
Indian Gooseberry Farming in Hindi: आंवला (Amla), जिसे वैज्ञानिक रूप से फिलैंथस एम्ब्लिका के नाम से जाना जाता है, भारत में एक पूजनीय फल है, जो न केवल अपने तीखे स्वाद के लिए, बल्कि अपने असंख्य स्वास्थ्य लाभों के लिए भी जाना जाता है। अक्सर भारतीय आंवला के रूप में जाना जाने वाला यह अद्भुत फल आयुर्वेदिक चिकित्सा में एक प्रमुख स्थान रखता है।
यह विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होने के कारण पारंपरिक उपचारों और आहार पद्धतियों में एक प्रमुख घटक है। प्राकृतिक और जैविक स्वास्थ्य उत्पादों की माँग में निरंतर वृद्धि के साथ, आंवला (Amla) की बागवानी देश भर के किसानों के लिए एक लाभदायक कृषि उद्यम के रूप में उभरी है।
यह लेख आंवला की बागवानी के आवश्यक पहलुओं पर प्रकाश डालता है, जिसमें जलवायु और मिट्टी की परिस्थितियाँ, किस्में, सर्वोत्तम कृषि पद्धतियाँ, कीट प्रबंधन और इस प्राचीन फल के साथ आने वाले आर्थिक अवसर शामिल हैं। इन पहलुओं का अन्वेषण करके, हमारा उद्देश्य आंवला (Amla) की खेती की क्षमता और किसानों की आजीविका को बढ़ाने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका की व्यापक समझ प्रदान करना है।
आंवला के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for Amla)
आंवला, जिसे भारतीय करौदा भी कहा जाता है, उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में पनपता है। यह 630-800 मिमी वार्षिक वर्षा वाली शुष्क जलवायु को पसंद करता है। हालाँकि यह एक कठोर पौधा है, लेकिन युवा पौधों को अत्यधिक गर्मी (गर्मियों में गर्म हवाएँ) और ठंड (सर्दियों में पाला) दोनों से सुरक्षा की आवश्यकता होती है।
आंवला (Amla) के परिपक्व पौधे शून्य से लेकर 46°C तक के तापमान को सहन कर सकते हैं। इसकी खेती समुद्र तटीय क्षेत्रों से 1800 मीटर ऊँचाई वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है। जुलाई से अगस्त माह में अधिक आर्द्रता का वातावरण सुसुप्त छोटे फलों की वृद्धि हेतु सहायक होता है।
आंवला के लिए भूमि का चयन (Selection of land for Amla)
आंवला एक सहिष्णु फल है तथा बलुई भूमि से लेकर चिकनी मिट्टी तक में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। गहरी उर्वरा बलुई दोमट मिट्टी इसकी खेती हेतु सर्वोत्तम पायी गई है। बंजर, कम अम्लीय और उसर भूमि (पीएच मान 6.5 से 9.5, विनिमय शील सोडियम 30 से 35 प्रतिशत एवं विद्युत चालकता 9.0 मिलीलीटर प्रति सेंटीमीटर तक ) में भी इसकी खेती सम्भव है।
भारी मृदायें तथा ऐसी मृदायें जिनमें पानी का स्तर काफी ऊँचा हो, आंवला (Amla) की खेती हेतु अनुपयुक्त पायी गई है। अत्यधिक अम्लीय या क्षारीय परिस्थितियों से बचें, जो विकास को प्रभावित कर सकती हैं।
आंवला के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for Amla)
आंवला (Amla) की बागवानी के लिए उसर भूमि में गड्ढो की खुदाई 10 x 10 या 10 x 15 फुट पर की जाती है, पौधा लगाने के लिए 1 घनमिटर आकर के गड्ढे खोद लेना चाहिए। गड्ढों को 15-20 दिनों के लिए धूप खाने के लिए छोड़ देना चाहिए। यदि कड़ी परत अथवा कंकर कि परत हो तो उसे खोद कर कंकर को अलग कर देना चाहिए, अन्यथा बाद में पौधों के बृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
यदि पानी की किलत है, तो मई में बरसात के मौसम में इन गड्ढो में पानी भर देना चाहिए। प्रत्येक गड्ढे में 20 किलोग्राम जैविक खाद (केंचुवे की खाद या कम्पोस्ट खाद) 5 किलोग्राम बालू, 3 किलोग्राम जिप्सम, 3 किलोग्राम नीम की खली और 500 ग्राम ट्रायकोडर्मा पाउडर मिलाना चाहिए।
गड्ढा भरते समय 70 से 125 ग्राम क्लोरोपाईरीफास धूल भी भरनी चाहिए। गड्ढे भराई के 15 से 20 दिन बाद ही आंवला (Amla) के पौधे का रोपण किया जाना चाहिए। गड्ढे जमीन की सतह से 10 से 15 सेंटीमीटर ऊँचाई तक भरना चाहिए, और इसमें भी गड्ढे भराई के 15 से 20 दिन बाद ही पौधे का रोपण किया जाना चाहिए।
आंवला की उन्नत किस्में (Improved Varieties of Amla)
व्यावसायिक खेती के लिए आंवला की कई उन्नत किस्में उपलब्ध हैं, जो बेहतर उपज, फल आकार और रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करती हैं। कुछ लोकप्रिय विकल्पों में बनारसी, चकैया, फ्रांसिस, एनए- 4 (कृष्णा), एनए- 5 (कंचन), एनए- 7, एनए- 10 और बीएसआर- 1 शामिल हैं।
ये किस्में विभिन्न मिट्टी और जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल होने के लिए जानी जाती हैं, जिससे ये विभिन्न क्षेत्रों के लिए उपयुक्त हैं। आंवला (Amla) की कुछ उन्नत किस्मों का विवरण इस प्रकार है, जैसे-
बनारसी: अपनी शीघ्र परिपक्वता और आंवला (Amla) के अच्छे फल आकार के लिए जानी जाती है।
चकैया: एक और आंवला की लोकप्रिय किस्म, जो विभिन्न प्रकार की मिट्टी के लिए उपयुक्त है।
फ्रांसिस: एक सुस्थापित आंवला (Amla) की किस्म, जो अपनी फल गुणवत्ता के लिए जानी जाती है।
एनए- 4 (कृष्णा): एक उच्च उपज देने वाली किस्म, जो व्यावसायिक खेती के लिए उपयुक्त है।
एनए- 5 (कंचन): एक और उच्च उपज देने वाली किस्म, जिसमें अच्छी फल गुणवत्ता होती है।
एनए- 7: अच्छी उपज और फल विशेषताओं वाली एक आशाजनक किस्म मानी जाती है।
एनए- 10: अपनी अनुकूलनशीलता और फल गुणवत्ता के लिए जानी जाने वाली एक अच्छी किस्म है।
बीएसआर- 1 (भवानीसागर): अच्छे फल आकार और उपज वाली एक अच्छी आंवला की किस्म है।
आंवला की बुवाई या रोपाई का समय (Time for planting of Amla)
आंवला की खेती के लिए, रोपाई का सबसे अच्छा समय जुलाई से सितंबर के बीच माना जाता है। इस समय, बारिश के कारण मिट्टी में नमी बनी रहती है, जो पौधों के विकास के लिए आवश्यक है। इसके अलावा, इस समय तापमान भी पौधों के लिए अनुकूल होता है, जिससे वे अच्छी तरह से स्थापित हो जाते हैं। यहाँ आंवला (Amla) की बुवाई या रोपाई पर विस्तृत विवरण दिया गया है, जैसे-
मानसून में रोपण: मानसून का मौसम, आमतौर पर जुलाई से अगस्त तक, युवा पौधों को जड़ें जमाने और फलने-फूलने के लिए पर्याप्त नमी प्रदान करता है।
पर्याप्त नमी: मानसून का मौसम लगातार वर्षा सुनिश्चित करता है, जो युवा आँवले के पौधों के लिए रोपाई के बाद मजबूत जड़ें विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
कम रोपाई का झटका: मानसून के मौसम में ठंडा तापमान रोपाई के झटके को कम करने में मदद करता है, एक ऐसा तनाव जो पौधों को नए स्थान पर ले जाने पर अनुभव होता है।
कठोर परिस्थितियों से बचाव: गर्मियों के महीनों में रोपाई हानिकारक हो सकती है क्योंकि गर्म और शुष्क परिस्थितियाँ युवा पौधों के विकास में बाधा डाल सकती हैं।
सर्दियों में रोपण से बचें: नमी की संभावित कमी और प्रतिकूल तापमान की स्थिति के कारण सर्दियों के दौरान आंवला (Amla) लगाना जोखिम भरा हो सकता है।
आंवला के पौधे तैयार करना (Preparation of Amla Plants)
आंवला का प्रवर्धन आमतौर पर एक वर्ष पुराने पौधों पर शील्ड बडिंग द्वारा किया जाता है, जिसमें बेहतर और उच्च उपज देने वाली किस्मों से एकत्रित कलियाँ शामिल होती हैं। वैकल्पिक रूप से, आंवला को बीजों से भी उगाया जा सकता है, लेकिन इस विधि से फल लगने में अधिक समय लगता है। आंवला (Amla) के पौधे तैयार करने की विधियाँ इस प्रकार है, जैसे-
शील्ड बडिंग: व्यावसायिक प्रवर्धन के लिए यह सबसे आम विधि है। एक बेहतर और उच्च उपज देने वाली आंवला (Amla) किस्म की कलियों को एक वर्ष पुराने पौधों पर ग्राफ्ट किया जाता है। यह विधि सुनिश्चित करती है कि नए पौधे में वांछित फल विशेषताएँ होंगी।
लेयरिंग: किसी निचली शाखा को जमीन पर झुकाएँ, उसे खूँटी या पत्थर से सुरक्षित करें, और मिट्टी से ढक दें। ग्राउंड लेयरिंग के समान, लेकिन शाखा का सिरा जमीन में दबा दिया जाता है। कुछ महीनों के बाद, लेयर्ड शाखा में जड़ें विकसित हो जानी चाहिए। जड़ें जम जाने के बाद, आंवला (Amla) के नए पौधे को मूल पौधे से सावधानीपूर्वक अलग करें और उसे प्रत्यारोपित करें।
बीज प्रवर्धन: आँवला को ताजे या जमे हुए फलों से निकाले गए बीजों से भी उगाया जा सकता है। रोपण से पहले बीजों को निकालकर भिगोना आवश्यक है। बीजों को अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी वाले गमले में बोएँ, मिट्टी को नम और गर्म रखें। अंकुरण में कई सप्ताह लग सकते हैं। जैसे-जैसे पौधे बढ़ते हैं, उन्हें बड़े गमलों में रोपें। ध्यान रखें कि बीज से उगाए गए आंवले के पौधे को फल देने में 7-8 साल लगते हैं।
आंवला के पौधों की रोपाई (Planting of Amla Plants)
1.5 से 2 फुट ऊंचाई वाले आंवला (Amla) के पौधों को जुलाई से अगस्त या फरवरी के महीने में तय दूरी पर रोपाई करते हैं। पौधों की रोपाई वर्गाकार विधि से करते हैं। जिसमें पौधों से पौधों एवं पंक्ति से पंक्ति की दूरी बराबर रखी जाती है। प्रत्येक पौधों के वर्ग के बीच में एक अन्य पौधा लगाया जा सकता है। इस विधि को पूरक विधि या क्विनकन्स भी कहते हैं। इससे बागवान अधिक लाभ के अलावा खाली पड़े क्षेत्र का भी सही उपयोग कर सकते हैं।
आंवला की संधायी और छंटाई (Training and pruning of Amla)
आंवला (Amla) के पौधों को मध्यम ऊँचाई तक विकसित करने हेतु उनको ट्रैनिंग और प्रूनिंग करना चाहिए। नये पौधों को जमीन की सतह से लगभग 75 सेंटीमीटर से एक मीटर तक बढ़ने देना चाहिए। तदुपरान्त शाखाओं को निकलने देना चाहिए ताकि पौधों के ढाँचे का अच्छे से विकास हो सके। पौधे को गोलाकार आकार में विकसित करे।
आंवला के बाग में पलावर (Mulching in Amla orchard)
आंवला (Amla) की बाग स्थापन में जैविक अवशेषों द्वारा अवरोध परत करने से अच्छे परिणाम मिले हैं। विभिन्न प्रकार के पदार्थों जैसे पुवाल, केले के पत्ते, ईख की पत्ती और गोबर की खाद से मल्चिंग करने पर अच्छी सफलता प्राप्त हुई है। जैविक अवशेषों से कई वर्षों तक मल्चिंग करने से खरपतवार नियंत्रित रहते हैं, जड़ों का तापमान नियंत्रित रहता है।
जैविक पदार्थ सड़ कर भूमि की उर्वराशक्ति तथा जल धारण करने की क्षमता को बढ़ाते हैं। इसके अतिरिक्त ये हानिकारक लवणों को जमीन की सतह पर आने से भी रोकता है। इस प्रकार, यह उसर भूमि में हानिकारक लवणों के प्रभाव को कम करते हैं, साथ ही मल्चिंग करने से पौधों की जड़ों के पास केंचुओं एवं लाभकारी सूक्ष्म जीवों की संख्या में वृद्धि भी होती है।
आंवला के साथ अन्तर्वती फसलें (Intercropping with Amla)
फलदार पेड़ को फलधारण में 2-3 साल का अवधि होता है यह प्रमुख समस्या है जिसकी वजह से किसान अधिक क्षेत्र में फलों का रोपण नहीं कर पाते हैं। आंवला गहरी जड़ों वाला एवं छितरी पत्तियों वाला एक पर्णपाती वृक्ष है। साल के तीन से चार माह में पेड़ पर पत्तियाँ नहीं रहती हैं तथा शेष माह में छितरी पत्तियाँ होने को कारण भूमि पर पर्याप्त मात्रा में सूर्य का प्रकाश उपलब्ध रहता है।
परिणामत: आंवला (Amla) के साथ सहफसली खेती की अनेक सम्भावनायें हैं। फलों में अमरूद, करौंदा, सहजन एवं बेर, सब्जियों में लौकी, भिण्डी, फूलगोभी, धनिया, फूलों में ग्लैडियोलस तथा गेंदा और अन्य औषधिय और सुगंधित पौधे आंवला के साथ सहफसली खेती के रूप में काफी उपयुक्त पाये गये हैं।
आंवला में खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizer in Amla)
बंजर भूमि में जैविक पदार्थ एवं पोषक तत्वों का अधिक प्रयोग आवश्यक है। एक वर्ष पुराने आंवला (Amla) के पौधों को 10 किग्रा गोबर की खाद, 100 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फास्फोरस तथा 75 ग्राम पोटाश देना चाहिए। अगले दस वर्षों तक उपरोक्त मात्रा को प्रति वर्ष इसी अनुपात में बढ़ाते रहना चाहिए।
इस प्रकार दसवें वर्ष में दी जाने वाली खाद और उर्वरक की मात्रा 1.0 कुन्तल गोबर की खाद, 1000 ग्राम नाइट्रोजन, 500 ग्राम फास्फोरस तथा 750 ग्राम पोटाश प्रति वृक्ष होगी। आगे के वर्षो में भी फरवरी माह के दौरान इसी निश्चित मात्रा का प्रयोग प्रति वर्ष किया जाना चाहिए।
आंवला में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Amlas)
पहली सिंचाई आंवला (Amla) पौध रोपण के तुरन्त बाद करनी चाहिए, उसके बाद आवश्यकतानुसार पौधों को गर्मियों में 10-12 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए। फलत प्रारम्भ हो जाने पर सुसुप्तावस्था (दिसम्बर- जनवरी) में तथा फूल आने पर मार्च में सिंचाई नहीं करनी चाहिए। ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग पानी की बचत के साथ-साथ जड़ों तक सीधे नमी पहुंचाने का सबसे कारगर तरीका है।
आंवला में परागण और विरलीकरण (Pollination and thinning in Amla)
आंवला में परागण और विरलीकरण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो फल उत्पादन को प्रभावित करती है। आंवला में पर-परागण होता है, इसलिए, बेहतर फलत के लिए, विभिन्न किस्मों के पौधों को एक साथ लगाना चाहिए। इसके अलावा, फल लगने के बाद, फलों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए विरलीकरण किया जाता है, जिससे बड़े और स्वस्थ फल प्राप्त होते हैं। आंवला आंवला (Amla) के बाग में परागण और विरलीकरण पर अधिक विवरण इस प्रकार है, जैसे-
परागण: आंवला में पर-परागण होता है, जिसका मतलब है कि पराग एक पौधे से दूसरे पौधे में स्थानांतरित होता है। बेहतर परागण के लिए, विभिन्न किस्मों के पौधों को एक साथ लगाना चाहिए। उदाहरण के लिए, एक एकड़ में, नरेन्द्र- 7, कृष्णा और कंचन किस्मों के पौधों को 2:2:1 के अनुपात में लगाया जा सकता है। परागण के लिए मधुमक्खियां और अन्य कीट महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
विरलीकरण: आंवला में, फल लगने के बाद, फलों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए विरलीकरण किया जाता है। यह प्रक्रिया फलों के आकार और गुणवत्ता को बेहतर बनाने में मदद करती है। अत्यधिक फल लगने से फल छोटे रह जाते हैं और उनका विकास ठीक से नहीं हो पाता।
इसलिए, कुछ आंवला (Amla) के फलों को तोड़कर हटा दिया जाता है, जिससे शेष फल स्वस्थ और बड़े होते हैं। विशेष रूप से, मुरब्बा बनाने के लिए बड़े फलों का उपयोग किया जाता है, इसलिए विरलीकरण महत्वपूर्ण है।
आंवला में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in Amlas)
आंवला के बागों में खरपतवार नियंत्रण में यांत्रिक और रासायनिक विधियों के साथ-साथ कृषि पद्धतियों का संयोजन शामिल है। नियमित रूप से निराई-गुड़ाई और निराई, विशेष रूप से पेड़ों के आधार के आसपास, अत्यंत महत्वपूर्ण है। मल्चिंग खरपतवारों की वृद्धि को रोकने और मिट्टी की नमी को संरक्षित करने में मदद कर सकती है।
खरपतवार नियंत्रण के लिए शाकनाशी, विशेष रूप से पूर्व-उगने वाले, का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन पेड़ों को नुकसान से बचाने के लिए सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है। आंवला (Amla) के बाग में खरपतवार नियंत्रण के उपाय इस प्रकार है, जैसे-
गुड़ाई और निराई-गुड़ाई: विशेष रूप से आंवला (Amla) तने के चारों ओर 1-1.5 मीटर के दायरे में और पंक्तियों के बीच की जगहों में, बार-बार हाथ से निराई-गुड़ाई आवश्यक है।
मल्चिंग: धान के भूसे, सूखी घास, या काली पॉलीथीन (5-10 सेमी मोटी) जैसी जैविक मल्च की एक परत लगाने से खरपतवारों की वृद्धि को रोका जा सकता है, मिट्टी की नमी बरकरार रखी जा सकती है और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है।
पेंडिमेथालिन: सिंचित परिस्थितियों में 3.3 लीटर प्रति हेक्टेयर या वर्षा आधारित परिस्थितियों में 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से, बुवाई के पहले या 3 दिन बाद प्रयोग किया जा सकता है।
डाययूरॉन और ब्रोमैसिल: प्रभावी पूर्व-उद्भव शाकनाशी माने जाते हैं।
पैराक्वाट या ग्लाइफोसेट: इनका प्रयोग पंक्तियों के बीच किया जा सकता है, लेकिन आंवला (Amla) के पेड़ों के संपर्क से बचने के लिए सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
2,4-डी: बुवाई के 20 दिन बाद 2,4-डी का अनुवर्ती प्रयोग किया जा सकता है।
आंवला के बाग में कीट नियंत्रण (Pest control in Amla orchard)
आंवला के बाग में कीट नियंत्रण के लिए, बाग को साफ रखना, प्रभावित हिस्सों को हटाना और कीटनाशकों का उपयोग करना महत्वपूर्ण है। आंवला (Amla) के बाग में कीट नियंत्रण के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं, जैसे-
छाल खाने वाला कीट: इस कीट की सूडियाँ शाखाओं के जोड़ पर सूराख बनाकर अन्दर उत्तक को खाकर अवशेष बाहर निकालती हैं, जो सूराख के पास बुरादे जैसा पड़ा रहता है।
नियंत्रण: इसकी रोकथाम के लिए सूराख को सायकिल की तीली से साफ करके रूई को पेट्रोल या मिट्टी के तेल में भिगोकर सूराख में भर देना चाहिए या किसी कीटनाशी के 0.1 प्रतिशत घोल अन्दर डालकर सूराख को गीली मिट्टी से भर देना चाहिए।
माहू: इस कीट का प्रकोप जब मौसम में नमी हो या बादल छाये हों तो अधिक होता है। यह आंवला (Amla) के कोमल भागों एवं छोटे-छोटे फलों के रस को चूसकर कमजोर बना देते है।
नियंत्रण: इसकी रोकथाम के लिए नीम ऑइल 2 लीटर, 100 लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अन्तराल पर दो छिडकाव कर देना चाहिए।
शूट गाल मेकर (गॉठ बनाने वाला कीट): इस कीट की सूडियाँ नये टहनियों के सिरें पर प्रवेश करके वृद्धि को रोक देती है।
नियंत्रण: इसकी रोकथाम के लिए प्रभावित टहनियों को 5-7 सेमी नीचे से काटकर निकाल देते हैं तथा इसे कहीं गड्ढे में डालकर जला देते हैं।
स्केल कीट: इस कीट के प्रकोप होने पर आंवला (Amla) की टहनियाँ, फल आदि सभी प्रभावित होती हैं, जिससें पूरा का पूरा पौधा सूख जाता है।
नियंत्रण: इसकी रोकथाम के लिए नुवान 0.05 प्रतिशत (0.5 मिली दवा प्रति लीटर पानी) का घोल बनाकर छिड़काव कर देनी चाहिए।
आंवला के बाग में रोग नियंत्रण (Disease control in Amla orchard)
आंवला की बागवानी में रोग नियंत्रण के लिए, बाग को साफ रखना, प्रभावित हिस्सों को हटाना और रोगनाशकों का उपयोग करना महत्वपूर्ण है। आंवला (Amla) के बाग में रोग नियंत्रण के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं, जैसे-
आँवला रस्ट: यह एक कवक जनित ब्याधि है। पत्तियों पर लाल रंग के गोल एवं अण्डाकार धब्बे बन जाते है, जो बाद में फलों को भी प्रभावित कर देते है। इस रोग के कारण फलों का भाव कम हो जाता है।
नियंत्रण: इसकी जैविक रोकथाम के लिए गोमूत्र 1 लीटर, 10 लीटर पानी में नुवान 0.3 प्रतिशत मैंकोजेब का 2 छिड़काव मध्य सितम्बर से अक्टूबर में 15 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए।
ऊतक क्षय रोग: इसका प्रकोप मुख्य रूप से फ्रान्सिस किस्म में अधिक होता है, जिससे कभी – कभी 60-80 प्रतिशत फल अन्दर से काले पड़कर गिर जाते है।
नियंत्रण: आंवला (Amla) की फसल में इसकी रोकथाम के लिए 0.6 प्रतिशत बोरेक्स का दो छिड़काव अप्रैल व जुलाई माह मे करना चाहिए।
आंवला के फलों की तुड़ाई (Harvesting of Amlas Fruit)
आंवला (Amla) के फल की कटाई आमतौर पर तब की जाती है जब यह अपने शुरुआती हल्के हरे रंग से हल्के हरे-पीले रंग में बदल जाता है, जो परिपक्वता का संकेत है। भारत में, कटाई का चरम मौसम आमतौर पर मध्य सितंबर और मध्य दिसंबर के बीच होता है, कुछ क्षेत्रों में कटाई के लिए फरवरी भी अनुशंसित समय है।
नुकसान से बचने के लिए, हाथ से तोड़ना या हुक वाले लंबे बांस के डंडों का उपयोग करना बेहतर तरीका है, खासकर उन किस्मों के लिए जो आसानी से फल गिरा देती हैं।तुड़ाई से पहले, फलों को सड़न से बचाने के लिए 0.1% कार्बेंडाज़िम का छिड़काव करना चाहिए। तुड़ाई के समय फलों को क्षति से बचाने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए।
आंवला के बाग से पैदावार (Yield from Amlas orchard)
आंवला की बागवानी से अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए, उचित समय पर पौधों का रोपण, उन्नत किस्मों का चयन और सही देखभाल आवश्यक है। आंवला के पेड़ 3-4 साल में फल देना शुरू कर देते हैं, और 10-12 साल बाद पूरी तरह से फलने लगते हैं। एक पूर्ण विकसित पेड़ से 100-300 किलोग्राम फल प्रति वर्ष प्राप्त किया जा सकता है।
आंवला (Amla) के पेड़ 30-40 साल तक फल दे सकते हैं, जिससे आंवला की खेती एक दीर्घकालिक आय स्रोत बन जाती है। जैसाकि रोपण के तीसरे साल से ही पैदावार शुरू हो जाती है, और पेड़ जैसे-जैसे बड़े होते जाते हैं, उत्पादन धीरे-धीरे बढ़ता जाता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
आंवला (Amla) की खेती में रोपण सामग्री का सावधानीपूर्वक चयन, जगह की तैयारी और निरंतर प्रबंधन पद्धतियाँ शामिल हैं। ग्राफ्टेड या कलीदार पौधों को आमतौर पर ऊपरी मिट्टी और अच्छी तरह सड़ी हुई खाद के मिश्रण से भरे गड्ढों में 4-5 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है। स्वस्थ विकास और फल उत्पादन के लिए नियमित रूप से पानी देना, निराई करना और छंटाई करना आवश्यक है।
आंवला (Amla) के लिए उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय जलवायु अच्छी रहती है। यह पौधा शुष्क और अर्ध-शुष्क जलवायु में भी अच्छा उत्पादन देता है। आंवला 20-30 डिग्री सेल्सियस तापमान में अच्छी तरह बढ़ता है, और 10 डिग्री सेल्सियस तक तापमान सहन कर सकता है, लेकिन पाले के प्रति संवेदनशील होता है।
आंवला (Amla) के लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है, लेकिन इसे बलुई दोमट, लाल मिट्टी, और काली मिट्टी में भी उगाया जा सकता है। मिट्टी का पीएच स्तर 6.0 से 8.0 के बीच होना चाहिए और जल निकास अच्छा होना चाहिए।
आंवला (Amla) की कुछ बेहतरीन किस्मों में बनारसी, कृष्णा, कंचन, चकैया और नरेंद्र 7 शामिल हैं। ये किस्में अपने-अपने गुणों और विशेषताओं के लिए जानी जाती हैं, जैसे कि फलों का आकार, गूदे की गुणवत्ता, और पकने का समय आदि।
आंवला (Amla) लगाने का सबसे अच्छा समय जुलाई से सितंबर के बीच का होता है, जब मानसून का मौसम होता है। इस समय पौधे लगाने से वे अच्छी तरह से विकसित होते हैं और विकास प्रक्रिया सुचारू रूप से चलती है।
आंवला (Amla) का पौधा तैयार करने के लिए, आप या तो नर्सरी से एक ग्राफ्टेड पौधा ला सकते हैं या बीज से उगा सकते हैं। बीज से उगाने में अधिक समय लगता है, लेकिन ग्राफ्टेड पौधे 3-4 साल में फल देना शुरू कर देते हैं।
एक हेक्टेयर में औसतन 200 आंवला (Amla) के पौधे लगाए जा सकते हैं। आंवला के पौधों की संख्या, रोपण की दूरी और विधि पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, 8 x 8 मीटर की दूरी पर रोपण करने से एक हेक्टेयर में लगभग 156 पौधे लगेंगे, जबकि 6 x 6 मीटर की दूरी पर 200 से अधिक पौधे लगाए जा सकते हैं। यदि आप उच्च घनत्व रोपण करना चाहते हैं, तो 3 x 3 मीटर की दूरी पर 1200 पौधे तक लगाए जा सकते हैं।
आंवला (Amla) के पेड़ों को पानी देने की मात्रा उनकी उम्र, मौसम और मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करती है। गर्मियों में, पौधों को 15 दिनों के अंतराल पर पानी देना चाहिए, जबकि सर्दियों में, विशेष रूप से अक्टूबर से दिसंबर के महीनों में, ड्रिप सिंचाई के माध्यम से प्रति पेड़ 25-30 लीटर पानी प्रति दिन देना चाहिए। मानसून के दौरान, सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, और फूल आने के समय भी सिंचाई से बचना चाहिए।
आंवला (Amla) के बाग की निराई-गुड़ाई करने के लिए, खरपतवारों को हटाना, मिट्टी को ढीला करना और पौधों के आसपास की जगह को साफ करना शामिल है। इससे पौधों को बेहतर विकास के लिए पोषक तत्वों और पानी तक पहुंचने में मदद मिलती है।
आंवला (Amla) के पौधों के लिए, अच्छी वृद्धि और फलने-फूलने के लिए, नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (NPK) उर्वरकों का संतुलित उपयोग करना चाहिए। इसके अलावा, जिंक सल्फेट और जैविक खाद भी उपयोगी हो सकते हैं।
आंवला (Amla) के पेड़ को फल लगने में आमतौर पर 3 से 4 साल लगते हैं। हालांकि, कुछ प्रजातियों में 5 साल तक का समय भी लग सकता है। 6-8 साल बाद, बीजू पौधा फल देना शुरू कर देता है, जबकि कलमी पौधा 10-12 साल में पूरी तरह से फल देना शुरू करता है।
आंवला (Amla) के बाग को प्रभावित करने वाले प्रमुख रोग और कीटों में जंग, एन्थ्रेक्नोज, तना छेदक कीट और फल सड़न शामिल हैं।
हाँ, आंवला (Amla) को गमलों में उगाया जा सकता है। इसके लिए आपको एक बड़े गमले का चुनाव करना होगा, जिसमें अच्छी जल निकासी हो और उसे धूप वाली जगह पर रखना होगा।
आंवला (Amla) के फलों की तुड़ाई फरवरी के महीने में की जाती है। जब फल हरे से हल्के पीले रंग के हो जाते हैं और उनमें विटामिन सी की मात्रा अधिक होती है, तब तुड़ाई का समय होता है।
आंवला (Amla) के बाग से प्रति पेड़ 100-300 किलोग्राम तक फल प्राप्त हो सकते हैं। 8-10 साल के पेड़ से औसतन 1 क्विंटल (100 किलोग्राम) फल मिल सकते हैं, और कुछ मामलों में 150-200 किलोग्राम तक भी। किस्म, सिंचाई और देखभाल के अनुसार, यह उपज अलग-अलग हो सकती है।
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