
Pointed Gourd Cultivation in Hindi: वैज्ञानिक रूप से ट्राइकोसेन्थेस डायोइका के नाम से जानी जाने वाली परवल व्यंजनों में एक पसंदीदा सब्जी है, जो अपने अनोखे स्वाद और विभिन्न व्यंजनों में बहुमुखी प्रतिभा के लिए जानी जाती है। यह अत्यन्त ही सुपाच्य, पौष्टिक, स्वास्थ्यवर्धक एवं औषधीय गुणों से भरपूर एक लोकप्रिय सब्जी है । यह शीतल, पित्तनाशक, हृदय एवं मूत्र सम्बन्धी रोगों में काफी लाभदायक है।
इसका प्रयोग मुख्य रूप से सब्जी, अचार और मिठाई बनाने के लिए किया जाता है। इसमें विटामिन, कार्बोहाइड्रेट तथा प्रोटीन अधिक मात्रा में पायी जाती है। जैसे-जैसे इस सब्जी की मांग बढ़ती जा रही है, प्रभावी खेती की तकनीक, कीट प्रबंधन और बाजार के रुझान को समझना किसानों और कृषि उत्साही लोगों के लिए समान रूप से आवश्यक हो गया है। यह लेख परवल की उन्नत खेती के व्यापक पहलुओं पर चर्चा करता है।
परवल के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for Pointed Gourd)
परवल की खेती के लिए सामान्यत: गर्म एवं आर्द्र जलवायु उपयुक्त होती है, ऐसे क्षेत्र जिनमें औसत वार्षिक वर्षा 100 से 110 सेमी तथा पाले का प्रकोप नहीं होता हो, इसकी खेती के लिए उत्तम मानी जाती है। परवल (Pointed Gourd) की खेती के लिए अधिक आर्द्रता आवश्यक है, क्योंकि यह पौधे को स्वस्थ रखने में मदद करती है।
परवल के लिए मृदा का चयन (Selection of soil for Pointed Gourd)
परवल (Pointed Gourd) की अच्छी उपज के लिए बलुई दोमट भूमि जिसमें जीवांश पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो, उत्तम मानी जाती है। इस प्रकार की मिट्टी में अच्छी तरह से जल निकास होता है और यह पौधों की जड़ों के विकास के लिए आवश्यक हवा और पानी को बरकरार रखती है।
परवल की सफल खेती के लिए नदी के किनारे की जलोढ़ मिट्टी अत्यन्त उपयोगी रहती है। भूमि का चयन करते समय यह ध्यान देना चाहिए कि उसमें जल निकास का उचित प्रबन्ध हो। मिट्टी का पीएच स्तर लगभग 6.0 से 7.0 का आदर्श माना जाता है।
परवल के लिए खेत की तैयारी (Field Preparation for Pointed Gourd)
परवल की खेती के लिए, सबसे पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई करें, जिससे मिट्टी ढीली हो जाए और हवा का आवागमन सुगम हो सके। खेत में सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद उचित मात्रा में डालकर अच्छी तरह मिलाएं। यह मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाता है और पौधों को पोषक तत्व प्रदान करता है।
खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था करें, ताकि पानी जमा न हो सके। जलभराव से परवल (Pointed Gourd) के पौधों को नुकसान हो सकता है। मिट्टी की जाँच करें और यदि आवश्यक हो, तो उचित उर्वरकों का उपयोग भी करें।
परवल की उन्नत किस्में (Improved Varieties of Pointed Gourd)
परवल (Pointed Gourd) की कुछ उन्नत किस्मों में स्वर्ण अलौकिक, स्वर्ण रेखा, राजेन्द्र परवल- 1, राजेन्द्र परवल- 2, काशी परवल- 141, डीवीआरपीजी- 1, डीवीआरपीजी- 2, आईआईवीआरपीजी- 105, नरेंद्र परवल- 260, नरेंद्र परवल- 307, नरेंद्र परवल- 604 आदि शामिल हैं। ये किस्में उच्च पैदावार और अच्छे स्वाद के लिए जानी जाती हैं। इनकी औसतन उपज प्रति हेक्टेयर 200 से 300 क्विंटल है।
इसके अलावा, सीआईएसएपी- 2, सीएसएचपी- 5, एएफपी- 1, एएफपी- 3, एएफपी- 4, एचपी- 1, एचपी- 3, एचपी- 5, एचपी- 4, डंडाली, दुधयारी, गुल्ली, संतोखिया और कल्याणी जैसी कई अन्य किस्में भी हैं।
परवल में खाद, उर्वरक और तैयारी (Manure, fertilizer and preparation in parwal)
परवल (Pointed Gourd) में खाद और उर्वरक का प्रयोग खेत की तैयारी के समय करते हैं। प्रथम वर्ष खेत की तैयारी के समय खेत में 2 मीटर की दूरी पर नाली बना लेते हैं। बनी हुई नाली पर 1 मीटर की दूरी पर 40 X 40 x 40 सेमी गहरा गड्ढा बना लेते हैं। यदि पौधों को मचान पर चढ़ाना है, तो लाइन से लाइन के बीच की दूरी 2 मीटर व पौधे से पौधे की दूरी 60-80 सेमी रखते हैं।
प्रत्येक गड्ढे में 4-6 किग्रा सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट, 100 ग्राम यूरिया, 125 ग्राम डीएपी, 75 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश, 100 ग्राम नीम की खली तथा 5 ग्राम फ्यूराडान मिलाकर भर देते हैं। पुन: अप्रैल व जुलाई के महीने में गुड़ाई करने के बाद प्रत्येक पौधे को लगभग 100 ग्राम यूरिया देकर मिट्टी चढ़ा देते हैं। नवम्बर से जनवरी तक पौधा अधिक ठंड के कारण सुषुप्तावस्था में रहता है।
फरवरी के महीने में गर्मी बढ़ने के साथ-साथ नई पत्तियाँ निकलने लगती हैं। इस समय पौधे की निकाई-गुड़ाई करके प्रत्येक पौधे को 100 ग्राम यूरिया देकर एक बार पुन: मिट्टी चढ़ा देते हैं। इसके बाद सिंचाई कर देते हैं। इसी प्रकार खाद एवं उर्वरकों की व्यवस्था दूसरे तथा तीसरे वर्ष फलत लेने के लिए भी करते हैं।
परवल की पौध तैयार करना (Preparation of Pointed Gourd Plants)
तने द्वारा पौध तैयार करने के लिए एक वर्ष पुरानी पौधों को चुनते हैं। तने में जड़ बनाने के लिए पहले तने को छोटे-छोटे टुकड़ों में इस प्रकार काटते हैं कि प्रत्येक टुकड़े में 2-3 गाँठ रहें। सितम्बर-अक्टूबर के महीने में इन टुकड़ों को नर्सरी बेड या 6 X 4 इंच की पॉलीथीन की थैलियों में लगाते हैं।
पॉलीथीन में लगाने के पहले पॉलीथीन को सड़ी हुई गोबर की खाद, बालू एवं मिट्टी की बराबर मात्रा के मिश्रण से भर लेते हैं। रोपाई हेतु प्र्व्लके (Pointed Gourd) के पौध 2-3 महीने में तैयार हो जाते हैं।
परवल पौध रोपाई का समय और विधि (Time and method of planting parwal sapling)
परवल (Pointed Gourd) लगाने का समय अच्छा समय मघा नक्षत्र है, जो 15 अगस्त के आसपास होता है। नदियों के किनारे ” दियारा में परवल लगाने का समय अक्टूबर-नवम्बर का महीना (जब बाढ़ समाप्त हो जाये) उत्तम माना जाता है। दियारा क्षेत्र में प्रत्येक वर्ष नई फसल लगानी पड़ती है, क्योंकि बाढ़ से फसल नष्ट हो जाती है।
रोपाई के लिए 60-70 सेमी लम्बे तने का चुनाव एक साल पुरानी पौध से करके पत्तियों को निकाल देते हैं। इसके बाद अंग्रेजी के अंक 8 की आकृति में मोड़ देते हैं इसके मुड़े हुए बीच वाले भाग को पहले से तैयार थाले में लगा देते हैं। दूसरी विधि से तने को रिंग बनाकर मिट्टी के अन्दर दबा देते हैं, इस प्रकार एक हैक्टेयर क्षेत्रफल में 2500 पौधे या कलमें लगती हैं।
पॉलीथीन में तैयार पौध लगाने का उचित समय फरवरी का महीना होता है, तैयार पौध की पॉलीथीन हटाकर पिण्ड सहित बने हुए गड्ढे में लगाकर मिट्टी से चारों तरफ दबा देते हैं। पौध लगाने के बाद 3-4 दिन तक हल्की सिंचाई करते हैं, जिससे पौध स्थापित हो सकें। परवल (Pointed Gourd) की जड़ों का प्रयोग लगाने के लिए भी करते हैं। इन जड़ों को लगाने का समय अक्टूबर-नवम्बर या फरवरी है।
परवल में नर व मादा पौधों का संतुलन (Male and female plants in Parwal Balance of)
परवल (Pointed Gourd) में नर व मादा पुष्प अलग पौधे पर लगते हैं, अत: अच्छी उपज के लिए नर व मादा पौधों का संतुलन खेत में बनाये रखना चाहिए। पहचान के लिए मादा फूल का निचना भाग फूला हुआ सफेद और रोंयेदार होता है, जबकि नर पुष्प सीधा व लम्बा होता है।
अच्छी उपज के लिए प्रत्येक 10 मादा पौधों के साथ एक नर पौधे का होना आवश्यक है। नर पौधों को खेत में प्रत्येक दस मादा पौधों के बाद लगाना चाहिए, जिससे उचित रूप से परागण हो सके।
परवल में सिंचाई और जल निकासी (Irrigation and drainage in Pointed Gourd)
परवल (Pointed Gourd) के कर्तनों के अच्छी प्रकार स्थापित होने एवं विकास हेतु लता लगाने के तुरन्त बाद थालों के पास हल्का पानी देना चाहिए। इस प्रकार पानी देने की प्रक्रिया लगातार कई दिनों तक करनी चाहिए। इससे जड़ें जल्दी निकल आती हैं। सामान्यत: गर्मी के महीनों ( मार्च से जून) को छोड़कर अन्य महीनों में पानी की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
गर्मी के दिन में जब पौधों पर कल्ले विकसित होते हैं, उस समय पानी की ज्यादा आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकार इन महीनों में 7-8 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। पुष्पन व फलन के समय खेत में उचित नमी रहने पर उपज बढ़ जाती है। पाले से बचाने के लिए खेत को नम रखना चाहिए। परवल से अधिक उपज के लिए खेत में जल निकास का उचित प्रबन्ध होना चाहिए।
परवल (Pointed Gourd) की लताएं, जल भराव के कारण शीघ्र ही सड़कर नष्ट हो जाती हैं। प्रयोगों में यह पाया गया है। कि जल निकास की अच्छी व्यवस्था न होने के कारण जब पानी बार-बार खेत में रुकता है, तो फूल झड़ने लगते हैं और विकसित हो रहे फल पीले होकर गिर जाते हैं।
परवल में खरपतवार नियंत्रण और निकाई (Weed control and weeding in Pointed Gourd)
अन्य सब्जियों की अपेक्षा परवल (Pointed Gourd), खरपतवार के प्रति बहुत संवेदनशील होता है। प्राय: गर्मी की सिंचाई के बाद और वर्षा ऋतु में खरपतवार ज्यादा उग जाते हैं। लताओं की रोपाई करने के बाद से फल लगने की अवधि तक आवश्यकतानुसार 5 से 7 निकाई गुड़ाई करके खेत को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए। जमीन पर फैलाई गई फसल में जब फसल हो रही हो, तो हाथ से खरपतवार 4-5 बार निकालना चाहिए।
निकाई-गुड़ाई करके थालों पर मिट्टी चढ़ा देने से पौधों की लताएं तेजी से विकसित होती हैं। रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डीमेथलीन (स्टाम्प ) 3.3 लीटर मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से पौध लगाने के 2 दिन पूर्व छिड़काव करना चाहिए। इससे विस्तृत क्षेत्र में तथा कम लागत से खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है।
परवल में कीट और रोग नियंत्रण (Pest and disease control in Pointed Gourd)
फल मक्खी: यह मक्खी बढ़ रहे कोमल परवल (Pointed Gourd) फलों के छिलके के नीचे अण्डे दे देती है, जिसमें लार्वा बढ़कर फलों को खाकर नष्ट कर देते हैं।
नियंत्रण: इससे बचाव के लिए 0.3 प्रतिशत डाइजेनान 3 मिली दवा प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर पानी में डाल छिड़काव करनी चाहिए।
तना छेदक: यह कीट परवल (Pointed Gourd) पौधों के मुख्य तने पर छेद बनाकर अंदर चला जाता है तथा अंदर सुरंग बनाकर पौधों की खाद्य आपूर्ति बन्द कर देता है, जिससे पौधो का ऊपरी भाग सूख जाता है।
नियंत्रण: इससे बचाव के लिए 10-15 ग्राम फ्यूराडान 3जी का दाना प्रत्येक पौधे के जड़ के पास 30-40 दिन के अंतराल पर 2 बार डालते हैं। फ्यूराडान का प्रयोग फल लगने के बाद नहीं करते हैं।
मृदुरोमिल आसिता: यह रोग वर्षा ऋतु के उपरांत जब तापमान 25 डिग्री सेंटीग्रेट से ऊपर हो, तब तेजी से फैलता है। उत्तरी भारत में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है। इस रोग से पत्तियों पर कोणीय धब्बे बनते हैं। ये पत्तियों के ऊपरी पृष्ठ पर पीले रंग के होते हैं। अधिक आर्द्रता होने पर पत्ती के निचली सतह पर मृदुरोमिल कवक की वृद्धि दिखाई देती है।
नियंत्रण: खड़ी फसल में मैंकोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें। पूरी तरह रोगग्रस्त लताओं को निकाल कर जला देना चाहिए।
चूर्णी फफूँद ( चूर्णील आसिता): इस रोग में प्रथम लक्षण पत्तियों पर सफेद चूर्णयुक्त धब्बों के रूप में दिखाई देता है। सफेद चूर्णित पदार्थ अन्त में समूचे पौधे की सतह को ढँक लेता है। अधिक प्रकोप के कारण पौधों से पत्तियाँ गिर जाती हैं। इसके कारण फलों का आकार छोटा रह जाता है।
नियंत्रण: इसकी रोकथाम के लिए रोगी पौधों को खेत में इकट्ठा करके जला देना चाहिए। फफूँद नाशक दवा कैलिक्सीन 1 मिली दवा एक लीटर पानी में घोल बनाकर सात दिन के अंतराल पर 1-2 छिड़काव करें या टोपाज 1 मिली दवा 4 लीटर पानी में घोलकर 1-2 छिड़काव 10 दिन के अंतराल पर करें।
फल का पीला होनाः प्राय: ऐसा देखा जाता है कि परवल (Pointed Gourd) का फल लगते ही पीला हो जाता है जो पका जैसा दिखाई देता है और बाद में पौधे से टूट कर गिरता है। इसके दो प्रमुख कारण हैं-
पहला: नर फूल की कमी के कारण परागण व गर्भाधान क्रिया का होना। ऐसी दशा में नर व मादा पौधों को 1:10 अनुपात में लगाकर फल का पीला होना रोका जा सकता है। इसके अलावा यह भी सावधानी रखनी चाहिए कि फूल आने के समय किसी प्रकार के कीटनाशी दवा का प्रयोग दिन के समय न करें अन्यथा परागण करने वाली मधुमक्खियों के मरने का डर रहता है। यदि कीटनाशी का प्रयोग करना ही पड़े तो शाम के समय करें।
दूसरा: फल मक्खी द्वारा विकसित हो रहे कोमल फलों का क्षतिग्रस्त होना। इसके लिए फल मक्खी का नियंत्रण ऊपर बताए गई विधि से करें।
परवल फल की तुड़ाई और उपज (Picking and yield of Pointed Gourd fruit)
मैदानी क्षेत्रों में मार्च-अप्रैल के महीने में फल आना शुरू हो जाते हैं, जबकि नदियों के किनारे दियारा में लगाए गये पौधों पर फल फरवरी में ही आने लगते हैं। पौधों पर फल लगने के 15 से 16 दिन बाद पूर्ण विकसित हरे फलों की तुड़ाई करनी चाहिए। समय से फलों की तुड़ाई करते रहने से फल अधिक संख्या में लगते रहते हैं।
परवल (Pointed Gourd) फलों की तुड़ाई 2-3 दिन के अन्तराल पर करते रहने से फल कोमल व गुणवत्तायुक्त प्राप्त होते हैं। पहले वर्ष उपज 125 कुन्तल, दूसरे वर्ष से 250-300 कुन्तल प्रति हैक्टेयर तक प्राप्त होती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
परवल की खेती में, सबसे पहले स्वस्थ बीजों या पौधों को चुनें। नर्सरी में या सीधे खेत में परवल की रोपाई करें। रोपाई के लिए जून-अगस्त या अक्टूबर-नवंबर का समय उपयुक्त होता है। परवल (Pointed Gourd) फसल की अच्छी बढ़वार के लिए, पौधों को स्टेकिंग या मचान का सहारा दें। कीटों और बीमारियों से बचाव के लिए जैविक तरीकों का इस्तेमाल करें।
परवल (Pointed Gourd) की खेती के लिए सबसे अच्छा समय फरवरी से मार्च और जून से जुलाई तक का होता है। अगस्त के पहले सप्ताह तक भी इसकी खेती की जा सकती है। इन महीनों में मौसम और मिट्टी की स्थिति परवल के विकास के लिए आदर्श होती है।
परवल (Pointed Gourd) की कई किस्में हैं, जिनमें से कुछ लोकप्रिय किस्मों में स्वर्ण अलौकिक, स्वर्ण रेखा, राजेन्द्र परवल- 1 और राजेन्द्र परवल- 2 आदि शामिल है। इन किस्मों के परवल विभिन्न क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त हैं।
परवल के पौधे 3-4 हफ्ते में उगने लगते हैं। पौधों को नियमित रूप से सिंचाई और खाद देनी चाहिए। परवल (Pointed Gourd) की फसल 60-70 दिनों में तैयार हो जाती है।
परवल (Pointed Gourd) की खेती आम तौर पर गर्म महीनों के दौरान की जाती है, आदर्श मौसम वसंत के अंत से लेकर गर्मियों की शुरुआत तक होता है। अधिकांश क्षेत्रों में, इसे अप्रैल या मई में बोना सबसे अच्छा होता है जब तापमान विकास के लिए अनुकूल होता है।
हाँ, परवल (Pointed Gourd) को कंटेनरों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है, बशर्ते वे जड़ प्रणाली को समायोजित करने के लिए पर्याप्त गहरे हों। सुनिश्चित करें कि कंटेनर में पर्याप्त जल निकासी हो और स्वस्थ विकास को बढ़ावा देने के लिए पोषक तत्वों से भरपूर पॉटिंग मिक्स का उपयोग करें।
परवल (Pointed Gourd) की फसल के लिए सड़ी हुई गोबर की खाद, डीएपी, यूरिया, म्यूरेट ऑफ पोटाश और नीम की खली का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, कुछ लोग वर्मीकंपोस्ट का भी उपयोग करते हैं।
परवल (Pointed Gourd) की फसल में कीटों से होने वाले नुकसान को रोकने के लिए, फसल चक्रण, नियमित निगरानी और प्राकृतिक शिकारियों के उपयोग जैसी एकीकृत कीट प्रबंधन रणनीतियों को लागू करें। जैविक कीटनाशक और नीम का तेल भी लाभकारी कीटों को नुकसान पहुँचाए बिना आम कीटों को नियंत्रित करने में प्रभावी हो सकते हैं।
सामान्य परवल (Pointed Gourd) की बीमारियों में पाउडरी फफूंदी और जड़ सड़न शामिल हैं। इन बीमारियों से निपटने के लिए, उचित फसल चक्र अपनाएँ, पौधों के आस-पास हवा का अच्छा संचार सुनिश्चित करें और ज़्यादा पानी देने से बचें। इसके अलावा, निवारक उपाय के रूप में फफूंदनाशकों का इस्तेमाल करने से आपकी फसल को बचाने में मदद मिल सकती है।
यदि परवल (Pointed Gourd) पौधों का ध्यान अच्छे से रखा जाए और उन्नत तकनीकें, अच्छे से निराई-गुड़ाई और पोषण प्रबंधन का इस्तेमाल किया जाए, तो पहले वर्ष में औसतन 125-150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज होती है, और दूसरे वर्ष से यह 250-300 क्विंटल तक पहुंच सकती है।
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