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Home » Blog » Melon Cultivation in Hindi: खरबूजे की खेती कैसे करें

Melon Cultivation in Hindi: खरबूजे की खेती कैसे करें

July 28, 2024 by Bhupendra Dahiya Leave a Comment

Melon Cultivation in Hindi: खरबूजे की खेती कैसे करें

Musk Melon Cultivation: खरबूजा एक कद्दू वर्गीय फसल है, जिसे नगदी फसल के रूप में उगाया जाता है।खरबूजे की खेती मुख्यत: ग्रीष्म कालीन फसल के रूप में की जाती है। खरबूजे के बीजों की गिरी का उपयोग मिठाई को सजाने में किया जाता है। इसका सेवन मूत्राशय संबंधी रोगों में लाभकारी होता है। इसकी 80 प्रतिशत खेती नदियों के किनारे होती है।

खरबूजे के मिठास के कारण लोग ज्यादा पसन्द करते हैं। कच्चे फलों का उपयोग सब्जी के रूप में भी किया जाता है। खरबूजे की खेती (Musk Melon Cultivation) मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश तथा बिहार में बड़े पैमाने पर की जाती है।

शुष्क जलवायु में फल के पकने पर मिठास की मात्रा बढ़ जाती है, किन्तु नम जलवायु में फल अधिक देरी से पकते है, और फलो पर कई तरह के रोग भी देखने को मिल जाते है | किसान भाइयो की खरबूजे की खेती में अधिक रुचि देखने को मिलती है, यदि आप भी खरबूजे की खेती करना चाहते है, तो इस लेख में आपको खरबूजे की खेती (Melon Farming) वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें, की जानकारी का उल्लेख किया गया है।

Table of Contents

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  • खरबूजे की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for melon cultivation)
  • खरबूजे की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for melon cultivation)
  • खरबूजे की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for Muskmelon cultivation)
  • खरबूजे की खेती के लिए उन्नत किस्में (Advanced varieties for melon cultivation)
  • खरबूजे की खेती के लिए बुआई का समय (Sowing time for muskmelon cultivation)
  • खरबूजे के लिए बीज की मात्रा और उपचार (Seed quantity and treatment for muskmelon)
  • खरबूजे की खेती के लिए बुआई की विधि (Sowing method for melon cultivation)
  • खरबूजे की फसल में खाद और उर्वरक (Manure and fertilizers in musk melon crop)
  • खरबूजे की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Muskmelon Crop)
  • खरबूजे की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in muskmelon crop)
  • खरबूजे की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in melon crop)
  • खरबूजे की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in muskmelon crop)
  • खरबूजा फसल के फलों की तुड़ाई और उपज (Harvesting and Yield of Muskmelon Crop)
  • अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)

खरबूजे की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for melon cultivation)

गर्म और शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र खरबूजा की खेती (Melon Cultivation) के लिए सर्वोत्तम होते है। इसलिए जायद के मौसम को खरबूजे की फसल के लिए अच्छा माना जाता है। इस दौरान पौधों को पर्याप्त मात्रा में गर्म और आद्र जलवायु मिल जाती है। गर्म मौसम में इसके पौधे अच्छे से वृद्धि करते है, किन्तु सर्द जलवायु इसकी फसल के लिए बिल्कुल उपयुक्त नहीं होती है।

बारिश के मौसम में इसके पौधे ठीक से वृद्धि करते है, लेकिन अधिक वर्षा पौधों के लिए हानिकारक होती है। इसके बीजो को अंकुरित होने के लिए आरम्भ में 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है, तथा पौधों के विकास के लिए 35 से 40 डिग्री तापमान जरूरी होता है। हवा में अधिक नमी होने पर खरबूजे के फल देरी से पकते हैं। फल पकते समय मौसम शुष्क तथा पछुआ हवा चलने पर फलों में मिठास बढ़ जाती है।

खरबूजे की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for melon cultivation)

खरबूजे की खेती अनेक प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है, परन्तु अच्छी फसल के लिए बलुई दोमट भूमि उत्तम होती है। भारी मिट्टियाँ इसके लिए उपयुक्त नहीं रहती। सामान्यतः खरबूजे की खेती नदियों के पाटों की रेतीली भूमि में की जाती है, परन्तु समतल सींचित खेतों और सूखे तालाबों के क्षेत्रों में भी इसकी खेती की जा सकती है।

खरबूजे (Melon) की व्यवस्थित एवं लाभप्रद खेती के लिए पानी के अच्छे निकास वाली बलुई दोमट भूमि तथा मरुस्थलीय खेतों की रेतीली मिट्टी सर्वोत्तम है। फसल की बढ़िया वानस्पतिक वृद्धि एवं उपज के लिए खेत में पर्याप्त जीवांश मात्रा का होना बहुत ही जरूरी है। खेत की मृदा का पीएच मान 6 से 7 खरबूजे के लिए सर्वोत्तम रहता है।

खरबूजे की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for Muskmelon cultivation)

खरबूजे की खेती (Melon Cultivation) के लिए भुरभुरी मिट्टी की जरूरत होती है। इसके लिए सबसे पहले खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेषों को नष्ट करने के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई कर दी जाती है। जुताई के बाद भूमि में सूर्य की धूप लगने के लिए उसे कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है। इसके बाद खेत में पानी लगाकर पलेव कर दिया जाता है, पलेव के बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगती है।

उस दौरान कल्टीवेटर लगाकर खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है। इससे खेत की मिट्टी में मौजूद मिट्टी के ढेले टूट जाते है और मिट्टी भुरभुरी हो जाती है। मिट्टी के भुरभुरा हो जाने के बाद खेत में पाटा चलाकर भूमि को समतल कर दिया जाता है। समतल भूमि में वर्षा के मौसम में खेत में जलभराव नहीं होता है। अंतिम जुताई से पहले 200 से 250 क्विटल पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में देना अच्छा होता है।

खरबूजे की खेती के लिए उन्नत किस्में (Advanced varieties for melon cultivation)

खरबूजा की खेती (Melon Cultivation) से भरपूर उपज के लिए स्थानीय किस्मों की जगह उन्नत और अधिक पैदावार देने वाली किस्मों का चयन करना चाहिए। खरबूजे की कुछ उन्नत किस्में इस प्रकार है, जैसे- पूसा मधुरस, अर्का राजहंस, अर्का जीत, काशी मधु, दुर्गापुरा मधु, आरएम- 43, आरएम- 50, एमएचवाई- 3, एमएचवाई- 5, हरा मधु, हिसार मधुर, मृदुला, पंजाब सुनहरी, पंजाब संकर- 1, सागर 60 एफ- 1, गुजरात खरबूजा- 1 और गुजरात खरबूजा- 2 आदि प्रमुख है।

खरबूजे की खेती के लिए बुआई का समय (Sowing time for muskmelon cultivation)

मैदानी क्षेत्रों में खरबूजा (Melon) की बुआई 10-20 फरवरी के बीच में तथा पहाड़ी क्षेत्रों में अप्रैल से मई तक की जाती है। नदियों के कक्षार में इसकी बुआई नवम्बर में अथवा जनवरी के अन्तिम सप्ताह में करते हैं । दक्षिण एवं मध्यम भारत में इसकी बुआई अक्टूबर-नवम्बर में की जाती है।

खरबूजे के लिए बीज की मात्रा और उपचार (Seed quantity and treatment for muskmelon)

खरबूजे की खेती (Melon Cultivation) के लिए औसतन एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए 3-4 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है। 100 बीज का औसतन वजन लगभग 2.5 ग्राम होता है। बीज को बोने से पूर्व कैप्टान या थिराम से उपचारित कर लेना चाहिये।

खरबूजे की खेती के लिए बुआई की विधि (Sowing method for melon cultivation)

मैदानी क्षेत्रों में खरबूजा (Melon) की बुआई के लिए 1.5-2.00 मीटर की दूरी पर 30 से 40 सेन्टीमीटर चौड़ी नालियां बनाते हैं। बीज की बुआई नाली के किनारों (मेड़ों) पर 50-60 सेमी की दूरी पर करते हैं। बीज को 1.5-2.0 सेन्टीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए।

नदियों के किनारे गड्डे में बुआई करते हैं। 60 x 60×60 सेमी गहरा गड्डा बनाकर उसमें 1:1:1 के अनुपात में गोबर की खाद मिट्टी तथा बालू मिलाते हैं। तत्पश्चात एक गढ्डे में तीन बीज की बुआई करते हैं।

खरबूजे की फसल में खाद और उर्वरक (Manure and fertilizers in musk melon crop)

खरबूजे की खेती (Melon Cultivation) के लिए 90 किग्रा नत्रजन, 70 किग्रा फास्फोरस तथा 60 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए। रासायनिक उर्वरकों में नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा खेत में नालियाँ या थाले बनाते समय देते हैं।

नाइट्रोजन की शेष मात्रा दो बराबर भागों में बांटकर खड़ी फसल में जड़ों के पास बुआई के 20 तथा 45 दिनों बाद देना चाहिए। बोरान, कैल्शियम तथा मालीब्डेनम का 3 मिग्रा प्रति लीटर पानी की दर से पर्णीय छिड़काव करने से फलों की संख्या तथा कुल उपज में वृद्धि होती हैं।

खरबूजे की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Muskmelon Crop)

खरबूजा की फसल (Melon Crop) में सिंचाई की आवश्यकता अधिक पड़ती है, मौसम जब सूखा रहता है, तो आवश्यकतानुसार पानी लगाते हैं। सामान्यत: ग्रीष्म काल में उगाई जा रही फसल में 4-7 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। नदियों के कछार में बोई गयी फसल को केवल 1-2 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।

सिंचाई केवल नालियों में करते हैं। तीन अवस्थाओं तना बढ़ते समय, फूल आने से पहले तथा फल विकास की अवस्था पर पानी की कमी होने पर उपज में भारी कमी हो जाती है। फल पकते समय सिंचाई नहीं करनी चाहिए अन्यथा मिठास कम हो जाती हैं।

खरबूजे की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in muskmelon crop)

वर्षाकालीन फसल में खरपतवार की समस्या अधिक होती है। जमाव से लेकर प्रथम 25 दिनों तक खरपतवार फसल को ज्यादा नुकसान पहुँचाते हैं। इससे फसल की वृद्धि पर प्रतिकूल असर पड़ता है तथा पौधे की बढ़वार रूक जाती है। इसलिए खेत से समय-समय पर खरपतवार निकालते रहना चाहिए।

खरबूजे की फसल (Melon Crop) में रासायनिक खरपतवारनाशी के रूप में बूटाक्लोर रसायन 2 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बीज बुआई के तुरन्त बाद करते हैं। खरपतवार निकालने के बाद खेत की गुड़ाई करके जड़ों के पास मिट्टी चढ़ना चाहिए, जिससे पौधों का विकास तेजी से होता है।

खरबूजे की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in melon crop)

कद्दू का लाल कीट (रेड पम्पकिन बिटिल): इस कीट की सूण्ड़ी जमीन के अन्दर पायी जाती है। इसकी सूण्डी और वयस्क दोनों खरबूजा (Melon) फसल को क्षति पहुँचाते हैं। प्रौढ़ पौधों की छोटी पत्तियों पर ज्यादा क्षति पहुँचाते हैं। ग्रब (इल्ली) जमीन में रहती है, जो पौधों की जड़ पर आक्रमण कर नुकसान पहुँचाती है।

ये कीट जनवरी से मार्च के महीनों में सबसे अधिक सक्रिय होते है। अक्टूबर तक खेत में इनका प्रकोप रहता है। फसलों के बीज पत्र तथा 4-5 पत्ती अवस्था इन कीटों के आक्रमण के लिए सबसे अनुकूल है। प्रौढ़ कीट विशेषकर मुलायम पत्तियां अधिक पसन्द करते है। अधिक आक्रमण होने से पौधे पत्ती रहित हो जाते है।

नियंत्रण: सुबह ओस पड़ने के समय राख का बुरकाव करने से भी प्रौढ़ पौधा पर नहीं बैठता जिससे नुकसान कम होता है। जैविक विधि से नियंत्रण के लिए अजादीरैक्टिन 300 पीपीएम 5-10 मिली प्रति लीटर या अजादीरैक्टिन 5 प्रतिशत 0.5 मिली प्रति लीटर की दर से दो या तीन छिड़काव करने से लाभ होता है।

इस कीट का अधिक प्रकोप होने पर कीटनाशी जैसे डाईक्लोरोवास 76 ईसी, 1.25 मिली प्रति लीटर या ट्राइक्लोफेरान 50 ईसी, 1 मिली प्रति लीटर पानी की दर से जमाव के तुरन्त बाद और दुबारा 10 वें दिन पर पर्णीय छिड़काव करें।

फल मक्खी: इस कीट की सूण्डी हानिकारक होती है। प्रौढ़ मादा छोटे, मुलायम खरबूजा (Melon) फलों के छिलके के अन्दर अण्डा देना पसन्द करती है और अण्डे से ग्रब्स (सूड़ी) निकलकर फलों के अन्दर का भाग खाकर नष्ट कर देते हैं। कीट फल के जिस भाग पर अण्डा देती है, वह भाग वहाँ से टेढ़ा होकर सड़ जाता है। ग्रसित फल सड़ जाता है और नीचे गिर जाता है।

नियंत्रण: गर्मी की गहरी जुताई करें, ताकि मिट्टी की निचली परत खुल जाए जिससे फलमक्खी का प्यूपा धूप द्वारा नष्ट हो जाये तथा जिन्हें शिकारी पक्षियों द्वारा खा लिया जाता हैं। ग्रसित फलों को इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए।

नर फल मक्खी को नष्ट करने के लिए प्लास्टिक की बोतलों को इथेनाल, कीटनाशक (डाईक्लोरोवास या कार्बारिल या मैलाथियान ), क्यूल्यूर को 6:1:2 के अनुपात के घोल में लकड़ी के टूकड़े को डुबाकर, 25 से 30 फंदा खेत में स्थापित कर देना चाहिए।

कार्बारिल 50 डब्ल्यूपी. 2 ग्राम प्रति लीटर या मैलाथियान 50 ईसी 2 मिली प्रति लीटर पानी को लेकर 10 प्रतिशत शीरा अथवा गुड़ में मिलाकर जहरीले चारे को 250 जगहों पर 1 हेक्टेयर खेत में उपयोग करना चाहिए। प्रतिकर्षी 4 प्रतिशत नीम की खली का प्रयोग करें, जिससे जहरीले चारे की ट्रैपिंग की क्षमता बढ़ जाये।

आवश्यकतानुसार कीटनाशी जैसे क्लोरेंट्रानीलीप्रोल 18.5 एससी 0.25 मिली प्रति लीटर या डाईक्लारोवास 76 ईसी 1.25 मिली प्रति लीटर पानी की दर से भी छिड़काव कर सकते हैं।

खरबूजे की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in muskmelon crop)

चूर्णी फफूँद ( चूर्णील आसिता): इस रोग में प्रथम लक्षण खरबूजा (Melon) पत्तियों और तनों की सतह पर सफेद या धुंधले धूसर धब्बों के रूप में दिखाई देता है। कुछ दिनों के बाद ये धब्बे चूर्णयुक्त हो जाते हैं। सफेद चूर्णिल पदार्थ अन्त में समूचे पौधे की सतह को ढँक लेता है। उग्र आक्रमण के कारण पौधे का निष्पत्रण हो जाता है। इसके कारण फलों का आकार छोटा रह जाता है।

नियंत्रण: इसके नियंत्रण हेतु रोगी पौधों को खेत में इकट्ठा करके जला देना चाहिए। बोने के लिए रोगरोधी किस्म का चयन करना चाहिए। इसकी रोकथाम के लिए रोग ग्रस्त पौधों को खेत में इकट्ठा करके जला देते हैं। फफूँदनाशक दवा जैसे ट्राइडीमोर्फ 1/2 मीली प्रति लीटर या माइक्लोब्लूटानिल का 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के साथ घोल बनाकर सात दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।

मृदुरोमिल आसिता: यह रोग वर्षा ऋतु के उपरान्त जब तापमान 20-22 डिग्री सेंटीग्रेट हो, तब यह रोग तेजी से फैलता है। उत्तरी भारत में इस रोग का प्रकोप अधिक है। इस रोग का मुख्य लक्षण पत्तियों पर कोणीय धब्बे जो शिराओं द्वारा सीमित होते हैं, ये पत्तियों के ऊपरी पृष्ठ पर पीले रंग के होते हैं। अधिक आर्द्रता होने पर पत्ती के निचली सतह पर मृदुरोमिल कवक की वृद्धि दिखाई देती है।

नियंत्रण: इसकी रोकथाम के लिए बीजों को एप्रोन नामक कवकनाशी से 2 ग्राम दवा प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए। मैंकोजेब 0.25 प्रतिशत (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) घोल से पहले सुरक्षा के रूप में छिड़काव बीमारी दिखने तुरन्त करना चाहिए।

यदि खरबूजा (Melon) के पौधों पर बीमारी के लक्षण दिखाई दे रहे हो इसकी रोकथाम के लिए मैटालैक्सिल + मैंकोजेब का 2.5 ग्राम प्रति लीटर की दर से या डाइमेयामर्फ का 1 ग्राम प्रति लीटर + मैटीरैम का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से 7 से 10 के अंतराल पर 3-4 बार छिड़काव करें।

खीरा मोजैक वायरस: इस रोग का फैलाव, रस द्रव्य रोगी बीज का प्रयोग तथा एफीड कीट द्वारा होता है। इससे पौधों की नई पत्तियों में छोटे, हल्के पीले धब्बों का विकास सामान्यत: शिराओं से शुरू होता है। पत्तियों में मोटलिंग, सिकुड़न शुरू हो जाती है। खरबूजा (Melon) के पौधे विकृत तथा छोटे रह जाते है। हल्के, पीले चित्तीदार लक्षण फलों पर भी उत्पन्न हो जाते हैं।

नियंत्रण: इसकी रोकथाम के लिए विषाणु – मुक्त बीज का प्रयोग तथा रोगी पौधों को खेत से निकालकर नष्ट कर देना चाहिए। विषाणु वाहक कीट के नियंत्रण के लिए डाईमेथोएट (0.05 प्रतिशत) रासायनिक दवा का छिडकाव 10 दिन के अन्तराल पर करते हैं। फल लगने के बाद रासायनिक दवा का प्रयोग नहीं करते हैं।

खरबूजा फसल के फलों की तुड़ाई और उपज (Harvesting and Yield of Muskmelon Crop)

फलों की तुड़ाई: जब (Melon) खरबूजा के फल पूरी तरह जातीय गुण के अनुरूप पक जायें तभी तुड़ाई करनी चाहिए। तुड़ाई के लिए फलों के पके होने की पहचान निम्नलिखित लक्षणों को देखकर की जा सकती है, जैसे-

*फल अन्तिम छोर से पकना प्रारम्भ करता है जिससे फल का रंग बदल जाता है और फल का छिलका मुलायम सा प्रतीत होता है।

*खरबूजा (Melon) के पके हुए फल से कस्तूरी जैसी सुगन्ध आती है।

*कभी-कभी खरबूजा (Melon) फल तने से पूर्णतया अथवा आधा अलग हो जाता है।

जब फल से जुड़ने वाला भाग पूर्णतया वृत्तीय घसाव को व्यक्त करने लगे, फल को पका हुआ माना जाता है। इसे “फूल स्लिप स्टेज” कहा जाता है। स्थानीय बाजारों के लिए “फूल स्लिप स्टेज” पर फल को तोड़ना उत्तम माना जाता है। “फूल स्लिप स्टेज” से पहले तोड़ा गया फल 2-3 दिनों तक रखा जा सकता है। फल की तुड़ाई दिन की गर्मी बढ़ने से पूर्व करनी चाहिए और फल को ठण्डे स्थान पर रखना चाहिए।

उपज: उपरोक्त विधि से खरबूजा (Melon) की अच्छी फसल से 150-200 कुन्तल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)

खरबूजे की खेती कैसे करें?

खरबूजा (Melon) के लिए खेत की तैयारी अच्छे से करें और हर जगह पर दो बीज बोएँ और बीच में 60 सेमी की दूरी रखें। बीज को लगभग 1.5 सेमी गहराई पर लगाएँ। बुवाई के लिए डिबलिंग विधि और रोपाई विधि का उपयोग किया जा सकता है। जनवरी के आखिरी सप्ताह या फरवरी के पहले सप्ताह में 100 गेज की मोटाई वाले 15 सेमी x 12 सेमी आकार के पॉलीथीन बैग में बीज बोएँ।

खरबूजा उगाने के लिए सबसे अच्छी जलवायु कौन सी है?

खरबूजा गर्म मौसम की फसल हैं, जो 70 से 85° F के बीच औसत हवा के तापमान पर सबसे अच्छी तरह से उगती हैं। खरबूजे के बीज ठंडी मिट्टी में अच्छी तरह से अंकुरित नहीं होते हैं। खरबूजा फसल (Melon Crop) को लगाने से पहले 4 इंच की गहराई पर मिट्टी का तापमान 60 से 65° F होना चाहिए।

खरबूजे की खेती कब की जाती है?

सिंचित खेतों में इसकी बुवाई फरवरी-मार्च में की जाती है, ताकि बाजार में खरबूजा (Melon) मई से मध्य जुलाई तक मिलता रहे।

खरबूजे के लिए किस तरह की मिट्टी की आवश्यकता होती है?

खरबूजा (Melon) रेतीली दोमट मिट्टी या रेतीली मिट्टी को पसंद करता है, अर्थात यह 6 से 7.8 पीएच वाली मिट्टी को पसंद करता है। मिट्टी उपजाऊ होनी चाहिए और उसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।

खरबूजा किस मौसम में उगता है?

खरबूजा (Melon) ज़्यादातर नवंबर से फ़रवरी तक उगाया जाता है। बीज के अंकुरण के लिए इष्टतम तापमान 23 – 25 डिग्री सेल्सियस है और इसके विकास और फल विकास के लिए आवश्यक इष्टतम तापमान लगभग 20 – 32 डिग्री सेल्सियस है।

खरबूजे का सबसे बड़ा उत्पादक कौन सा राज्य है?

उत्तर प्रदेश भारत में खरबूजे (Melon) का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है, जिसका वार्षिक उत्पादन 5,92,510 टन है। देश के कुल खरबूजे उत्पादन में राज्य का योगदान 39.25% है। आंध्र प्रदेश देश खरबूजे का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।

खरबूजा सबसे अच्छा कहाँ उगता है?

तेजी से बढ़ने वाले खरबूजे (Melon) अक्सर उन जगहों पर सबसे अच्छे होते हैं जहाँ गर्मियाँ ठंडी और बरसाती होती हैं, जबकि गर्म, शुष्क जलवायु चिकनी त्वचा वाले हनीड्यू के लिए अनुकूल होती है। छोटे खरबूजे जल्दी पक जाते हैं और बड़े फल देने वाली किस्मों की तुलना में कम जगह लेते हैं।

खरबूजे में कौन सी खाद डालनी चाहिए?

खरबूजे (Melon) की अच्छी पैदावार के लिए 20-25 टन गली सड़ी रूड़ी की खाद प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन 90 किलोग्राम, फासफोरस 70 किलोग्राम, पोटाश 60 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से डालें।

खरबूजे की फसल में सिंचाई कब करें?

गर्मियों के मौसम में हर सप्ताह सिंचाई करें। पकने के समय जरूरत पड़ने पर ही सिंचाई करें। खरबूजे (Melon) के खेत में ज्यादा पानी ना लगाएं। सिंचाई करते समय, बेलों या वानस्पति भागों विशेष कर फूलों और फलों पर पानी ला लगाएं।

खरबूजे की उपज कैसे बढ़ाएं?

पोटैशियम और नाइट्रोजन पत्ती की वृद्धि को बढ़ाने और उपज क्षमता को अधिकतम करने में महत्वपूर्ण तत्व हैं। खरबूजे (Melon) को नाइट्रोजन की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक पोटेशियम की आवश्यकता होती है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि फूल आने से पहले नाइट्रोजन की आपूर्ति सीमित न हो, अन्यथा बढ़ने पर उपज सीमित हो जाएगी।

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