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Home » Blog » Asafoetida Cultivation in Hindi: हींग की खेती कैसे करें

Asafoetida Cultivation in Hindi: हींग की खेती कैसे करें

February 25, 2025 by Bhupendra Dahiya Leave a Comment

Asafoetida Cultivation in Hindi: हींग की खेती कैसे करें

Asafoetida Farming in Hindi: हींग को अनेक नामों से जाना जाता है, जैसे हींग, हींगर, कायम, यांग, हेंगु, इंगुवा, हिंगु, अगुड़ागन्धु, सहस्रावेधी तथा रमाहा। इसकी जड़ों से रिसनेवाले वानस्पतिक दूध को शुष्क करके हींग के रूप में प्रयोग किया जाता है। भारत में हींग का उपयोग मसाले के तौर पर किया जाता है। फेरूला हींग के पौधे की जड़ों से प्राप्त सुगंधित राल का भारतीय व्यंजनों में अपने अद्वितीय स्वाद-बढ़ाने वाले गुणों के कारण लंबे समय से उपयोग किया जाता रहा है।

अपने पाककला अनुप्रयोगों से परे, हींग अपने चिकित्सीय लाभों के लिए आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस लेख में, हम भारत में हींग की खेती (Asafoetida Cultivation), इसके ऐतिहासिक महत्व से लेकर आधुनिक समय की पद्धतियों तक, इस उद्योग में प्रमुख चरणों, चुनौतियों और भविष्य की संभावनाओं पर प्रकाश डालते हैं।

Table of Contents

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  • हींग के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for asafoetida)
  • हींग के लिए भूमि का चयन (Selection of land for asafoetida)
  • हींग की खेती के लिए बीज (Seeds for cultivation of asafoetida)
  • हींग का प्रवर्धन व प्रजनन (Propagation and reproduction of asafoetida)
  • हींग की बुवाई का तरीका (Method of sowing of asafoetida)
  • हींग की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Heeng Crop)
  • हींग रस का संग्रह और उपज (Collection and yield of asafoetida juice)
  • अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)

हींग के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for asafoetida)

हींग की खेती (Asafoetida Cultivation) के लिए शुष्क तथा ठंडा वातावरण अनुकूल माना जाता है। यह न्यूनतम तापमान 5 से 10 डिग्री सेल्सियस तथा उच्चतम तापमान 35 से 40 डिग्री सेल्सियस सहन कर सकती है। इसके पौधों को पूरी धूप की आवश्यकता होती है तथा पहाड़ी इलाकों में जहां सूरज की किरणें बिना रुकावट सीधे जमीन तक पहुँचती हैं, इसके लिए उपयुक्त है। हींग की खेती के लिए औसतन वर्षा 100-350 मिमी उपयुक्त मानी जाती है।

हींग के लिए भूमि का चयन (Selection of land for asafoetida)

हींग की फसल (Asafoetida Crop) कम पीएच स्तर को भी सहन कर सकती है। इसकी जड़ें लंबी तथा गहरी होने के कारण रेतीली दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है परंतु खेत में जल भराव की कोई स्थिति उत्पन्न नहीं होनी चाहिए। इष्टतम विकास के लिए पीएच स्तर 7 से 8 होना बेहतर होता है। जड़ सड़न और फंगल रोगों को रोकने के लिए मिट्टी में जल निकासी अच्छी होनी चाहिए।

हींग की खेती के लिए बीज (Seeds for cultivation of asafoetida)

हींग का बीज आकार में अंडाकार, चपटा एवं हल्के भूरे रंग का होता है तथा ये दोनों तरफ से एक पतली और चौड़ी कागजनुमा परत से ढका हुआ होता है हींग (Asafoetida) का बीज प्राय: बीज निष्क्रियता में होने के कारण अंकुरित नही हो पाता है । बीज को अंकुरित करने के लिए बीज की निष्क्रियता को तोड़ना अति आवश्यक है।

हींग का प्रवर्धन व प्रजनन (Propagation and reproduction of asafoetida)

हींग के पौधे में पुष्पण पाँच वर्ष में होता है तथा इसके फूल पीले और संयुक्त पुष्पछत्र में होते हैं। इसमे उभयलिंगी फूल पाये जाते हैं तथा कीटों द्वारा परागण होता है। हींग के पौधों में पाँचवे साल में मई माह के दौरान पुष्पगुच्छ आने शुरू हो जाते हैं। इसके फूल पीले रंग के तथा उभयलिंगी अर्थात दोनों नर व मादा फूल एक ही पौधे में पाये जाते है।

हींग के पौधो में जून के माह में बीज बनना शुरू तथा अगस्त माह तक बीज पूर्ण रूप से कटाई के लिए तैयार हो जाता | जिस हींग के पौधे से बीज तैयार किया जाता है उस पौधे की जड़ से हींग रस नही निकालना चाहिए। जड़ से हींग (Asafoetida) रस निकालने के पारंपरिक तरीके के अनुसार फूल की डंठल को फूल आने से पहले ही काट देना पड़ता है।

हींग की बुवाई का तरीका (Method of sowing of asafoetida)

हींग का प्रसार प्रायः बीज के माध्यम से ही किया जाता है। एक हैक्टेयर भूमि में बीज द्वारा हींग की खेती (Asafoetida Cultivation) के लिए एक किलो ग्राम बीज की आवश्यकता होती है परन्तु अगर बीज द्वारा नर्सरी में पौधे तैयार करने के पश्चयात खेत में पौधों का रोपण किया जाए तो बीज की मात्रा को कम किया जा सकता है।

हींग (Asafoetida) की खेती के लिए पहाड़ों के दक्षिण दिशा की ओर ढलानदार भूमि जहां धूप की किरणें सीधी पड़ती हैं, को उपयुक्त माना जाता है। ढलानदार खेत जल की निकासी के लिए उपयुक्त होते हैं। बीज की निष्क्रियता तोड़ने के लिए बीजों को अक्तूबर – नबम्बर माह में बर्फ पड़ने से पहले खेतों में बुवाई की जाती है।

नर्सरी में पौधे तैयार करने के लिए बीज की निष्क्रियता तोड़ने हेतु द्रुतशीतन (चिलिंग ट्रीटमेंट) उपचार का प्रयोग अति आवश्यक है। हींग की खेती के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 1.0 मीटर से 1.5 मीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 0.75 मीटर से 1.0 मीटर होनी चाहिए तथा बीज उत्पादन के लिए दूरी अधिक रखनी चाहिए।

हींग की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Heeng Crop)

हींग की जड़ें लंबी तथा गहरी होने के कारण इसकी खेती के लिए अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। हींग की पौध को मिट्टी में स्थानांतरित करने के बाद 2-3 दिन के अंतराल में 1 माह तक पानी देने की आवश्यकता होती है तथा उसके बाद इस अवधि को बढ़ाया जा सकता है।

पौधे स्थापित होने के उपरान्त जरुरत होने पर ही सिंचाई करें। हींग (Asafoetida) में ज्यादा पानी देने से या पानी इकठा होने की वजह से हींग के पौधे नष्ट हो जाते है। खरपतवार निकालने के लिए समय-समय पर निराई व गुड़ाई की आवश्याकता होती है।

हींग रस का संग्रह और उपज (Collection and yield of asafoetida juice)

हींग के पौधे को तैयार होने में लगभग 5 वर्ष लगते हैं। इसकी जड़ के ऊपर का भाग गाजर की तरह होता है। हींग की कटाई फूल आने से पहले की जाती है। हींग के पौधे में चौथे अंकुरण के बाद जड़ में ओलियो गम राल का उत्पादन पूर्ण होता है। हींग के ओलियो गम राल निष्कर्षण के लिए जड़ में चीरा लगाया जाता है।

चीरा लगाने के विभिन्न तरीकों में से ‘हॉरिजॉन्टल ‘कटिंग’ एक पारंपरिक विधि है, जिसका सर्वाधिक उपयोग होता है। हींग (Asafoetida) की जड़ में लगभग 8-10 बार चीरा लगाया जाता है जब तक उसमें से ओलियो गम-राल निकलना बंद न हो जाए। हींग के पौधे की जड़ से निकलने वाले राल या दूध से हींग बनाई जाती है।

दूध सूखने के बाद ठोस पदार्थ बन जाता है। हींग तीन रूपों में उपलब्ध होती है, जैसे ‘आँसू’, ‘मास’ और ‘पेस्ट’। ‘आँसू’ राल का सबसे शुद्ध रूप है यह गोल या चपटा और रंग में भूरा या हल्का पीला होता है। ‘मास’ हींग साधारणतया एक व्यावसायिक रूप है, जोकि आकार में एक समान होता है।

अतः ‘पेस्ट’ में बाहय द्रव्य पाये जाते हैं। चूँकि शुद्ध हींग (Asafoetida) को इसकी तीखी गंध के कारण पसंद नहीं किया जाता है, इसे स्टार्च और गोंद के साथ मिश्रित किया जाता है और मिश्रित हींग के रूप में बेचा जाता है। यह पाउडर के रूप में या टैबलेट रूप में भी उपलब्ध है।

शुद्ध कच्चे हींग की कीमत उसकी गुणवत्ता पर निर्भर करती है। एक किलो ग्राम शुद्ध हींग की कीमत लगभग 5 हजार रुपये से 25 हजार रुपये तक होती है। एक पौधे से करीब 20-25 ग्राम हींग प्राप्त होती है। एक हैक्टेयर हींग की खेती से पाँच वर्ष उपरांत लगभग 9 लाख रुपए की कुल आय प्राप्त हो सकती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)

हींग कैसे उगाएं?

अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए हींग (Asafoetida) के पौधे के बीजों का सही तरीके से चयन किया जाना चाहिए। बीज को मिट्टी में इस तरह रोपना चाहिए कि प्रत्येक बीज के बीच 2 फीट की दूरी हो। पौधे बीजों के माध्यम से फैलते हैं। बीजों को शुरू में ग्रीनहाउस में उगाया जा सकता है और फिर अंकुर अवस्था में मिट्टी में स्थानांतरित किया जा सकता है। रेतीली मिट्टी, बहुत कम नमी और 200 मिमी से अधिक वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।

हींग के पौधे के लिए कैसी जलवायु अच्छी होती है?

हींग (Asafoetida) शुष्क और ठंडी जलवायु में पनपती है। हींग शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में चट्टानी या रेतीली मिट्टी पसंद करती है। यह पूरी धूप में सबसे अच्छी तरह से उगती है और इसके लिए अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है। यह पौधा सूखा-सहनशील है और कठोर परिस्थितियों में भी जीवित रह सकता है।

हींग की किस्में कितने प्रकार की होती है?

हींग की दो किस्में होती हैं – काबूली सफेद और लाल हींग। सफेद हींग पानी में घुलती है, जबकि लाल या काली हींग तेल में घुलती है। कच्ची हींग की गंध बहुत तीखी होती है, इसलिए इसे खाने लायक नहीं माना जाता। खाने लायक हींग (Asafoetida) बनाने के लिए गोंद और स्टार्च मिलाकर उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में तैयार किया जाता है।

हींग के बीज का चयन कैसे करें?

हींग (Asafoetida) की सफल फसल के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीज आवश्यक हैं। अंकुरण दर में सुधार के लिए बीजों को बोने से पहले 24 घंटे तक पानी में भिगोना चाहिए। अंकुरण में आमतौर पर 10-15 दिन लगते हैं।

हींग की बुवाई कब करें?

हींग की बुवाई के लिए अगस्त से सितंबर का महीना सबसे अच्छा होता है। हींग की खेती (Asafoetida Cultivation) के लिए ठंडी जगह और बालू मिट्टी अच्छी मानी जाती है।

हींग की फसल कितने दिन में तैयार होती है?

हींग की फसल (Asafoetida Crop) तैयार होने में करीब पांच साल लगते हैं। हींग का पौधा लगाने के बाद, पांच साल बाद ही इसका उत्पादन शुरू होता है। हींग की खेती एक विशिष्ट प्रक्रिया है और इसे सामान्य कृषि से थोड़ा अलग तरीके से किया जाता है।

हींग में सिंचाई और खाद प्रबंधन कैसे करें?

हींग (Asafoetida) के पौधों को नियमित रूप से पानी देने की आवश्यकता होती है, खासकर विकास के शुरुआती चरणों के दौरान। स्वस्थ विकास और राल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए पौधों को खाद या अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद जैसे कार्बनिक पदार्थों से खाद दें।

हींग में कीट और रोग नियंत्रण कैसे करें?

हींग (Asafoetida) के पौधे एफिड्स जैसे कीटों और जड़ सड़न जैसी बीमारियों के प्रति संवेदनशील होते हैं। किसान फसल की पैदावार पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने के लिए प्राकृतिक शिकारियों और जैविक कीटनाशकों का उपयोग करके एकीकृत कीट प्रबंधन पद्धतियों के माध्यम से इन चुनौतियों का मुकाबला करते हैं।

हींग की कटाई का सही समय क्या है?

हींग (Asafoetida) की कटाई पौधे के फूल आने से पहले सर्दियों के आखिरी महीनों में की जाती है। यह समय जड़ों में राल की उच्चतम सांद्रता सुनिश्चित करता है, जो मसाला उत्पादन में उपयोग किया जाने वाला बेशकीमती घटक है।

हींग से कितनी उपज प्राप्त होती है?

हींग के एक पौधे से 25 से 30 ग्राम हींग (Asafoetida) मिलती है. वहीं, एक हेक्टेयर में हींग का उत्पादन 200 किलोग्राम तक हो सकता है।

हींग को सुखाने और निष्कर्षण के तरीके क्या है?

कटाई के बाद, हींग (Asafoetida) की राल को जड़ों से निकाला जाता है, सुखाया जाता है और बारीक पाउडर या ठोस रूप में संसाधित किया जाता है। पारंपरिक तरीकों में राल को धूप में सुखाना और इसे हाथ से पीसकर बाजार के लिए तैयार उत्पाद बनाना शामिल है, जिससे इसका विशिष्ट स्वाद और सुगंध बरकरार रहती है।

हींग का आर्थिक महत्व और संभावनाएं क्या है?

हींग भारतीय व्यंजनों और पारंपरिक चिकित्सा में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, जो घरेलू मांग को बढ़ाता है। विदेशी मसालों में बढ़ती वैश्विक रुचि के साथ, भारतीय हींग (Asafoetida) के लिए निर्यात की संभावना बढ़ रही है, जो इसे अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में एक मूल्यवान वस्तु के रूप में स्थापित कर रहा है।

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