
How to Grow Senna in Hindi: सनाय या सेन्ना की खेती ने अपने औषधीय गुणों और हर्बल उपचारों की बढ़ती माँग के कारण काफी ध्यान आकर्षित किया है। अपने रेचक प्रभावों के लिए जाना जाने वाला, सनाय का पौधा न केवल अपने चिकित्सीय उपयोगों के लिए मूल्यवान है, बल्कि किसानों के लिए इसकी आर्थिक क्षमता भी काफी है।
सही जलवायु परिस्थितियों, मिट्टी की तैयारी और खेती के तरीकों से, सनाय देश भर के विभिन्न क्षेत्रों में फल-फूल सकती है। यह लेख सनाय (Senna) की खेती के आवश्यक पहलुओं पर गहराई से चर्चा करता है, जिसमें इसके आदर्श वातावरण, प्रसार विधियाँ, कीट प्रबंधन और कटाई के बाद की प्रक्रियाएँ शामिल हैं, जिससे इच्छुक किसानों और कृषि प्रेमियों के लिए एक व्यापक मार्गदर्शिका उपलब्ध होती है।
सनाय के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for senna)
सनाय (Senna) गर्म, शुष्क जलवायु में, तेज धूप के साथ पनपती है और जलभराव तथा ठंडे तापमान के प्रति संवेदनशील होती है। आदर्श तापमान 30-35°C के बीच होता है, और औसत वर्षा 25-40 सेमी होती है, जो जून और अक्टूबर के बीच पर्याप्त होती है। इसकी खेती शुरुआती गर्मियों या सर्दियों की फसल के रूप में की जा सकती है, और बरसात के मौसम में इसकी रोपाई आमतौर पर तब तक आदर्श नहीं होती जब तक कि बारिश कम न हो।
सनाय के लिए भूमि का चयन (Selection of land for senna)
सनाय (Senna) की खेती के लिए, अच्छी जल निकासी वाली, रेतीली दोमट, लाल दोमट या जलोढ़ मिट्टी और 7.0 से 8.5 के बीच पीएच वाली भूमि चुनें। भूमि को पर्याप्त धूप मिलनी चाहिए और सूखे को सहन करने में सक्षम होना चाहिए, लेकिन इसे जलभराव की स्थिति से बचाना होगा। शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्र उपयुक्त हैं।
सनाय के लिए खेत की तैयारी (Field Preparation for Senna)
सनाय (Senna) के खेत की तैयारी के लिए, खरपतवारों को नष्ट करने के लिए गहरी जुताई और जमीन को 10-15 दिनों तक धूप में रखने की सलाह दी जाती है, इसके बाद दो बार क्रॉस-जुताई, हैरोइंग और समतलीकरण करें। अंतिम जुताई के दौरान अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद (FYM) डालें, फिर खेत को सिंचाई नालियों वाले छोटे, अच्छी जल निकासी वाले भूखंडों में फैलाएँ।
सनाय की उन्नत किस्में (Improved varieties of senna)
भारत (Senna) में खेती के लिए उन्नत सेना किस्मों में केकेएम (एसई) 1, एएलएफटी- 2 और सोना शामिल है, जो वर्षा आधारित परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है, और सोना, जो उत्तर भारत के किसानों के बीच लोकप्रिय है। दक्षिण भारतीय परिस्थितियों में बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए जीईएन- 1, जीईएन- 9 और जीईएन- 18 जैसी अन्य आशाजनक, उच्च उपज देने वाली और स्थिर जीनोटाइप की पहचान की गई है। किस्म का चुनाव अक्सर विशिष्ट उत्पादन क्षेत्र और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
सनाय की बुवाई या रोपाई का समय (Sowing or planting time of senna)
सनाय (Senna) औषधि की खेती के लिए बुवाई का सही समय फरवरी-मार्च और जून-जुलाई है। उत्तर भारत में इसे नवंबर में भी बोया जाता है। आपके क्षेत्र के मौसम और सिंचाई की उपलब्धता के आधार पर बुवाई का समय अलग-अलग हो सकता है। सनाय की खेती के लिए बुवाई या रोपाई के समय पर अधिक विवरण इस प्रकार है, जैसे-
सिंचित क्षेत्रों में: फरवरी-मार्च और जून-जुलाई में बुवाई की जा सकती है।
असिंचित क्षेत्रों में: जून-जुलाई में बुवाई की जा सकती है और यह सामान्यतः मानसून की शुरुआत के साथ की जाती है।
उत्तर भारत में: नवंबर में भी बुवाई की जाती है।
दक्षिण भारत में: धान की कटाई के बाद सितंबर-अक्टूबर में बुवाई की जाती है।
सनाय के बीज की मात्रा और बुवाई (Quantity and Sowing of Senna Seeds)
एक हेक्टर भूमि के लिए लगभग 10-15 किलोग्राम सनाय (Senna) के बीज की आवश्यकता होती है। बुवाई से पहले बीज के जमाव का परीक्षण अवश्य कर लें। मानसून की अंतिम बरसात के तुरंत बाद ट्रैक्टर या हल से बुवाई करें तथा लाइन से लाइन और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर होनी चाहिए।
बीज को 1.5-2.0 सेंटीमीटर से ज्यादा गहरा नहीं बोलना चाहिए। प्राय: 10 से 12 दिन में अंकुरण हो जाता है। बुवाई के समय खेत में अच्छी नमी होनी चाहिए। अंकुरण जल्दी करने के लिए बीज को बुवाई से 24 घंटे पहले पानी में भिगोकर 2 घंटे छाया में सुका ले तो अंकुरण जल्दी अच्छा होता है।
सनाय के लिए खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizer for Senna)
सनाय (Senna) की खेती के लिए, शुरुआत में प्रति हेक्टेयर 10-15 टन गोबर की खाद और 40:40:40 किग्रा प्रति हेक्टेयर एनपीके (नाइट्रोजन: फास्फोरस: पोटेशियम) की बेसल खुराक डालें। बुवाई के 40 दिन बाद 40 किग्रा नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर और यदि आवश्यकता हो तो बुवाई के बाद पत्तियां तोड़ने के बाद हर बार 20 किग्रा नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर डालें। जैविक खेती के लिए रासायनिक उर्वरकों के बजाय जैविक खाद का उपयोग करने की सलाह दी जाती है।
सनाय में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Senna)
सनाय (Senna) की फसल शुष्क परिस्थितियों के लिए अनुकूल है, इसलिए इसे बहुत अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। यदि वर्षा न हो तो गर्मियों में 15-20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। शुष्क क्षेत्रों में अधिक उपज के लिए 6-8 बार सिंचाई की आवश्यकता हो सकती है।
सर्दियों में 30 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। यह फसल जलभराव के प्रति बहुत संवेदनशील होती है, इसलिए खेत में पानी जमा न होने दें। जलभराव की स्थिति में तुरंत पानी निकालने की व्यवस्था करें। जड़ों की खुदाई करने से पहले खेत में हल्की नमी होने से खुदाई में आसानी होती है।
सनाय में खरपतवार नियंत्रण (Weed Control in Sennaa)
सनाय (Senna) की खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए हाथ से निराई-गुड़ाई, शाकनाशियों का उपयोग, और आवरण फसलें लगानी चाहिए। बुवाई के बाद खरपतवार नियंत्रण के लिए 6 सप्ताह बाद मिट्टी चढ़ाना एक प्रभावी तरीका है। शाकनाशियों का उपयोग करते समय फसल को नुकसान से बचाने के लिए उन्हें केवल फसल की पंक्तियों पर निर्देशित करके ही छिड़कना चाहिए।
सनाय (Senna) की बुवाई के 25 से 30 दिन बाद निराई गुड़ाई अवश्य करें जिससे खरपतवार नष्ट हो जाए तथा पौधे खेत में बड़े हो जाए जिससे खरपतवार कम हो इसलिए वर्ष में दो तीन बार निराई गुड़ाई करनी चाहिए।
सनाय में कीट और रोग नियंत्रण (Pest and Disease Control in Senna)
सनाय (Senna) की फसल में बीमारी से लड़ने की क्षमता होती है। इस फसल को दीमक, टिड्डी भी कम हानि पहुंचाती है। बरसात के दिनों में कभी-कभी इसकी पत्तियों पर काले धब्बे होते हैं लेकिन फसल को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। धूप निकलने पर यह ठीक हो जाते हैं। कभी-कभी फूल आने पर कीट का प्रकोप होता है इसलिए इसमें नीम की पत्ती, निंबोली का घोल या गोमूत्र आदि को मिश्रण करके छिड़कना चाहिए।
सनाय फसल की कटाई (Harvesting the Sennaa Crop)
सनाय (Senna) की कटाई तब की जाती है, जब पत्तियाँ पूरी तरह से विकसित और मोटी होकर हरे-नीले रंग की हो जाती हैं। बुवाई के लगभग 2-3 महीने बाद पत्तियों और फलियों की पहली कटाई की जाती है, जिसके बाद हर 30-35 दिनों के अंतराल पर कटाई होती रहती है। कटाई के बाद, पत्तियों और फलियों को 7-10 दिनों तक धूप में सुखाया जाता है। पूरे वर्ष में लगभग 4 कटाई कर सकते हैं। सर्दियों में पाला पड़ने पर फसल को नुकसान हो सकता है, अतः पहले कटाई पाला पड़ने से पहले करनी चाहिए।
सनाय की फसल से उपज (Yield from sennaa crop)
औषधीय सनाय (Senna) की फसल की उपज परिस्थितियों के अनुसार भिन्न होती है, सिंचित खेतों में औसतन 2 टन प्रति हेक्टेयर सूखी पत्तियाँ और 150-200 किग्रा प्रति हेक्टेयर सूखी फलियाँ पैदा होती हैं। वर्षा आधारित खेती से लगभग 1 टन प्रति हेक्टेयर सूखी पत्तियाँ और 75-100 किग्रा प्रति हेक्टेयर सूखी फलियाँ प्राप्त होती हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
सेन्ना (Senna) की खेती के लिए, मिट्टी को जुताई और समतल करके तैयार करें, और पूर्व-उपचारित बीजों को उपयुक्त मौसम (उत्तर भारत में फरवरी-मार्च, दक्षिण भारत में सितंबर-अक्टूबर) में पंक्तियों में बोएँ। आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई करें, और स्वस्थ विकास सुनिश्चित करने के लिए निराई-गुड़ाई करें। 2-3 महीने बाद पत्तियों और फलियों को तब तोड़ें जब वे सुनहरे पीले रंग की हो जाएँ।
सेन्ना (Senna) औषधि के लिए गर्म और शुष्क जलवायु आदर्श होती है, जहाँ वार्षिक वर्षा लगभग 300-400 मिमी (30-40) सेमी) हो। यह जलभराव के प्रति बहुत संवेदनशील है और इसे अच्छी धूप की आवश्यकता होती है, इसलिए इसे बहुत कम या बारिश पर निर्भर सूखी फसल के रूप में उगाया जाता है।
सेन्ना (Senna) 6.0 से 7.5 पीएच मान वाली अच्छी जल निकासी वाली रेतीली या दोमट मिट्टी में पनपता है। कार्बनिक पदार्थों से समृद्ध मिट्टी इष्टतम वृद्धि को बढ़ावा देती है।
सेन्ना (Senna) की सबसे अच्छी किस्मों में केकेएम-1 (केकेएम (एसई) 1), एएलएफटी-2 और सोना शामिल हैं, जो खेती के लिए उपयुक्त हैं। ये किस्में अपनी औषधीय गुणों, विशेष रूप से रेचक प्रभावों के लिए जानी जाती हैं और इनका उपयोग कब्ज से राहत के लिए किया जाता है।
एक हेक्टेयर भूमि में सेन्ना (Senna) के बीज लगाने के लिए लगभग 15 से 20 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। औषधि के लिए, यह बीज दर फसल की खेती की मात्रा पर निर्भर करती है।
सेन्ना (Senna) औषधि की बुवाई का सबसे अच्छा समय जून-जुलाई है, जो कि मॉनसून की शुरुआत के साथ होता है, खासकर उत्तरी भारतीय परिस्थितियों में। दक्षिणी भारत में, धान की कटाई के बाद, यानी सितंबर-अक्टूबर में बुवाई करना बेहतर होता है।
सेन्ना (Senna) फसल की निराई-गुड़ाई बुवाई के 3 से 4 सप्ताह बाद 1 से 2 बार करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त, यदि खरपतवार ज्यादा हों तो फसल की वृद्धि की अवस्था में आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।
सेन्ना (Senna) की खेती के लिए अच्छी मिट्टी की तैयारी के दौरान अच्छी तरह से विघटित गोबर की खाद (FMY) का उपयोग करें। बुवाई के समय, 40:40:40 किग्रा/हेक्टेयर की दर से नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (N:P:K) मिलाएं। बुवाई के बाद, 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन की आधी खुराक और शेष आधा नाइट्रोजन दो बराबर खुराकों में डालें।
सेन्ना (Senna) को कम पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन बीज उत्पादन के लिए फूल आने के समय और बीज बनने के समय सिंचाई आवश्यक है। आमतौर पर इसे वर्षा आधारित फसल के रूप में उगाया जाता है और केवल मौसम और मिट्टी के आधार पर 2-3 बार पानी की आवश्यकता हो सकती है।
सेन्ना (Senna) के सामान्य कीटों में एफिड और कैटरपिलर शामिल हैं, जबकि जड़ सड़न और पत्ती धब्बा जैसे रोग पौधे को प्रभावित कर सकते हैं। एकीकृत कीट प्रबंधन रणनीतियों को लागू करने से इन समस्याओं को कम करने में मदद मिल सकती है।
सेन्ना (Senna) को बुवाई से कटाई तक परिपक्व होने में आमतौर पर लगभग 3 से 4 महीने लगते हैं, जो जलवायु परिस्थितियों और खेती के तरीकों पर निर्भर करता है।
सेन्ना (Senna) की कटाई का अच्छा समय बुवाई के 2-3 महीने बाद पहली बार और उसके बाद हर 30 दिनों के अंतराल पर होता है। कटाई में पत्तियों और फलियों को शामिल किया जाता है और पौधे के 4-5 महीने का होने पर तीसरी कटाई की जा सकती है।
सेन्ना (Senna) की पैदावार सिंचाई और परिस्थितियों के आधार पर अलग-अलग होती है, लेकिन एक अच्छी औसत फसल से सिंचित क्षेत्र में प्रति हेक्टेयर लगभग 1500 किलोग्राम सूखी पत्तियाँ और 500 किलोग्राम फलियाँ मिल सकती हैं। बिना सिंचाई वाली स्थिति में, प्रति हेक्टेयर 75-100 किलोग्राम फलियाँ और लगभग 1000 किलोग्राम) सूखी पत्तियाँ प्राप्त हो सकती हैं।
हाँ, सेन्ना (Senna) को गमलों और बगीचों दोनों में उगाया जा सकता है। आप इसे बगीचे में एक सजावटी झाड़ी के रूप में या हेज के रूप में लगा सकते हैं, और इसे पर्याप्त आकार के गमलों या टबों में भी उगाया जा सकता है।
सेन्ना (Senna) का उपयोग मुख्यतः इसके रेचक गुणों के लिए किया जाता है और यह आमतौर पर कब्ज के लिए हर्बल उपचारों में पाया जाता है। इसका उपयोग विभिन्न पारंपरिक औषधीय प्रथाओं में भी किया जाता है।





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