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Home » Blog » Cucumber Cultivation in Hindi: जाने खीरा कैसे उगाएं

Cucumber Cultivation in Hindi: जाने खीरा कैसे उगाएं

August 5, 2024 by Bhupendra Dahiya Leave a Comment

Cucumber Cultivation in Hindi: जाने खीरा कैसे उगाएं

Cucumber Farming: खीरा कद्दूवर्गीय कुल का पौधा है, खीरे की उत्पत्ति भारत से ही हुई है और लता वाली सब्जियों में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। इसके फलों का उपयोग मुख्य रूप से सलाद के लिए किया जाता है । इसके फलों के 100 ग्राम खाने योग्य भाग में 96.3 प्रतिशत जल, 2.7 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 0.4 प्रतिशत प्रोटीन, 0.1 प्रतिशत वसा तथा 0.4 प्रतिशत खनिज पदार्थ पाया जाता है। खीरे में परपरागण होता है।

इसके अलावा इसमें विटामिन बी की प्रचुर मात्राएँ पाई जाती हैं। फलों की तासीर ठण्डी होती है तथा कब्ज दूर करने में सहायक हैं। खीरे (Cucumber) के रस का उपयोग करके कई तरह के सौन्दर्य प्रसाधन बनाये जा रहे हैं। देश के सभी प्रदेशों में इसकी खेती प्राथमिकता के आधार पर की जाती है। इस लेख में खीरे की खेती (Cucumber Cultivation) वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें का उल्लेख किया गया है।

Table of Contents

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  • खीरा की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for cultivation of cucumber)
  • खीरा की खेती के लिए मिट्टी का चयन (Selection of soil for cucumber cultivation)
  • खीरा की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for cucumber cultivation)
  • खीरा की खेती के लिए उन्नत किस्में (Advanced varieties of cucumber cultivation)
  • खीरा की खेती के लिए बुआई का समय (Sowing time for cucumber cultivation)
  • खीरा के बीज की मात्रा और बीज उपचार (Cucumber seed quantity and seed treatment)
  • खीरा की खेती के लिए बुवाई की विधि (Sowing method for kheera cultivation)
  • खीरा की फसल में खाद और उर्वरक (Manure and fertilizer in cucumber crop)
  • खीरा की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation management in cucumber crop)
  • खीरा की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in kheera crop)
  • खीरा की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in cucumber crop)
  • खीरा की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in cucumber crop)
  • खीरा के फलों की तुड़ाई और उपज (Picking and yield of kheera fruits)
  • अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

खीरा की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for cultivation of cucumber)

खीरे की खेती (Cucumber Cultivation) के लिए सर्वाधिक तापमान 40 डिग्री सेल्शियस और न्यूनतम 20 डिग्री सेल्शियस होना चाहिए। अच्छी बढ़वार तथा फल-फूल के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्शियस तापमान अच्छा होता है। अधिक वर्षा आर्द्रता और बदली होने से कीटों और रोगों के प्रसार में वृद्धि होती है। अधिक तापमान और प्रकाश की अवस्था में नर फूल अधिक निकलते हैं, जबकि इसके विपरीत मौसम होने पर मादा फूलों की संख्या अधिक होती है।

खीरा की खेती के लिए मिट्टी का चयन (Selection of soil for cucumber cultivation)

खीरा की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट और बलुई दोमट भूमि उत्तम मानी जाती है। खीरा की खेती के लिए भूमि का पीएच मान 5.5 से 6.8 तक अच्छा माना जाता है। नदियों की तलहटी में भी इसकी खेती अच्छी की जाती है। यह पाले को सहन नहीं कर पाती, इसलिए इसको पाले से बचाकर रखना चाहिए। क्योंकि खीरा (Cucumber) मुख्य रूप से गर्म जलवायु की फसल है, इस पर पाले का प्रभाव अधिक होता है।

खीरा की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for cucumber cultivation)

खीरे की खेती (Cucumber Cultivation) के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करे। उसके बाद 2 से 3 बार कलटिवेटर या हैरो से जुताई करे, मिट्टी को भुरभुरी और समतल बनाने के लिए लिए हर जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाए। आखिरी जुताई से पहले 15 से 20 टन गोबर की गली सड़ी खाद या कम्पोस्ट मिटटी में भली भाती मिला देनी चाहिए।

खीरा की खेती के लिए उन्नत किस्में (Advanced varieties of cucumber cultivation)

विदेशी किस्में: स्ट्रेट – 8, जापानी लौंग ग्रीन, चयन और पोइनसेट इत्यादि मुख्य है।

उन्नत किस्में: स्वर्ण पूर्णिमा, स्वर्ण अगेती, पूसा उदय, पूना खीरा, पंजाब सलेक्शन, पूसा संयोग, पूसा बरखा, खीरा – 75, खीरा – 90, कल्यानपुर हरा खीरा, कल्यानपुर मध्यम, पीसीयूएच – 1, स्वर्ण पूर्णा और स्वर्ण शीतल इत्यादि मुख्य है।

संकर किस्में: पंत संकर खीरा- 1, प्रिया, हाइब्रिड- 1 और हाइब्रिड- 2 इत्यादि मुख्य है।

खीरा की खेती के लिए बुआई का समय (Sowing time for cucumber cultivation)

खीरा (Cucumber) की मुख्य फसल के रूप में मैदानी क्षेत्रों में बुआई फरवरी से जून के प्रथम सप्ताह में करते हैं। दक्षिण भारत में इसकी बुआई जून से लेकर अक्टूबर तक करते हैं, जबकि उत्तर भारत के पर्वतीय भागों में इसकी बुआई अप्रैल से मई में की जाती है। गर्मी की फसल को जल्दी लेने के लिए पालीथीन या प्रो-ट्रे की थैलियों में जनवरी में पौध तैयार कर फरवरी में रोपण करते है।

खीरा के बीज की मात्रा और बीज उपचार (Cucumber seed quantity and seed treatment)

बीज हमेशा प्रमाणित संस्था या सरकारी संस्थान से ही लेना चाहिए। रोग रहित अच्छी उन्नत किस्म वाले 2. 5 से 3.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की जरूरत होती है। बुवाई से पहले खीरा (Cucumber) बीज को कुछ घंटो तक भिगोएँ, जिससे अंकुरण अच्छा हो। बीजों को कैप्टान या एप्रोन नामक कवकनाशी से 2 ग्राम दवा प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए।

खीरा की खेती के लिए बुवाई की विधि (Sowing method for kheera cultivation)

खीरे के पौधे को कतारों में लगाना चाहिए। अच्छी तरह से तैयार खेत में 1.5 मीटर की दूरी पर मेड़ बना लें। मेड़ों पर 60 सेमी की दूरी पर बीज बोने के लिए गढ्ढे बना लेना चाहिए। एक गड्डे में 2 बीजों की बुआई करते हैं। खीरा (Cucumber) के बीजों को अधिक गहराई में नहीं बोना चाहिए। यदि इसके बीजों को अधिक गहराई में बोया गया तो, इसके अंकुरण में कमी आ सकती है। बीज की गहराई 3 से 4 सेंटीमीटर रखें।

खीरा की फसल में खाद और उर्वरक (Manure and fertilizer in cucumber crop)

खीरा की खेती (Cucumber Cultivation) के लिए 80 किग्रा नत्रजन, 60 किग्रा फास्फोरस तथा 60 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी तथा नत्रजन की आधी मात्रा बुआई के समय मेड़ पर देना चाहिए। शेष नत्रजन की मात्रा दो बराबर भागों में बाँटकर बुआई के 20 और 40 दिनों बाद गुड़ाई के साथ देकर मिट्टी चढ़ा देना चाहिए।

खीरा की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation management in cucumber crop)

खीरा (Cucumber) बुआई के समय खेत में नमी की पर्याप्त मात्रा में रहनी चाहिए अन्यथा बीजों का अंकुरण एवं वृद्धि अच्छी प्रकार से नही होती है। बरसात वाली फसल के लिए सिंचाई की विशेष आवश्यकता नहीं पड़ती है। औसतन गर्मी की फसल को पाँचवें दिन तथा जाड़े की फसल को 10-15 दिनों पर पानी देना चाहिए। तने की वृद्धि, फूल आने के समय तथा फल की बढ़वार के समय पानी की कमी नहीं होनी चाहिए।

खीरा की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in kheera crop)

वर्षाकालीन फसल में खरपतवार की समस्या अधिक होती है। जमाव से लेकर प्रथम 25 दिनों तक खरपतवार फसल को ज्यादा नुकसान पहुँचाते हैं। इससे फसल की वृद्धि पर प्रतिकूल असर पड़ता है तथा पौधे की बढ़वार रूक जाती है। अतः खेत में समय – समय पर खरपतवार निकालते रहना चाहिए। खरपतवार निकालने के बाद खेत की गुड़ाई करके जड़ों के पास मिट्टी चढ़ाना चाहिए, जिससे खीरा फसल (Cucumber Crop) के पौधों का विकास तेजी से होता है।

खीरा की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in cucumber crop)

कद्दू का लाल कीट (रेड पम्पकिन बिटिल): इस कीट की सूड़ी जमीन के अन्दर पायी जाती है। इसकी सूण्डी व वयस्क दोनों क्षति पहुँचाते हैं। प्रौढ़ पौधों की छोटी पत्तियों पर ज्यादा क्षति पहुँचाते हैं। ग्रब (इल्ली) जमीन में रहती है, जो पौधों की जड़ पर आक्रमण कर हानि पहुँचाती है। ये कीट खीरा (Cucumber) फसल में जनवरी से मार्च के महीनों में सबसे अधिक सक्रिय होते है।

अक्टूबर तक खेत में इनका प्रकोप रहता है। फसलों के बीज पत्र एवं 4-5 पत्ती अवस्था इन कीटों के आक्रमण के लिए सबसे अनुकूल है। प्रौढ़ कीट विशेषकर मुलायम पत्तियां अधिक पसन्द करते है। अधिक आक्रमण होने से पौधे पत्ती रहित हो जाते है।

नियंत्रण: सुबह ओस पड़ने के समय राख का बुरकाव करने से भी प्रौढ़ पौधा पर नहीं बैठता जिससे नुकसान कम होता है। जैविक विधि से नियंत्रण के लिए अजादीरैक्टिन 300 पीपीएम 5-10 मिली प्रति लीटर या अजादीरैक्टिन 5 प्रतिशत 0.5 मिली प्रति लीटर की दर से दो या तीन छिड़काव करने से लाभ होता है।

इस कीट का अधिक प्रकोप होने पर कीटनाशी जैसे डाईक्लोरोवास 76 ईसी, 1.25 मिली प्रति लीटर या ट्राइक्लोफेरान 50 ईसी, 1 मिली प्रति लीटर पानी की दर से जमाव के तुरन्त बाद एवं दुबारा 10 वें दिन पर पर्णीय छिड़काव करें।

खीरे का फतंगा (डाइफेनीया इंडिका): वयस्क मध्य आकार के तथा अग्र पंख सफेदी लिए हुए और किनारे पर पारदर्शी भूरे धब्बे पाये जाते है। सूंडी लम्बे, गहरे हरे और पतली होती है। ये खीरा (Cucumber) पत्तियों के क्लोरोफिल युक्त भाग को खाते हैं जिससे पत्तियों में नसो का जाल दिखाई देता हैं। कभी – कभी फूल और फल को भी खाते हैं।

नियंत्रण: नियमित अंतराल पर सूड़ियों को इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए। जैविक विधि से नियंत्रण के लिए बैसिलस थ्रूजेंसिस किस्म कुर्सटाकी 1 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से एक या दो बार 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार कीटनाशी जैसे क्लोरेंट्रानीलीप्रोल 18.5 एससी 0.25 मिली प्रति लीटर या डाईक्लारोवास 76 ईसी1.25 मिली प्रति लीटर पानी की दर से भी छिड़काव कर सकते हैं।

सफेद मक्खी: यह सफेद एवं छोटे आकार का एक प्रमुख कीट है। पूरे शरीर मोम से ढ़का होता है, इसलिए इससे सफेद मक्खी के नाम से जाना जाता है। इस कीट के शिशु और प्रौढ़ पौधों की खीरा (Cucumber) पत्तियों से रस चूसते हैं और विशाणु रोग फैलाते हैं, जिसके कारण पौधों की बढ़ोत्तरी रूक जाती है पत्तियाँ एवं शिराएं पीली पड़ जाती हैं।

नियंत्रण: मक्का, ज्वार या बाजरा को मेड़ फसल या अन्त: सस्यन के रूप में उगाना चाहिए जो अवरोधक का कार्य करते हैं, जिससे सफेद मक्खी का प्रकोप कम हो जाता है। जैव कीटनाशक जैसे वर्टीसिलियम लिकैनी 5 मिली प्रति लिटर या पैसिलोमाइसेज फेरानोसस 5 ग्राम/ली. का प्रयोग भी किया जा सकता है।

आवश्यकता के अनुसार कीटनाशकों जैसे इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल 0.5 मिली प्रति लिटर या थायामेथेक्जाम 25 डब्लू जी 0. 35 ग्राम प्रति लिटर या फेनप्रोथ्रिन 30 ईसी 0.75 ग्राम प्रति लिटर डाइमेथोएट 30 ईसी 2.5 मिली प्रति लिटर या स्पाइरोमेसिफेन 23 एससी 0.8 मिली प्रति लिटर की दर से छिड़काव करें।

माइट (लाल मकड़ी): लाल माइट बहुत छोटे कीट हैं, जो खीरा (Cucumber) पत्तियों पर एक ही जगह जगह बनाकर बहुत अधिक संख्या में रहते हैं। इनका प्रकोप ग्रीश्म ऋतु में अधिक होता है। इसके प्रकोप के कारण पौधे अपना भोजन नहीं बना पाते जिसके फलस्वरूप पौधे की वृद्धि रूक जाती है तथा उपज में भारी कमी हो जाती हैं।

नियंत्रण: पावर छिड़काव मशीन द्वारा पानी का छिड़काव करने से फसल पर से मकड़ी अलग हो जाती हैं जिससे प्रकोप में कमी आती है। मकड़ीनाशक जैसे स्पाइरोमेसीफेन 22.9 एससी 0.8 मिली प्रति लिटर या डाइकोफाल 18.5 ईसी 5 मिली प्रति लिटर या फेनप्रोथ्रिन 30 ईसी 0.75 ग्राम प्रति लिटर की दर से 10-15 दिनों के अंतराल पर छिडकाव करें।

खीरा की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in cucumber crop)

चूर्णी फफूँद (चूर्णिल आसिता): यह विशेश रूप से खीरा (Cucumber) की खरीफ वाली फसल पर लगता है। प्रथम लक्षण पत्तियाँ और तनों की सतह पर सफेद या धुंधले धूसर धब्बों के रूप में दिखाई देता है, तत्पश्चात् ये धब्बे चूर्णयुक्त हो जाते हैं। ये सफेद चूर्णिल पदार्थ अन्त में समूचे पौधे की सतह को ढँक लेते हैं। जिसके कारण फलों का आकर छोटा हो जाता है तथा बीमारी की गम्भीर स्थिति में पौधों से पत्ते भी गिर जाते है।

नियंत्रण: इसकी रोकथाम के लिए रोग ग्रस्त पौधों को खेत में इकट्ठा करके जला देते हैं। फफूँदनाशक दवा जैसे 0.05 प्रतिशत ट्राइडीमोर्फ 1/2 मिली दवा एक लीटर पानी घोल बनाकर सात दिन के अंतराल पर छिड़काव करें। इस दवा के न उपलब्ध होने फ्लूसिलाजोल का 1 ग्राम प्रति लीटर या हेक्साकोनाजोल का 1.5 मीली प्रति लीटर या माइक्लोब्लूटानिल का 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के साथ 7 से 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।

मृदुरोमिल आसिता: यह रोग वर्षा के उपरान्त जब तापमान 20-22 डिग्री हो, तब तेजी से फैलता है। उत्तरी भारत में इस रोग का प्रकोप अधिक है। इस रोग से खीरा (Cucumber) की पत्तियों पर कोणीय धब्बे बनते हैं जो कि बाद में पीले हो जाते हैं। अधिक आर्द्रता होने पर पत्ती के निचली सतह पर मृदुरोमिल कवक की वृद्धि दिखाई देती है।

नियंत्रण: बीजों को एप्रोन नामक कवकनाशी से 2 ग्राम दवा प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए। इसके अलावा मैंकोजेब 0.25 प्रतिशत (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) घोल का छिड़काव करते हैं तथा पूरी तरह रोगग्रस्त लताओं को उखाड़कर जला देना चाहिए।

अगर बीमारी गम्भीर अवस्था में है तो मैटालैक्सिल + मैंकोजेब का 2.5 ग्राम प्रति लीटर की दर से या डाइमेयामर्फ का 1 ग्राम प्रति लीटर + मैटीरैम का 2.5 ग्राम प्रति लीटर की दर से 7 से 10 के अंतराल पर 3-4 बार छिड़काव करें।

खीरा मोजैक वायरस: इस रोग का फैलाव, रोगी बीज के प्रयोग तथा कीट द्वारा होता है। इससे पौधों की नई पत्तियों में छोटे, हल्के पीले धब्बों का विकास सामान्यत: शिराओं से शुरू होता है। खीरा (Cucumber) पत्तियों में मोटलिंग, सिकुड़न शुरू हो जाती है। पौधे विकृत तथा छोटे रह जाते है। हल्के, पीले चित्तीदार लक्षण फलों पर भी उत्पन्न हो जाते हैं।

नियंत्रण: इसकी रोकथाम के लिए विषाणु – मुक्त बीज का प्रयोग तथा रोगी पौधों को खेत से निकालकर नष्ट कर देना चाहिए। विषाणु वाहक कीट के नियंत्रण के लिए डाई मेथोएट (0.05 प्रतिशत) रासायनिक दवा का छिड़काव 10 दिन के अनतराल पर करते हैं फल लगने के बाद रासायनिक दवा का प्रयोग नहीं करते हैं।

खीरा के फलों की तुड़ाई और उपज (Picking and yield of kheera fruits)

फलों की तुड़ाई: खीरा (Cucumber) के फल कोमल एवं मुलायम अवस्था में तोड़ने चाहिए| फलों की तुड़ाई 2 से 3 दिनों के अन्तराल पर करते रहना चाहिए। समय पर फल तुड़ाई से पैदावार में बढ़ोतरी पाई गई है।

उपज: खीरा (Cucumber) की पैदावार किस्म के चयन, फसल प्रबंधन और अनुकूलता पर निर्भर करती है। फिर भी उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से खीरा की खेती करने पर औसत पैदावार 200 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है। संकर किस्मों की पैदावार इससे अधिक प्राप्त होती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

खीरा की खेती कैसे की जाती है?

खीरे की बुवाई फरवरी-मार्च के महीने में की जाती है। वैसे तो खीरे को रेतीली दोमट व भारी मिट्टी में भी उगाया जा सकता है, लेकिन इसकी खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली बलुई एवं दोमट मिट्टी में अच्छी रहती है। इसके लिए 2. 5 से 3.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की जरूरत होती है। खीरे (Cucumber) के पौधे को कतारों में लगाना चाहिए।

खीरा की खेती के लिए कैसी जलवायु अच्छी रहती है?

खीरे की बुआई मैदानी क्षेत्रों में दो बार की जाती है। गर्मी के मौसम में इसकी बुआई फरवरी से मार्च तक की जाती है। वहीं, बरसात के लिए जून-जुलाई में की जाती है। खीरे की खेती (Cucumber Cultivation) के लिए 32 से 40 डिग्री सेल्सियस तक तापमान उपयुक्त माना जाता है।

खीरा की खेती के लिए कैसी मिट्टी अच्छी रहती है?

वैसे तो खीरे (Cucumber) को रेतीली दोमट व भारी मिट्टी में भी उगाया जा सकता है, लेकिन इसकी खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली बलुई एवं दोमट मिट्टी में अच्छी रहती है। सर्वोत्तम उपज और गुणवत्ता के लिए, मिट्टी का पीएच 6.0 और 6.5 के बीच होना चाहिए, जो थोड़ा अम्लीय होता है।

खीरा फसल की बुवाई कौन से महीने में की जाती है?

खीरे की खेती (Cucumber Cultivation) के लिए बुवाई का समय ग्रीष्म ऋतु हेतु इसकी बुवाई फरवरी व मार्च के महीने में की जाती है। वर्षा ऋतु के लिए इसकी बुवाई जून-जुलाई में करते हैं। वहीं पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी बुवाई मार्च व अप्रैल माह में की जाती है।

खीरा फसल की सिंचाई कब करें?

खीरा फसल (Cucumber Crop) में फूल आने की अवस्था में हर पांच दिन के अंतराल पर सिंचाई करेें। जिन क्षेत्रों में सिंचाई जल की कमी हो वहां पर टपक सिंचाई लगाए। इससे खेत में पर्याप्त नमी बनी रहती है, साथ ही सिंचाई जल की आवश्यकता भी कम होती है।

खीरा की फसल कितने दिन में फल देती है?

खीरा (Cucumber) लगाने का सर्वश्रेष्ठ समय फरवरी-मार्च है। यदि किसान फसल लगाते हैं, तो 35 से 40 दिन में फसल फलों के लिए तैयार हो जाएगी।

खीरा की उपज कैसे बढ़ाए?

अगर खीरे की फसल (Cucumber Crop) से बढ़िया उत्पादन पाना है तो बुवाई के लिए हमेशा बढ़िया जल निकास वाली बलुई और दोमट मिट्टी में खेती करनी चाहिए। जिस खेत में बुवाई कर रहे हैं उसका पीएच मान 6-7 के बीच में रहना चाहिए। ज़ायद में इसकी अगेती बुवाई फरवरी से मार्च में की जाती है, अगर खरीफ में इसकी खेती करनी है तो जून-जुलाई में बुवाई करनी चाहिए।

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