• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
Krishak-Jagriti-Logo

Krishak Jagriti

Agriculture Info For Farmers

  • रबी फसलें
  • खरीफ फसलें
  • जायद फसलें
  • चारा फसलें
  • सब्जी फसलें
  • बागवानी
  • औषधीय फसलें
  • जैविक खेती
Home » Blog » Sapota Cultivation in Hindi: चीकू की बागवानी कैसे करें

Sapota Cultivation in Hindi: चीकू की बागवानी कैसे करें

July 21, 2025 by Bhupendra Dahiya Leave a Comment

Sapota Cultivation in Hindi: चीकू की बागवानी कैसे करें

Sapodilla Gardening in Hindi: चीकू (Sapota), जिसे वैज्ञानिक रूप से मणिलकारा जपोटा के नाम से जाना जाता है, एक उष्णकटिबंधीय फल है, जिसने अपने मीठे स्वाद और पौष्टिक लाभों के कारण लोकप्रियता हासिल की है। इसकी उत्पत्ति मध्य अमेरिका में हुई है, चीकू ने भारत की विविध जलवायु परिस्थितियों के साथ खुद को अच्छी तरह से ढाल लिया है, जिससे यह कई किसानों के लिए एक आशाजनक फसल बन गया है।

विटामिन ए और सी, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर, यह फल आपके मीठे स्वाद को संतुष्ट करते हुए स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है। इस लेख का उद्देश्य चीकू की खेती (Sapota Farming) के लिए एक व्यापक मार्गदर्शिका प्रदान करना है, जिसमें आदर्श जलवायु और मिट्टी की स्थिति, प्रसार विधियाँ, देखभाल के तरीके, कीट प्रबंधन और कटाई के बाद की देखभाल जैसे आवश्यक पहलुओं को शामिल किया गया है।

Table of Contents

Toggle
  • चीकू के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for Sapota)
  • चीकू के लिए मृदा का चयन (Soil selection for Sapota)
  • चीकू के लिए खेत की तैयारी (Field Preparation for Sapota)
  • चीकू की उन्नत किस्में (Improved varieties of Sapota)
  • चीकू की बुवाई या रोपाई का समय (Time for planting of Sapota)
  • चीकू के पौधे तैयार करना (Preparation of Sapota Plants)
  • चीकू पौधा रोपाई का तरीका (Method of planting Sapota Plant)
  • चीकू के पौधों की सिंचाई (Irrigation of Sapodilla Plants)
  • चीकू में खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizer in Sapota)
  • चीकू में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in Sapota)
  • चीकू के पौधों की देखभाल (Care of Sapota Plants)
  • चीकू के बाग में रोग नियंत्रण (Disease control in Sapota)
  • चीकू के बाग में कीट नियंत्रण (Pest control in Sapota orchard)
  • चीकू के फलों की तुड़ाई (Picking of Sapodilla Fruits)
  • चीकू के बाग से पैदावार (Yield from Sapodilla Orchard)
  • अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)

चीकू के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for Sapota)

चीकू की बागवानी के लिए उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु उपयुक्त है। इसके लिए 15-38 डिग्री सेल्सियस तापमान और 70% से अधिक आर्द्रता की आवश्यकता होती है। इसको समुद्र तल से 1000 मीटर के आसपास ऊंचाई वाली जगहों पर आसानी से उगाया जा सकता हैं।

इसके पौधों के लिए साल में औसतन 150 से 200 सेंटीमीटर वर्षा काफी होती है। इसके पूर्ण विकसित पौधे न्यूनतम 10 और अधिकतम 40 डिग्री तापमान को भी सहन कर सकते हैं। चीकू (Sapota) के पेड़ को अच्छी फलत के लिए प्रतिदिन 8-10 घंटे धूप की आवश्यकता होती है।

चीकू के लिए मृदा का चयन (Soil selection for Sapota)

चीकू की बागवानी के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि उपयोगी होती है। लेकिन अच्छी पैदावार के लिए इसे बलुई दोमट और मध्यम काली मिट्टी में उगाना अच्छा होता है। चीकू की खेती हल्की लवणीय और क्षारीय गुण रखने वाली भूमि में आसानी से की जा सकती हैं। उथली चिकनी मिट्टी चीकू की खेती के लिए उपयुक्त नहीं है।

मिट्टी का पीएच मान 6.0 से 8.0 के बीच होना चाहिए। मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की प्रचुर मात्रा होनी चाहिए, जो पौधों के स्वस्थ विकास में मदद करते हैं। अच्छी जल निकासी आवश्यक है, क्योंकि चीकू (Sapota) के पेड़ पानी के जमाव को सहन नहीं कर सकते हैं।

चीकू के लिए खेत की तैयारी (Field Preparation for Sapota)

चीकू (Sapota) की बागवानी के लिए खेत की तैयारी में, सबसे पहले खेत को 2-3 बार गहरी जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बनाना चाहिए। फिर आखिरी जुताई करके मिट्टी में पाटा चलाकर खेत को समतल करना चाहिए। इसके बाद, 2 फुट गहरा और 1 मीटर चौड़ा गड्ढा तैयार करना चाहिए, जिसमें 5-6 मीटर की दूरी रखनी चाहिए।

मिट्टी को सूर्य से शुद्ध करने और मृदा जनित रोगाणुओं को कम करने के लिए खोदे गए गड्ढों को 2-3 हफ्तों तक धूप में खुला छोड़ देना चाहिए। सूर्य से शुद्ध करने के बाद, गड्ढों को ऊपरी मृदा, उप-मृदा, अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद (FYM) और अन्य पोषक तत्वों के मिश्रण से भर दिया जाता है। दीमक से बचाव के लिए मिट्टी में लिंडेन पाउडर मिलाया जा सकता है।

चीकू की उन्नत किस्में (Improved varieties of Sapota)

भारत में चीकू की कई उन्नत किस्में उगाई जाती हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी विशिष्ट विशेषताएँ और क्षेत्रीय पसंद होती हैं। कुछ लोकप्रिय और व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण किस्मों में कालीपट्टी, क्रिकेट बॉल, सीओ श्रृंखला (सीओ – 1, सीओ- 2, सीओ- 3) और पीकेएम श्रृंखला (पीकेएम- 1, पीकेएम- 2) शामिल हैं।

अन्य उल्लेखनीय किस्मों में छत्री, पाला, गुथी और पीलीपट्टी शामिल हैं। यहाँ कुछ उन्नत चीकू (Sapota) किस्मों के विवरण पर एक नजर डाली गई है, जैसे-

कालीपट्टी: यह एक व्यापक रूप से उगाई जाने वाली किस्म है, खासकर महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तरी कर्नाटक में। यह अपने मोटे छिलके वाले अंडाकार फलों के लिए जानी जाती है और इसे पारंपरिक रूप से पसंदीदा माना जाता है।

क्रिकेट बॉल: जैसा कि नाम से पता चलता है, यह किस्म दानेदार गूदे वाले बड़े, गोल और मीठे फल देती है। इसे तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश सहित कई राज्यों में उगाया जाता है।

सीओ श्रृंखला (सीओ- 1, सीओ- 2, सीओ- 3): ये तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (TNAU) द्वारा विकसित संकर किस्में हैं। सीओ- 1 क्रिकेट बॉल और ओवल का क्रॉस है, जबकि सीओ- 2 बारामासी से प्राप्त क्लोनल चयन है। सीओ- 3 भी टीएनएयु की एक उल्लेखनीय किस्म है।

पीकेएम श्रृंखला (पीकेएम- 1, पीकेएम- 2): पीकेएम श्रृंखला, विशेष रूप से पीकेएम- 1, एक बौनी किस्म है, जो अपने मध्यम आकार के अंडाकार फलों, पतले छिलके, मुलायम गूदे और उच्च मिठास के लिए जानी जाती है। पीकेएम- 1 गुत्थी से प्राप्त क्लोनल चयन है।

छत्री: यह किस्म अपनी उच्च उपज के लिए जानी जाती है और इसे एक उत्पादक माना जाता है। यह कालीपट्टी के समान है, लेकिन इसकी शाखाएँ कुंडलाकार रूप में लटकी हुई होती हैं।

पाला: आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में लोकप्रिय एक उच्च उपज देने वाली चीकू (Sapota) की किस्म, जो अपने छोटे, अंडाकार फलों के लिए जानी जाती है।

गुत्थी: यह चीकू (Sapota) की किस्म अपने छोटे, अंडाकार फलों और मीठे गूदे के लिए जानी जाती है।

पिलीपट्टी: यह किस्म अपने छोटे, आयताकार फलों और मुलायम, मीठे गूदे के लिए जानी जाती है और उच्च घनत्व वाली रोपाई के लिए उपयुक्त है। इसका निर्यात विभिन्न देशों में भी किया जाता है।

अन्य किस्मों में बारामासी (उत्तर भारत में लोकप्रिय, वर्ष भर उपज के लिए जाना जाता है), ढोला दीवानी (अच्छी गुणवत्ता वाले, अंडे के आकार के फल) और जोनावालासा (मध्यम से बड़े अंडाकार फल) शामिल हैं।

चीकू की बुवाई या रोपाई का समय (Time for planting of Sapota)

चीकू लगाने का सबसे अच्छा समय आमतौर पर मानसून के मौसम में, जून से अक्टूबर तक, खासकर भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में होता है। इस समय पौधों को मानसून की बारिश की मदद से अच्छी तरह पनपने का मौका मिलता है। अन्य क्षेत्रों में फरवरी से मार्च के बीच भी रोपण किया जा सकता है। यहाँ चीकू (Sapota) की बुवाई या रोपाई पर विस्तृत विवरण दिया गया है, जैसे-

मानसून का मौसम (जून-अक्टूबर): यह अवधि प्रचुर वर्षा और मध्यम तापमान के कारण चीकू (Sapota) लगाने के लिए अनुकूलतम परिस्थितियाँ प्रदान करती है।

फरवरी-मार्च: यह अवधि चीकू (Sapota) रोपण के लिए भी उपयुक्त है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ मानसून के दौरान वर्षा कम होती है।

ग्राफ्टेड पौधे: चीकू का प्रजनन आमतौर पर ग्राफ्टिंग द्वारा किया जाता है। ग्राफ्टेड पौधों को ग्राफ्ट यूनियन को जमीन से कम से कम 15 सेमी ऊपर रखकर लगाना चाहिए।

गड्ढों की तैयारी: गड्ढों को काफी पहले, आदर्श रूप से अप्रैल-मई में, तैयार किया जाता है और मिट्टी और खाद के मिश्रण से भरने से पहले धूप में रखा जाता है।

चीकू के पौधे तैयार करना (Preparation of Sapota Plants)

चीकू का प्रसार बीज या वानस्पतिक विधियों द्वारा किया जा सकता है। वानस्पतिक प्रसार, जैसे ग्राफ्टिंग या एयर-लेयरिंग विधि से किया जाता है। व्यावसायिक उत्पादन के लिए ग्राफ्टिंग विधि अधिक प्रचलित है, जबकि एयर-लेयरिंग घर पर चीकू का पौधा उगाने के लिए एक आसान तरीका है।

ग्राफ्टिंग या लेयरिंग, आमतौर पर बेहतर गुणवत्ता और एकरूपता बनाए रखने के लिए उपयोग किया जाता है। चीकू (Sapota) के पौधे तैयार करने की विधियाँ इस प्रकार है, जैसे-

बीज प्रसार: चीकू के बीज से पौधे उगाए जा सकते हैं, लेकिन इससे आनुवंशिक परिवर्तनशीलता और विस्तारित किशोर अवस्था हो सकती है, जो व्यावसायिक खेती के लिए उपयुक्त नहीं है। बीजों को फल तोड़ने के 3 सप्ताह के भीतर बोना चाहिए।

ग्राफ्टिंग विधि: ग्राफ्टिंग के लिए सबसे अच्छा समय मार्च-अप्रैल है। ग्राफ्टिंग में, एक स्वस्थ चीकू के पौधे की टहनी को दूसरे चीकू (Sapota) के पौधे की जड़ पर लगाया जाता है। चीकू में ग्राफ्टिंग के लिए शीर्ष कलम ]या भेंट कलम विधि का उपयोग किया जाता है।

एयर-लेयरिंग विधि: एयर-लेयरिंग जून के महीने में की जाती है। इस विधि में, चीकू के पौधे की एक स्वस्थ, परिपक्व टहनी का चयन किया जाता है। टहनी के चारों ओर 3 सेमी चौड़ी छाल को हटा दिया जाता है। फिर, इस क्षेत्र को मॉस घास और रूटिंग हार्मोन (जैसे रूटेक्स) से ढककर बांध दिया जाता है।

जड़ें: लगभग डेढ़ महीने में, टहनी में जड़ें निकल आती हैं, जिसके बाद इसे मुख्य चीकू (Sapota) के पौधे से अलग करके अलग से लगाया जा सकता है।

चीकू पौधा रोपाई का तरीका (Method of planting Sapota Plant)

चीकू के पौधों की रोपाई खेत में लगभग एक महीने तैयार किये गए गड्डों में की जाती है। इन गड्डों में पौधों की रोपाई से पहले इनके बीचों बीच एक छोटा गड्डा तैयार कर लेना चाहिए। छोटे गड्ढे तैयार हो जाने के बाद उन्हें गोमूत्र या बाविस्टिन से उपचारित कर लेना चाहिए। ताकि पौधों के विकास में किसी भी तरह की कोई परेशानी का सामना ना करना पड़े।

उसके बाद नर्सरी में तैयार किये गए चीकू (Sapota) के पौधों को इन छोटे गड्डों में लगा देते हैं। गड्डों में पौधों की रोपाई के बाद उनके चारों तरफ मिट्टी डालकर तने को एक से डेढ़ सेंटीमीटर तक अच्छे से दबा दें। चीकू के पौधों की रोपाई बरसात के मौसम में करना बेहतर होता है।

क्योंकि इस वक्त पौध रोपण करने पर पौधों को उचित वातावरण मिलता हैं। जिससे वो अच्छे से विकास करते हैं। इस दौरान इसके पौधों की रोपाई जून और जुलाई माह में कर देनी चाहिए। इसके अलावा जहां सिंचाई की उचित व्यवस्था हो वहां इसकी रोपाई मार्च माह के बाद भी कर सकते हैं।

चीकू के पौधों की सिंचाई (Irrigation of Sapodilla Plants)

सामान्य तौर पर चीकू (Sapota) के वृक्ष को पानी की ज्यादा जरूरत नही होती। इसके पूर्ण रूप से तैयार वृक्ष को साल में 7 या 8 सिंचाई की ही जरूरत होती है। इसके वृक्ष को पानी ड्रिप या थाला बनाकर देना चाहिए। थाला बनाने के लिए पौधे के तने के चारों तरफ दो से ढाई फिट की दूरी पर गोल घेरा तैयार किया जाता है।

जिसकी चौड़ाई दो फिट के आसपास होनी चाहिए। शुरुआत में इसके पौधों को सर्दी के मौसम में 10 से 15 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए। जबकि बारिश के मौसम में चीकू (Sapota) के पौधों को पानी की जरूरत नही होती। लेकिन अगर बारिश वक्त पर ना हो तो पौधों को आवश्यकता के अनुसार पानी देना चाहिए।

गर्मी के मौसम में इसके पौधे को सप्ताह में एक बार पानी देना अच्छा होता है। लेकिन अगर इसके पौधों की रोपाई बलुई मिट्टी में की गई हो तो पौधों को पानी की जरूरत अधिक होती हैं। इस दौरान गर्मी के मौसम में इसके पौधों को सप्ताह में दो बार या पांच दिन के अंतराल में पानी देना अच्छा होता है।

चीकू में खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizer in Sapota)

चीकू (Sapota) के पौधों को उर्वरक की सामान्य जरूरत होती हैं। इसके लिए शुरुआत में पौध रोपाई के लिए गड्डों की तैयारी के वक्त प्रत्येक गड्डों में लगभग 15 किलो पुरानी गोबर की खाद और 100 ग्राम एनपीके की मात्रा को मिट्टी में मिलाकर भर देना चाहिए। उर्वरक की ये मात्रा शुरुआत में पौधों को दो साल तक देनी चाहिए। उसके बाद पौधे के विकास के साथ साथ उर्वरक की मात्रा को भी सही अनुपात में बढ़ाते रहना चाहिए।

लगभग 15 साल के आसपास पूर्ण विकसित वृक्ष को 30-40 किलो के आसपास जैविक खाद (गोबर की खाद, कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट) और एक किलो यूरिया, तीन किलो सुपर फास्फेट और लगभग दो किलो पोटाश की मात्रा को साल में दो बार देना चाहिए। पौधों को उर्वरक की ये मात्रा तने से एक से डेढ़ मीटर की परिधि में फलों की तुड़ाई के बाद देनी चाहिए। पौधों को खाद देने के तुरंत बाद पौधों की सिंचाई कर देनी चाहिए।

चीकू में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in Sapota)

चीकू के पौधों में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक तरीके से ही करना बेहतर होता हैं। इसके लिए पौधों की रोपाई के लगभग 20 से 25 दिन बाद पौधों की हल्की गुड़ाई कर दें। इसके पूर्ण रूप से तैयार वृक्ष को साल में तीन से चार बार खरपतवार नियंत्रण की जरूरत होती है। इसके अलावा खाली पड़ी जमीन पर किसी तरह की खरपतवार जन्म ना ले सके इसके लिए खेत की बारिश के बाद पावर टिलर से जुताई कर दें।

अतिरिक्त कमाई चीकू (Sapota) के पौधे खेत में लगाने के तीन से चार साल बाद पैदावार देना शुरू करते हैं। इस दौरान किसान भाई खाली पड़ी जमीन में सब्जी, औषधि, मसाले या कम समय वाली पपीता जैसी बागवानी फसल को उगाकर अच्छी पैदावार हासिल कर सकता हैं। जिससे किसान भाई को खेत से उपाज़ भी मिलती रहेगी। और उन्हें किसी तरह की आर्थिक समस्याओं का सामना भी नही करना पड़ेगा।

चीकू के पौधों की देखभाल (Care of Sapota Plants)

चीकू के पौधों का उत्पादन और जीवनकाल बढ़ाने के लिए उनकी उचित देखभाल करना जरूरी होता है। शुरुआत में पौधे को जंगली पशुओं के द्वारा नष्ट होने से बचने के लिए खेत की घेराबंदी कर देनी चाहिए। इसके अलावा शुरुआत में पौधे पर एक से डेढ़ मीटर तक किसी भी शाखा को जन्म ना लेने दें। इससे पौधे का आकार अच्छा बनता है, और तना मजबूत होता है।

जब चीकू (Sapota) का पौधा फल देने लगे तब फलों की तुड़ाई के बाद पौधों की कटाई छटाई कर देनी चाहिए। पौधों की कटाई छटाई के दौरान पौधे पर दिखाई देने वाली सुखी और रोग ग्रस्त शाखाओं को काटकर हटा देना चाहिए। जिससे पौधे पर फिर से नई शाखाएँ निकलती हैं। जिससे पौधे के उत्पादन में भी वृद्धि देखने को मिलती है।

चीकू के बाग में रोग नियंत्रण (Disease control in Sapota)

चीकू के पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं। जिनकी अगर टाइम रहते देखभाल ना की जाए तो पैदावार काफी कम प्राप्त होती हैं। इसके अलावा रोग बढ़ने से पौधे भी नष्ट हो सकते हैं। चीकू (Sapota) के बाग में रोग नियंत्रण के उपाय इस प्रकार है, जैसे-

पत्ती धब्बाः चीकू के पौधों में पत्ती धब्बा रोग का प्रभाव पत्तियों पर दिखाई देता है। इस रोग के लगने से पौधों की पत्तियों पर गुलाबी भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। जिसका प्रभाव बढ़ने पर पौधे विकास करना बंद कर देते हैं और पैदावार कम प्राप्त होती है। इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर डाइथेन जेड – 78 की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए।

तना गलनः ताना गलन रोग चीकू (Sapota) के पौधों को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचाते हैं। पौधों पर ये रोग फंगस की वजह से फैलता हैं। इसके लगने से पौधे का तना और शाखाएँ गलने लगती हैं। जिसकी रोकथाम के लिए पौधों पर कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए।

चीकू के बाग में कीट नियंत्रण (Pest control in Sapota orchard)

चीकू के बाग में कीट नियंत्रण के लिए एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) प्रणाली का पालन करना चाहिए। इसमें कीटों के हमले से पहले रोकथाम और हमले के बाद नियंत्रण दोनों शामिल हैं। चीकू (Sapota) के बाग में कीट नियंत्रण के उपाय इस प्रकार है, जैसे-

मिली बग: चीकू के पौधों में लगने वाला ये रोग एक कीट जनित रोग है। जो पौधे के जमीन से बहार वाले भागों को प्रभावित करता है। इस रोग के कीट तना, फल और पत्ती की नीचे की सतह पर रूई जैसे आवरण में रहकर पौधे को नुक्सान पहुँचाता हैं।

इस रोग के लगने से चीकू (Sapota) के पौधे की पत्तियां पीली पड़कर मुड़ने लगती हैं। और पौधा विकास करना बंद कर देता हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर क्लोरपायरीफास या डाईमेक्रोन की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए।

फल छेदक: चीकू के पौधों में फल छेदक रोग के प्रभाव की वजह से पैदावार को काफी नुक्सान पहुँचता हैं। इस रोग के कीट का लार्वा फलों में छेद कर उन्हें खराब कर देता हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए कार्बारील या क्यूनालफास की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए।

बालदार सुंडी: चीकू (Sapota) के पौधों में बालदार सुंडी पौधे की नई शाखाओं को खाकर उन्हें नुक्सान पहुँचाती हैं। जिससे पौधे अच्छे से विकास नही कर पाते हैं। इस रोग के लगने पर पौधों पर क्विनालफॉस की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए।

चीकू के फलों की तुड़ाई (Picking of Sapodilla Fruits)

चीकू के पौधों में पूरे साल भर फूल आते रहते हैं। लेकिन नवम्बर, दिसम्बर में मुख्य फसल के रूप में पौधों पर फूल खिलते हैं। जिनकी तुड़ाई मई माह से शुरू होती है। जो मुख्य फसल कहलाती है। इसके फल फूल लगने के लगभग 7 महीने बाद पककर तैयार हो जाते हैं।

इस दौरान चीकू (Sapota) के फलों की त्वचा को हल्का खरोंचने से फलों से पानी नही निकलता। इसके फल जब हरे रंग से बदलकर हल्के भूरे पीले रंग के हो जाए तब उन्हें तोड़कर बाजार में भेज देना चाहिए।

चीकू के बाग से पैदावार (Yield from Sapodilla Orchard)

चीकू की बागवानी से उपज, पौधे की उम्र और देखभाल पर निर्भर करती है। रोपाई के 2-3 साल बाद फल लगने शुरू हो जाते हैं, और 5-10 साल के पेड़ से 1000 फल प्रति वर्ष तक मिल सकते हैं। 30 साल के पेड़ से 2500-3000 फल प्रति वर्ष तक प्राप्त हो सकते हैं।

आमतौर पर विभिन्न चीकू (Sapota) की किस्मों के एक पौधे का सालाना औसतन उत्पादन 130 किलो के आसपास पाया जाता है। जबकि एक हेक्टेयर में इसके लगभग 300 पौधे आसानी से लगाए जा सकते हैं। जिनका कुल उत्पादन 20-25 टन के आसपास होता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)

चीकू की खेती कैसे की जाती है?

चीकू (Sapota) की खेती में इष्टतम वृद्धि और उपज के लिए विशिष्ट तरीकों का पालन करना पड़ता है। यह 10-38°C तापमान वाली गर्म, आर्द्र जलवायु में पनपता है और 6.0-8.0 पीएच मान वाली अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट या मध्यम काली मिट्टी को पसंद करता है। इसका प्रसार आमतौर पर ग्राफ्टिंग या एयर लेयरिंग जैसी वानस्पतिक विधियों द्वारा किया जाता है, जहाँ रोपण वर्षा ऋतु की शुरुआत में या भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में बाद में भी किया जाता है।

चीकू के लिए आदर्श जलवायु परिस्थितियाँ क्या हैं?

चीकू (Sapota) के लिए आदर्श जलवायु गर्म और आर्द्र होती है, जिसमें 10°C से 38°C के बीच तापमान और 70% से अधिक सापेक्ष आर्द्रता होती है। यह एक उष्णकटिबंधीय फल है, लेकिन उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है।

चीकू के लिए कैसी मिट्टी की आवश्यकता होती है?

चीकू के लिए गहरी, अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट या मध्यम काली मिट्टी उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच 6.0 से 8.0 के बीच होना चाहिए। कठोर परत या उच्च कैल्शियम सामग्री वाली उथली चिकनी मिट्टी चीकू (Sapota) के लिए उपयुक्त नहीं है।

चीकू की सबसे अच्छी किस्में कौन सी हैं?

चीकू (Sapota) की कई लोकप्रिय और उच्च उपज देने वाली किस्में उगाई जाती हैं। कालीपट्टी अपनी उच्च उपज और अच्छी गुणवत्ता वाले फलों के लिए जानी जाती है, जबकि क्रिकेट बॉल अपने बड़े, गोल और मीठे फलों के लिए लोकप्रिय है। अन्य उल्लेखनीय किस्मों में पाला, जो अपने मीठे, मध्यम आकार और अंडाकार फलों के लिए जानी जाती है, और पीकेएम- 1, एक उन्नत किस्म है, जिसकी व्यावसायिक खेती के लिए अनुशंसा की जाती है।

चीकू लगाने का सबसे अच्छा समय क्या है?

चीकू (Sapota) लगाने का सबसे अच्छा समय मानसून का मौसम है, आमतौर पर जून और जुलाई के बीच, जब मिट्टी की नमी नए पौधों के विकास के लिए आदर्श होती है।

चीकू के पौधे कैसे तैयार करें?

चीकू (Sapota) के पौधे तैयार करने के लिए, आप बीज या कटिंग का उपयोग कर सकते हैं। बीज से पौधे तैयार करने में अधिक समय लगता है, लेकिन कटिंग से उगाए गए पौधों में जल्दी फल आते हैं। दोनों विधियों के लिए, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी का उपयोग करना महत्वपूर्ण है और सुनिश्चित करें कि पौधे को पर्याप्त धूप मिले।

एक हेक्टेयर में चीकू के कितने पौधे लगते हैं?

एक हेक्टेयर में लगभग 400 से 450 चीकू (Sapota) के पौधे लगाए जा सकते हैं, पौधों के बीच 6×6 मीटर की दूरी रखनी चाहिए।

चीकू के पेड़ों को कितना पानी देना चाहिए?

चीकू (Sapota) के पेड़ को पानी देने की आवृत्ति मौसम और पेड़ की उम्र पर निर्भर करती है। सर्दियों में हर 20-30 दिनों में और गर्मियों में हर 7-10 दिनों में पानी देना आम तौर पर पर्याप्त होता है। युवा पौधों को अधिक बार पानी की आवश्यकता होती है, जबकि वयस्क पेड़ कम बार पानी में भी फल दे सकते हैं।

चीकू के बाग की निराई-गुड़ाई कैसे करें?

चीकू (Sapota) के बाग की निराई-गुड़ाई करने के लिए, पौधों के आसपास की मिट्टी को नियमित रूप से खरपतवारों से मुक्त करना चाहिए। इसके लिए, 15-20 दिन के अंतराल पर हल्की गुड़ाई करें। इसके अलावा, साल में 3-4 बार निराई-गुड़ाई करें। आवश्यकतानुसार जैविक उपाय भी अपनाएं।

चीकू में कौन सी उर्वरक डालनी चाहिए?

चीकू (Sapota) के पौधों के लिए गोबर की खाद, नीम की खली और एनपीके उर्वरक (19-19-19) का उपयोग करना चाहिए। इसके अलावा, फल लगने के समय, फलों के आकार और गुणवत्ता में सुधार के लिए, मैग्नीशियम और जिंक का छिड़काव भी उपयोगी होता है।

चीकू को फल लगने में कितना समय लगता है?

चीकू (Sapota) के पेड़ों को रोपण के बाद फल लगने में आमतौर पर लगभग 5 से 7 साल लगते हैं, जो उनकी किस्म और बढ़ती परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

चीकू को प्रभावित करने वाले रोग और कीट कौन से हैं?

चीकू (Sapota) के सामान्य कीटों में फल मक्खियाँ, मिलीबग और एफिड शामिल हैं। एकीकृत कीट प्रबंधन रणनीतियाँ, जैसे जैविक नियंत्रण और जैविक कीटनाशकों का उपयोग, इन कीटों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करने में मदद कर सकती हैं।

क्या चीकू को गमलों में उगाया जा सकता है?

हाँ, चीकू (Sapota) को गमलों में उगाया जा सकता है, जिससे यह छोटी जगहों या शहरी बागवानी के लिए उपयुक्त हो जाता है। हालाँकि, एक बड़ा गमला चुनना और उचित जल निकासी और देखभाल सुनिश्चित करना आवश्यक है।

चीकू के फलों की तुड़ाई कब करें?

चीकू (Sapota) के फलों की तुड़ाई जुलाई-सितंबर के महीने में की जाती है। फलों को तब तोड़ना चाहिए जब वे हल्के संतरी या आलू के रंग के हो जाएं और उनमें कम चिपचिपा दूधिया रंग हो। फलों को आसानी से पेड़ से तोड़ा जा सकता है।

चीकू के बाग से कितनी उपज प्राप्त होती है?

चीकू के बाग से उपज, पेड़ की उम्र और किस्म पर निर्भर करती है। एक 5 साल का पेड़ लगभग 50-70 किलो चीकू दे सकता है, जबकि 10 साल से ऊपर का पेड़ 100-150 किलो या उससे अधिक उपज दे सकता है। एक हेक्टेयर में 20-25 टन चीकू (Sapota) की उपज प्राप्त हो सकती है, जिसमें 300 से अधिक पौधे लगाए जा सकते हैं।

Related Posts

Loquat Cultivation in Hindi: लोकाट की बागवानी कैसे करें
Loquat Cultivation in Hindi: लोकाट की बागवानी कैसे करें
Litchi Cultivation in Hindi: लीची की बागवानी कैसे करें
Litchi Cultivation in Hindi: लीची की बागवानी कैसे करें
Plum Cultivation in Hindi: जाने बेर की बागवानी कैसे करें
Plum Cultivation in Hindi: जाने बेर की बागवानी कैसे करें
Nectarine Cultivation: जाने नेक्ट्रिन की बागवानी कैसे करें
Nectarine Cultivation: जाने नेक्ट्रिन की बागवानी कैसे करें

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

  • Facebook
  • LinkedIn
  • Twitter

Recent Posts

  • Rose Cultivation in Hindi: गुलाब की बागवानी कैसे करें
  • Mulberry Cultivation: जाने शहतूत की बागवानी कैसे करें
  • Falsa Cultivation in Hindi: फालसा की बागवानी कैसे करें
  • Bael Cultivation in Hindi: जाने बेल की बागवानी कैसे करें
  • Amla Cultivation in Hindi: आंवला की बागवानी कैसे करें

Footer

Copyright © 2025 Krishak Jagriti

  • Blog
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Terms & Conditions
  • Sitemap
  • Contact Us