
How to Grow Bahera in Hindi: विभीतकी या बहेड़ा (टर्मिनलिया बेलेरिका) एक महत्वपूर्ण पेड़ की प्रजाति है, जो अपने कई इकोलॉजिकल और आर्थिक फायदों के लिए जानी जाती है। पारंपरिक रूप से अपने औषधीय गुणों के लिए मूल्यवान, बहेड़ा देश भर के कई ग्रामीण समुदायों की आजीविका में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसकी खेती सदियों से भारतीय कृषि का एक अभिन्न अंग रही है, जो स्थायी पद्धतियों और सांस्कृतिक प्रासंगिकता की एक समृद्ध विरासत को दर्शाती है।
जैसे-जैसे प्राकृतिक और ऑर्गेनिक उत्पादों की मांग बढ़ रही है, बहेड़ा (Bahera) की खेती की बारीकियों को समझना, मिट्टी और जलवायु की जरूरतों से लेकर कीट प्रबंधन रणनीतियों तक, और भी महत्वपूर्ण होता जा रहा है। यह लेख भारत में बहेड़ा की खेती के विभिन्न पहलुओं पर गहराई से चर्चा करता है, इसके ऐतिहासिक महत्व, आर्थिक प्रभाव और इस मूल्यवान पेड़ की प्रजाति के लिए भविष्य की चुनौतियों और संभावनाओं पर प्रकाश डालता है।
बहेड़ा के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable Climate for Bahera)
बहेड़ा गर्म से उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छी तरह फलता-फूलता है, जहाँ तापमान में काफी उतार-चढ़ाव होता है, अच्छी ग्रोथ के लिए सही तापमान रेंज अधिकतम 30°C से 46°C और न्यूनतम -1°C से 15°C है। इस पौधे को सालाना लगभग 900 से 3000 मिमी बारिश की जरूरत होती है।
बहेड़ा (Bahera) उन जगहों पर सबसे अच्छा उगता है जहाँ 1500 मिमी या उससे ज्यादा बारिश होती है। अच्छी ग्रोथ और ज्यादा फल पाने के लिए इसे पूरी या थोड़ी धूप की जरूरत होती है।
बहेड़ा के लिए भूमि का चयन (Land Selection for Baheda)
सफल बहेड़ा की खेती के लिए, गहरी, अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी वाली जमीन चुनें, जिसमें पर्याप्त नमी और भरपूर धूप हो, हालांकि छोटे पौधे थोड़ी छाया भी सहन कर लेते हैं। इसलिए बड़े पौधों के लिए खुली, धूप वाली जगहें सबसे अच्छी होती हैं।
बहेड़ा (Bahera) की खेती के लिए जमीन को गहरी जुताई और गड्ढे खोदकर तैयार करें, अगर जमीन खराब है तो उसमें गोबर की खाद डालें, और अच्छी जल निकासी सुनिश्चित करें।
बहेड़ा के लिए खेत की तैयारी (Field preparation for Bahera)
बहेड़ा की खेती के लिए खेत तैयार करने में गहरी जुताई, मिट्टी को भुरभुरा करना और अच्छी जल निकासी सुनिश्चित करना शामिल है, जिसके बाद मानसून से पहले 3×3 मीटर की दूरी पर 45x45x45 सेमी के गड्ढे खोदें, खासकर निचले इलाकों में बड़े गड्ढे खोदें।
बहेड़ा (Bahera) की खेती के लिए प्रत्येक गड्ढे में लगभग 10 किलो अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद डालें। इसके साथ 100 ग्राम यूरिया, 250 ग्राम सुपरफॉस्फेट और 100 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति गड्ढा मिलाएं।
बहेड़ा की उन्नत किस्में (Improved varieties of Baheda)
बहेड़ा (Bahera) की खेती के लिए कोई विशिष्ट उन्नत किस्में अलग से विकसित नहीं की गई हैं, बल्कि यह एक स्थानीय औषधीय वृक्ष है जिसे मुख्य रूप से इसके प्राकृतिक रूप में ही उगाया जाता है, उन्नत किस्में खोजने की बजाय, आपको अच्छी गुणवत्ता के स्थानीय बीज या पौधे लेने चाहिए।
लेकिन कुछ क्षेत्रों और रिसर्च संस्थानों ने फल की क्वालिटी और मूल स्थान के आधार पर खास ग्रेड या किस्मों की पहचान की है, जैसे- जबलपुर 1, जेनुइन जबलपुर, भीमिलिक्स फिन और भीमिलिक्स नंबर 1 उत्पादक इनका इस्तेमाल करते हैं।
बहेड़ा की बुवाई या रोपाई का समय (Time of Sowing or Planting Bahera)
बहेड़ा (Bahera) के बीज बोने का सबसे अच्छा समय मॉनसून की शुरुआत (जून-जुलाई) में सीधे खेत में बोने या पौधे लगाने के लिए होता है, या मार्च-अप्रैल में नर्सरी में पौधे उगाने के लिए होता है। बेहतर अंकुरण के लिए यह पक्का करें कि बीज 24 घंटे पहले भिगोए गए हों। रोपण अक्सर मॉनसून के साथ, गड्ढों में, 3m x 3m की दूरी पर किया जाता है, और पौधे 3-4 महीने पुराने होने पर लगाए जाते हैं।
बहेड़ा के लिए पौधे तैयार करना (Preparing plants for Bahera)
बहेड़ा की खेती दो मुख्य तरीकों से की जा सकती है: बीजों से लैंगिक प्रजनन (सीधी बुवाई या रोपाई) और कॉपिसिंग द्वारा वानस्पतिक प्रजनन। बड़े पैमाने पर खेती के लिए सबसे आम और प्रभावी तरीका नर्सरी में बीजों से पौधे उगाना और फिर पौधों की रोपाई करना है। बहेड़ा (Bahera) की खेती के लिए पौधे तैयार करने की विधियों का अधिक विवरण इस प्रकार है, जैसे-
लैंगिक प्रजनन (बीज विधि): यह बहेड़ा की खेती का मानक तरीका है। फल नवंबर और फरवरी के बीच गिरने के बाद जमीन से इकट्ठा किए जाते हैं। गूदा तुरंत हटा देना चाहिए, और बीजों को स्टोर करने से पहले धूप में सुखा लेना चाहिए। अंकुरण दर बढ़ाने के लिए, बीज बोने से पहले उन्हें 24 घंटे पानी में भिगोना चाहिए ताकि बीज का छिलका नरम हो जाए।
बीज की मात्रा: बहेड़ा की खेती के लिए, नर्सरी स्टॉक तैयार करने के लिए प्रति हेक्टेयर लगभग 5 किलोग्राम गूदा निकाले हुए बीजों की जरूरत होती है। कम से कम एक स्वस्थ पौधा सुनिश्चित करने के लिए प्रति पॉलीबैग या रोपण छेद में 2-3 गूदा निकाले हुए बीज बोएं, फिर अंकुरण के बाद सबसे मजबूत पौधे को छोड़कर बाकी को हटा दें।
नर्सरी में बुवाई: नर्सरी बेड आमतौर पर मार्च-अप्रैल (सिंचाई वाली नर्सरी के लिए) या जून-जुलाई (मानसून के साथ) में तैयार किए जाते हैं। बीज लगभग 5 सेमी की दूरी पर और 2 इंच गहरे बोए जाते हैं। अंकुरण आम तौर पर अच्छा होता है, जिसकी अपेक्षित दर 40-90% होती है। पौधे 10 से 40 दिनों में निकल आते हैं।
रोपाई: बहेड़ा (Bahera) के पौधे मुख्य खेत में रोपाई के लिए तब तैयार होते हैं, जब वे लगभग 3-4 महीने के हो जाते हैं, आमतौर पर जून-जुलाई में मानसून के मौसम की शुरुआत में।
वानस्पतिक प्रजनन: पेड़ स्वाभाविक रूप से बीजों और कॉपिसिंग (काटने के बाद ठूंठ से अंकुरित होने) की क्षमता से अच्छी तरह से पुनर्जीवित होता है। 12-15 महीने पुराने पौधों से तैयार ठूंठ को गड्ढों या सब्बल के छेदों में लगाया जा सकता है, जिससे पूरे पौधे लगाने के बराबर परिणाम मिलते हैं। इस विधि का उपयोग अक्सर खराब हो चुके क्षेत्रों में किया जाता है।
बहेड़ा के पौधारोपण का तरीका (Method of planting Bahera)
बहेड़ा (Bahera) की खेती के लिए पहले बीज का उपचार करें (गर्म पानी में 24 घंटे भिगोएँ), फिर मानसून शुरू होने पर (जून-जुलाई) खेत में 45x45x45 सेंटीमीटर के गड्ढे खोदें और मानसून शुरू होने से पहले (जून-जुलाई) भरें। पौधों को 3 मीटर x 3 मीटर की दूरी पर लगाएँ।
प्रत्येक गड्ढे में 10 किलोग्राम अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद (FYM) डालें, साथ ही 100 ग्राम यूरिया, 250 ग्राम सुपरफॉस्फेट और 100 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश भी मिला सकते हैं। जब पौधे 3-4 महीने के हो जाएँ (लगभग 10-40 दिन की पौध), तब उन्हें मुख्य खेत में लगाएँ, जब मानसून आ जाए।
बहेड़ा में खाद और उर्वरक (Manure and fertilizer in Baheda)
बहेड़ा (Bahera) की खेती के लिए, पौधरोपण से पहले प्रति गड्ढे में 10 किलो अच्छी सड़ी गोबर की खाद (FYM) और रासायनिक उर्वरकों में 100 ग्राम यूरिया, 250 ग्राम सुपर फॉस्फेट और 100 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश डालें, बाद में आवश्यकतानुसार यह मात्रा प्रति वर्ष बढ़ा सकते हैं, साथ ही जैविक खाद का प्रयोग और दीमक नियंत्रण के लिए नीम की खली या जैविक उपाय अपनाना फायदेमंद होता है।
बहेड़ा में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Bahera)
बहेड़ा (Bahera) की खेती में सिंचाई प्रबंधन मौसम और मिट्टी की नमी पर निर्भर करता है। शुरुआती अवस्था में, खासकर गर्मियों (मार्च-मई) में, नियमित सिंचाई (सप्ताह में 1-3 बार) जरूरी है, जबकि फल लगने और बढ़ने के समय (मई-जुलाई) पानी की आवश्यकता बढ़ जाती है।
जिसमें 3-4 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी पड़ सकती है, और बारिश न होने पर जुलाई-अगस्त में भी सिंचाई करें। पानी की बचत और बेहतर प्रबंधन के लिए ड्रिप इरिगेशन, मल्चिंग और वर्षा जल संचयन जैसी तकनीकें अपनाएं।
बहेड़ा में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in Bahera)
बहेड़ा (Bahera) की खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए हाथ से निदाई-गुड़ाई, मल्चिंग (पलवार), और साफ-सुथरे बीजों का उपयोग मुख्य तरीके हैं। रोपण के 1 महीने बाद से शुरू करें और हर 20-25 दिन के अंतराल पर हल्की गुड़ाई करें, इससे मिट्टी में नमी भी बनी रहेगी और खरपतवार भी निकल जाएंगे। मिट्टी का तापमान नियंत्रित करने और खरपतवारों को उगने से रोकने के लिए मल्चिंग एक प्रभावी तरीका है।
यह विधि खरपतवारों को नियंत्रित करने में मदद करती है और यह सुनिश्चित करती है कि मिट्टी की नमी बनी रहे। गर्मियों में गहरी जुताई करने से खरपतवारों के बीज नष्ट होते हैं और दीमक जैसी समस्याओं से भी बचाव होता है। रासायनिक शाकनाशियों का उपयोग करते समय बहुत सावधानी बरतें, क्योंकि ये पेड़ के लिए हानिकारक हो सकते हैं।
बहेड़ा की खेती में कीट नियंत्रण (Pest control in Bahera Cultivation)
बहेड़ा (Bahera) की खेती में कीट नियंत्रण के लिए जैविक विधियों (नीम आधारित कीटनाशक, मित्र कीटों का प्रयोग, गहरी जुताई, फसल चक्र) और रासायनिक नियंत्रण का संतुलित उपयोग करें। सामान्य कीटों में दीमक, लाख कीट, फल मक्खी, तना छेदक, पत्ता खाने वाली इल्लियाँ शामिल है। बहेड़ा (Bahera) की खेती में कीट नियंत्रण के उपाय इस प्रकार है, जैसे-
जैविक: प्रकाश पाश (लैंप) का प्रयोग करें, सड़ी पत्तियों को इकट्ठा करें, मित्र कीटों का उपयोग करें और चीनी के घोल से चींटियों को आकर्षित करें।
रासायनिक: मटर के दाने के बराबर फल होने पर डाईमेथोऐट (रोगोर) 30ईसी (500 मिली प्रति 500 लीटर पानी प्रति एकड़) का छिड़काव करें, जनवरी के अंत में मेलाथियान 50ईसी (5 किलो गुड़/चीनी के साथ प्रति 500 लीटर पानी प्रति एकड़) का छिड़काव करें, कार्बोफ्यूरान (3G, 1.0 ग्राम प्रति पौधा) मिट्टी में मिलाएं, नीम के कीटनाशक (जैसे अचूक, निम्बेसिडिन) प्रयोग करें, क्लोरपायरीफॉस (1 मिली प्रति लिटर पानी) का प्रयोग करें।
बहेड़ा की खेती में रोग नियंत्रण (Disease Control in Bahera Cultivation)
बहेड़ा की खेती में रोग नियंत्रण के लिए मुख्य रूप से जैविक तरीके अपनाए जाते हैं, जैसे गहरी जुताई, खेत को खरपतवार-मुक्त रखना आदि। इसके मुख्य रोगों में सफेद चुन्नी रोग (पाउडरी मिल्ड्यू), काजली रोग, फल गलन रोग, उखटा/जड़ गलन आदि शामिल है। बहेड़ा (Bahera) की खेती में रोग नियंत्रण के उपाय इस प्रकार है, जैसे-
जैविक: उखटा रोग के लिए गर्मियों में गहरी जुताई करें, ट्राइकोडर्मा (2.5 किलो) को 100 किलो गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करें, फसल चक्र अपनाएं।
रासायनिक: सफेद चुन्नी के लिए सल्फेक्स (0.2%) का छिड़काव करें, फल गलन/काजली के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.3%) का छिड़काव करें, फफूंदनाशक (जैसे कार्बेंडाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी) का प्रयोग करें।
बहेड़ा के फलों की तुड़ाई (Harvesting of Bahera fruits)
बहेड़ा (Bahera) के फलों की तुड़ाई तब की जाती है, जब वे हरे-भूरे रंग के हो जाएं, आमतौर पर नवंबर से फरवरी के महीनों में, और पकने के बाद तुरंत तोड़ना चाहिए। तुड़ाई के बाद बीजों को धूप में सुखाया जाता है, और यह फल आयुर्वेदिक दवाइयों, खासकर त्रिफला और खांसी, सर्दी, बालों व पाचन संबंधी समस्याओं के लिए इस्तेमाल होता है।
बहेड़ा की फसल से उपज (Yield from Bahera crop)
बहेड़ा (Bahera) की फसल से मुख्य उपज उसके सूखे फल (गिरी/बीज) और छाल होती है, जिनका उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं (जैसे त्रिफला), तेल, रंग और लकड़ी के लिए किया जाता है। उपज की मात्रा पेड़ की उम्र, किस्म और प्रबंधन पर निर्भर करती है, लेकिन एक पूरी तरह से विकसित बहेड़ा पेड़ से फलों की औसत पैदावार लगभग 30 किलोग्राम प्रति वर्ष होती है, जो आदर्श परिस्थितियों में 15 साल बाद प्रति पेड़ 2 क्विंटल (200 किलोग्राम) तक बढ़ सकती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
बहेड़ा (Bahera) उगाने के लिए, पहले बीजों को 24 घंटे गर्म पानी में भिगोकर उनकी कठोर परत नरम करें, फिर मानसून शुरू होने से पहले (जून-जुलाई में) नर्सरी या सीधे खेत में 2 इंच गहरे गड्ढों में 3×3 मीटर की दूरी पर बोएं। अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी और भरपूर धूप इसके लिए सबसे अच्छी होती है, साथ ही रोपण के समय गड्ढों में सड़ी गोबर की खाद और रासायनिक उर्वरक डालें।
बहेड़ा (Bahera) उगाने के लिए आदर्श जलवायु गर्म और शुष्क होती है, जहाँ तापमान 30-45°C तक रहे, सामान्य वर्षा 900-3000 मिमी हो और नमी वाली, इसे उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त माना जाता है, और यह कम आर्द्रता वाली जगहों पर भी पनपता है।
बहेड़ा (Bahera) 6.0 से 8.0 पीएच रेंज वाली अच्छी जल निकासी वाली रेतीली या दोमट मिट्टी में अच्छी तरह उगता है। इसे ऐसी मिट्टी पसंद है जो ऑर्गेनिक पदार्थ से भरपूर हो और यह मध्यम खारेपन को सहन कर सकता है।
बहेड़ा (Bahera) की कोई विशेष, व्यावसायिक रूप से विकसित किस्म उतनी प्रमुखता से सामने नहीं आती, जितनी अन्य फसलों में आती है। बल्कि इसकी खेती अक्सर स्थानीय और जंगली किस्मों से होती है, जो विभिन्न जलवायु और मिट्टी में उगने की क्षमता रखती हैं, खासकर टर्मिनलिया बेलिरिका की प्रजातियाँ, जो औषधीय गुणों और पुनर्वनीकरण के लिए महत्वपूर्ण हैं।
बहेड़ा (Bahera) उगाने का सबसे अच्छा समय मानसून की शुरुआत (जून-जुलाई) है, जब आप सीधे बीज बो सकते हैं या नर्सरी तैयार कर सकते हैं, और जुलाई में पौधे लगा सकते हैं, क्योंकि इस समय मॉनसून की बारिश से पौधों को जमने और बढ़ने में मदद मिलती है।
बहेड़ा (Bahera) की खेती के लिए बीजों की संख्या प्रति एकड़ निश्चित नहीं होती, बल्कि पौधों के बीच की दूरी महत्वपूर्ण है, जो आमतौर पर 3×3 मीटर (लगभग 10×10 फीट) रखी जाती है, जिससे प्रति एकड़ लगभग 400-500 पौधे लगते हैं।
बहेड़ा (Bahera) की सिंचाई मौसम और पौधे की उम्र के अनुसार करें। गर्मियों (मार्च-मई) में हर हफ्ते 2-3 बार पानी दें, जबकि मानसून (जुलाई-सितंबर) में बारिश के आधार पर, और सर्दी (अक्टूबर-मार्च) में 15-20 दिनों के अंतराल पर हल्की सिंचाई पर्याप्त है, खासकर पहली बार रोपण के बाद तुरंत और फिर धीरे-धीरे अंतराल बढ़ाएं, ताकि जड़ें मजबूत हों और मिट्टी नम रहे, लेकिन जल जमाव न हो।
बहेड़ा (Bahera) के लिए अच्छी उर्वरकों में गोबर की खाद (रूड़ी की खाद) और संतुलित धीमी गति से निकलने वाली रासायनिक खाद शामिल हैं, जो मिट्टी की तैयारी के समय और बाद में समय-समय पर दी जाती हैं। शुरुआती गड्ढों में यूरिया, सुपर फास्फेट और म्यूरेट ऑफ पोटाश जैसे उर्वरक भी डाले जाते हैं, जिन्हें पौधे के बढ़ने के साथ बढ़ाया जा सकता है, साथ ही जैविक खाद जैसे गाय का गोबर भी हर 15 दिन में देना फायदेमंद है।
बहेड़ा (Bahera) एक पेड़ है, इसलिए इसकी फसल की निराई-गुड़ाई छोटे पौधों और युवा पेड़ों के शुरुआती सालों में ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। खासकर बारिश के बाद या सिंचाई के तुरंत बाद जब मिट्टी नम हो, ताकि खरपतवार आसानी से निकलें और जड़ें न टूटें, बड़े पेड़ों में भी साल में 1-2 बार, खासकर सर्दियों के अंत या शुरुआती वसंत में (फरवरी-मार्च), और गर्मियों में जरूरत पड़ने पर निराई-गुड़ाई करनी चाहिए, ताकि जड़ों को हवा और नमी मिले और मिट्टी भुरभुरी रहे।
बहेड़ा (Bahera) एक औषधीय वृक्ष है, और इस पर लगने वाले कीट और रोग अन्य बड़े वृक्षों के समान हो सकते हैं, जिनमें पत्तियों को नुकसान पहुँचाने वाले कीड़े (जैसे माहू/एफिड्स, दीमक) और फंगल रोग (जैसे सिल्वर लीफ, जो बेर में आम है) शामिल हैं।
बहेड़ा (Bahera) में उत्पादक इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट तरीकों को अपनाकर कीटों और बीमारियों को मैनेज कर सकते हैं, जिसमें निगरानी, जैविक नियंत्रण के तरीके और ऑर्गेनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल शामिल है। नियमित जांच और मिट्टी की स्वस्थ स्थिति बनाए रखने से भी कीटों के हमले को रोकने में मदद मिलती है।
बहेड़ा (Bahera) की फसल को तैयार होने में लगने वाला समय उसके प्रकार और मौसम पर निर्भर करता है। फसल को पकने और फल देने लायक उपज देने में आमतौर पर 7 से 8 साल लगते हैं।
बहेड़ा (Bahera) के फल तोड़ने का अच्छा समय शरद ऋतु (अक्टूबर-नवंबर) के अंत से लेकर वसंत ऋतु (फरवरी-मार्च) की शुरुआत तक होता है, जब फल पूरी तरह पककर भूरे रंग के हो जाते हैं। लेकिन कुछ लोग आधे पके फल (जो पाचक और रेशेदार होते हैं) भी तोड़ते हैं, इसलिए उपयोग के आधार पर समय अलग हो सकता है।
हाँ, बहेड़ा (Bahera) को गमले और बगीचे, दोनों में उगाया जा सकता है, लेकिन यह एक बड़ा पेड़ बनता है (20-30 मीटर तक ऊँचा), इसलिए इसे बगीचे में उगाना बेहतर है जहाँ पर्याप्त जगह हो, जबकि छोटे पौधे को गमले में शुरू कर सकते हैं, लेकिन भविष्य में इसे जमीन में लगाने की आवश्यकता होगी।
बहेड़ा (Bahera) के मुख्य स्वास्थ्य लाभों में पाचन में सुधार, कब्ज से राहत, श्वसन संबंधी समस्याओं (खांसी, बलगम) का इलाज और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करना शामिल है। यह बालों के विकास को बढ़ावा देने और त्वचा के दाग-धब्बों को कम करने के लिए भी उपयोग होता है, क्योंकि इसमें एंटीऑक्सीडेंट और जीवाणुरोधी गुण होते हैं, जो समग्र स्वास्थ्य और विषहरण में मदद करते हैं।
बहेड़ा (Bahera) का इस्तेमाल आमतौर पर इसके एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी और पाचन गुणों के लिए किया जाता है। इसका इस्तेमाल अक्सर आयुर्वेदिक दवा में सांस की समस्याओं, पाचन समस्याओं और त्वचा रोगों सहित कई बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है।
घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाजारों में इसकी मांग के कारण बहेड़ा (Bahera) का महत्वपूर्ण आर्थिक महत्व है। इसका उपयोग हर्बल उत्पादों, फूड सप्लीमेंट्स और कॉस्मेटिक्स के उत्पादन में किया जाता है, जो इसकी खेती और व्यापार में शामिल कई ग्रामीण समुदायों की आजीविका में योगदान देता है।





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