
Gooseberry Gardening in Hindi: वैज्ञानिक रूप से “कैरिसा कैरंडस” के नाम से जाना जाने वाला करौंदा भारतीय उपमहाद्वीप का एक लचीला फल देने वाला पौधा है, जिसे इसके अनोखे तीखे स्वाद और पोषण संबंधी लाभों के लिए सराहा जाता है। एक कठोर पौधे के रूप में जो विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में पनपता है, करौंदा सदियों से भारतीय कृषि और पाक परंपराओं का एक अभिन्न अंग रहा है।
यह लेख भारत में करौंदा की खेती (Gooseberry Farming) के बहुआयामी पहलुओं पर प्रकाश डालता है, इसके ऐतिहासिक महत्व, आदर्श बढ़ती परिस्थितियों, खेती के तरीकों और कीट प्रबंधन रणनीतियों की खोज करता है। इस व्यापक गाइड के माध्यम से, हमारा उद्देश्य इस आशाजनक फल की खेती में तल्लीन होने के इच्छुक नौसिखिए और अनुभवी दोनों किसानों को मूल्यवान जानकारी प्रदान करना है।
करौंदा के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable Climate for Gooseberry)
करोंदा उच्च तापमान और शुष्क परिस्थितियों वाले उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में पनपता है। यह दुर्लभ जल और कम मिट्टी की उर्वरता वाले क्षेत्रों के लिए अच्छी तरह से अनुकूलित है। यह पौधा कम तापमान और पाले की चोट के प्रति संवेदनशील है, जिससे यह अधिक बर्फबारी या लंबे समय तक ठंड वाले क्षेत्रों के लिए अनुपयुक्त है।
करौंदा (Gooseberry) 25 से 45 डिग्री सेल्सियस (77 से 113 डिग्री फारेनहाइट) के बीच के तापमान को पसंद करता है। करौंदा सूखा-सहिष्णु है और इसे वर्षा आधारित फसल के रूप में उगाया जा सकता है, लेकिन यह जलभराव वाली स्थितियों या भारी वर्षा को सहन नहीं करता है।
करौंदा के लिए मृदा का चयन (Soil Selection for Gooseberry)
करोंदा (Gooseberry) कई तरह की मिट्टी में पनपता है, लेकिन अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट, लैटेराइट, जलोढ़ और चूनायुक्त मिट्टी को प्राथमिकता देता है। अच्छी जल निकासी वाली जलोढ़ रेतीली दोमट मिट्टी को विकास और उपज के लिए इष्टतम माना जाता है। करोंदा के लिए आदर्श पीएच रेंज 5 से 8 के बीच है।
नदियों द्वारा जमा की गई जलोढ़ मिट्टी आम तौर पर उपजाऊ और अच्छी जल निकासी वाली होती है, जो करोंदा के लिए उपयुक्त मानी जाती है। विशिष्ट मिट्टी के प्रकार के बावजूद, जलभराव को रोकने के लिए अच्छी जल निकासी आवश्यक है, जिससे जड़ सड़ सकती है। भारी वर्षा और जलभराव की स्थिति करौंदा की खेती के लिए आदर्श नहीं है।
करौंदा के लिए खेत की तैयारी (Field Preparation for Karanda)
करौंदा की बागवानी के लिए खेत तैयार करने के लिए, अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट या दोमट मिट्टी पर ध्यान दें, जिसका पीएच थोड़ा अम्लीय से लेकर तटस्थ हो। मौजूदा पौधों को हटा दें, जमीन को समतल करें और रोपण से कम से कम एक महीने पहले गड्ढे तैयार करें। गड्ढों को अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद (FYM) और मिट्टी के मिश्रण से भरें।
करौंदा (Gooseberry) के लिए 3×3 या 4×4 मीटर की दूरी पर 60x60x60 सेमी आकार के गड्ढे खोदने चाहिए। इन गड्ढों में 15 किलो गोबर की खाद और 50 ग्राम मिथाइलपैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण मिलाकर, आसपास की मिट्टी को अच्छी तरह से मिलाकर दबा देना चाहिए।
करौंदा की उन्नत किस्में (Improved Gooseberry Varieties)
करौंदा की कई किस्में उपलब्ध हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं, पंत मनोहर, पंत सुदर्शन, पंत सुवर्णा, कोकन बोल्ड, सीएचईएस के-वी- 6, सीएचईएस के-II- 7 और मारू गौरव शामिल हैं। इन किस्मों को फलों के आकार, उपज और गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए विकसित किया गया है, जिससे वे अचार बनाने और खाने दोनों के लिए उपयुक्त हैं। उन्नत करौंदा (Gooseberry) किस्मों का विवरण इस प्रकार है, जैसे-
पंत मनोहर, पंत सुदर्शन, पंत सुवर्णा: जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में विकसित, ये किस्में अपने छोटे, अम्लीय फलों के लिए जानी जाती हैं, जो उन्हें अचार बनाने के लिए आदर्श बनाती हैं।
कोंकन बोल्ड, सीएचईएस के-II- 7, सीएचईएस के-35: इन करौंदा (Gooseberry) किस्मों के फल बड़े होते हैं और ये खाने के लिए उपयुक्त हैं।
मारू गौरव: इस किस्म की पहचान हाल ही में की गई है और यह व्यावसायिक खेती के लिए आशाजनक दिख रही है।
सीएचईएस के-वी- 6: एक और करौंदा (Gooseberry) की किस्म जिसे व्यावसायिक रूप से जारी करने पर विचार किया जा रहा है।
करौंदा की बुवाई का समय (Sowing Time of Gooseberry)
करौंदा बुवाई का सबसे अच्छा समय बरसात के मौसम में होता है, खास तौर पर जून-जुलाई में। यह अवधि अंकुरण और शुरुआती वृद्धि के लिए आवश्यक नमी प्रदान करती है। जबकि कुछ स्रोत अगस्त-सितंबर को एक विकल्प के रूप में सुझाते हैं, जून-जुलाई को आमतौर पर रोपण के लिए पसंद किया जाता है। यहाँ करौंदा (Gooseberry) बुवाई या रोपण पर अधिक विस्तृत विवरण दिया गया है, जैसे-
जून-जुलाई: यह प्राथमिक करौंदा (Gooseberry) रोपण का समय है, विशेष रूप से वर्षा आधारित फसलों के लिए।
वसंत या शुरुआती गर्मी: एक और उपयुक्त अवधि, विशेष रूप से हल्के जलवायु वाले क्षेत्रों के लिए, क्योंकि यह विकास के लिए गर्म तापमान की अनुमति देता है।
करौंदा के पौधे तैयार करना (Preparation of Gooseberry Plants)
करौंदा का प्रवर्धन मुख्य रूप से बीज द्वारा किया जाता है, लेकिन इसे कलम और गुटी द्वारा भी प्रवर्धित किया जा सकता है। करौंदा के पौधे को बीज से उगाने के लिए, फलों से बीज निकालकर तुरंत क्यारी या पॉलीथिन बैग में बोया जाता है। अगस्त-सितंबर का महीना बीज लगाने के लिए सबसे उपयुक्त होता है। करौंदा (Gooseberry) के प्रवर्धन की विधियाँ इस प्रकार है, जैसे-
बीज द्वारा: पके हुए फलों से बीज निकालकर तुरंत बोना चाहिए, बीजों को क्यारी या पॉलीथिन बैग में बोया जा सकता है। अगस्त-सितंबर का महीना बीज लगाने के लिए उपयुक्त होता है। इस विधि द्वारा दो साल में पौधे में फल आने लगते हैं।
कलम द्वारा: करौंदा की कलमों को भी लगाया जा सकता है, खासकर गर्मियों में कलमों को पत्तियों के साथ जमीन में लगाया जाता है। कटिंग लगाने से पहले, युवा पार्श्व शाखाओं को पांच पत्तियों तक काट लें और बढ़ते हुए सिरे को गन्ने के साथ बांध दें। पतझड़ के अंत या सर्दियों में, पत्तियां गिरने के बाद, साइड शूट को एक या दो कलियों तक काट दें।
गुटी द्वारा: करौंदा (Gooseberry) को गुटी द्वारा भी प्रवर्धित किया जा सकता है। यह विधि उन पौधों के लिए उपयोगी है, जो बीज से आसानी से नहीं उगते हैं या जिनकी विशिष्ट विशेषताओं को बनाए रखना आवश्यक है।
करौंदा के पौधों का रोपण (Planting of Gooseberry plants)
करौंदा का बाग लगाने के लिए वर्गाकार अथवा आयताकार विधि 3×3 से 5×5 मीटर की दूरी पर रेखांकन करना चाहिए। बाड़ लगाने के लिये पौधे से पौधे की दूरी को घटाकर 50 सेंमी कर सकते हैं। रोपण से लगभग एक माह पूर्व 30-40 घन सेंमी आकार के गड्ढे खोद लेना चाहिए। रोपण से 15 दिन पूर्व प्रत्येक गड्ढे में 25-30 किग्रा सड़ी गोबर की खाद मिलाकर गड्ढे को भूमि की सतह से 15-20 सेंमी की ऊँचाई तक भर देते हैं।
पौध लगाते समय गड्ढे के बीच में से मिट्टी निकाल कर पिण्डी को गड्ढे के मध्य में रख, चारों तरफ की मिट्टी को भली-भांति दबा कर हल्की सिंचाई कर देते हैं। यदि भूमि में कंकड़-पत्थर हो तो रोपाई से पूर्व उन्हें निकाल देना चाहिए। ऊसर भूमि में जिप्सम अथावा पाइराइट मिला कर रोपण से पूर्व भूमि का पीएच मान सुधार देने से बाग स्थापित करने में सफलता मिलती हैं। रोपण का कार्य जून-जुलाई में किया जाता हैं।
सिंचित क्षेत्रों में मार्च-अप्रेल में भी करौंदा (Gooseberry) की रोपाई या बुवाई की जा सकती हैं। यदि शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में करौंदा का बाग लगाना होतो वहां स्वस्थाने बाग लगाना चाहिए व थालों को मोटी पलवार से ढक देना चाहिए, जिससे पौधों का स्थापन अच्छी तरह से हो सकें।
करौंदा के बाग की कांट-छांट (Pruning of gooseberry garden)
करौंदा के पौधे झाड़ी के रूप में बढ़ते है। अतः इसमें विशेष सधाई की आवश्यकता नहीं पड़ती हैं। आरंभिक वर्षों में इच्छित आकार देने के उद्देश्य से हल्की कांट-छांट करते है, ताकि पौधे मजबूत हों व बगीचे में कर्षण क्रियाएं आसानी से की जा सकती है। रोपण के समय प्रत्येक पौधे को सहारा देते है, जिससे वे सीधे बढ़ें। बाद के वर्षों में करौंदे के पौधों में सामान्यता कांट-छांट की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
परन्तु सघन, सूखी व रोगग्रस्त शाखाओं को निकालते रहने से पौधे के अंदरूनी भागों पर सूर्य का प्रकाश पंहुचता रहता है। जो नई कलियों के बनने में सहायक होता है व रोग तथा कीटों के पनपने की रोकथाम करता हैं। पुरानी झाड़ीयों का पुनरूद्धार करने के उद्देश्य से शीर्षकर्तन कर दिया जाता हैं। करौंदा (Gooseberry) की कांट-छांट के लिए अक्टूबर माह का समय उपयुक्त होता हैं।
करौंदा के साथ अन्तः फसलें (Intercropping with Gooseberry)
करौंदा के साथ अंतः फसलें लगाने से दोहरे लाभ प्राप्त हो सकते हैं, जैसे कि भूमि का बेहतर उपयोग और खरपतवारों का नियंत्रण। करौंदे के साथ उगाई जाने वाली कुछ अंतः फसलें हैं: शुरू के वर्षों में अन्तः फसलें जैसे- लोबिया, मूंग, मोठ, उड़द, पत्तेदार सब्जियां, मिर्च, बैंगन, काचरी, काचरा, ककड़ी आदि को उगाकर पौधों के बीच के स्थानों का सदुपयोग कर अतिरिक्त लाभ भी कमाया जा सकता हैं। वे फसलें जो मुख्य फसल के साथ जल, खाद व उर्वरक आदि के लिये प्रतियोगिता करें अथवा मुख्य फसल पर चडढ़ें नहीं बोनी चाहिए।
करौंदा में खाद और उर्वरक (Manure and fertilizer in Karonda)
प्रारम्भिक वर्षों में करौंदा के पौधे को स्वस्थ रखने व अच्छी बढ़वार हेतु प्रति पौधे की दर से एक वर्ष के पौधे को 5 किग्रा गोबर की खाद, 100 ग्राम यूरिया, 150 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 75 ग्राम पोटास की मात्रा प्रति वर्ष देना चाहिए। उर्वरकों की इस निर्धारित मात्रा को इसी अनुपात में तीन वर्ष तक बढ़ाते रहना चाहिए। इस प्रकार तीन वर्ष व उससे अधिक आयु वाले पौंधों 300 ग्राम यूरिया, 450 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 225 ग्राम पोटाश व 15-20 किलो ग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति पौधा प्रति वर्ष देना चाहिए।
ऊसर भूमि में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के लक्षण दिखाई देते हैं, अतः मई-जून में इनका पर्णीय छिड़काव कर सकते हैं। उर्वरकों को बराबर-बराबर छः भागों में बांटकर दो-दो महीने के अंतराल पर करौंदा (Gooseberry) के पौधों में देना चाहिए। उर्वरकों का प्रयोग फरवरी माह से आरम्भ कर देना चाहिए। उर्वरकों के प्रयोग से पूर्व भूमि में समुचित नमी सुनिश्चित कर लेनी चाहिए।
करौंदा की सिंचाई और देखभाल (Irrigation and care of Gooseberry)
करोंदा अपेक्षाकृत कम रखरखाव वाली फल फसल है, लेकिन इष्टतम विकास और उपज के लिए उचित सिंचाई और देखभाल आवश्यक है। यह पूर्ण सूर्य और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में पनपता है और जबकि इसे कम पानी की आवश्यकता होती है, सूखे के दौरान लगातार पानी देना महत्वपूर्ण है। करौंदा (Gooseberry) के बाग की सिंचाई पर अधिक विवरण इस प्रकार है, जैसे-
युवा पौधे: युवा करौंदा (Gooseberry) पौधों को सर्दियों में हर 10-15 दिन और गर्मियों में हर 6-7 दिन में पानी दें।
वयस्क पौधे: वयस्क करोंदा पौधों को आम तौर पर बार-बार सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन लंबे समय तक सूखे के दौरान पानी देना आवश्यक हो सकती है।
पानी देने की आवृत्ति: पर्यावरणीय परिस्थितियों के आधार पर पानी देने की आवृत्ति को समायोजित करें। गर्म, शुष्क मौसम में, अधिक बार पानी दें (जैसे, साप्ताहिक)। ठंडी, आर्द्र परिस्थितियों में, कम बार पानी दें (जैसे, दो-सप्ताह)।
जलभराव से बचें: जलभराव को रोकने के लिए अच्छी जल निकासी सुनिश्चित करें, जो करौंदा (Gooseberry) पौधे को नुकसान पहुंचा सकता है।
ड्रिप सिंचाई पर विचार करें: ड्रिप सिंचाई निरंतर नमी प्रदान करने के लिए एक सफल विधि हो सकती है।
करौंदा में कीट और रोग नियंत्रण (Pest and disease control in Gooseberry)
कीट नियंत्रण: प्रारम्भिक अवस्था में पत्ती खाने वाली गिडार, नई पत्तियों को खा जाती है, जिससे करौंदा (Gooseberry) के पेड़ की बढ़वार रूक जाती है। इसकी रोकथाम के लिए 2 मिली थायोडान या इन्डोसल्फॉन अथवा 0.05 मिली नुवांकान एक लीटर पानी में घोलकर झाड़ियों पर छिड़काव करना चाहिए।
रोग नियंत्रण: करौंदा में श्यामवर्ण रोग, पत्तियों और फलों को अधिक प्रभावित करता हैं। रोगग्रस्त पत्तियों पर ठोटे अनियमित आकार के भूरे रंग के धब्बे बन जातें हैं। जो बाद में बढ़कर गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं। रोगग्रस्त पत्तियां गिर जाती हैं और पतली टहनियां सूखना आरम्भ कर देती हैं।
फलों व तने पर भी इस रोग के घाव बन जाते हैं। रोग की रोकथाम के लिये 2 ग्राम ब्लाइटॉक्स- 50 को एक लीटर पानी में मिला कर करौंदा (Gooseberry) के पौधों पर छिड़काव करना चाहिए। तने के घावों को खुरचकर उन पर ब्लाइटॉक्स – 50 व अलसी के तेल (1:3 ) का लेप करना चाहिए।
करौंदा के फलों की तुड़ाई और पैदावार (Harvesting and yield of Karonda fruits)
फलों की तुड़ाई: करौंदा (Gooseberry) के पौधे लगाने के दूसरे वर्ष से फल देना प्रारम्भ कर देते हैं। फल लगने के लगभग 2-3 माह बाद (जुलाई-सितम्बर) परिपक्व होकर तोड़ने योग्य हो जाते हैं। फल की सतह का रंग बदलना परिपक्वता की निशानी हैं। तुड़ाई दो से तीन चरणों में की जाती हैं।
बाग से पैदावार: करौंदा (Gooseberry) की एक पूर्ण विकसित झाड़ी से लगभग 30-40 किग्रा फल प्राप्त हो जाते हैं। तुड़ाई उपरांत फलों को छायादार स्थान पर रखना चाहिए । स्वस्थ फलों को बड़े, मध्यम व छोटे आकार के की श्रेणियों में बांट देना चाहिए। कमरे के सामान्य तापमान पर करौंदा के फलों को एक सप्ताह तक रख सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
करौंदा (Gooseberry) की खेती में बीज और वानस्पतिक प्रसार दोनों ही तरीके शामिल हैं। रोपण आमतौर पर मानसून के मौसम (जून-जुलाई) के दौरान मिट्टी और एफवाईएम मिश्रण से भरे गड्ढों में किया जाता है। पौधे को आकार देने के लिए प्रशिक्षण और छंटाई महत्वपूर्ण है, और नियमित रूप से निषेचन की आवश्यकता होती है।
करौंदा (Gooseberry) उच्च तापमान और शुष्क परिस्थितियों वाले उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में पनपता है। यह एक कठोर और सूखा-सहिष्णु पौधा है जो खारे और सोडिक मिट्टी सहित कई प्रकार की मिट्टी को सहन कर सकता है। हालाँकि, यह अधिक वर्षा, जलभराव की स्थिति या भारी ठंढ वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त नहीं है।
करौंदा के लिए अच्छी मिट्टी वह होती है जो अच्छी जल निकासी वाली, उपजाऊ, और थोड़ी अम्लीय हो। करौंदा (Gooseberry) के बाग 6.0 से 7.0 पीएच वाली मिट्टी में सबसे अच्छे होते हैं, लेकिन उच्च पीएच वाली मिट्टी में भी अनुकूल हो सकते हैं। उन्हें नम, लेकिन अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है।
करौंदा (Gooseberry) लगाने का आदर्श समय मानसून के मौसम की शुरुआत के दौरान होता है, आमतौर पर जून और जुलाई के बीच, जब मिट्टी नम होती है और जड़ें जमाने के लिए अनुकूल होती है।
करौंदा (Gooseberry) की कुछ अच्छी किस्मों में पंत सुदर्शन, पंत स्वर्णा, और सीएचईएस-के-II-7 शामिल हैं। पंत सुदर्शन किस्म 2-3 साल में उपज देना शुरू कर देती है और प्रति पौधा 28-30 किलो उपज देती है। पंत स्वर्णा 25-27 किलो प्रति पौधा उपज देती है। CHES-के-II-7 किस्म आकार में आयताकार होती है और 12-13 ग्राम वजन की होती है।
करौंदा के पौधे तैयार करने के लिए, आप बीज या कटिंग का उपयोग कर सकते हैं। करौंदा (Gooseberry) बीज से पौधे तैयार करने के लिए, उन्हें पहले अच्छी तरह से धोकर सुखा लें, फिर मिट्टी में बोएं। कटिंग से पौधे तैयार करने के लिए, स्वस्थ पौधे से एक टहनी लें और उसे पानी या मिट्टी में लगाएं।
एक हेक्टेयर में लगभग 2200-2700 करौंदा (Gooseberry) के पौधे लग सकते हैं, यह पौधों की रोपाई की दूरी पर निर्भर करता है। यदि आप 3 x 3 मीटर की दूरी पर पौधे लगाते हैं, तो एक हेक्टेयर में लगभग 1100 पौधे लगेंगे। यदि आप 2 x 2 मीटर की दूरी पर पौधे लगाते हैं, तो एक हेक्टेयर में लगभग 2500 पौधे लगेंगे।
करौंदा (Gooseberry) के पौधों को नियमित रूप से पानी देने की आवश्यकता होती है, खासकर सूखे के दौरान। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि मिट्टी में जल निकासी अच्छी हो, ताकि जलभराव न हो, जबकि बढ़ते मौसम के दौरान सप्ताह में एक बार गहरा पानी देना आम तौर पर पर्याप्त होता है।
करौंदा (Gooseberry) के पौधे के लिए वसंत ऋतु में नाइट्रोजन-कम, पोटाश-आधारित खाद डालना उपयुक्त है। बहुत अधिक नाइट्रोजन खाद से फफूंद लगने का खतरा बढ़ सकता है। सर्दियों के अंत में और फिर गर्मियों के अंत में जैविक, संतुलित उर्वरक भी दिया जा सकता है।
करौंदा (Gooseberry) के आम कीटों में एफिड्स, फल मक्खियाँ और मीलीबग शामिल हैं। नियमित निगरानी और जैविक कीट प्रबंधन तकनीकों का उपयोग इन कीटों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने में मदद कर सकता है।
करौंदा (Gooseberry) के बाग को प्रभावित करने वाले मुख्य रोग फफूंदी (जैसे अमेरिकन गूजबेरी फफूंदी), पत्ती धब्बा रोग और एंथ्रेक्नोज हैं। इसके अलावा, कीट जैसे गूजबेरी सॉफ्लाई भी करौंदा के पौधों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
करौंदा (Gooseberry) के फलों की तुड़ाई का सही समय जून से जुलाई के बीच होता है, जब फल हरे और अधपके होते हैं। पके हुए फलों को जुलाई और अगस्त में तोड़ा जा सकता है, जब वे पूरी तरह से पक जाते हैं और अधिकतम स्वाद और मिठास देते हैं।
करौंदा (Gooseberry) के एक बाग से औसतन 25 से 40 किलोग्राम प्रति पौधा उपज हो सकती है। यह उपज 2-3 साल में मिलना शुरू हो जाती है और 10-20 साल तक बनी रह सकती है।
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