।
शंखपुष्पी (Shankhpushpi) की फसल को प्रभावित करने वाले मुख्य कीट और रोग एफिड्स, स्पाइडर माइट्स और पाउडरी फफूंद हैं। शंखपुष्पी आमतौर पर इन कीटों और रोगों के प्रति प्रतिरोधी होती है, लेकिन कभी-कभी इनका हमला हो सकता है, खासकर यदि पौधे की देखभाल ठीक से न की जाए।
शंखपुष्पी (Shankhpushpi) में प्रभावी कीट और रोग प्रबंधन में जैविक और रासायनिक नियंत्रण विधियों का संयोजन शामिल हो सकता है। नियमित निगरानी, फसल चक्र और लाभकारी कीटों का उपयोग फसल के लिए खतरों को कम करने में मदद कर सकता है।
शंखपुष्पी (Shankhpushpi) की फसल को परिपक्व होने में रोपाई के बाद लगभग 4 से 5 महीने लगते हैं, जिसके बाद जनवरी से मई के बीच कटाई की जाती है। अक्टूबर में फूल आने लगते हैं और दिसंबर तक बीज विकसित हो जाते हैं।
शंखपुष्पी (Shankhpushpi) की कटाई का सबसे अच्छा समय फूल आने से ठीक पहले होता है, क्योंकि इस समय इसमें अल्कलॉइड की मात्रा सबसे ज़्यादा होती है। कटाई आमतौर पर बारिश के मौसम के बाद की जाती है, जब पौधे पूरी तरह से विकसित हो जाते हैं।
शंखपुष्पी (Shankhpushpi) की सबसे आम प्रजाति, कॉन्वोल्वुलस प्लुरिकाउलिस, की मानक व्यावसायिक उपज लगभग 2 से 3 क्विंटल (200-300 किलोग्राम) सूखी जड़ें और 30-40 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ है। विशिष्ट उपज पौधों की प्रजातियों, खेती के तरीकों और जलवायु के आधार पर भिन्न हो सकती है।
शंखपुष्पी (Shankhpushpi) अपने तंत्रिका-सुरक्षात्मक गुणों, संज्ञानात्मक कार्य को बढ़ाने, तनाव कम करने और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए जानी जाती है। इसका उपयोग आमतौर पर आयुर्वेदिक चिकित्सा में स्मृति और एकाग्रता को बेहतर बनाने के लिए किया जाता है।
हाँ, शंखपुष्पी (Shankhpushpi) को बागवानी में घर के बगीचे या गमलों में भी आसानी से उगाया जा सकता है, बशर्ते उसे उचित देखभाल और पोषण मिले।





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