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Home » Blog » Grass Pea Cultivation in Hindi: खेसारी की खेती कैसे करें

Grass Pea Cultivation in Hindi: खेसारी की खेती कैसे करें

March 21, 2025 by Bhupendra Dahiya Leave a Comment

Grass Pea Cultivation in Hindi: खेसारी की खेती कैसे करें

Indian Pea Farming in Hindi: खेसारी (Lathyrus Sativus), जिसे घास मटर (Grass Pea) के नाम से भी जाना जाता है, एक कठोर फलीदार फसल है जिसकी खेती सदियों से इसकी उच्च प्रोटीन सामग्री के लिए की जाती रही है। भारत में खेसारी की खेती महत्वपूर्ण कृषि और आर्थिक महत्व रखती है, जो विभिन्न लाभों के साथ एक स्थायी फसल विकल्प प्रदान करती है। खेसारी शरद ऋतु में उगाई जाने वाली एकवर्षीय दलहनी फसल है, जिसकी दाल तथा फलियाँ खाने योग्य होती हैं।

भारत में यह खाद्य एवं चारे की एक लघु फसल है। इसको अधिक गर्मी की आवश्यकता होती है, साथ ही साथ यह ठंड प्रतिरोधी भी होती है। खेसारी आर्द्र परिस्थितियों में अच्छा प्रदर्शन करती है एवं सूखे और उच्च तापमान के लिए प्रतिरोधी भी होती है। यह लेख खेसारी (Grass Pea) की खेती के लिए एक व्यापक मार्गदर्शिका प्रदान करता है, जिसमें जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताओं से लेकर कीट प्रबंधन, कटाई तकनीक और बाजार के अवसरों तक के आवश्यक पहलुओं को शामिल किया गया है।

Table of Contents

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  • खेसारी के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for Grass Pea)
  • खेसारी के लिए भूमि का चयन (Selection of land for Grass Pea)
  • खेसारी के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for Grass Pea)
  • खेसारी के लिए उन्नत किस्में (Improved varieties for Grass Pea)
  • खेसारी बुवाई का समय और तरीका (Grass Pea sowing time and method)
  • खेसारी में पोषक तत्व प्रबंधन (Nutrient Management in Khesari)
  • खेसारी में जल प्रबंधन (Water Management in Grass Pea)
  • खेसारी में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in Grass Pea)
  • खेसारी में रोग और कीट नियंत्रण (Disease and Pest Control in Khesari)
  • खेसारी की कटाई और उपज (Harvesting and Yield of Grass Pea)
  • अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)

खेसारी के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for Grass Pea)

खेसारी की फसल समशीतोष्ण जलवायु में पनपती है, विशेष रूप से सर्दियों के महीनों के दौरान, जिसमें इष्टतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से 25 डिग्री सेल्सियस तक होता है और वार्षिक वर्षा 400-650 मिमी (16-26 इंच) होती है, वहाँ खेसारी (Grass Pea) की वृद्धि अच्छी होती है।

खेसारी के लिए भूमि का चयन (Selection of land for Grass Pea)

खेसारी (Grass Pea) की खेती के लिए, दोमट या चिकनी मिट्टी, विशेष रूप से वर्टिसोल, जो भारी और धारण करने वाली होती है, का चयन करें और अम्लीय मिट्टी से बचें। हालाँकि इसकी खेती के लिए, हल्की दोमट या दोमट मिट्टी अच्छी होती है, जिसमें जल-निकास की उचित व्यवस्था हो और अधिक क्षारीयता न हो और यह एक कठोर फसल है जो शुष्क जलवायु और खराब मिट्टी के लिए उपयुक्त है। इसके बेहतर विकास के लिए इष्टतम पीएच 6.5 से 7.0 माना जाता है।

खेसारी के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for Grass Pea)

खेसारी (Grass Pea) की खेती के लिए बुवाई से पहले, खेत को अच्छी तरह से जोतकर, खरपतवार और मिट्टी के ढेले हटाकर समतल करें और जल निकासी की व्यवस्था करें। सामान्य रूप से दो से तीन बार अच्छी प्रकार से जुताई कर खेत को तैयार कर लेना चाहिए, जिससे खेत की मिट्टी भुरभुरी बन जाये, जिससे अन्न और चारे की अधिक उपज प्राप्त हो सके।

खेसारी के लिए उन्नत किस्में (Improved varieties for Grass Pea)

खेसारी (Grass Pea) की खेती के लिए, कृषि वैज्ञानिकों ने ‘रतन’ और ‘प्रतीक’ नामक दो उन्नत किस्में विकसित की हैं, जिनमें न्यूरोटॉक्सिन (ODAP) की मात्रा कम होती है, जिससे यह मानव उपयोग के लिए सुरक्षित है। रतन किस्म में ओडीएपी की मात्रा 0.08% होती है, प्रतीक किस्म में ओडीएपी की मात्रा 0.07% होती है, जबकि महातिवड़ा किस्म में ओडीएपी की मात्रा 0.074% होती है। वहीं निर्मल किस्म चारे के लिए देश के पूर्वी प्रदेशों में काफी प्रचलित है।

खेसारी बुवाई का समय और तरीका (Grass Pea sowing time and method)

बुवाई का समय: खेसारी (Grass Pea) की खेती के लिए बुवाई का सही समय 15 अक्टूबर से 15 नवंबर है।

बीज की मात्रा: एक हेक्टेयर में खेसारी उत्पादन में 45 से 50 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है, लेकिन उतेरा प्रणाली में सामान्य से 25 प्रतिशत ज्यादा बीज दर रखने की सलाह दी जाती है। बीज जनित रोगों से बचाने के लिए बीज को बुआई के एक दिन पहले थीरम, कैप्टान या कार्बेन्डाजिम से उपचारित कर लेना चाहिए, जिससे बढ़िया अंकुरण हो सके और अधिक उपज प्राप्त हो सके।

बुवाई की विधि: उतेरा प्रणाली में खेसारी (Grass Pea) की बुआई धान की फसल की कटाई से 15-20 दिनों पहले ही कर दी जाती है। बुआई के समय कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखना चाहिए।

खेसारी में पोषक तत्व प्रबंधन (Nutrient Management in Khesari)

खेसारी (Grass Pea) में नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्षमता होती हैं, इसलिए यह कम उपजाऊ भूमि तथा मिश्रित फसल प्रणालियों के लिए एक महत्वपूर्ण फसल है। अच्छे उत्पादन के लिए खेत की अंतिम जुताई के समय प्रति हेक्टेयर नत्रजनः फास्फोरसः पोटाश का प्रयोग 20: 50: 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए। गुणवत्तायुक्त गोबर की खाद या हरी खाद का प्रयोग (5 टन प्रति हेक्टेयर) जैविक घटक के रूप में किया जाना चाहिए।

खेसारी में जल प्रबंधन (Water Management in Grass Pea)

खेसारी (Grass Pea) की खेती में जल प्रबंधन के लिए, वर्षा आधारित क्षेत्रों में, जहाँ सिंचाई का पानी उपलब्ध नहीं है, उचित जुताई के बाद सर्दियों में खेसारी की खेती की जा सकती है। सामान्यत: सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन यदि खेत में नमी की कमी हो, तो 60-70 दिनों बाद एक सिंचाई कर सकते हैं।

खेसारी में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in Grass Pea)

खेसारी (Grass Pea) की खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए, बुवाई के बाद 25-30 दिनों में निराई-गुड़ाई करें, और जरूरत पड़ने पर पेंडिमेथिलिन या इमिडाक्लोप्रिड जैसे खरपतवारनाशक का छिड़काव करें। हालाँकि प्रारंभ में एक या दो बार निराई-गुड़ाई करने से खरपतवार निकल जाते हैं और पौधों की बढ़ोत्तरी अच्छी होती है। इसके बाद पौधों की तीव्र वृद्धि होती है जो खरपतवारों को दोबारा पनपने नहीं देते हैं।

खेसारी में रोग और कीट नियंत्रण (Disease and Pest Control in Khesari)

खेसारी (Grass Pea) में रोग या कीट गंभीर नुकसान नहीं करते हैं, हालाँकि जरुरत पड़ने पर उपयुक्त रोगनाशी अथवा कीटनाशी का छिड़काव करना चाहिए। मृदुरोमिल आसिता के लिए कार्बेन्डाजिम कवकनाशी से बीजोपचार करना चाहिए।

खेसारी की कटाई और उपज (Harvesting and Yield of Grass Pea)

खेसारी (Grass Pea) की फसल से उपज लगभग 1 एकड़ में 4 से 5 क्विंटल तक होती है, और यह फसल लगभग 130 दिनों में तैयार हो जाती है। अच्छी गुणवत्ता वाले चारे के लिए फसल को 50 प्रतिशत फूल आने पर (बुआई के 65-70 दिन बाद ) काटा जाना चाहिए। उन्नत तकनीक का प्रयोग कर, खेसारी से 20-25 टन प्रति हेक्टेयर हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)

खेसारी की खेती कैसे की जाती है?

घास मटर (Grass Pea) की खेती में इसे एकल फसल के रूप में, अंतरफसल प्रणालियों में, या रिले फसल के रूप में, अक्सर उच्च नमी वाले क्षेत्रों में या चावल के बाद उगाया जाता है, और यह शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों सहित विभिन्न प्रकार की मिट्टी और जलवायु में पनपती है।

खेसारी के लिए कैसी जलवायु अच्छी होती है?

खेसारी सर्दियों की फसल है, इसलिए यह समशीतोष्ण जलवायु में अच्छी तरह से उगती है, खेसारी (Grass Pea) को बुवाई से कटाई तक 15°C से 25°C तापमान की आवश्यकता होती है।

खेसारी के लिए कैसी मिट्टी अच्छी होती है?

खेसारी (Grass Pea) की खेती के लिए रेतीली और रेतीली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है, हालाँकि यह विभिन्न प्रकार की मिट्टी में भी उग सकती है, जिसमें जलभराव और खारेपन वाली मिट्टी भी शामिल है।

खेसारी की बुवाई कब करें?

खेसारी (Grass Pea) की बुवाई, खासकर उत्तर भारत में, धान की कटाई के बाद, अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े से नवंबर के पहले पखवाड़े तक, यानी 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच की जाती है। जब खरीफ की फसल कटाई के बाद मिट्टी में नमी बची होती है।

खेसारी की अच्छी किस्में कौन सी है?

खेसारी (Grass Pea) की अच्छी किस्मों में ‘रतन’ और ‘प्रतीक’ शामिल हैं, जो कम ओएडीपी (ODAP) मात्रा वाली हैं और बेहतर उपज देती हैं।

खेसारी की बुवाई कैसे करें?

खेसारी (Grass Pea) की बुवाई के लिए, आप धान की कटाई से पहले खड़ी फसल में बुवाई कर सकते हैं, या साधारण बुवाई के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखें। बीज जनित रोगों से बचाने के लिए, बुवाई से एक दिन पहले थीरम या कैप्टॉन ढाई ग्राम या कार्बेंडाजिम 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।

खेसारी में कौन सा उर्वरक डालें?

खेसारी की फसल से अच्छे उत्पादन के लिए खाद के तौर पर प्रति हेक्टेयर 20 किलो यूरिया, 40 किलो पोटाश, 40 किलो डीएपी का इस्तेमाल किया जा सकता है। खेसारी (Grass Pea) दाल में 31 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा होती है।

खेसारी की सिंचाई कब और कैसे करें?

खेसारी (Grass Pea) में आमतौर पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन अगर बहुत सूखा हो तो 60-70 दिन बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए। ज्यादा पानी देने से बचें, हल्की सिंचाई करें।

खेसारी से कितनी पैदावार होती है?

खेसारी (Grass Pea) की फसल से प्रति हेक्टेयर 14 से 16 क्विंटल तक उपज प्राप्त हो सकती है, और यह फसल 105 से 115 दिनों में तैयार हो जाती है।

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