
Fodder Chavala Farming in Hindi: चवला, जिसे इटैलियन राईग्रास के नाम से भी जाना जाता है, एक उच्च उपज देने वाली वार्षिक घास है जो पोषक तत्वों से भरपूर होती है। प्रोटीन और आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर, यह उन किसानों के लिए एक बेहतरीन विकल्प है जो अपने पशुओं के स्वास्थ्य और उत्पादकता को बढ़ावा देना चाहते हैं।
इस लेख में, हम चवला की खेती के तरीकों को एक स्थायी चारा विकल्प के रूप में विस्तार से बताते हैं। इसके विकास के लिए आदर्श जलवायु और मिट्टी की स्थिति की खोज से लेकर इसके पोषण संबंधी लाभों पर चर्चा करने तक, इस लेख का उद्देश्य चवला को अपने चारा खेती (Chavala Cultivation) के तरीकों में शामिल करने के इच्छुक किसानों के लिए एक व्यापक मार्गदर्शिका प्रदान करना है।
चवला के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for Chavala)
चवला ग्रीष्मकालीन फसल है, परंतु इसको समशीतोष्ण तथा आर्द्रता वाले उष्ण क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। गर्मी एवं सूखे के प्रति यह सहनशीलता है लेकिन पाला इसके लिए हानिकारक है। अच्छे उत्पादन के लिए उपयुक्त तापमान 25 – 35° सेल्सियस के बीच होना चाहिए। चारा चवला (Chavala) को मैदानी भागों में जायद एवं खरीफ दोनों मौसमों में सफलतापूर्वक उगाया जाता है। अत्यधिक बरसात एवं जल जमाव इसकी खेती के लिए हानिकारक है।
चवला के लिए मिट्टी का चयन (Soil selection for Chavala)
चवला (Chavala) को उन सभी प्रकार की मृदाओं में उगाया जाता है, जिनका पीएच मान 5.5-6.5 हो तथा जल निकास का उचित प्रबन्ध हो। इसकी खेती के लिए बलुई दोमट, दोमट या अच्छी उर्वरता वाली चिकनी मिट्टी उपयुक्त रहती हैं। रेतीली मिट्टी में जल धारण क्षमता कम होती है, इसलिए यह चवला की खेती के लिए उतनी उपयुक्त नहीं होती।
चवला के लिए खेत की तैयारी (Field Preparation for Chavala)
चवला (Chavala) की खेती के लिए पहले मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें, ताकि मिट्टी अच्छी तरह से ढीली हो जाए और खरपतवारों को हटाया जा सके। इसके बाद दो बार देसी हल या कल्टीवेटर से जुताई करें और पाटा चलाकर खेत को समतल करें। खेत में मौजूद किसी भी पत्थर, कचरे और खरपतवार को हटा दें। 10-12 टन सड़ी हुई गोबर की खाद और 2.5 किलो ट्राइकोडर्मा का प्रयोग उत्तम उत्पादन के लिए लाभकारी पाया गया है।
चवला के लिए उन्नत किस्में (Improved varieties for Chavala)
चारा चवला (Chavala) की खेती के लिए कुछ उन्नत किस्में हैं, जिनमें रशियन जायंट, यूपीसी – 5286, 5287, एनपी – 3 (ईसी – 4216), आईएफसी – 8401), आईएफसी – 8503, यूपीसी – 9202, यूपीसी – 4200 और यूपीसी – 8705 शामिल हैं। उत्पादक विश्वसनीय स्रोतों से उच्च गुणवत्ता वाले चवला के बीज का चुनाव करें। रोपण से पहले, सुनिश्चित करें कि बीज साफ हों और उनमें कोई मलबा न हो।
चवला बुवाई का समय और बीज दर (Sowing time of Chvala and seed rate)
बुवाई का समय: चारे के लिए चवला (Chavala) की बुवाई का सही समय फरवरी-मार्च के महीने में है, जिससे मई-जून में हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है। हालाँकि इसकी बुवाई बसन्त (फरवरी – मार्च) और वर्षा (जून – जुलाई) दोनों ऋतुओं में की जाती है।
बीज की मात्रा: चवला की बुवाई के लिए गुणवता वाला 35 से 40 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त है। यदि अन्य फसलों के साथ अन्त: फसल के रूप में उगाना चाहे तो बीज की मात्रा 15 से 20 किलोग्राम रखनी चाहिए। बीज को कवकनाशी दवा से उपचारित कर बुवाई करें।
बीज की यह मात्रा बुवाई की विधि (छिटकवाँ अथवा पंक्तियों में), प्रजातियों के प्रकार (छोटी एवं झाड़ीनुमा अथवा चढ़ने वाली प्रजातियाँ) और बुवाई के समय (बसन्त एवं ग्रीष्म अथवा वर्षा ऋतु ) पर निर्भर करती है। छिटकवाँ विधि की अपेक्षा पंक्तियों में बुवाई करने पर बीज कम लगता है।
चवला के लिए बुवाई का तरीका ( Sowing method for Chavala)
चारे के लिए चवला (Chavala) की बुवाई छिटकवाँ विधि या पंक्तियों में नाली अथवा मेड़ बनाकर की जाती है। पंक्तियों में बीजों का अंकुरण एवं जल निकास अच्छा होता है। निराई-गुड़ाई तथा कीट एवं फफूँदी नाशक दवाओं के छिड़काव में सहायक सिद्ध होता है।
झाड़ीनुमा और बौनी प्रजातियों के लिए पंक्ति से पंक्ति 30-40 सेंमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 7 से 10 सेंमी रखनी चाहिए। इसी प्रकार फैलने या चढ़ने वाले प्रजातियों के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 50-60 सेंमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेंमी रखी जाती है।
चवला के लिए खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizer for Chavala)
चवला (Chavala) से चारे की अच्छी पैदावार के लिए 200-250 क्विंटल गोबर की सड़ी हुई खाद तथा 30-40 किग्रा नेत्रजन, 50-60 किग्रा फॉस्फोरस और 50 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए। यदि खेत में पहली बार चवला की खेती की जा रही है तो बुवाई से पूर्व बीजों को राइजोबियम कल्चर से उपचारित कर लेना चाहिए। बीजों को उपचारित करने के लिए 1.5 किग्रा राइजोबियम कल्चर प्रति 100 किग्रा बीज की दर से आवश्यकता पड़ती हैं।
चवला की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in Chavla crop)
सामान्यत: चवला (Chavala) बुवाई के लगभग चार सप्ताह बाद खुरपी या कुदाल से एक बार निराई-गुड़ाई अवश्य करना चाहिए। निराई-गुड़ाई के बाद नेत्रजन की शेष आधी मात्रा को टापड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए। रासायनिक विधि द्वारा खरपतवारों का नियंत्रित करने के लिए 3.30 लीटर स्टाम्प को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के 48 घंटों के भीतर खेत में समान रूप से छिड़काव करना चाहिए। पशुओं और आसपास के पर्यावरण को नुकसान से बचाने के लिए खरपतवारनाशकों का विवेकपूर्ण और अंतिम उपाय के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए।
चवला की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Chavala Crop)
चारा चवला (Chavala) की फसल में अच्छी पैदावार के लिए, सिंचाई का उचित प्रबंधन आवश्यक है। फसल को 4-5 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है, खासकर मई में, जब फसल उगाई जाती है, तो 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। पहली सिंचाई बुवाई के बाद, जब पौधे अंकुरित हो रहे हों। दूसरी सिंचाई, जब पौधे 20-25 दिन के हो जाएँ। तीसरी सिंचाई पहली कटाई के बाद करें। लेकिन ग्रीष्म ऋतु में 5-6 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करना आवश्यक है।
चवला में कीट और रोग प्रबंधन (Pest and Disease Management in Chavala)
चवला (Chavala) की फसल पर कीट और रोग कहर बरपा सकते हैं। इससे निपटने के लिए, पौधों की नियमित निगरानी जरूरी है। प्राकृतिक शिकारियों या जैव कीटनाशकों का उपयोग करके एकीकृत कीट प्रबंधन तकनीकें रासायनिक उपयोग को कम करने में मदद कर सकती हैं।
उचित फसल चक्र और खेत की स्वच्छता बनाए रखने से भी बीमारियों के प्रसार को रोका जा सकता है। यदि संभव हो सके चारे की फसलों में कीटनाशक दवाओं का प्रयोग कम से कम व अत्यन्त सावधानीपूर्वक करना चाहिए। इनके अवशेष चारे में बचे रहने के कारण इससे पशुओं के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
चवला की कटाई का समय और उपज (Chawala Harvesting Time and Yield)
कटाई का समय: जब हरे चारे के लिए चवला की कटाई की बात आती है, तो समय का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है। चवला के पौधों को तब काटना सबसे अच्छा होता है जब वे लगभग 45-50 दिन के हो जाते हैं, क्योंकि इस अवस्था में उनमें सबसे ज़्यादा पोषक तत्व होते हैं। दरांती या कटर का उपयोग करके पौधों को जमीन के करीब से काटें। फिर से उगने के लिए कुछ ठूंठ पीछे छोड़ना सुनिश्चित करें।
बीज उत्पादन: यदि आप बीज भी लेना चाहते हैं, तो अंतिम कटाई के 10-15 दिन पहले कटाई बंद कर देनी चाहिए।
उपज: चंवले (Chavala) की फसल से 250-350 क्विंटल हरा चारा प्रति हैक्टेयर प्राप्त होता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
चवला (Chavala) की खेती एक अच्छी और बहुउपयोगी फसल है, जो चारे, हरी खाद और दाने के लिए उपयोगी है। यह सूखे को सहन कर सकती है और जल्दी पकने वाली फसल है। अच्छी तरह से तैयारी खेत में इसकी बुवाई झाड़ीनुमा और बौनी प्रजातियों के लिए पंक्ति से पंक्ति 30-40 सेंमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 7 से 10 सेंमी करनी चाहिए। चारा प्रयोग के लिए गुणवता वाला 35 से 40 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त रहता है।
गर्मी के मौसम के लिए चवला (Chavala) की बुआई फरवरी-मार्च में तथ बारिश के सीजन में जुलाई के पहले सप्ताह से 10 अगस्त तक की जा सकती है।
चारे के लिए चवला (Chavala) की कुछ अच्छी किस्मों में यूपीसी- 5286, यूपीसी- 5287, एनपी- 3, बुन्देल लोबिया- 2, और रशियन जायंट आदि शामिल है।
चारे के लिए चवला (Chavala) की कटाई की बात आती है, तो समय का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है। चवला के पौधों को तब काटना सबसे अच्छा होता है जब वे लगभग 45-50 दिन के हो जाते हैं, क्योंकि इस अवस्था में उनमें सबसे ज़्यादा पोषक तत्व होते हैं।
चवला (Chavala) की फसल में गोबर या कम्पोस्ट की 20-25 टन मात्रा बुवाई से 1 माह पहले खेत में डाल दें। यह एक दलहनी फसल है, इसलिए नत्रजन की 20 किग्रा, फास्फोरस 60 किग्रा तथा पोटाश 50 किग्रा प्रति हेक्टेयर खेत में अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिला दें।
चारा चवला (Chavala) की फसल की सिंचाई, बुवाई के 20-25 दिन बाद हल्की सिंचाई करके शुरू करनी चाहिए, फिर 15-15 दिन के अंतराल पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करें, खासकर गर्मी की फसल में।
चवला (Chavala) की फसल से हरे चारे की उपज लगभग 100-120 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है, जबकि कुछ उन्नत किस्मों में यह 150-250 क्विंटल तक भी पहुँच सकती है।
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