• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
Krishak-Jagriti-Logo

Krishak Jagriti

Agriculture Info For Farmers

  • रबी फसलें
  • खरीफ फसलें
  • जायद फसलें
  • चारा फसलें
  • सब्जी फसलें
  • बागवानी
  • औषधीय फसलें
  • जैविक खेती
Home » Blog » Rapeseed Cultivation in Hindi: तोरिया की खेती कैसे करें

Rapeseed Cultivation in Hindi: तोरिया की खेती कैसे करें

June 15, 2024 by Bhupendra Dahiya Leave a Comment

Rapeseed Cultivation in Hindi: तोरिया की खेती कैसे करें

Rapeseed Farming: कृषि उन्मुख भारत में तिलहनी फसलों की कम उत्पादकता और खाद्य तेलों की बढ़ती मांग के कारण, देश लगभग 70000 करोड़ रूपये का प्रति वर्ष तेल आयात करता है। रबी तिलहनी फसलों में तोरिया या लाही एक महत्वपूर्ण फसल है, जो लगभग 90-95 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है तथा उत्पादन 15-17 कुन्तल प्रति हेक्टेयर तक किया जा सकता है। तोरिया (Rapeseed) के बीज में तेल की मात्रा लगभग 40-44 प्रतिशत होती है।

तोरिया (Rapeseed) का उत्पादन न केवल भारत के मैदानी भागों में बल्कि देश के कई राज्यों के पठारी और पहाडी क्षेत्रों में खरीफ और रबी मौसम के मध्य में किया जाता है। भारत में तोरिया की औसत उपज अपेक्षाकृत काफी कम है, जिसका मुख्य कारण यथा उन्नतशील और संस्तुत किस्मों का उपयोग न करना, अपर्याप्त पौधों की संख्या, कम एवं असंतुलित उर्वरक का प्रयोग, खरपतवार, कीट और रोग नियंत्रण पर विधिवत ध्यान न देने जैसे शामिल हैं।

किसान निम्न वर्णित उन्नत कृषि तकनीकों और पौध संरक्षण विधियों का उपयोग करके तोरिया (Rapeseed) का उत्पादन कर देश में तेल की कमी को कम करने में महत्वपूर्ण सहभागिता तथा साथ ही अपनी आय को दोगुना या तिगुना कर लाभान्वित हो सकते हैं।

Table of Contents

Toggle
  • तोरिया की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for cultivation of rapeseed)
  • तोरिया की खेती के लिए खेत का चयन (Selection of field for rapeseed cultivation)
  • तोरिया की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for rapeseed cultivation)
  • तोरिया की खेती के लिए उन्नत किस्में (Improved Varieties for rapeseed Cultivation)
  • तोरिया की खेती के लिए बीज की मात्रा और बुवाई (Seed quantity and sowing for toriya cultivation)
  • तोरिया की खेती के लिए बीज का उपचार (Seed treatment for rapeseed cultivation)
  • तोरिया की खेती के लिए बुवाई का समय (Sowing time for rapeseed cultivation)
  • तोरिया के लिए खाद और उर्वरक तथा प्रयोग (Manure and fertilizers for toriya and their use)
  • तोरिया की फसल में निराई-गुड़ाई और खरपतवार (Weeding and weed control in toriya crop)
  • तोरिया की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Rapeseed Crop)
  • तोरिया की फसल में कीट नियंत्रण (Pest Control in Rapeseed Crop)
  • तोरिया की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in rapeseed crop)
  • तोरिया फसल की कटाई-मड़ाई (Harvesting and threshing of rapeseed crop)
  • अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)

तोरिया की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for cultivation of rapeseed)

तोरिया / लाही की फसल (Rapeseed Crop) के लिए 18 डिग्री सेंटीग्रेट से 25 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की आवश्यकता होती है। अधिक या कम तापमान होने पर फसल में विकृति आने लगती है।

तोरिया की खेती के लिए खेत का चयन (Selection of field for rapeseed cultivation)

तोरिया की खेती (Rapeseed Cultivation) से अच्छी उपज के लिये रेतीली दोमट और हल्की दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त है। भूमि क्षारीय एवं लवणीय नहीं होनी चाहिये। तोरिया की खेती अधिकांशतः बारानी की जाती है। बरानी खेती के लिये खेत को खरीफ में पड़त छोड़ना चाहिये। खेत में जल निकासी का उचित प्रबंध होना चाहिए।

तोरिया की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for rapeseed cultivation)

जैसा की तोरिया की खेती (Rapeseed Cultivation) के लिए दोमट एवं बलुई दोमट जो समतल एवं अच्छी जल निकासी वाली जिसका पीएच स्तर 6.5-7.0 के बीच हो, उत्तम होती है। खेत की एक गहरी जुताई, मिट्टी पलटने वाले हल से और 2- 3 जुताइया देसी हल या कल्टीवेटर से और पाटा लगाकर मिट्टी भुरभुरी कर लेना चाहिए। खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी होनी चाहिए।

तोरिया की खेती के लिए उन्नत किस्में (Improved Varieties for rapeseed Cultivation)

प्रभावी फसल प्रबंधन और उन्नतशील किस्मों के उपयोग से तोरिया की उपज को पंद्रह से बीस प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है। क्षेत्र की जलवायु, भूमि के प्रकार, सिंचाई की उपलब्धता और अन्य ऐसे गुणदोष के आधार पर उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीज का उपयोग किया जाना चाहिए। तोरिया (Rapeseed) की उन्नतशील किस्मों के बारे में संक्षिप्त विवरण सारणी में दर्शाया गया है। जो इस प्रकार है, जैसे-

किस्मेंअवधि (दिन)बुवाई का समयउपज (कु./हे.)
टी. 990-95मध्य अगस्त से सितंबर12-15
भवानी75-80मध्य अगस्त से अक्टूबर10-12
पी.टी. 30390-95मध्य अगस्त से सितंबर15-18
पी.टी. 3090-95मध्य अगस्त से सितंबर14-16
तपेश्वरी90-95मध्य अगस्त से सितंबर14-15
उत्तरा93-101मध्य अगस्त से सितंबर15-20
टी. 3690-95मध्य अगस्त से सितंबर14-16
आजाद चेतना90-95मध्य अगस्त से सितंबर14-16
कृषक बंधुओं को तोरिया (Rapeseed ) या लाही की खेती के लिए उचित बीज की मात्रा और अपने क्षेत्र की अधिकतम उत्पादन देने वाली उन्नत किस्म का चयन करना चाहिए।

तोरिया की खेती के लिए बीज की मात्रा और बुवाई (Seed quantity and sowing for toriya cultivation)

तोरिया (Rapeseed) या लाही के बीज की मात्रा बुवाई की विधि पर निर्भर होती है। कतारों में बुवाई करने पर इसका लगभग 4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा छिटकवा विधि से बुआई करने पर लगभग 6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। सिंचित क्षेत्रों में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर और असिंचित क्षेत्रों में 20 सेंटीमीटर रखना चाहिए। बुवाई के लगभग 15 दिनों के बाद पौधों में बिरलीकरण कर पौधों से पौधों की दूरी लगभग 10 सेंटीमीटर कर देनी चाहिए।

तोरिया की खेती के लिए बीज का उपचार (Seed treatment for rapeseed cultivation)

बीज द्वारा संचरित संक्रमण से बचने के लिए केवल उपचारित और प्रमाणित बीजों को ही बोना चाहिए। इसके लिए 2.5 ग्राम थीरम से प्रति किलोग्राम बीज उपचारित करके ही बोयें। वैकल्पिक रूप से, मैंकोजेब का उपयोग 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से किया जाना चाहिए। सफेद गेरुई और तुलसिता रोगो के प्रारंभिक चरण में नियंत्रण हेतु बीजों को 15 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से मेटालैक्सिल के साथ उपचारित कर बुवाई करना चाहिए।

इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लयूपी से 7 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करने पर चितकबरे पतंगे और रंगे हुए कीड़ों से बचाये जा सकते है। सिंचित और असिंचित दोनों दशाओं में फॉस्फोरस जीवाणु (पीएसबी) और एजोटोबैक्टर (प्रत्येक का 40-55 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) के साथ बीजों का उपचार करना फायदेमंद होता है। यह नाइट्रोजन और फॉस्फोरस तत्वों की उपलब्धता को बढ़ाता है और उपज में वृद्धि करता है।

तोरिया की खेती के लिए बुवाई का समय (Sowing time for rapeseed cultivation)

मानसून के मौसम की समाप्ति, फसल चक्र और परिवेश के तापमान के आधार पर, बुवाई का मौसम एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्न हो सकता है। अधिकतम अंकुरण के लिए, बुवाई के समय औसत अधिकतम दिन का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं होना चाहिए। तोरिया की बुवाई के लिए 15-30 सितंबर सबसे अच्छी अवधि पाई गई है।

मानसून और मौसम परिवर्तन के कारण तोरिया की बुवाई 15 अगस्त से 10 अक्टूबर तक की जा सकती है। तोरिया (Rapeseed) की कटाई के बाद गेहूं की सर्वोत्तम उपज के लिए तोरिया को मध्य अगस्त या सितंबर के पहले पखवाड़े में जितनी जल्दी हो सके तोरिया की बुवाई कर देनी चाहिए।

तोरिया के लिए खाद और उर्वरक तथा प्रयोग (Manure and fertilizers for toriya and their use)

तोरिया (Rapeseed) खाद और उर्वरक की मात्रा मृदा परीक्षण के आधार पर ही निर्धारित करना चाहिए। असिंचित दशा के लिए 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फॉस्फेट और 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करना चाहिए। सिंचित क्षेत्रों में 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फॉस्फेट और 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर डालना चाहिए। फॉस्फेट का उपयोग अधिक लाभदायक है, क्योंकि इसमें 13 प्रतिशत सल्फर होता है।

आखिरी जुताई के समय फास्फोरस और पोटेशियम की पूरी खुराक तथा नाइट्रोजन की आधी खुराक को नाई या चोगा द्वारा बीज से 2-3 सेंटीमीटर नीचे देना चाहिए। शेष नाइट्रोजन को प्रारंभिक सिंचाई (बुवाई के 25-30 दिन बाद) के बाद टाप ड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए। सल्फर की आपूर्ति के लिए प्रति हेक्टेयर 40 क्विंटल गोबर के साथ 200 किलोग्राम जिप्सम का उपयोग किया जाना चाहिए।

तोरिया की फसल में निराई-गुड़ाई और खरपतवार (Weeding and weed control in toriya crop)

तोरिया (Rapeseed) बीज बोने के 15 दिनों के भीतर घने पौधों का बिरलीकरण कर 10 सेंटीमीटर की दूरी निर्धारित करनी चाहिए तथा साथ ही एक निराई गुड़ाई करने से पौधों में अधिक वृद्धि एवं खरपतवार भी नियंत्रित हो जाता हैI

तोरिया की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Rapeseed Crop)

तोरिया (Rapeseed), विशेष रूप से फूल आने के ठीक पहले और बाद में पानी की कमी के प्रति अतिसंवेदनशील है, फलतः दो सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिनों के बाद (फूलों के चरण में) तथा दूसरी सिंचाई बुवाई के 50-55 दिन बाद (फली अवस्था में) देने से अधिकतम पैदावार प्राप्त होती है। जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।

तोरिया की फसल में कीट नियंत्रण (Pest Control in Rapeseed Crop)

आरा मक्खी: इस कीट की सूड़ियां काले और भूरे रंग की होती है, जो पत्तियों को किनारों से अथवा पत्तियों में छेद तेजी से खाती है। इनके बृहद संक्रमण के दौरान पौधों की पत्तियां विहीन हो जाती हैं। जिसके फलस्वरूप पौधे समाप्त हो जाते हैं या उनकी वृद्धि रूक जाती है।

पेंटेड बग: इस बग के युवा और वयस्क काले, नारंगी और लाल धब्बे होते हैं। पत्तियों, शाखाओं, तनों, फूलों और फलियों का रस बच्चों और वयस्कों दोनों द्वारा चूसा जाता है। प्रभावित पत्तियाँ सूखने और किनारों से गिरने के परिणामस्वरूप क्षतिग्रस्त फली में कम दाने बनते हैं।

बालूदार सूँड़ी: इस कीट का शरीर पूरी तरह से बालों से ढका होता है, जो काले और नारंगी रंग की होती है। कीट शुरू में झुंड में रहते हुए पत्तियों को खा जाते हैं, और फिर वे पूरे खेत में फैल जाते हैं। इनके वृहद संक्रमण के समय पौधे पत्ते विहीन हो जाते हैं।

माहूँ: इस कीट के युवा और वयस्क दोनों ही पीले हरे रंग के होते है, जो तोरिया (Rapeseed) के नाजुक तनों, पत्तियों, फूलों और फलियों के रस को चूस जाते हैं। माहूँ मधुस्राव करते है जिस पर काली फफूँद उग आती है जिससे प्रकाश संश्लेषण में बाधा उत्पन्न होती है।

पत्ती सुरंगक कीट: इस कीट की सूँडी पत्तियों में सुरंग बनाकर हरे भाग को खाती है। जिसके फलस्वरूप पत्तियों में अनियमित आकार की सफेद रंग की रेखायें बन जाती है। उक्त कीटों के प्रकोप आर्थिक क्षति स्तर पार कर गये हो, तो निम्न कीटनाशकों का प्रयोग किया जाना चाहिए।

तोरिया (Rapeseed) में आरा मक्खी और बालदार सूँड़ी के नियंत्रण के लिए मैलाथियान 5 प्रतिशत डीपी की 20-25 किग्रा प्रति हेक्टेयर बुरकाव अथवा मैलाथियान 50 प्रतिशत ईसी की 1.50 लीटर अथवा डाई – क्लोरोवास 76 प्रतिशत ईसी की 500 मिली मात्रा अथवा क्यूनालफास 25 प्रतिशत ईसी की 1.25 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 600-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

माहूँ, पेंटेड बग एवं पत्ती सुरंगक कीट के नियंत्रण हेतु डाईमेथेएट 30 प्रतिशत ईसी अथवा मिथाइल ओडेमेटान 25 प्रतिशत ईसी अथवा क्लोरोपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी की 1.0 लीटर अथवा मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एसएल की 500 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 600-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। एजाडिरेक्टिन (नीम आयल ) 0.15 प्रतिशत ईसी 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से भी प्रयोग किया जा सकता है।

तोरिया की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in rapeseed crop)

अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट: इस स्थिति में पत्तियों और फलियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं जो आसानी से पत्तियों पर गोलाकार छल्ले के रूप में दिखाई देते हैं। गंभीर प्रकोप होने पर धब्बे आपस में मिल जाते हैं और पूरी पत्ती झुलस जाती है।

सफेद गेरूई: इस बीमारी में तोरिया (Rapeseed) पत्तियों के नीचे की तरफ सफेद छाले हो जाते हैं, जिससे पत्तियां पीली होकर सूखने लगती हैं। खिलने के दौरान, पुष्पक्रम विकृत हो जाता है। इस वजह से, कोई फली नहीं बनती है।

तुलासिता: इस रोग में पुरानी पत्तियों की ऊपरी सतह पर छोटे-छोटे धब्बे बन जाते हैं और नीचे की सतह पर सफेद चूर्णयुक्त फफूंदी विकसित हो जाती है। पूरा पत्ता धीरे-धीरे पीला हो जाता है और सूख जाता है। उपर्युक्त रोगो का नियंत्रण निम्न प्रकार से किया जा सकता है, जैसे-

बीज उपचार: तोरिया (Rapeseed) में तुलासिता और सफेद गेरूई रोग के उपचार के लिए मेटलैक्सिल 35 प्रतिशत डब्ल्यूएस का 2.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करना चाहिए। अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग के नियंत्रण हेतु थीरम 75 प्रतिशत डब्लू एस का 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजशोधन कर बुआई करना चाहिए।

भूमि उपचार: भूमि जनित एवं बीज जनित रोगों के नियंत्रण हेतु बायोपेस्टीसाइड (जैव कवक नाशी) ट्राइकोडरमा विरिड़ी 1 प्रतिशत डब्लूपी. अथवा ट्राइकोडरमा हारजिएनम 2 प्रतिशत डब्लूपी की 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर 60-75 किग्रा सड़ी गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुआई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से तोरिया के बीज एवं भूमि जनित आदि रोगों के प्रबन्धन में सहायक होता है।

पर्णीय उपचार: तोरिया (Rapeseed) में अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट, सफेद गेरूई एवं तुलासिता रोग को नियंत्रित करने के लिए मैकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू, पी 2.0 किलोग्राम अथवा जीरम 80 प्रतिशत डब्लू, पी 2.0 किलोग्राम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्लूपी 3.0 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 600-750 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिये।

तोरिया फसल की कटाई-मड़ाई (Harvesting and threshing of rapeseed crop)

जब फलियां 75 प्रतिशत सुनहरे रंग की हो जाय तो फसल को काटकर सुखा लेना चाहिए तत्पश्चात मड़ाई करके बीज को अलग कर लें देर से कटाई करने से तोरिया (Rapeseed) बीजों के झड़ने की आशंका रहती है बीज को अच्छी तरह सुखा कर ही भण्डारण करे जिससे इसका कुप्रभाव दानों पर न पड़ें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)

तोरिया फसल क्या है?

तोरिया को सरसों के बीज के नाम से भी जाना जाता है। तोरिया (Rapeseed) के बीज की कई आनुवंशिक किस्में या संकर हैं जिनकी दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक रूप से खेती की जाती है। इनमें से कई किस्मों का उपयोग भोजन तैयार करने में मसाले या मसालों के रूप में किया जाता है।

तोरिया की बुवाई कब की जाती है?

तोरिया (Rapeseed) की बुआई का उचित समय उत्तर-पश्चिमी तथा उत्तर-पूर्वी भारत के मैदानी क्षेत्रों में बारानी दशाओं में अक्टूबर का दूसरा पखवाड़ा तथा सिंचित दशाओं में नवंबर का प्रथम पखवाड़ा है।

तोरिया की फसल कितने दिन में तैयार होती है?

लाही या तोरिया (Rapeseed) की फसल 90-95 दिन के अंदर पक जाती है। इनकी उपज क्षमता 12 से 18 कुंटल प्रति हेक्टेयर होती है, एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में चार किलोग्राम बीज लगता है।

तोरिया की उन्नत किस्में कौन सी है?

पीटी 303, तपेश्वरी, गोल्डी, बी 9, उत्तरा इसकी उन्नतशील प्रजातियां हैं।

तोरिया के लिए किस प्रकार की जलवायु उपयुक्त है?

तोरिया की फसल (Rapeseed Crop) के लिए 18 डिग्री सेंटीग्रेट से 25 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की आवश्यकता होती है।

तोरिया की उपज कैसे बढ़ाएं?

खड़ी फसल में जिंक की कमी दिखाई दे तो 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट का घोल बनाकर छिड़काव करने से बीज की गुणवत्ता व मात्रा में वृद्धि होती है। फूल आने के समय मल्टीप्लेक्स या एग्रेमिन 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करने से परागण पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

Related Posts

Barley Farming in Hindi: जानें जौ की खेती कैसे करें
Barley Farming in Hindi: जानें जौ की खेती कैसे करें
Chia Seeds Cultivation in Hindi: चिया की खेती कैसे करें
Chia Seeds Cultivation in Hindi: चिया की खेती कैसे करें
Crop Production कैसे बढ़ाएं: उपज बढ़ाने के लिए सुझाव
Crop Production कैसे बढ़ाएं: उपज बढ़ाने के लिए सुझाव
Zero Tillage विधि का उपयोग करके गेहूं की खेती कैसे करें
Zero Tillage विधि का उपयोग करके गेहूं की खेती कैसे करें

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

  • Facebook
  • LinkedIn
  • Twitter

Recent Posts

  • Plum Cultivation in Hindi: जाने बेर की बागवानी कैसे करें
  • Water Chestnut Farming: सिंघाड़े की बागवानी कैसे करें
  • Pineapple Farming in Hindi: अनानास की बागवानी कैसे करें
  • Grapes Cultivation in Hindi: अंगूर की बागवानी कैसे करें
  • Sweet Lime Farming in Hindi: मौसंबी की बागवानी कैसे करें

Footer

Copyright © 2025 Krishak Jagriti

  • Blog
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Terms & Conditions
  • Sitemap
  • Contact Us