
Fodder Beet Cultivation in Hindi: फोडर बीट जिसे सामान्य भाषा में चारा चुकन्दर भी कहा जाता हैं, एक अत्यधिक उपज देने वाली जमिकन्दीय फसल है। अन्य चारा फसलों की तुलना में यह कम क्षेत्रफल व समय में अधिक चारा देती है। इसका पौधा सलाद के काम में आने वाले चुकन्दर जैसा ही होता है, किन्तु आकार मे बड़ा होता है व इसमें शर्करा की मात्रा कम होती है। पौधे में ऊपर की तरफ 6-7 पत्तियों का गुच्छा होता है।
इसका कन्द थोड़ा जमीन के बाहर भी निकला होता है। विश्व के उन सभी देशों में जहाँ पशुपालन व्यवसायिक तौर पर किया जाता है वहां यह फसल बहुत लोकप्रिय है। चारा चुकन्दर (Fodder Beet Cultivation) एक उच्च ऊर्जायुक्त फसल है जिसमें औसतन 12-13 मेगाज्यूल ऊर्जा प्रति किलोग्राम शुष्क भार होती है।
इसमें अन्य पोषक तत्व जैसे प्रोटीन, खनिज तत्व एवं विटामिन भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं। फोडर बीट की पत्तियां भी पौष्टिक होती हैं व कुल चारा उत्पादन का 20 प्रतिशत हिस्सा हैं। इससे पशुओं का स्वस्थ्य अच्छा रहता है, वजन बढ़ता है व दूध उत्पादन में वृद्धि होती है। चारा चुकन्दर की निम्न वर्णित वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर निश्चित ही अत्यधिक उपज प्राप्त की जा सकती है।
चारा चुकंदर के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for fodder beet)
चारा चुकंदर की खेती (Fodder Beet Cultivation) के लिए ठंडी और शीतोष्ण जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। इसके लिए 15-25 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे अच्छा होता है। गर्मियों में बहुत ज़्यादा तापमान में इसकी खेती से बचना चाहिए। क्योंकि इसकी खेती के लिए ठंडी और सूखी जलवायु सबसे अच्छी होती है। इसलिए गर्म और ज्यादा बारिश वाले इलाकों में चारा चुकंदर की खेती करना मुश्किल हो सकता है।
चारा चुकंदर के लिए भूमि का चयन (Selection of land for fodder beet)
चारा चुकंदर की खेती (Fodder Beet Cultivation) के लिए, अच्छी जल निकासी वाली, उपजाऊ, बालुई या दोमट मिट्टी का चयन करना चाहिए। चुकंदर की खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए। हालाँकि इसे किसी भी प्रकार की भूमि में लगाया जा सकता है। भूमि व पानी के खारेपन का भी इस फसल पर कोई विपरीत प्रभाव नही पड़ता बल्कि इसके लगाने से भूमि में क्षार की मात्रा कम होती है।
चारा चुकंदर के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for fodder beet)
चारा चुकंदर की खेती (Fodder Beet Cultivation) के लिए खेत की तैयारी हेतु सर्वप्रथम एक जुताई मिट्टी पलट हल से फिर 1-2 जुताई हैरो से करनी चाहिए। खेत में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा संतुलित रखने और फसल में पोषक तत्वों की पूर्ति हेतु जुताई पूर्व गोबर की सड़ी हुई खाद (10-15 टन प्रति हेक्टेयर) का प्रयोग करना चाहिए।
चारा चुकंदर के लिए उन्नत किस्में (Improved varieties for fodder beet)
चारा चुकंदर की खेती (Fodder Beet Cultivation) के लिए, उन्नत और रोगरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए। इससे कीट-कवकनाशी दवाओं पर खर्च कम होता है और अच्छा उत्पादन मिलता है। हमारे देश में अधिकतर चुकंदर चारा उत्पादक जेके कुबेर, मोनरो, जामोन, लैक्टिमो, गेरोनिमो जैसी किस्मों को लगाना पसंद करते हैं।
चारा चुकंदर के लिए बीज और बुवाई (Seed and sowing for fodder beet)
चारा चुकंदर की बुवाई का उपयुक्त समय अक्टूबर-नवंबर होता है। चारा चुकंदर की खेती हेतु प्रति हेक्टेयर 2 से 2.5 किलो बीज पर्याप्त होता है। चारा चुकंदर (Fodder Beet) की अच्छी फसल हेतु एक हैक्टयर में एक लाख पौधे होने चाहिए। बीज को मैन्कोजेब व थिरम 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके ही बुवाई करनी चाहिए तथा बुवाई करने के तुरंत बाद सिंचाई करना चाहिए।
चारा चुकंदर की बुवाई मेड़-नाली विधि से मेड़ों पर करें। मेड की दूरी आपस में 70 सेमी रखें एवं मेड की ऊँचाई 20 सेमी तक रखें। मेड पर बीज की बुवाई 20-25 सेमी बीज से बीज की दूरी रखते हुए 2 से 2.5 सेमी गहराई पर करें। चुकंदर की चारा वाली प्रजातियाँ कई अंकुर वाली होती हैं अतः बुवाई के 25-30 दिन बाद अनावश्यक पौध को निकाल के विरलीकरण करके एक जगह पर एक पौधा ही रखना चाहिए।
चारा चुकंदर के लिए खाद एवं उर्वरक (Manure and Fertilizer for Fodder Beet)
चारा चुकंदर (Fodder Beet) की अधिक उत्पादन क्षमता होने के कारण भूमि से अधिक मात्रा में पोषक तत्वों का अवशोषण होता है। इसलिए खेत में हर तीसरे वर्ष खेत की तैयारी के समय 15-20 टन प्रति हैक्टयर अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद डालें तथा फसल को 100 किलो नत्रजन, 75 किलो फास्फोरस और 75 किलो पोटाश प्रति हैक्टयर की दर से उर्वरक देना चाहिए।
नत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय देनी चाहिए और नत्रजन की बची हुई आधी मात्रा दो बराबर हिस्सों में बुवाई के 30 व 50 दिन पर निराई के पश्चात् देना चाहिए।
चारा चुकंदर के लिए जल प्रबंधन (Water Management for Fodder Beet)
चारा चुकंदर की फसल में पानी का प्रबंधन करने के लिए ड्रिप सिंचाई जैसी कम मात्रा वाली सिंचाई पद्धतियों का इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे मिट्टी के ज़रिए रासायनिक पदार्थों का परिवहन कम होता है और पानी की खपत भी कम होती है। चारा चुकंदर (Fodder Beet) की कुल सिंचाई जल माँग 80-100 सेमी होती है। प्रथम सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद व तदुपरांत आवश्यकतानुसार 10-12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
चारा चुकंदर में कीट और खरपतवार नियंत्रण (Pest and weed control in fodder beet)
चारा चुकंदर में खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई के 20-25 दिन बाद एवं 40-45 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें तथा मेड़ों पर मिट्टी चढ़ायें। चारा चुकंदर (Fodder Beet) में किसी खास रोग एवं कीट की समस्या नहीं होती है हालाँकि मृदा जनित कीटों से कंदों को बचने के लिए क्यूनॉलफॉस (1.5 प्रतिशत) को 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिलाएं।
जड़ गलन रोग की रोकथाम हेतु ट्राईकोडर्मा विरडी 1. 25 ग्राम या मैन्कोजेब कवकनाशी 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करना चाहिए। पत्ते खाने वाले कीड़ों से फसल को बचाने के लिए 5 प्रतिशत नीम के बीजों की खली के घोल का छिड़काव करना भी फायदेमंद होता है।
चारा चुकंदर फसल की खुदाई एवं उपज (Digging and yield of fodderbeet crop)
चारा चुकंदर (Fodder Beet) के कंदों की खुदाई से 1 से 1.5 महीना पहले पत्तियों को जमीन से 2-3 इंच ऊपर से काटकर पशुओं को चारे के रूप में खिलाना चाहिए। इसके पश्चात् फसल को सिंचाई के समय 25 किलो प्रति हैक्टेयर नत्रजन दें जिससे फसल तेजी से बढ़ेगी। जब नीचे की पत्तियाँ सूखने लग जाएँ व अन्य पीली पड़ने लग जाएँ तब इसके कंदों को खोद लें।
आम तौर पर यह फसल 120 दिन में तैयार हो जाती है, किन्तु इसकी जड़ें जमीन में खराब नहीं होती इसलिए खुदाई में जल्दीबाजी न करें व रोजाना आवश्यकतानुसार कंदों को निकलकर पशुओं को खिलाते रहें। खुदाई के वक्त ध्यान रहे कि कंदों की बाहरी परत को नुकसान न पहुंचे। अच्छे प्रबंधन द्वारा एक हेक्टेयर से लगभग 80 टन हरा चारा कंद प्राप्त किया जा सकता है।
चारा चुकंदर के उपयोग विधि (Method of using fodder beetroot)
तोड़ी गई पत्तियों और खुदाई किये हुए कन्दों को धो कर साफ करके छोटे-छोटे टुकड़ों (3-5 सेंटीमीटर) में काटकर सीधे ही जानवरों को खिला सकते हैं। चारा चुकंदर (Fodder Beet) को अकेले एवं अधिक मात्रा में खिलाने से पशु में आफरा की समस्या आ सकती है, इसलिए चारा चुकंदर को अन्य चारे और भूसे इत्यादि के साथ मिलकर ही खिलाएं।
एक पूर्ण व्यस्क डेरी वाले पशु को धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाते हुए 10-15 किलोग्राम (कन्द ) प्रतिदिन के हिसाब से खिलाएं भेड़- बकड़ी के लिए 4-7 किलोग्राम प्रति पशु उपयुक्त है। जिन दिनों पशुओं को चुकंदर खिला रहे हैं, उन दिनों इन्हें दिए जाने वाले बांटे की मात्रा आधी तक कम की जा सकती है। कंद को काटकर धूप में सुखाकर भंडारित भी किया जा सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
चारा चुकंदर (Fodder Beet) के लिए सटीक बुवाई की सलाह दी जाती है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि बीज उचित अंतराल पर बोए जाएँ, जिससे प्रत्येक बल्ब अपनी क्षमता के अनुसार बढ़ सके। बीज को 15-20 मिमी गहराई पर बोया जाना चाहिए, पंक्तियों के बीच आम तौर पर 500 मिमी की दूरी होनी चाहिए और पंक्तियों में पौधों के बीच 250 मिमी की दूरी होनी चाहिए (बुवाई दर और प्लांटर पंक्ति अंतराल पर निर्भर करता है)।
चारा चुकंदर की खेती (Fodder Beet Cultivation) के लिए मध्यम से हल्की, उपजाऊ और जल निकासी वाली मिट्टी अच्छी रहती है। चारा चुकंदर की खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए।
चारा चुकंदर की बुआई का सबसे सही समय अक्टूबर से मध्य नवंबर का होता है। चुकंदर की खेती (Fodder Beet Cultivation) ठंडे मौसम में की जाती है। इस दौरान तापमान 10-25 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है, जो चुकंदर की अच्छी वृद्धि के लिए उपयुक्त होता है।
चारा चुकंदर के लिए, कम-मध्यम डीएम वाली किस्में अच्छी होती हैं। इन किस्मों की जड़ें मिट्टी के ऊपर ज़्यादा बढ़ती हैं, जिससे चारा अच्छी मात्रा में मिलता है। चारा चुकंदर (Fodder Beet) उगाते समय, यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पशुओं को चारा किस तरह खिलाया जाएगा।
चारा चुकंदर की खेती (Fodder Beet Cultivation) के लिए नाइट्रोजन (N), फ़ॉस्फ़ोरस (P), और पोटैशियम (K) वाले उर्वरक का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके अलावा, गोबर की खाद या नव्यकोष जैविक खाद भी इस्तेमाल की जा सकती है।
चारा चुकंदर (Fodder Beet) की सिंचाई, बुवाई के तुरंत बाद करनी चाहिए, इसके बाद, 15-20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। ठंड के मौसम में 12-15 दिनों के अंतराल पर और गर्मी के मौसम में 7-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। जरूरत से ज्यादा पानी देने से पौधों में ज्यादा पत्ते उग सकते हैं और जड़ों की वृद्धि प्रभावित हो सकती है।
चारा चुकंदर से प्रति हेक्टेयर 50-75 टन ताजी जड़ें मिल सकती हैं। वहीं 100 टन तक ताजी जड़ें मिलने की भी संभावना रहती है। इसके अलावा चारा चुकंदर (Fodder Beet) से 10-20 टन प्रति हेक्टेयर पत्ती भी मिल सकती है।
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