
Kodo Millet Farming in Hindi: कोदो की खेती भारतीय कृषि और खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह एक सूखा-प्रतिरोधी फसल है, जो अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पनपती है, जिससे यह अनियमित वर्षा पैटर्न वाले क्षेत्रों में किसानों के लिए एक मूल्यवान संसाधन बन जाती है।
इसके अतिरिक्त, कोदो बाजरा का पोषण मूल्य इसे भारतीय आहार का एक अनिवार्य हिस्सा बनाता है, जो खाद्य विविधता और स्थिरता में योगदान देता है। इस लेख का उदेश्य भारत में कोदो की खेती की पद्धितयों, समृद्ध इतिहास की खोज से लेकर आधुनिक कृषि तकनीकों और सरकारी सहायता का विश्लेषण करने तक और कृषि में इसके योगदान का व्यापक अवलोकन प्रदान करना है।
कोदो के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for Kodo)
कोदो बाजरा (Kodo Millet) गर्म, शुष्क जलवायु में पनपता है, खास तौर पर शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में जहां कम से मध्यम वर्षा (400-500 मिमी सालाना) और तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से 35 डिग्री सेल्सियस (68 डिग्री फ़ारेनहाइट से 95 डिग्री फ़ारेनहाइट) के बीच होता है। यह अत्यधिक सूखा-सहिष्णु है और खराब मिट्टी में भी उग सकता है।
कोदो के लिए भूमि का चयन (Selection of land for Kodo)
कोदो को विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। लेकिन इसकी खेती के लिए, हल्की और अच्छी जल निकासी वाली भूमि सबसे उपयुक्त होती है, जहाँ पानी जमा नहीं होता। ऐसी भूमि जहाँ अन्य फसलें नहीं उग पातीं, वहाँ भी कोदो सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है। ऐसी भूमि जहाँ पानी जमा होता है, कोदो (Kodo) के लिए उपयुक्त नहीं होती।
कोदो के लिए खेत की तैयारी (Field Preparation for Kodo)
कोदो (Kodo) के लिए मानसून आने से पहले खेत की जुताई करते हैं। मानसून के प्रारम्भ में खेत को दो-तीन बार हल से जोतने के बाद पाटा चलाना चाहिए, ताकि मृदा में पर्याप्त नमी बनी रहे। मिट्टी का पीएच 5.5 और 7.0 के बीच सुनिश्चित करें, और उर्वरता बढ़ाने के लिए कार्बनिक पदार्थ और खाद डालें, इसके लिए खेत में 5-7.5 टन प्रति हेक्टेयर देसी खाद मिलाएं।
कोदो की उन्नत किस्में (Improved varieties of Kodo)
कोदो (Kodo) की कुछ उन्नत किस्मों में जवाहर कोदो- 439, जवाहर कोदो- 41, जवाहर कोदो- 62, जवाहर कोदो- 76, जीपीयूके- 3, इंदिरा कोदो- 1, सीजी कोदो- 2, सीजी कोदो- 3, जेके- 41, जेके- 98, जेके-106, इंदरा कोदो – 1, टीएनएयू- 86 और डीपीएस- 9-1 आदि शामिल है।
कोदो की बुवाई का समय और तरीका (Time and method of sowing)
बुवाई का समय: कोदो (Kodo), जो कि एक बारिश आधारित फसल है, की बुवाई का सबसे अच्छा समय 15 जून से जुलाई के अंत तक होता है।
बीज की मात्रा: कोदो की बुवाई के लिए, कतारों में बुवाई के लिए 8-10 किलो बीज प्रति हेक्टेयर और छिटकाव विधि से बुवाई के लिए 12-15 किलो बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।
बुवाई का तरीका: कोदो के बीज को 3-4 सेंमी गहरा एवं इसके साथ पौधों से पौधों की दूरी 8-10 सेंमी होनी चाहिए और कतारों के बीच 20-25 सेमी की दूरी रखें। बुवाई से पहले बीजों को थायरम या मेंकोजेब से उपचारित करें।
कोदो के लिए खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizer for Kodo)
कोदो (Kodo) के लिए 5 से 10 टन गोबर की खाद प्रति हैक्टर की दर से मृदा में प्रयोग करने पर मृदा की गुणवत्ता जैसे – जलधारण क्षमता, रन्ध्रावकाश, पोषक तत्व की उपलब्धता आदि में वृद्धि होती है। रासायनिक उर्वरकों की बात करें, तो 40 किग्रा नाइट्रोजन, 20 किग्रा फॉस्फोरस एवं 20 किग्रा पोटेशियम की आवश्यकता होती है। कुल नाइट्रोजन का 1/3 भाग और पोटाश तथा फॉस्फोरस का पूरा भाग बुआई के समय खेत में प्रयोग करें तथा नाइट्रोजन का शेष भाग 30 एवं 60 दिनों बाद प्रयोग करना चाहिए।
कोदो में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Kodo)
कोदो की फसल (Kodo Crop) में टिलरिंग और फूल आने की अवस्थाओं में सिंचाई करना आवश्यक होता है। पहली सिंचाई बुआई के 20-25 दिनों बाद करनी चाहिए। यदि वर्षा नहीं होती है, तो 12-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करना आवश्यक हो जाता है।
कोदो में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in Kodo)
कोदो (Kodo Millet) पौधों के विकास की प्रारम्भिक अवस्था में खरपतवारों का नियंत्रण करना आवश्यक होता है। यह मुख्य फसल में प्रयोग किये गए पोषक तत्व के साथ प्रतिस्पर्धा करती है। प्रारंभिक अवस्था में मुख्य फसल की बढ़वार को खरपतवार रोक देते हैं। इसके लिए 20-25 दिनों बाद निराई-गुड़ाई करें, जिससे मृदा में खरपतवार घनत्व कम हो सके और वायु का संचार सुचारू रूप से मृदा में होने से पौधों के विकास में तेजी से आ सके।
रासायनिक विधि से खरपतवार प्रबंधन के लिये बुआई से 1-2 दिन बाद आइसोप्रोट्यूरॉन खरपतवारनाशी को 0.1 किग्रा सक्रिय तत्व की मात्रा को 500-600 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें। खरपतवारों की समस्या ज्यादा होने की स्थिति में बुआई से 20-25 दिनों बाद 2-4 डी. सोडियम सॉल्ट नामक खरपतवारनाशी 0.75 किग्रा सक्रिय तत्व की मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करना चाहिये।
कोदो में कीट और रोग नियंत्रण (Pest and disease control)
तना मक्खी: 500 लीटर पानी में 2.5 लीटर एजाडिरेक्टीन को मिलाकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें या 500 लीटर पानी में इमिडाक्लोप्रिड 150 मिली या डायमिथोएट 30 ईसी 750 मिली की मात्रा को पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।
कोदो का धारीदार रोग: इस रोग से बचाव के लिए कोदो (Kodo) बीज बुआई के 40 से 45 दिनों पश्चात 500 लीटर पानी में एक कि.ग्रा. मैंकोजेब दवा को मिलाकर प्रति हैक्टर छिड़काव करना चाहिए।
मृदुलरोमिल रोग (डाउनी मिल्ड्यू): इस रोग से बचाव के लिए बीज बुआई के 40 से 45 दिनों पश्चात 500 लीटर पानी में डायथेन जेड – 78, 1.5 किग्रा की मात्रा का घोल बनाकर प्रति हैक्टर छिड़काव करना चाहिए।
कोदो की कटाई और उपज (Harvesting and Yield of Kodo)
बालियों की कटाई करने के उपरान्त इन्हें सुखाकर तथा मड़ाई करके दानों को अलग कर लेना चाहिए। एक हैक्टर से औसतन उत्पादन 15-19 क्विंटल दाना एवं 30-40 क्विंटल चारे की उपज प्राप्त की जा सकती है। भण्डारण के समय इसके कोदो बाजरा (Kodo Millet) दानों में नमी 12 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिये।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
कोदो की खेती के लिए खेत की तैयारी बहुत महत्वपूर्ण है। मॉनसून से पहले खेत की जुताई करना आवश्यक है। जुताई के बाद, मॉनसून शुरू होते ही खेत को दो-तीन बार हल से जोतने के बाद पाटा चलाना चाहिए, ताकि मिट्टी में पर्याप्त नमी बनी रहे। यह प्रक्रिया मिट्टी को अच्छी तरह से तैयार करती है और फसल की बेहतर वृद्धि सुनिश्चित करती है। कोदो (Kodo) की बुवाई कतारों में करनी चाहिए।
कोदो (Kodo) को ज्यादातर गर्म और शुष्क जलवायु में उगाया जाता है। यह अत्यधिक सूखा सहनशील है और इसलिए, इसे उन क्षेत्रों में उगाया जा सकता है जहाँ वर्षा कम और अनियमित होती है। यह 40 से 50 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह से पनपता है।
कोदो बाजरा (Kodo Millet) की बुवाई के लिए सबसे अच्छा समय जून के अंत से जुलाई के पहले सप्ताह तक है, जब वर्षा शुरू हो जाती है।
कोदो (Kodo) की खेती के लिए कुछ अच्छी किस्मों में जवाहर कोदो- 439, जवाहर कोदो- 41, जवाहर कोदो- 62, जवाहर कोदो- 76 और जीपीयूके- 3 आदि शामिल है।
कोदो की फसल (Kodo Crop) के लिए, प्रति हेक्टेयर 40 किलो नत्रजन और 30 किलो स्फुर उर्वरक का उपयोग करने से उपज में वृद्धि होती है। बुवाई के समय आधी मात्रा में नत्रजन और पूरी मात्रा में स्फुर का प्रयोग करें और बाकी की आधी मात्रा बुवाई के तीन सप्ताह बाद, निंदाई के बाद डालें।
कोदो (Kodo) की फसल में सिंचाई, बुवाई के समय, शाखाएं बनने पर, फूल आने पर और फल आने पर करनी चाहिए। बुवाई के 25-30 दिन बाद, 45-50 दिन बाद और 70-80 दिन बाद सिंचाई करें।
कोदो की फसल (Kodo Crop) से प्रति हेक्टेयर 15 से 20 क्विंटल तक उपज प्राप्त होती है, यह कम लागत में अच्छा मुनाफा देने वाली फसल है।





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