• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
Krishak-Jagriti-Logo

Krishak Jagriti

Agriculture Info For Farmers

  • रबी फसलें
  • खरीफ फसलें
  • जायद फसलें
  • चारा फसलें
  • सब्जी फसलें
  • बागवानी
  • औषधीय फसलें
  • जैविक खेती
Home » Blog » Linseed Cultivation in Hindi: अलसी की खेती कैसे करें

Linseed Cultivation in Hindi: अलसी की खेती कैसे करें

June 8, 2024 by Bhupendra Dahiya Leave a Comment

Linseed Cultivation in Hindi: अलसी की खेती कैसे करें

Linseed Farming: अलसी बहुमूल्य औद्योगिक तिलहन फसल है। अलसी (Linseed) के प्रत्येक भाग का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न रूपों में उपयोग किया जा सकता है। इसके बीज से निकलने वाला तेल प्रायः खाने के रूप में उपयोग में नही लिया जाता है बल्कि दवाइयाँ बनाई जाती है। इसके तेल का पेंट्स, वार्निश व स्नेहक बनाने के साथ पैड इंक तथा प्रेस प्रिटिंग हेतु स्याही तैयार करने में उपयोग किया जाता है। इसका बीज फोड़ों फुन्सी में पुल्टिस बनाकर प्रयोग किया जाता है।

अलसी (Linseed) के तने से उच्च गुणवत्ता वाला रेशा प्राप्त किया जाता है और रेशे से लिनेन तैयार किया जाता है। अलसी की खली दूध देने वाले जानवरों के लिये पशु आहार के रूप में उपयोग की जाती है तथा खली में विभिन्न पौध पौषक तत्वों की उचित मात्रा होने के कारण इसका उपयोग खाद के रूप में किया जाता है। अलसी के पौधे का काष्ठीय भाग तथा छोटे-छोटे रेशों का प्रयोग कागज बनाने हेतु किया जाता है। यदि कृषक बंधु अलसी (Linseed) की खेती वैज्ञानिक तकनीक से करें, तो इसकी खेती से अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

Table of Contents

Toggle
  • अलसी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable Climate for Linseed Cultivation)
  • अलसी की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of Land for Linseed Cultivation)
  • अलसी की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of Field for Linseed Cultivation)
  • अलसी की खेती के लिए जैव उर्वरक (Bio-Fertilizers for Linseed Cultivation)
  • अलसी की खेती के लिए उन्नत किस्में (Improved Varieties for Linseed Cultivation)
  • अलसी की खेती के लिए फसल पद्धति (Crop System for Linseed Cultivation)
  • अलसी की खेती के लिए बुवाई का समय (Sowing Time for Linseed Cultivation)
  • अलसी की खेती के लिए बीजदर (Seed Rate for Linseed Cultivation)
  • अलसी की खेती के लिए बीज उपचार (Seed Treatment for Linseed Cultivation)
  • अलसी की खेती के लिए खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizers for Cultivation)
  • अलसी की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Crop)
  • अलसी की फसल में खरपतवार रोकथाम (Weed Control in Linseed Crop)
  • अलसी की फसल में रोग नियंत्रण (Disease Control in Linseed Crop)
  • अलसी की फसल में कीट नियंत्रण (Pest Control in Linseed Crop)
  • अलसी फसल की कटाई और उपज (Harvesting and Yield of Crop)
  • अलसी से रेशा प्राप्त करने की तकनीक (Technique of Obtaining Fiber From Flax)
  • अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)

अलसी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable Climate for Linseed Cultivation)

अलसी की खेती (Linseed Cultivation) को ठंडे व शुष्क जलवायु की आवश्यकता पड़ती है। अत: अलसी भारत वर्ष में अधिकतर रबी मौसम में जहां वार्षिक वर्षा 50 से 55 सेटीमीटर होती है। वहां इसकी खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है। अलसी के उचित अंकुरण के लिए 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान तथा बीज बनते समय तापमान 15 से 20 डिग्री सेंटीग्रेट होना चाहिए।

अलसी (Linseed) के वृद्धि काल में भारी वर्षा और बादल छाये रहना बहुत ही हानिकारक होते हैं। परिपक्वन अवस्था पर उच्च तापमान, कम नमी तथा शुष्क वातावरण की आवश्यकता होती है। यानि की इसकी खेती के लिए सम – शीतोष्ण जलवायु उपयुक्त रहती है।

अलसी की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of Land for Linseed Cultivation)

अलसी की खेती (Linseed Cultivation) के लिये काली भारी और दोमट (मटियार) मिट्टियाँ उपयुक्त रहती हैं। अधिक उपजाऊ मट्टाओं की अपेक्षा मध्यम उपजाऊ मृदायें अच्छी समझी जाती हैं। भूमि में उचित जल निकास होना चाहिए। उचित जल और उर्वरक व्यवस्था करने पर किसी भी प्रकार की मिट्टी में अलसी की खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है।

अलसी की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of Field for Linseed Cultivation)

बीज के अंकुरण और उचित फसल वृद्धि के लिए आवश्यक है, कि बुआई से पूर्व भूमि को अच्छी प्रकार से तैयार कर लिया जाए। फसल कटाई के पश्चात खेत को मिट्टी पलटने वाले हल से एक बार जोतने के पश्चात् 2-3 बार देशी देशी हल या हैरो चलाकर भूमि तैयार करनी चाहिए।

जुताई के बाद पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए, जिससे भूमि में नमी बनी रहे। अलसी (Linseed) की बेहतर उत्पादन हेतु अच्छी तरह से पकी हुई गोबर की खाद 4-5 टन प्रति हेक्टेयर अन्तिम जुताई के समय खेत में अच्छी तरह से मिला देना चाहिये। मिट्टी परीक्षण अनुसार उर्वरकों का प्रयोग अधिक लाभकारी होता है।

अलसी की खेती के लिए जैव उर्वरक (Bio-Fertilizers for Linseed Cultivation)

अलसी (Linseed) में भी एजोटोवेक्टर / एजोस्पाईरिलम और स्फुर घोलक जीवाणु आदि जैव उर्वरक उपयोग किये जा सकते हैं। बीज उपचार हेतु 10 ग्राम जैव उर्वरक प्रति किलो ग्राम बीज के हिसाब से अथवा मृदा उपचार हेतु 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर जैव उर्वरकों की मात्रा को 50 किग्रा भुरभुरे गोबर की खाद के साथ मिला कर अंतिम जुताई के पहले खेत में बराबर बिखेर देना चाहिये।

अलसी की खेती के लिए उन्नत किस्में (Improved Varieties for Linseed Cultivation)

उन्नत किस्मेंपकने की अवधि (दिनो में)उपज क्षमता (क्विं./हे.)विशेषतायें
जवाहर अलसी – 23 (सिंचित)120-12515-18दहिया और उकठा रोग के लिये प्रतिरोधी, अंगमारी तथा गेरूआ के प्रति सहनशील
सुयोग (जेएलएस – 27) सिंचित115-12015-20गेरूआ चूर्णिल आसिता तथा फल मक्खी के लिये मध्यम रोधी
लक्ष्मी – 27 (सिंचित)115-12015-18गेरुई / रतुआ अवरोधी
मदू आजाद – 1 (सिंचित )122-12516.30झुलसा अवरोधी
जवाहर अलसी – 6 (असिंचित)115-12011-13दहिया, उकठा, चूर्णिल आसिता एवं गेरूआ रोग के लिये प्रतिरोधी
जेएलएस – 73 (असिंचित)11210-11चूर्णिल आसिता, उकठा, अंगमारी एवं गेरूआ रोगो के लिये रोधी
श्वेता (सिंचित )130-13515-18गेरुई/ रतुआ अवरोधी तथा उकठा सहनशील मैदानी क्षेत्रों हेतु
कृषकों से अनुरोध है, की आप अपने क्षेत्र की नवीनतम और अधिकतम उत्पादन देने वाली किस्म उगायें

अलसी की खेती के लिए फसल पद्धति (Crop System for Linseed Cultivation)

एकल और मिश्रित पद्धति: अलसी की खेती वर्षा आधारित क्षेत्रों से खरीफ पड़त के बाद रबी में शुद्ध फसल के रूप में की जाती है। अनुसंधान परिणाम यह प्रदर्शित करते है, कि सोयाबीन-अलसी व उर्द-अलसी आदि फसल चक्रों से पड़त अलसी की तुलना में अधिक लाभ लिया जा सकता है। इसी प्रकार एकल फसल के बजाय अलसी की चना + अलसी (4:2) सह फसल के रूप में ली जा सकती है। अलसी (Linseed) की सह फसली खेती मसूर व सरसों के साथ भी की जा सकती है।

उतेरा पद्धति: असली की उतेरा पद्धति धान लगाये जाने वाले क्षेत्रों में प्रचलित है। धान की खेती में नमी का सदुपयोग करने हेतु धान के खेत में अलसी बोई जाती है। इस पद्धति में धान की खड़ी फसल में अलसी के बीज को छिटक दिया जाता है। फलस्वरूप धान की कटाई पूर्व ही अलसी का अंकुरण हो जाता है। संचित नमी से ही अलसी (Linseed) की फसल पककर तैयार की जाती है। अलसी की इस विधि को पैरा या उतेरा पद्धति कहते है।

अलसी की खेती के लिए बुवाई का समय (Sowing Time for Linseed Cultivation)

असिंचित क्षेत्रो में अक्टूबर के प्रथम पखवाड़े में तथा सिचिंत क्षेत्रो में नवम्बर के प्रथम पखवाड़े में बुवाई करनी चाहिये। उतेरा खेती के लिये धान कटने के 7 दिन पूर्व बुवाई की जानी चाहिये। जल्दी बोनी करने पर अलसी की फसल (Linseed Crop) को फली मक्खी और पाउडरी मिल्ड्यू आदि से बचाया जा सकता है।

अलसी की खेती के लिए बीजदर (Seed Rate for Linseed Cultivation)

अलसी की बुवाई 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से करनी चाहिये। कतार से कतार के बीच की दूरी 30 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 5 से 7 सेंटीमीटर रखनी चाहिये। बीज को भूमि में 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिये। उतेरा पद्वति के लिये 40 से 45 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर अलसी (Linseed) की बोनी हेतु उपयुक्त है।

अलसी की खेती के लिए बीज उपचार (Seed Treatment for Linseed Cultivation)

बुवाई से पूर्व बीज को कार्बेन्डाजिम की 2.5 से 3 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिये या ट्राइकोडरमा विरीडी की 5 ग्राम मात्रा या ट्राइकोडरमा हारजिएनम की 5 ग्राम और कार्बाक्सिन की 2 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित कर बुवाई करनी चाहिये।

अलसी की खेती के लिए खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizers for Cultivation)

मिट्टी परीक्षण अनुसार उर्वरकों का प्रयोग अधिक लाभकारी होता है, यदि परिक्षण नही किया गया है, तो 7 से 8 टन प्रति हेक्टेयर गली सड़ी गोबर की खाद आखिरी जुताई में मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें। इसके साथ असिंचित क्षेत्रों हेतु नत्रजन 50 किलोग्राम, फास्फोरस 40 किलोग्राम, पोटाश 40 किलोग्राम तथा सिंचित क्षेत्रों हेतु नत्रजन 100 किलोग्राम, फास्फोरस 60 किलोग्राम, पोटाश 40 किलोग्राम की आवश्यकता पड़ती है।

असिंचित दशा में नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश की पूरी मात्रा तथा सिंचित दशा में नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय 2 से 3 सेंटीमीटर बीज के नीचे देना चाहिए, तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा सिंचित दशा पहली निराई गुड़ाई और सिंचाई के समय देनी चाहिए।

अलसी की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Crop)

अलसी (Linseed) की खेती प्रायः असिंचित दशा में करते है, लेकिन जहाँ पर सिंचाई की सुविधा होती है। वहां दो सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है, पहली फूल आने पर तथा दूसरी सिंचाई दाना बनाते समय करने से उपज में बढोत्तरी होती है।

अलसी की फसल में खरपतवार रोकथाम (Weed Control in Linseed Crop)

अलसी की फसल (Linseed Crop) में खरपतवारों की रोकथाम के लिए पेंडीमेथालीन 30 ईसी 3.3 लीटर मात्रा 900 से 1000 लीटर पानी में मिलाकर बुवाई के बाद एक या दो दिन के अन्दर छिडकाव करना चाहिए, जिससे की खरपतवारों का जमाव न हो सके। क्योंकि इसमे रबी की फसल के समय के सभी खरपतवार उगते है, और आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई करते रहें।

अलसी की फसल में रोग नियंत्रण (Disease Control in Linseed Crop)

अल्टरनेरिया झुलसा रोग: इस रोग का प्रकोप पौधों के सभी भागों पर होता है, सर्वप्रथम पत्तियों के ऊपरी सतह पर गहरे कत्थई रंग के गोल धब्बे रूप में लक्षण दिखाई पड़ते है, जो छल्लेदार होते है। यह रोग ऊपर की ओर बढ़कर तने शाखाओं, पुष्पक्रमों और फलियों को भी प्रभावित करता है। रोग की उग्र अवस्था में फलियां काली पड़कर मर जाती हैं और हल्का सा झटका लगने से टूट कर गिर जाती हैं।

नियंत्रण के उपाय:

  1. बीज को 2.5 ग्राम थीरम प्रति किग्रा बीज की दर से शोधित करके बोयें।
  2. बुवाई नवम्बर के प्रथम सप्ताह में करें।
  3. गरिमा, श्वेता, शुभ्रा, शिखा, शेखर तथा पद्मिनी प्रजातियां बोयें।
  4. खड़ी फसल में मैकोजेब 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 40-50 दिन पर छिड़काव करें। दूसरा और तीसरा छिड़काव 15 दिनों के अन्तराल पर करें।

रतुआ या गेरूई रोग: इस रोग में पत्तियों, पुष्प, शाखाओं तथा तने पर रतुआ के नारंगी रंग के फफोले दिखाई देते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए मैकोजेब 2.5 किग्रा अथवा घुलनशील गंधक 3 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

उकठा रोग: रोग ग्रसित पौधों की पत्तियां नीचे से ऊपर की ओर पीली पड़ने लगती हैं तथा बाद में पूरा पौधा सूख जाता है। इस रोग के बचाव के लिए दीर्घ अवधि का फसल चक्र अपनायें।

बुकनी रोग: इस रोग में पत्तियों पर सफेद चूर्ण सा फैल जाता है और बाद में पत्तियां सूख जाती है। इसकी रोकथाम के लिए घुलनशील गंधक 3 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

अलसी की फसल में कीट नियंत्रण (Pest Control in Linseed Crop)

गालमिज: नवजात मैगट सफेद पारदर्शी एवं पीले धब्बेयुक्त होते हैं जो पूर्ण विकसित होने पर गहरे नारंगी रंग के हो जाते हैं । प्रौढ़ कीट गहरे नारंगी रंग की छोटी मक्खी होती है। इसकी छोटी गिडारें फसल की खिलती कलियों के अन्दर के पुंकेसर का खाकर नुकसान पहुँचाती हैं जिससे फलियों में दाने नहीं बनते हैं।

नियंत्रण के उपाय:

  1. गर्मी की गहरी जुताई से गालमिज की सूंडियां मर जाती है।
  2. गालमिज की अवरोधी प्रजातियां जैसे नीलम, गरिमा, श्वेता आदि का बुवाई के लिए चयन करना चाहिए।
  3. बुवाई अक्टूबर के तीसरे सप्ताह तक अवश्य कर देना चाहिए।
  4. चना, सरसों एवं कुसुम के साथ सहफसली करने से गालमिज का प्रकोप कम हो जाता है।
  5. संतुलित और संस्तुत उर्वरकों का ही प्रयोग करें।
  6. प्रकाश प्रपंच लगाकर प्रौढ़ मक्खियों को आकति कर मारा जा सकता है।
  7. कलियां बनना प्रारम्भ होते ही सप्ताह के अन्तराल पर सर्वेक्षण करते रहना चाहिए तथा 5 प्रतिशत प्रकोपित कलियां पाये जाने पर मिथाइल-ओ-डिमेटान 25 ईसी 1 लीटर, मोनोक्रोटोफास 36 ईसी 750 मिली मात्रा को 750-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

अलसी फसल की कटाई और उपज (Harvesting and Yield of Crop)

कटाई: फसल की कटाई जब फसल पूर्ण रूप से सूखकर पाक जाए तभी कटाई करनी चाहिए। कटाई के तुरंत बाद मड़ाई कर लेनी चाहिए, जिससे की बीजों का नुकसान न हो।

उपज: अलसी की फसल (Linseed Crop) की उपरोक्त विधि से खेती करने पर, अलग-अलग किस्मों की पैदावार अलग-अलग होती है, प्रथम बीज उद्देशीय सिंचित दशा में 18 से 23 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा असिंचित दशा में 13 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और दो-उद्देशीय दशा में 20 से 23 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और 13 से 17 प्रतिशत तेल व 38 से 45 प्रतिशत तक रेशा पाया जाता है।

अलसी से रेशा प्राप्त करने की तकनीक (Technique of Obtaining Fiber From Flax)

सूखे तने से रेशा प्राप्त करने की तकनीक:

  1. फसल की कटाई भूमि स्तर से करें।
  2. बीजों की मड़ाई करके अलग कर लें तत्पश्चात तने को जहाँ से शाखाओं फूटी हों, काटकर अलग करें, फिर कटे तने को छोटे-छोटे बण्डल बनाकर रख लें।
  3. अब सूखे कटे तने बण्डल को सड़ाने के लिये अलग रखें।
  4. तनों को सड़ाने के लिये निम्न लिखित विधि अपनायें।

हाथ से रेशा निकालने की विधि: अच्छी तरह सूखे सड़े तने की लकड़ी की मुंगरी से पीटिए-कुटिए। इस प्रकार तने की लकड़ी टूटकर भूसा हो जाएगी, जिसे झाड़कर व साफ कर रेशा आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।

मशीन से रेशा निकालने की विधि:

  1. सूखे सड़े तने के छोटे-छोटे बण्डल मशीन के ग्राही सतह पर रख कर मशीन चलाते हैं, इस प्रकार मशीन से दबे या पिसे तने मशीन के दूसरी तरफ से बाहर निकलते रहते हैं।
  2. मशीन से बाहर हुये दबे या पिसे तने को हिलाकर व साफ कर रेशा अलग कर लेते हैं।
  3. यदि तने की पिसी लकड़ी एक बार में पूरी तरह रेशे से अलग न हो तो पुनः उसे मशीन में लगाकर तने की लकड़ी को पूरी तरह से अलग कर लें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)

अलसी का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन सा है?

मध्य प्रदेश भारत में अलसी (Linseed) का अग्रणी उत्पादक है।

अलसी का भारतीय नाम क्या है?

अलसी (Linseed) को हिंदी, गुजराती और पंजाबी में अलसी और तमिल में अली विदाई के नाम से जाना जाता है। मराठी में इसे जवास, अलशी और अलसी के नाम से भी जाना जाता है।

क्या अलसी उगाना आसान है?

यह फसल तेजी से बढ़ती है, इसे पानी की जरूरत नहीं होती, लेकिन जब तक पौधे खरपतवारों से मुकाबला करने के लिए लंबे नहीं हो जाते, तब तक हाथ से निराई-गुड़ाई की जरूरत होती है।

अलसी के मुख्य कीट कौन से है?

दीमक, कटवर्म, वायरवर्म, सेमीलूपर, लीफ माइनर, बड फ्लाई और ग्राम पॉड बोरर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं और काफी नुकसान पहुंचाते हैं।

अलसी की खेती के लिए कौन सी मिट्टी सबसे अच्छी है?

अलसी (Linseed) कई तरह की मिट्टी में पनपती है, लेकिन एक ज़रूरी शर्त है, उच्च उर्वरता। फसल के लिए सबसे अच्छी मिट्टी दोमट होती है, जिसमें कार्बनिक पदार्थ भरपूर मात्रा में हों, अच्छी जल निकासी हो।

सन और अलसी के बीच क्या अंतर है?

सन और अलसी (Linseed) के बीच एकमात्र अंतर पौधों में ही है। सन दोनों पौधों में से लंबी होती है और इसमें अलसी के पौधे की तुलना में कम शाखाएँ होती हैं। अलसी के पौधे में ज़्यादा बीज होते हैं। खाद्य पदार्थों के रूप में, सन और अलसी एक ही चीज़ हैं।

अलसी को किस तरह की जलवायु की आवश्यकता होती है?

बेहतर फाइबर उत्पादन के लिए दोहरे उद्देश्य वाली अलसी (Linseed) को 10º C से 27º C तक के हल्के तापमान, 155 से 200 मिमी तक की वर्षा और बढ़ते मौसम के दौरान उच्च दोपहर की आर्द्रता (60-65%) के साथ ठंडी आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। फूल आने के दौरान सूखा और लगभग 32ºC का उच्च तापमान उपज को कम करता है।

अलसी कौन से महीने में उगाई जाती है?

असिंचित क्षेत्रो में अक्टूबर के प्रथम पखवाडे़ में और सिचिंत क्षेत्रो में नवम्बर के प्रथम पखवाडे़ में बुवाई करनी चाहिये। उतेरा खेती के लिये धान कटने के 7 दिन पूर्व बुवाई की जानी चाहिये। जल्दी बोनी करने पर अलसी (Linseed) की फसल को फली मक्खी तथा पाउडरी मिल्डयू आदि से बचाया जा सकता है।

Related Posts

Barley Farming in Hindi: जानें जौ की खेती कैसे करें
Barley Farming in Hindi: जानें जौ की खेती कैसे करें
Celery Farming in Hindi: जाने अजवाइन की खेती कैसे करें
Celery Farming in Hindi: जाने अजवाइन की खेती कैसे करें
Mustard Farming in Hindi: जानें सरसों की खेती कैसे करें
Mustard Farming in Hindi: जानें सरसों की खेती कैसे करें
Pea Cultivation in Hindi: जानें मटर की खेती कैसे करें
Pea Cultivation in Hindi: जानें मटर की खेती कैसे करें

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

  • Facebook
  • LinkedIn
  • Twitter

Recent Posts

  • Plum Cultivation in Hindi: जाने बेर की बागवानी कैसे करें
  • Water Chestnut Farming: सिंघाड़े की बागवानी कैसे करें
  • Pineapple Farming in Hindi: अनानास की बागवानी कैसे करें
  • Grapes Cultivation in Hindi: अंगूर की बागवानी कैसे करें
  • Sweet Lime Farming in Hindi: मौसंबी की बागवानी कैसे करें

Footer

Copyright © 2025 Krishak Jagriti

  • Blog
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Terms & Conditions
  • Sitemap
  • Contact Us