
Guava Gardening in Hindi: अमरूद की खेती भारत के कृषि परिदृश्य में एक प्रमुख स्थान रखती है, जो देश की अर्थव्यवस्था और पोषण में महत्वपूर्ण योगदान देती है। अपने समृद्ध स्वाद, जीवंत रंगों और उच्च पोषण मूल्य के लिए जाना जाने वाला अमरूद न केवल उपभोक्ताओं के बीच एक लोकप्रिय फल है, बल्कि किसानों के लिए एक आकर्षक फसल भी है। विभिन्न जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल किस्मों की विविधता के साथ, भारत वैश्विक स्तर पर अमरूद के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है।
यह लेख भारत में अमरूद की खेती के आवश्यक पहलुओं पर प्रकाश डालता है, जिसमें आदर्श बढ़ती परिस्थितियों और लोकप्रिय किस्मों से लेकर प्रभावी खेती के तरीकों और बाजार के रुझानों तक सब कुछ शामिल है। अमरूद (Guava) की खेती की पेचीदगियों को समझकर, महत्वाकांक्षी और स्थापित दोनों किसान अपनी उत्पादन तकनीकों को बढ़ा सकते हैं और इस स्वादिष्ट फल की बढ़ती मांग का लाभ उठा सकते हैं।
अमरूद के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for guava)
अमरूद उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पनपता है, जहाँ वार्षिक वर्षा 100 सेमी से कम होती है, खास तौर पर बरसात के मौसम (जून-सितंबर) के दौरान। यह 23 डिग्री सेल्सियस और 28 डिग्री सेल्सियस के बीच के तापमान को पसंद करता है और सूखे को सहन कर सकता है, लेकिन गंभीर ठंढ के प्रति संवेदनशील है। अलग-अलग सर्दियों वाले क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता वाले अमरूद (Guava) पैदा होते हैं। अमरूद को समुद्र तल से 1500 मीटर की ऊँचाई पर उगाया जा सकता है।
अमरूद के लिए मृदा का चयन (Soil selection for guava)
अमरूद की बागवानी के लिए विभिन्न प्रकार की मिट्टी उपयुक्त है, लेकिन सबसे अच्छी मिट्टी बलुई-दोमट मिट्टी है। यह मिट्टी अच्छी जल निकासी प्रदान करती है और पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व भी प्रदान करती है। अमरूद (Guava) के पौधों के लिए मिट्टी का पीएच स्तर 4.5 से 8.2 के बीच होना चाहिए। यदि मिट्टी बहुत अम्लीय या क्षारीय है, तो अमरूद की खेती के लिए इसे सुधारना आवश्यक हो सकता है। दलदली, निचली या जलभराव वाली मिट्टी से बचें, जिसमें कठोर या उच्च जल स्तर हो।
अमरूद के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for guava)
अमरूद (Guava) की बागवानी के लिए खेत की तैयारी के लिए, सबसे पहले खेत को गहरी जुताई करके खरपतवार और पुरानी फसलों के अवशेषों को निकालना चाहिए। खेत को समतल और जल निकासी के लिए उपयुक्त बनाना चाहिए, और 2-3 बार जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बनाना चाहिए।
भुरभुरी मिट्टी में पौधों की वृद्धि अच्छी होती है और फसल का उत्पादन भी बेहतर होता है। अमरूद के पौधों के लिए खेत को तैयार करने के बाद, खाद डालना भी आवश्यक है। आप गोबर की खाद, वर्मीकॉम्पोस्ट या अन्य जैविक खाद का उपयोग कर सकते हैं। खाद डालने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं।
अमरूद की उन्नत किस्में (Improved varieties of guava)
अमरूद की किस्में विविध हैं, जिनमें फलों के रंग, स्वाद और बनावट में उल्लेखनीय अंतर हैं। कुछ लोकप्रिय प्रकारों में इलाहाबाद सफेदा (सफेद गूदा), लाल मलेशियाई (लाल छिलका और गुलाबी गूदा) और स्ट्रॉबेरी अमरूद (मीठा, हल्का स्वाद) शामिल हैं। अन्य उल्लेखनीय किस्मों में एल- 49 (लखनऊ-49), ललित (उच्च उपज देने वाला गुलाबी गूदा) और माधुरी शामिल हैं।
ये अमरुद (Guava) की किस्में अपनी उच्च उपज, अच्छी गुणवत्ता और भारत के विभिन्न क्षेत्रों के लिए उपयुक्तता के लिए जानी जाती हैं। सफेद जाम, कोहिर सफेदा और अर्का अमूल्य जैसी कुछ संकर किस्में भी विकसित की गई हैं।
अमरूद की बुवाई का समय (Guava sowing time)
अमरूद (Guava) के पेड़ लगाने का सबसे अच्छा समय बरसात का मौसम है, जो आमतौर पर अगस्त से सितंबर तक होता है। हालाँकि, कुछ गाइड सुझाव देते हैं कि रोपण फरवरी और मार्च में भी किया जा सकता है। अमरूद के पेड़ उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु के लिए सबसे उपयुक्त हैं, और उन्हें साल के किसी भी समय लगाया जा सकता है, लेकिन गर्म महीने बेहतर होते हैं। रोपण के मौसम के बारे में अधिक जानकारी इस प्रकार है, जैसे-
फरवरी-मार्च: यह समय अमरूद (Guava) के पौधों की रोपाई के लिए बहुत अच्छा होता है, खासकर जब तापमान कम और नमी उचित होती है।
अगस्त-सितंबर: बारिश के मौसम के बाद यह समय भी रोपाई के लिए उपयुक्त होता है, क्योंकि मिट्टी में नमी अच्छी होती है।
जून-अगस्त: कुछ क्षेत्रों में, अमरूद (Guava) के पौधे बारिश के मौसम के दौरान भी लगाए जाते हैं, क्योंकि इस समय मिट्टी में नमी अधिक होती है।
अमरूद पौधों का प्रवर्धन (Propagation of Guava Plants)
अमरूद का प्रसारण मुख्यत: बीज द्वारा किया जाता है, लेकिन बीजों से बने पौधे अधिक सफल नहीं रहते हैं, अतः इसके व्यवसायिक प्रसार और इनके अच्छी जातियों के गुणों को सुरक्षित रखने के लिए आम की भाँति भेटकलम (इनाचिंग) द्वारा नए पौधे तैयार करना सबसे अच्छी विधि हैं।
यदि अमरुद (Guava) का प्रसारण बीज द्वारा करना हो तो इसके लिए बीज मार्च या जुलाई में बो देना चाहिए। वानस्पतिक प्रसारण के लिए सबसे उतम समय जुलाई अगस्त है। अमरुद के वानस्पतिक प्रवर्धन के अनेकों तरीके हैं। जिनमे कुछ मुख्य तरीके इस प्रकार है, जैसे-
स्टुलिंग की तकनीक: यह तरीका अमरुद (Guava) के एक सामान जड वाले पौधों को जल्दी से गुणित करने के लिए अपनाया जाता है। सबसे पहले मूल पौधे को 2 वर्ष तक बढ़ने दिया जाता है। इसके बाद मार्च के महीने में उसको जमीन से 10-15 सेमी ऊँचाई से काट दिया जाता है। जब 20 – 35 सेमी ऊँचाई के नए तने उग आते हैं, तो प्रत्येक तने के आधार के पास उसकी छाल 2 सेमी चौड़े छल्ले के रूप में छील दी जाती है।
इस छिले हुए भाग पर 5000 प्रति दसलक्षांस (पीपीएम) वाले इंडाल ब्युटीरिक एसिड का लेनोलिन में पेस्ट बनाकर छाल के उतरे हुए भाग पर लेप लगा दिया जाता है। इसके बाद इन उपचारित प्ररोहों को मिट्टी से ढँक दिया जाता है, डेढ़ महीने में जड़ें निकल आती हैं। इन जड़ों वाले पौधों को डेढ़ महीने बाद अलग कर दिया जाता है, तथा इन्हें क्यारियों या गमलों में लगा दिया जाता है।
वेज प्रवर्धन की तकनीक: जब आप सांकुर का चयन कर ले तो उसके बाद मूलवृन्त को पॉलीथिन बैग की सतह से 15 से 20 सेमी की ऊंचाई से काटे देना चाहिये, मूलवृन्त के शीर्ष पर कटे भाग से 4 से 5 सेमी का गहरा लम्बवत चीरा बीचों बीच सावधानी से लगाया जाता है। पूर्व में तैयार सांकुर साख के आधार पर 4 से 5 सेमी दोनों तरफ से तिरछा नुकीला काटते हैं। उसके बाद सांकुर साखा को कटे हुए मूलवृन्त में डालकर तथा दबाकर प्लास्टिक स्ट्रिप से बांध दिया जाता है।
प्रवर्धन के तुरंत बाद सांकुर को सफेद पॉलीथिन कैप को पहनाकर आधार को रबर बैंड से बांध दिया जाता है। जब 10 से 15 दिनों में कलिका का फुटाव होने लगे तो पॉलीथिन कैंप को हटा देना चाहिए, ताकि जोड़ों पर गाँठ न पड़े। अमरूद (Guava) के पौधों की लंबाई 5 से 6 माह में 40 से 50 सेमी हो जाती है और पौधे रोपण हेतु तैयार हो जाते है।
अमरूद के पौधों की रोपाई (Planting of Guava Plants)
पौध रोपण से पूर्व भूमि को अच्छी तरह जुताई कर के समतल कर लेना चाहिए। इसके पश्चात् रेखांकन कर पौधे लगाने के लिये निश्चित दूरी पर गड्ढा तैयार करते हैं, जैसे अमरुद के लिए 6.0 गुना 6.0 मीटर की दूरी पर 60 गुना 60 सेमी के गड्ढे तैयार कर लें और फिर इन गड्ढों को 15 – 20 किग्रा गोबर की खाद, 500 ग्राम सुपर फॉस्फेट, 250 ग्राम पोटाश तथा 20 ग्राम क्लोरपाईरीफोस पाऊडर को अच्छी तरह से मिट्टी में मिला कर पौधे लगाने के 15-20 दिन पहले भर देते हैं।
इसके बाद जरूरत के अनुसार गड्ढा खोदकर उसके बीचों बीच अमरूद (Guava) का पौधा लगाकर चारों तरफ से अच्छी प्रकार मिट्टी दबाकर फिर हल्की सिंचाई कर देते हैं।
अमरूद की सघन बागवानी (Intensive gardening of guava)
इस पद्धति द्वारा प्रति इकाई क्षेत्रफल में पौधों कि संख्या बढ़ाते हुये रोपाई कर समय-समय पर वांछित शस्य क्रियाओं के साथ कटाई छटाई कर अधिक और अच्छे गुणों वाले फल की प्राप्ति करते हैं। अमरूद (Guava) की सघन बागवानी के बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त हुये हैं।
सघन रोपण में प्रति हैक्टेयर 500 से 5000 पौधे तक लगाये जा सकते हैं, तथा समय – समय पर कटाई – छँटाई करके और वृद्धि नियंत्रकों का प्रयोग करके पौधों का आकार छोटा रखा जाता है। इस तरह की बागवानी से 30 टन से 50 टन प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन लिया जा सकता है। जबकि पारम्परिक विधि से लगाये गये बगीचों का उत्पादन 15-20 टन प्रति हेक्टेयर होता है।
अमरूद में खाद और उर्वरक (Manure and fertilizer in guava)
अमरूद (Guava) में पोषक तत्व खींचने वाली जड़ें तने के कुछ ही दूरी पर लगभग 30 सेमी की गहराई में होती है। इसलिये खाद देते समय इस बात का ध्यान रखें, कि खाद, पेड़ के फैलाव में 15-20 सेमी की गहराई में थाला (रिंग) बनाकर दें। पूरी तरह से विकसित और 10 वर्ष या इससे अधिक आयु के पौधे को लगभग 50 से 60 किग्रा गोबर की अच्छी तरह से सड़ी खाद के साथ 01 किग्रा यूरिया, 1.9 किग्रा सिंगल सुपर फॉस्फेट और 850 ग्राम पोटाश प्रति वर्ष देनी चाहिए। सभी सूखी हुई, रोग ग्रस्त और कीटग्रस्त टहनियों को तोड़कर निकाल देना चाहिए।
अमरूद में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Guava)
सिंचाई करने के लिए मिट्टी में उपस्थित नमी को ध्यान में रखना चाहिए। अमरुद के (Guava) पौधों में सिंचाई शरद ऋतु में 15 दिन के अंतर पर तथा गर्मियों में 7 दिन के अंतर पर करते रहना चाहिए। जब कि फल देने वाले पौधे से फल लेने के समय को ध्यान में रखकर सिंचाई करनी चाहिए। ध्यान रहे फूल आने के बाद सिंचाई या किसी प्रकार का छिड़काव ना करें अन्यथा सभी फूल झड़ जायेंगे, फल कम लगेंगे, अंतत: उपज में कमी आ जाएगी।
अमरूद में मल्चिंग प्रबंधन (Mulching Management in Guava)
अमरूद (Guava) के पेड़ों के लिए मल्चिंग, मिट्टी को कवर करने की एक प्रक्रिया है जो कई लाभ प्रदान करती है। इसमें मिट्टी की सतह को जैविक या अजैविक सामग्री से ढंकना शामिल है। मल्चिंग अमरूद के पेड़ों को कई तरह से लाभ पहुंचाती है, जैसे कि नमी बनाए रखना, खरपतवारों को नियंत्रित करना, मिट्टी के तापमान को बनाए रखना, और मिट्टी के कटाव को रोकना।
इसके लिए खासकर असिंचित क्षेत्रों में वर्षा के जल को थाला बना कर सिंचाई करें तथा सितम्बर माह में घास एवं पत्तियाँ बिछा कर नमी को संरक्षित करें। इससे उत्पादन में वृद्धि होकर उत्तम गुण वाले फल प्राप्त होंगे । मल्चिंग मटेरियल में वैसे चीजों का भी उपयोग कर सकते हैं जो उस क्षेत्र में आसानी से कम कीमत पर प्राप्त हो जाये |
अमरूद के साथ अंतरवर्तीय फसल (Intercropping with Guava)
अमरूद (Guava) के साथ, आप कई तरह की फसलों को एक साथ उगा सकते हैं। अंतरवर्तीय फसलें अमरूद के बाग से अतिरिक्त आय प्रदान कर सकती हैं और मिट्टी की उर्वरता को भी सुधार सकती हैं। इसके लिए प्रारंभिक दो-तीन वर्षों में बगीचों के रिक्त स्थानों में जब तक पौधों में बढ़वार ज्यादा होकर छाया न देने लगे, रबी में मटर, फ्रैंचबीन, गोभी और मेथी, खरीफ में लोबिया, ज्वार, उर्द, मूँग एवं सोयाबीन तथा जायद (गर्मी की फसल) में कद्दू वर्गीय सब्जियाँ की खेती कर सकते हैं।
अमरुद में फलन उपचार (Fruiting treatment in amarood)
अमरुद (Guava) में मुख्यत: दो फलत आती हैं। पहली फलत बरसात में तथा दूसरी फलत सर्दियों में आती है। बरसात (अम्बे बहार) के मौसम के फल फीके और निम्न स्तर के होते हैं, और इस मौसम के फसल में कीट और रोगों का प्रकोप भी अधिक होता है।
इसलिए इस मौसम में फल न लें तो बेहतर है, जब कि सर्दी के मौसम में फल उच्च कोटि के होते हैं और इन पर फल वाली मक्खी का भी प्रभाव कम होता है। अत: सर्दी (मृग बहार) की फसल लेने की सिफारिश की जाती है। वर्षाकालीन फसल को रोक कर ठंड की फसल लेने के लिये निम्नलिखित उपाय करें,जैसे-
फरवरी से मई तक पौधों को पानी नहीं दें। पानी तब तक न दिया जाये जब तक कि मार्च में आये हुए फूल पानी की कमी से गिर न जाएँ।
जड़ की कटाई-छंटाई कर या जड़ को 20-25 वदिनों के लिए मिट्टी से बाहर कर (root exposure) सकते है।
अमरुद (Guava) के फूलों को गिराकर चाहे हाथ से (manualy ) हो या किसी रसायन के उपयोग से।
यूरिया का 10 प्रतिशत घोल का छिड़काव एक बार या 100-200 पीपीएम नेफ्थलीन ऐसेटिक एसिड के घोल का छिडकाव 15 दिन के अंतराल पर दो बार कर अनचाहे फल या पत्तियाँ गिराये जा सकते हैं।
अमरुद के बाग में रोग नियंत्रण (Disease control inguava orchard)
ऐसे तो अमरूद (Guava) में कई प्रकार के बीमारियाँ होती है, जैसे- उकठा, एन्थ्रेक्नोज, पौध अंगमारी, तना कैन्कर, फल चित्ती एवं स्कैब आदि। लेकिन सर्वाधिक नुकसान उकठा रोग से होता हैं। कुछ प्रमुख रोगों के नियंत्रण के उपाय इस प्रकार है, जैसे-
उकठा: इस रोग के लक्षण सर्वप्रथम वर्षांत में दिखाई देते हैं। रोगी अमरुद (Guava) के पेड़ों की पत्तियाँ भूरे रंग की होती हैं, और पेड़ मुरझा जाता है। प्रभावित पेड़ों की डालियाँ एक-एक करके सूखने लगती हैं।
नियंत्रण: इस रोग से ग्रसित पौधों या पेड़ों के गड्ढों की मिट्टी को एक ग्राम कार्बेन्डाजिम या बेनलेट प्रति लीटर पानी में घोल कर (20 लीटर प्रति गड्ढा) उपचारित करें। इस रोग से प्रभावित पौधे को फौरन हीं उखाड़ कर जला दें और ध्यान रखे की पौधों के जड़ो में पानी नहीं जमें।
एन्थ्रेक्नोज: सामान्य रूप से यह फलों को बहुत अधित प्रभावित कर नुकसान करने वाला रोग है। इसके लक्षण ऐसे जगहों पर ज्यादा दिखाई देते हैं, जहां उच्च वर्षा और आर्द्रता मौजूद हो। इस रोग के लक्षण को वृक्ष के परिपक्व फलों पर देखा जाता है। इसके मुख्य लक्षण में गहरे काले रंग का धँसा हुआ, घाव जैसे चोट के निशान बन जाते हैं। जैसे जैसे बीमारी बढ़ती है, छोटे धब्बेदार घावों में बड़े नेक्रोटिक पैच बन फल के गूदे को नुकसान पहुँचाता है।
प्रबन्धन: इस रोग की रोक थाम के लिए टोप्सिन एम या कैप्टान 75 % डब्लूएस 2.5 ग्राम प्रति लीटर या मन्कोजेब 75 % डब्लूएस 2.5 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव की संस्तुति की गई है।
अमरुद के बाग में कीट नियंत्रण (Pest control in amarood orchard)
फल मक्खी: ये मक्खी मुख्यत: बरसात वाले अमरुद (Guava) के फलों में अंडे देती है व इनमें निकली इल्लियाँ गूदा खाती हैं। परिणामस्वरुप फल सड़ जाते हैं। ऐसे फल पेड़ से टूट कर गिर जाते हैं और खाने योग्य नहीं रहते हैं।
नियंत्रण: इस कीट के रोकथाम हेतु ग्रसित फलो को पेड़ से तोड़ कर अलग कर देना चाहिए और फिर उबले हुए नीम के पत्ते का पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।
छाल भक्षक इल्ली: अमरूद (Guava) में सबसे ज्यादा नुकसान इस इल्ली के द्वारा होता है, इस कीट की इल्ली तने का छाल खाती है तथा तने में छेद कर देती है। छाल खाने के बाद एक प्रकार का काला अवशेष छोड़ती है, जो कि प्रभावित हिस्सों पर चिपक जाता है। छाल के आस पास जाले का निर्माण भी कर देती है।
नियंत्रण: इसकी रोकथाम के लिये मिट्टी के तेल या पेट्रोल या न्यूवॉन से भीगी रूई छेद में डालें और ऊपर से छेद के मुँह को गीली मिट्टी से बन्द कर दें।
फल छेदक: यह कीट बहुत बड़ी संख्या में अमरुद के फलो को खराब करती है। यह कीट अमरुद के फूलो पर अंडे देती है, जिससे निकली हुई इल्लियाँ फलो के भीतर जा कर उसके गुद्दे को खा जाती है, जिससे फल खराब हो जाते है।
नियंत्रण: इस कीट के रोकथाम हेतु अमरुद (Guava) के पेड़ पर फल लगते ही नीम के पत्ते को उबाल कर उसके पानी का पेड़ो पर छिड़काव करे।
अमरूद के फलों की तुड़ाई (Harvesting of Guava Fruit)
अमरूद के फलों की कटाई आम तौर पर तब की जाती है जब वे हरे-पीले और अभी भी ठोस होते हैं, क्योंकि वे तोड़े जाने के बाद पक जाते हैं। अमरूदों (Guava) की कटाई आम तौर पर हाथ से की जाती है, यह सुनिश्चित करते हुए कि उन्हें डंठल और एक या दो पत्तियों के साथ तोड़ा जाए। यह कोमल तरीका फलों की कोमल त्वचा को कम से कम नुकसान पहुंचाता है।
कुछ क्षेत्रों में अमरूद की कटाई साल भर की जा सकती है, उत्तर भारत में कटाई का सबसे अच्छा समय अगस्त (बरसात का मौसम), नवंबर-दिसंबर (सर्दियों) और मार्च-अप्रैल (वसंत) है। इनकी कटाई अक्सर सुबह-सुबह की जाती है, ताकि गर्मी से होने वाले तनाव से बचा जा सके और उन्हें सावधानीपूर्वक लंबी दूरी तक ले जाया जा सके, इसके लिए अक्सर प्रशीतित साधनों का उपयोग किया जाता है।
अमरूद के बाग से पैदावार (Yield from amarood orchard)
अमरूद (Guava) के बाग से पैदावार एक महत्वपूर्ण विषय है। अमरूद की बागवानी से किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है, खासकर यदि सही तरीके से देखभाल की जाए। अमरूद के पेड़ लगाने के 2-3 साल बाद फल देना शुरू कर देते हैं। 8 से 10 वर्ष की आयु के वयस्क पौधों से प्रति पेड़ औसतन 400-800 फल प्राप्त होते हैं, जिन का भार 80-100 किग्रा तक होता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
अमरूद की खेती बीज और वनस्पति दोनों तरीकों से की जाती है, व्यावसायिक तौर पर वनस्पति विधियां ज्यादा प्रचलित हैं। अमरूद (Guava) उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में पनपता है, आमतौर पर इसे पूर्ण सूर्य और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी की जरूरत होती है। प्रसार में वेज ग्राफ्टिंग, एयर लेयरिंग और स्टूलिंग जैसी तकनीकें शामिल हो सकती हैं। इसके साथ पहले खेत को तैयार करें, फिर अच्छी किस्म के पौधे लगाएं, उचित दूरी पर पौधे लगाएं, नियमित रूप से सिंचाई करें, और समय-समय पर खाद और उर्वरक डालें।
अमरूद की बागवानी के लिए गर्म और शुष्क जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। यह उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छी तरह से बढ़ता है। तापमान 15-35°C के बीच होना चाहिए और वार्षिक वर्षा लगभग 100 सेमी होनी चाहिए। हालांकि, अमरूद (Guava) सूखे को सहन कर सकता है, लेकिन सिंचाई सुविधाओं की आवश्यकता होती है।
अमरूद की बुवाई के लिए सबसे अच्छा समय जून से अगस्त के बीच है, जो बारिश के मौसम के दौरान होता है। कुछ क्षेत्रों में, अमरूद (Guava) की रोपाई फरवरी-मार्च में भी की जाती है।
अमरूद की सबसे अच्छी किस्मों में सफ़ेद अमरूद, गुलाबी अमरूद (Guava) और सेब अमरूद शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक अलग-अलग जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल अद्वितीय स्वाद और लाभ प्रदान करता है।
अमरूद के पौधे तैयार करने के कई तरीके हैं, जिनमें से कटिंग, एयर लेयरिंग, और ग्राफ्टिंग प्रमुख हैं। कटिंग से अमरूद के पौधे उगाना सबसे आसान तरीका है। इस विधि में, आपको किसी स्वस्थ अमरूद के पेड़ से एक मुलायम टहनी लेनी चाहिए और उसे रूटिंग हार्मोन में डुबोकर मिट्टी में लगाना चाहिए। एयर लेयरिंग में, पेड़ की टहनी को छीलकर और रूटिंग हार्मोन लगाकर मिट्टी से ढक दिया जाता है। ग्राफ्टिंग में, एक स्वस्थ अमरूद (Guava) के पेड़ की टहनी को दूसरे पेड़ पर लगाया जाता है।
अमरूद (Guava) के एक हेक्टेयर में लगाए जाने वाले पौधों की संख्या रोपण विधि और पौधे के प्रकार पर निर्भर करती है। सामान्यत: एक हेक्टेयर में 277 से 5000 तक पौधे लगाए जा सकते हैं।
अमरूद (Guava) के पेड़ों को मध्यम पानी की जरूरत होती है, खासकर शुष्क अवधि के दौरान। आम तौर पर, उन्हें प्रति सप्ताह लगभग 100-150 लीटर पानी की जरूरत होती है, लेकिन यह मिट्टी के प्रकार और जलवायु के आधार पर अलग-अलग हो सकता है।
अमरूद (Guava) के पौधों के लिए, आप गोबर की खाद, सिंगल सुपर फास्फेट, म्यूरेट ऑफ पोटाश, यूरिया और जिंक सल्फेट का इस्तेमाल कर सकते हैं। पौधे की आयु के अनुसार खाद और उर्वरक की मात्रा तय करनी चाहिए।
अमरूद (Guava) की फसलों को प्रभावित करने वाले आम कीटों में फल मक्खियाँ, पत्ती रोलर और एफिड शामिल हैं। नुकसान को कम करने और स्वस्थ फल उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी कीट प्रबंधन अभ्यास आवश्यक हैं।
अमरूद (Guava) के फल की कटाई का सबसे अच्छा समय तब होता है जब वे हरे से पीले या गुलाबी रंग में बदल जाते हैं और थोड़ा सा सिकुड़ते हैं, जो पकने का संकेत देता है। यह आमतौर पर रोपण के 4-6 महीने बाद होता है, जो कि किस्म और बढ़ती परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
अमरूद (Guava) का पौधा आमतौर पर 2-3 साल में फल देना शुरू कर देता है। यदि आप ग्राफ्टेड (बड) पौधे लगाते हैं, तो यह समय और भी कम हो सकता है, बताया गया है। कुछ किस्में हैं जो 6 महीने में ही फल देना शुरू कर देती हैं।
अमरूद (Guava) की फसल से उपज उसकी किस्म, जलवायु, मिट्टी, और देखभाल पर निर्भर करती है। औसतन, एक विकसित अमरूद के पौधे से प्रति वर्ष 400 से 600 फल प्राप्त होते हैं। प्रति एकड़ उत्पादन 10-12 टन तक हो सकता है।
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