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Home » Blog » Sarpagandha Farming in Hindi: जाने सर्पगंधा कैसे उगाएं

Sarpagandha Farming in Hindi: जाने सर्पगंधा कैसे उगाएं

October 16, 2025 by Bhupendra Dahiya Leave a Comment

Sarpagandha Farming in Hindi: जाने सर्पगंधा कैसे उगाएं

How to Grow Sarpagandha in Hindi: सर्पगंधा, जिसे वैज्ञानिक रूप से राउवोल्फिया सर्पेन्टिना के नाम से जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है, जो पारंपरिक भारतीय चिकित्सा में अपने चिकित्सीय गुणों, विशेष रूप से उच्च रक्तचाप और चिंता जैसी विभिन्न बीमारियों के उपचार के लिए पूजनीय है। जैसे-जैसे हर्बल उपचारों और टिकाऊ कृषि में रुचि बढ़ रही है, भारत में किसानों और कृषि प्रेमियों के बीच सर्पगंधा की खेती प्रमुखता प्राप्त कर रही है।

यह लेख सर्पगंधा (Sarpagandha) की खेती की बारीकियों पर प्रकाश डालता है, इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, आदर्श विकास परिस्थितियों, खेती के तरीकों, कीट प्रबंधन रणनीतियों और उपज क्षमता का पता लगाता है। इस मूल्यवान फसल की बारीकियों को समझकर, हितधारक इसके लाभों का बेहतर उपयोग कर सकते हैं और देश में फलते-फूलते हर्बल उद्योग में योगदान दे सकते हैं।

Table of Contents

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  • सर्पगंधा के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable Climate for Sarpagandha)
  • सर्पगंधा के लिए भूमि का चयन (Selection of Land for Sarpagandha)
  • सर्पगंधा के लिए खेत की तैयारी (Field preparation for Sarpagandha)
  • सर्पगंधा की उन्नत किस्में (Improved varieties of Sarpagandha)
  • सर्पगंधा की बुवाई और रोपाई का समय (Sowing Time for Sarpagandha)
  • सर्पगंधा के पौधे तैयार करना (Preparing Sarpagandha Plants)
  • सर्पगंधा के पौधों की रोपाई विधि (Transplanting for Sarpagandha Plants)
  • सर्पगंधा में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Sarpagandha)
  • सर्पगंधा में खाद एवं उर्वरक (Manure and Fertilizers for Sarpagandha)
  • सर्पगंधा की फसल में निराई-गुड़ाई (Weeding in Sarpagandhas Crop)
  • सर्पगंधा के फूलों की तुड़ाई (Harvesting Sarpagandhas Flowers)
  • सर्पगंधा की खेती से उपज (Yield from Sarpagandhas Cultivation)
  • अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)

सर्पगंधा के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable Climate for Sarpagandha)

सर्पगंधा (Sarpagandha) विभिन्न प्रकार की जलवायु में उगाया जा सकता है, किन्तु इसकी अधिक उपज गर्म तथा अधिक आर्दता वाली परिस्थितियों में मिलती है। प्राकृतिक रूप से सर्पगंधा पौधों के नीचे छाया में उगता है। लेकिन खुली जमीन तथा हल्की छाया में भी इसकी खेती की जा सकती है। जहाँ का तापक्रम 10 से 38 डिग्री सेन्टीग्रेड के मध्य रहता है, वे स्थान इसकी खेती के लिये उपयुक्त हैं।

सर्पगंधा के लिए भूमि का चयन (Selection of Land for Sarpagandha)

सर्पगंधा (Sarpagandha) की खेती विभिन्न मृदा किस्मों जैसे कि बलुवर, बलुवर दोमट तथा भारी जमीनों में हो रही है। इसे बहुत हल्की बलुवर जमीन जिसमें जीवांश पदार्थ की मात्रा कम हो नहीं उगाना चाहिये। यह पौधा अम्लीय तथा क्षारीय दोनों प्रकार की मिट्टियों में आसानी से उगाया जा सकता है। जिस भूमि का पीएच 8.5 से ज्यादा हो वह इसकी खेती के लिये उपयुक्त नहीं होती है।

सर्पगंधा के लिए खेत की तैयारी (Field preparation for Sarpagandha)

गर्मियों में एक गहरी जुताई करके खेत को खुला छोड़ देना चाहिये। खेत से पुराने पेड़ों की जड़ो या अन्य झाड़ियों आदि को खेत से निकाल देते हैं। पहली बरसात के तुरन्त बाद 10-12 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी खाद को खेत में मिलाकर खेत की पुन: जुताई कर देनी चाहिये।

सर्पगंधा (Sarpagandha) लगाने के पहले भी दो हल्की जुताईयाँ करके उसमें पाटा लगा देते हैं। जिससे खेत में ढेले न रह जाय। खेत में सुविधानुसार सिंचाई की नालियाँ भी बना लेना चाहिए।

सर्पगंधा की उन्नत किस्में (Improved varieties of Sarpagandha)

सर्पगंधा (Sarpagandha) की खेती के लिए मुख्य रूप से आरएस- 1 नामक एक उन्नत किस्म है, जिसे जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर ने विकसित किया है। यह किस्म प्रति एकड़ 10 क्विंटल सूखी जड़ें दे सकती है, और इसमें 50-60% बीज व्यवहार्यता होती है।

इसके अलावा, सामान्य किस्मों और रौवोल्फिया टेट्राफिला जैसी स्थानीय और जंगली किस्मों का भी उपयोग किया जाता है। अन्य कुछ प्रमुख किस्में हैं: सर्पगंधा-1 (कृषक जगत द्वारा विकसित), टीएफआरएसआई- 1 और टीएफआरएसआई- 2 (टीएफआरआई द्वारा विकसित), और कौमुदी (केरल कृषि प्रकोष्ठ द्वारा विकसित एक उच्च उपज वाली प्रजाति)।

सर्पगंधा की बुवाई और रोपाई का समय (Sowing Time for Sarpagandha)

सर्पगंधा (Sarpagandha) की बुवाई नर्सरी में बीज या तने के माध्यम से की जाती है। नर्सरी में बीज बोने का सही समय उत्तर भारत में मई और दक्षिण भारत में बरसात की शुरुआत में है, जिससे पौधे लगभग 30-35 दिनों में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं और उन्हें जुलाई के पहले सप्ताह में मुख्य खेत में लगाया जा सकता है। सर्पगंधा की बुवाई और रोपाई पर अधिक विवरण इस प्रकार है, जैसे-

नर्सरी तैयार करना: उत्तर भारत में, आप मई में नर्सरी में बीज बो सकते हैं और जुलाई के पहले हफ्ते तक पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाएंगे। दक्षिण भारत में, बारिश शुरू होते ही नर्सरी में बीज बोए जाते हैं और लगभग 6 सप्ताह बाद पौधे खेत में लगाने योग्य हो जाते हैं।

खेत में रोपाई: सर्पगंधा (Sarpagandha) के तैयार पौधों की रोपाई जून-जुलाई में की जाती है। आप नर्सरी से 7.5-12 सेमी ऊंचे पौधे खोदकर खेत में लगा सकते हैं।

तने या जड़ से खेती: यदि आप तने के कलम से खेती कर रहे हैं, तो जून-जुलाई में तने की कटिंग नर्सरी में लगाएं। यदि आप जड़ के टुकड़ों से रोपण कर रहे हैं, तो मार्च-जून में रोपाई की जा सकती है।

उपचार: रोपाई से पहले, पौधों की जड़ों को फफूंदनाशक घोल में 8-10 मिनट तक डुबोकर उपचारित करें, ताकि उन्हें कीट और रोगों से बचाया जा सके।

सर्पगंधा के पौधे तैयार करना (Preparing Sarpagandha Plants)

विभिन्न विधियों जैसे सर्पगंधा के पौध बीज, तने तथा जड़ की कटिंग व जड़ों के ढूंठ लगाकर तैयार किये जा सकते हैं। सर्पगंधा (Sarpagandha) के पौधे तैयार करने की विधियाँ इस प्रकार है, जैसे-

बीज द्वारा: इस विधि से सामान्यत: सर्पगंधा (Sarpagandha) का पौधा नहीं तैयार करते हैं, क्योंकि इसके बीजों का जमाव बहुत ही कम (20 से 25 प्रतिशत) होता है। यदि बीज के द्वारा ही तैयार करना है तो बिल्कुल ताजे बीजों का प्रयोग करना चाहिए। तीन महीना के भीतर तैयार बीज का अंकुरण प्रतिशत ठीक रहता है।

नर्सरी तैयार करना: इस विधि में करीब 5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बुवाई के पूर्व बीजों को 5 प्रतिशत नमक के घोल में डाल देते हैं। जिससे खराब बीज ऊपर तैरने लगते हैं। इस विधि से उपचार करने पर न केवल अंकुरण अधिक होता परन्तु नर्सरी में होने वाली डैम्पिंग आफ बीमारी से भी बचाव होता है। नर्सरी में बीजों को बोने के पहले रात भर पानी भिगो देते हैं।

उत्तर भारत में मई के महीने में बीजों को नर्सरी में बोते हैं। जुलाई के पहले हफ्ते तक पौधे खेत में लगाने योग्य तैयार हो जाते हैं। दक्षिण भारत में बरसात शुरू हो जाने पर नर्सरी में बीजों को बोते हैं । करीब 6 सप्ताह बाद पौधे खेत में लगाने योग्य हो जाते हैं । प्रति हेक्टेयर बीज द्वारा पौधे तैयार करने के लिये 500 वर्गमीटर भूमि नर्सरी के लिये पर्याप्त होती है।

जड़ों की कलम द्वारा: ऐसे पौध की जड़े जिसमें एल्कलायड की मात्रा अधिक हो उनका चुनाव पौध लगाने के लिये करते हैं। इससे अधिक एल्कलायड देने वाले पौधे प्राप्त होंगे। पौध तैयार करने के लिए 7.5 से 10 सेमी लम्बी जड़ें काटते हैं। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जड़ों की मोटाई 12.5 मिमी से अधिक न हो तथा प्रत्येक टुकड़े में 2 गाँठें हों।

इस प्रकार की जड़ों को करीब 5 सेमी गहराई के नालियों में लगाकर अच्छी प्रकार से ढ़क देते हैं। इस विधि से सर्पगंधा (Sarpagandha) की फसल लगाने में करीब 100 किग्रा ताजी जड़ों के टुकड़ों की जरूरत होती है।

सर्पगंधा के पौधों की रोपाई विधि (Transplanting for Sarpagandha Plants)

बरसात का समय सर्पगंधा (Sarpagandha) की रोपाई के लिये उपयुक्त होता है। रोपाई के समय पौध की ऊंचाई 7.5 से 12 सेमी के बीच होना चाहिए। नर्सरी से पौध उखाड़ते समय इस बात का ध्यान रहे कि उसकी जड़ें टूटने न पाये। उखाड़ने के बाद पौधों को भीगे बोरे या हरी पत्तियों से ढ़ककर खेत में सीधे ले जाकर लगा देना चाहिये। लाइन से लाइन 60 सेमी की दूरी तथा पौध से पौध की दूरी 30 सेमी होनी चाहिये।

सर्पगंधा में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Sarpagandha)

यद्यपि सर्पगंधा (Sarpagandha) असिंचित अवस्था में पैदा किया जा सकता है, लेकिन पानी की कमी की वजह से पैदावार कम हो जाती है। यदि सिंचित अवस्था में इसकी खेती की जा रही है, तो इसे गर्मियों के अलावा एक माह में एक बार तथा गर्मियों में माह में दो बार सिंचाई करते हैं। यदि पौध लगाने के बाद बरसात नहीं होती है, तो रोजाना हल्की सिंचाई पौध अच्छी तरह लगने तक करते हैं।

सर्पगंधा में खाद एवं उर्वरक (Manure and Fertilizers for Sarpagandha)

सर्पगंधा (Sarpagandha) का पौधा पूरे वर्ष जमीन में रहने की वजह से काफी मात्रा में पोषक तत्व जमीन से ले लेता है। अत: एक निश्चित अंतराल पर गोबर की खाद का तथा उर्वरकों का प्रयोग करते हैं। खाद की मात्रा जमीन की किस्म तथा सिंचित अवस्था के ऊपर निर्भर करती है।

प्रति हेक्टेयर 10 टन गोबर की खाद एवं नेत्रजन, फास्फोरस व पोटाश हर एक की 30 किग्रा की दर से बुवाई के पूर्व खेत में मिला देना चाहिए। इसके बाद 25 किग्रा नेत्रजन दो बार पौध अच्छी तरह लगने के बाद अगस्त-सितम्बर में तथा फरवरी-मार्च में देते हैं। बाद के दूसरे तथा तीसरे वर्षों में भी उपरोक्त दिये गये उर्वरकों की मात्रा प्रयोग करते हैं।

सर्पगंधा की फसल में निराई-गुड़ाई (Weeding in Sarpagandhas Crop)

शुरू में सर्पगंधा (Sarpagandha) के पौधे की वृद्धि कम होने के कारण खेत में खर-पतवार काफी मात्रा में हो जाते हैं, जिसकी वजह से पौधे की बढ़वार और भी कम हो जाती है। यदि इस अवस्था में खर-पतवार नियंत्रित नहीं किये गये तो ये सर्पगंधा के पौधे को ढक लेते हैं, जिससे पौधें मर भी जाते हैं। अत: लगाने के 15-20 दिन के बाद खुरपी से निराई कर देनी चाहिये तत्पश्चात साल में दो बार और निराई गुड़ाई करना चाहिए ।

सर्पगंधा के फूलों की तुड़ाई (Harvesting Sarpagandhas Flowers)

यदि सर्पगंधा की खेती इसकी जड़ों के उत्पादन के लिए की जा रही है तो फूल निकलने पर उनकी तुड़ाई कर देनी चाहिए, नहीं तो बीज बनेंगे और जड़ों की उपज कम हो जायेगी। सर्पगंधा (Sarpagandha) के फूलों की तुड़ाई और खुदाई पर अधिक विवरण इस प्रकार है, जैसे-

बीज इकट्ठा करना: यदि सर्पगंधा (Sarpagandha) के बीजों की जरूरत है, तो खेत के किसी एक कोने में पौधों को छोड़ देते हैं, जिससे कि उसमें बीज आ जायें। पौधों में जुलाई से फरवरी के मध्य बीज आते हैं। पके बीज के ऊपर बैंगनी व काले रंग का गूदा होता है, बीजों को बीच-बीच में इकट्ठा करते रहते हैं, क्योंकि बीज एक साथ तैयार नहीं होते हैं। पके हुये बीजों के ऊपर का गुदा पानी में धोकर निकाल देते हैं। तत्पश्चात उन्हें साये में सुखाकर हवा बन्द डिब्बों में भरकर रख देते हैं।

जड़ों की खुदाई, सुखाना तथा भंडारण: सिंचित अवस्था में जड़ें 2 से 3 वर्ष की उम्र में खुदाई के लिये तैयार हो जाती है। सर्पगंधा (Sarpagandha) की खुदाई का उचित समय दिसम्बर माह है क्योंकि इस समय पौधा सुसुप्ता अवस्था में रहता है तथा पत्तियाँ भी कम होती है। इसकी जड़ें काफी गहराई तक जाती है, इन्हें अच्छी तरह खोदकर निकालना चाहिये। उसके बाद पानी में जड़ें धोकर छाया में सुखाना चाहिये । तत्पश्चात जड़ो को जूट के बोरो में भरकर बाजार हेतु रखते हैं ।

सर्पगंधा की खेती से उपज (Yield from Sarpagandhas Cultivation)

इस प्रकार किये गये प्रत्येक सर्पगंधा (Sarpagandha) के पौधे से करीब 100 ग्राम से 400 ग्राम तक जड़ों से प्राप्त होती है। परीक्षणों से यह ज्ञात हुआ है कि यदि 60×30 सेमी में पौधे लगाये गये हैं, तो करीब 1175 किग्रा तक सूखी जड़ें प्राप्त होती है। औसतन 10 कुन्तल जड़ें प्राप्त होती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)

सर्पगंधा की खेती कैसे की जाती है?

सर्पगंधा (Sarpagandha) की खेती के लिए, उपजाऊ मिट्टी में गहरी जुताई करके गोबर की खाद डालें, बीज को 12 घंटे पहले पानी में भिगोएँ और फिर नर्सरी में बोएँ। जुलाई के पहले सप्ताह में लगभग 40-50 दिन के पौधों को मुख्य खेत में 30 X 30 सेमी की दूरी पर लगा दें और हल्की सिंचाई करें। आप जड़ों या कलम से भी खेती कर सकते हैं। 

सर्पगंधा के लिए आदर्श वृद्धि परिस्थितियाँ क्या हैं?

सर्पगंधा (Sarpagandha) अच्छी जल निकासी वाली, दोमट मिट्टी में पर्याप्त धूप और मध्यम नमी के साथ पनपता है। यह गर्म जलवायु पसंद करता है, आमतौर पर 20°C से 35°C के तापमान में पनपता है।

सर्पगंधा के लिए आदर्श मिट्टी परिस्थितियाँ क्या हैं?

सर्पगंधा (Sarpagandha) के लिए आदर्श मिट्टी की परिस्थितियाँ अच्छी जल निकासी वाली, कार्बनिक पदार्थों से भरपूर दोमट या बलुई-दोमट मिट्टी हैं, जिसमें पीएच स्तर 6.0 से 7.5 के बीच हो। इसे थोड़ी अम्लीय से तटस्थ मिट्टी की आवश्यकता होती है और यह बहुत हल्की बलुई या अत्यधिक क्षारीय (पीएच 8.5 से अधिक) मिट्टी के लिए उपयुक्त नहीं है। 

सर्पगंधा लगाने का सबसे अच्छा समय कौन सा है?

सर्पगंधा (Sarpagandha) लगाने का सबसे अच्छा समय मई-जून और मानसून का मौसम (जून-अगस्त) है। अगर आप बीजों से लगा रहे हैं, तो अप्रैल-जून के महीनों में खेती कर सकते हैं, जबकि जड़ों से लगाने के लिए मार्च-जून का समय उपयुक्त है।

सर्पगंधा की सबसे अच्छी किस्में कौन सी है?

सर्पगंधा (Sarpagandha) की सबसे अच्छी किस्में आरएस- 1 (जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय द्वारा विकसित) और सीआईएम- 01 (सीआईएमएपी लखनऊ द्वारा विकसित) हैं। इसके अलावा, वाइल्ड से स्थानीय संग्रह की किस्में भी किसानों के बीच लोकप्रिय हैं।

सर्पगंधा के कितने बीज की आवश्यकता होती है?

एक हेक्टेयर खेती के लिए लगभग 6 से 8 किलोग्राम सर्पगंधा (Sarpagandha) के बीजों की आवश्यकता होती है। यदि आप नर्सरी में पौधे तैयार कर रहे हैं, तो प्रति हेक्टेयर 5 किलोग्राम बीजों की आवश्यकता हो सकती है। बीजों को बोने से पहले रात भर पानी में भिगोना और बाद में थायरम जैसे फफूंदनाशी से उपचारित करना महत्वपूर्ण है।

सर्पगंधा के पौधे कैसे तैयार करें?

सर्पगंधा (Sarpagandha) के पौधे बीज या जड़ों की कलम से तैयार किए जा सकते हैं। बीजों के लिए, अप्रैल में नर्सरी बेड (लगभग 1.5 मीटर चौड़ा और 150-200 मिमी ऊंचा) तैयार करें, बीज बोएं और सिंचाई करें। बीज 30-35 दिनों में अंकुरित होने लगते हैं और जुलाई के पहले सप्ताह में जब पौधे 4-6 पत्तियां आने पर उन्हें मुख्य खेत में 30×30 सेमी की दूरी पर रोपा जा सकता है।

सर्पगंधा की सिंचाई कब और कैसे करें?

सर्पगंधा (Sarpagandha) की सिंचाई गर्मियों में पाक्षिक (15-20 दिन में एक बार) और सर्दियों में मासिक (30-40 दिन में एक बार) करें। सिंचाई करते समय खेत में नमी बनाए रखना महत्वपूर्ण है, खासकर बीज अंकुरण और जड़ों की खुदाई से पहले।

सर्पगंधा फसल की निराई-गुड़ाई कब करें?

सर्पगंधा (Sarpagandha) की निराई नियमित रूप से करनी चाहिए, खासकर विकास के शुरुआती चरण में। पहले वर्ष में दो से तीन निराई की आवश्यकता होती है, जबकि दूसरे वर्ष में एक निराई और फिर एक गुड़ाई की आवश्यकता होती है। बढ़ते मौसम के शुरुआती दौर में, खरपतवारों के फूल आने और बीज बनने से पहले, निराई करना सबसे अच्छा होता है।

सर्पगंधा के लिए कौन सी उर्वरक अच्छी होती हैं?

सर्पगंधा (Sarpagandha) के लिए गोबर की खाद और रासायनिक उर्वरकों का संतुलित उपयोग सबसे अच्छा होता है। खेत की तैयारी के समय, प्रति एकड़ 8-10 टन गोबर की खाद मिट्टी में अच्छी तरह मिला लें। इसके अलावा, प्रति एकड़ 8-12 किलो नाइट्रोजन, 12-30 किलो फास्फोरस और 12-30 किलो पोटाश डालें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा वृद्धि के दौरान दो बार में दी जा सकती है।

सर्पगंधा को प्रभावित करने वाले रोग और कीट कौन से हैं?

सर्पगंधा (Sarpagandha) को प्रभावित करने वाले प्रमुख रोग हैं पत्ती धब्बा, पत्ती झुलसा और एन्थ्रेक्नोज । इसके अलावा, कुछ प्रमुख कीटों में स्केल्स, घुन और सफेद मक्खी शामिल हैं।

सर्पगंधा में कीटों और रोगों का प्रबंधन कैसे करें?

किसान सर्पगंधा (Sarpagandha) को प्रभावित करने वाले कीटों और रोगों के जोखिम को कम करने के लिए जैविक कीटनाशकों के उपयोग, फसल चक्र और मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखने सहित एकीकृत कीट प्रबंधन रणनीतियों को लागू कर सकते हैं।

सर्पगंधा को तैयार होने में कितना समय लगता है?

सर्पगंधा (Sarpagandha) की फसल को तैयार होने में लगभग 18 से 30 महीने का समय लगता है। यह धीमी गति से बढ़ने वाली फसल है, और इसकी जड़ें कटाई के लिए तैयार होती हैं।

सर्पगंधा की खुदाई का अच्छा समय कब होता है?

सर्पगंधा (Sarpagandha) की जड़ों की खुदाई का सबसे अच्छा समय रोपण के 2 से 3 साल बाद होता है। यह आमतौर पर पौधरोपण के 18 महीने बाद तैयार हो जाती है। खुदाई के लिए आमतौर पर अक्टूबर-नवंबर का समय उपयुक्त माना जाता है। 

सर्पगंधा की खेती से कितनी पैदावार प्राप्त होती है?

सर्पगंधा (Sarpagandha) की खेती से प्रति एकड़ 10 क्विंटल तक सूखी जड़ें प्राप्त हो सकती हैं, हालांकि यह किस्म और प्रबंधन पर निर्भर करता है। सिंचित परिस्थितियों में, प्रति हेक्टेयर 1,500 से 2,000 किलोग्राम (15 से 20 क्विंटल) की पैदावार मिल सकती है, जो लगभग 1.5 से 2.5 एकड़ के बराबर होती है।

क्या सर्पगंधा को घर के बगीचे में उगाया जा सकता है?

हाँ, सर्पगंधा (Sarpagandha) को घर के बगीचे में उगाया जा सकता है, और यह संभव है कि इसकी तेज गंध सांपों को दूर रखने में मदद करे। इसे गमलों या सीधे जमीन में उगाया जा सकता है।

सर्पगंधा के मुख्य औषधीय उपयोग क्या हैं?

सर्पगंधा (Sarpagandha) का उपयोग मुख्यतः पारंपरिक चिकित्सा में इसके शांतिदायक प्रभावों के लिए किया जाता है, विशेष रूप से उच्च रक्तचाप, चिंता और अनिद्रा के उपचार में। यह कई अन्य स्वास्थ्य स्थितियों के प्रबंधन में भी अपनी क्षमता के लिए जाना जाता है।

सर्पगंधा की खेती की आर्थिक क्षमता क्या है?

हर्बल दवाओं और प्राकृतिक उपचारों के बढ़ते बाजार के साथ, सर्पगंधा (Sarpagandha) किसानों के लिए महत्वपूर्ण आर्थिक संभावनाएँ प्रदान करता है। इसके औषधीय गुणों की बढ़ती माँग इसकी खेती और बिक्री में लाभदायक उद्यम स्थापित कर सकती है।

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