
How to Grow Aloe Vera in Hindi: एलोवेरा, जिसे अक्सर घृतकुमारी, ग्वारपाठा, घीकुंवार. कुमारी और चमत्कारी पौधा कहा जाता है, ने अपने असंख्य स्वास्थ्य लाभों और सौंदर्य प्रसाधनों, औषधियों और खाद्य उद्योगों में इसके बहुमुखी अनुप्रयोगों के कारण उल्लेखनीय लोकप्रियता हासिल की है। पारंपरिक चिकित्सा में अपने समृद्ध इतिहास के साथ, एलोवेरा की खेती देश भर के कई किसानों के लिए एक लाभदायक कृषि उद्यम बन गई है।
जैसे-जैसे प्राकृतिक और जैविक उत्पादों की मांग बढ़ती जा रही है, एलोवेरा की खेती की बारीकियों को समझना, आदर्श विकास परिस्थितियों से लेकर कीट प्रबंधन और कटाई तकनीकों तक, उन लोगों के लिए आवश्यक हो जाता है जो इस फलते-फूलते बाजार में प्रवेश करना चाहते हैं। यह लेख भारत में एलोवेरा (Aloe Vera) की खेती के विभिन्न पहलुओं पर गहराई से चर्चा करता है, और सर्वोत्तम पद्धतियों और भविष्य के रुझानों के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
घृतकुमारी के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for Aloe vera)
घृतकुमारी (Aloe Vera) की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु सबसे उपयुक्त है, जिसमें कम बारिश और गर्म, शुष्क या हल्की आर्द्र परिस्थितियाँ हों। इसके लिए 15 डिग्री सेल्सियस से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान अच्छा होता है, लेकिन यह हल्की ठंड भी सहन कर सकता है। पौधे को पाले और बहुत कम तापमान से बचाना महत्वपूर्ण है।
घृतकुमारी के लिए भूमि का चयन (Selection of land for Aloe Vera)
एलोवेरा (Aloe Vera) की खेती के लिए, अच्छी जल निकासी वाली, ऊँची भूमि वाली मिट्टी चुनें, जिसका पीएच मान 7.0 से 8.5 के बीच हो। उपयुक्त मिट्टी में दोमट से लेकर मोटी रेतीली दोमट और काली कपासी मिट्टी शामिल हैं, जिनकी उर्वरता कम हो सकती है। जलवायु गर्म होनी चाहिए, जिसमें आदर्श रूप से 1000-1300 मिमी वर्षा हो, हालाँकि यह पौधा सूखा सहन करने वाला होता है।
घृतकुमारी के लिए खेत की तैयारी (Field Preparation for Aloe Vera)
एलोवेरा (Aloe Vera) के लिए खेत की तैयारी में जमीन की अच्छी तरह से जुताई, अंतिम जुताई के दौरान गोबर जैसी जैविक सामग्री डालना और मेड़ और नालियाँ बनाना शामिल है। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि खेत में जलभराव को रोकने के लिए उचित जल निकासी हो, और मिट्टी को अच्छी तरह से जोतना चाहिए, हालाँकि गहरी जुताई की आवश्यकता नहीं है क्योंकि एलोवेरा की जड़ें उथली होती हैं।
घृतकुमारी की उन्नत किस्में (Improved Aloe Vera Varieties)
घृतकुमारी (Aloe Vera) की व्यावसायिक खेती के लिए हाइब्रिड किस्में सबसे अच्छी होती हैं, क्योंकि इनसे पल्प (गूदा) अधिक मिलता है। भारत में विकसित की गई कुछ उन्नत किस्मों में आईसी- 111271, आईसी- 111280 और आईसी- 111269 शामिल हैं, जिनमें एलोडिन की मात्रा 20 से 30 प्रतिशत तक होती है।
इसके अलावा, टाइगर एलो और रेड एलो जैसी किस्में भी व्यावसायिक रूप से उगाई जाती हैं। घृतकुमारी (Aloe Vera) की खेती के लिए किस्मों पर अधिक विवरण इस प्रकार है, जैसे-
हाइब्रिड किस्में: व्यावसायिक खेती के लिए हाइब्रिड किस्मों को प्राथमिकता दी जाती है, क्योंकि ये अधिक मात्रा में पल्प देती हैं।
भारतीय किस्में: भारत में आईसी- 111271, आईसी- 111280 और आईसी- 111269 जैसी किस्में विकसित की गई हैं।
अन्य किस्में: इसके अतिरिक्त, टाइगर एलो और रेड एलो जैसी किस्में भी व्यावसायिक खेती के लिए लोकप्रिय हैं।
घृतकुमारी की बुवाई या रोपाई का समय (Time of sowing of Aloe vera)
एलोवेरा के पौधों को बेहतर जीवित रहने और विकास के लिए मानसून के दौरान जुलाई-अगस्त का समय सबसे अच्छा होता है। सिंचित परिस्थितियों में, नवंबर-फरवरी के सर्दियों के महीनों को छोड़कर, पूरे वर्ष रोपण किया जा सकता है। घृतकुमारी (Aloe Vera) की खेती के लिए बुवाई या रोपाई के समय पर अधिक विवरण इस प्रकार है, जैसे-
खेती के लिए प्रमुख समय:-
जून-जुलाई: यह मानसून की शुरुआत का समय है और पौधों को बढ़ने के लिए पर्याप्त नमी मिलती है।
सितंबर-अक्टूबर: यह भी रोपाई के लिए एक उपयुक्त समय है।
फरवरी-मार्च: कुछ स्रोतों के अनुसार, फरवरी-मार्च में भी रोपाई की जा सकती है।
ध्यान रखने योग्य बातें:-
सर्दियों से बचें: सर्दियों के महीनों में घृतकुमारी की रोपाई से बचना सबसे अच्छा है।
सिंचाई: यदि आप मानसून के अलावा किसी अन्य समय रोपाई करते हैं, तो पर्याप्त सिंचाई की व्यवस्था होनी चाहिए।
पौधे का प्रकार: इसके लिए आप स्वस्थ 3-4 महीने पुराने कंदों या पत्तियों का उपयोग कर सकते हैं।
घृतकुमारी के पौधे तैयार करना (Preparing Aloe Vera Plants)
घृतकुमारी के पौधे तैयार करने की सबसे आम प्रवर्धन विधियाँ में रूट सकर्स और प्रकंद कटिंग हैं। शुरुआती लोगों के लिए रूट सकर्स विधि सबसे सरल है, जिसमें परिपक्व पौधे के आधार से निकलने वाले छोटे पौधों (सकर्स) को जड़ के साथ अलग करके लगाया जाता है।
व्यावसायिक खेती के लिए, प्रकंद कटिंग का उपयोग किया जाता है, जिसमें भूमिगत तने को काटकर लगाया जाता है। घृतकुमारी (Aloe Vera) के पौधे तैयार करने की विधियों का विवरण इस प्रकार है, जैसे-
रूट सकर्स द्वारा:-
पौधों को अलग करना: मुख्य पौधे के आधार से निकलने वाले लगभग 4-5 महीने पुराने और 4-5 पत्तियों वाले सकर्स को जड़ सहित निकालें।
रोपण की दूरी: सकर्स को पंक्तियों में 50 X 45 सेमी की दूरी पर लगाएं।
रोपण: सकर्स का लगभग दो-तिहाई भाग मिट्टी में दबा दें और उसके आसपास की मिट्टी को कसकर दबाएं, ताकि पानी का ठहराव न हो।
प्रकंद कटिंग द्वारा:-
प्रकंद काटना: भूमिगत तने (प्रकंद) को खोदकर 5-5.5 इंच के टुकड़े काटें, जिनमें कम से कम 3 नोड्स (गांठें) हों।
जड़ें जमाना: कटिंग को रेतीले बिस्तरों या गमलों में लगाकर जड़ें जमाएं।
रोपण: जब कटिंग में जड़ें आ जाएं, तो उन्हें खेत में पंक्तिबद्ध तरीके से लगाएं।
सूक्ष्मप्रवर्धन: यह एक व्यावसायिक विधि है जिसका उपयोग बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए किया जाता है और इसमें घरेलू प्रवर्धन के बजाय प्रयोगशाला में ऊतक संवर्धन तकनीक का उपयोग किया जाता है।
घृतकुमारी के लिए पौधारोपण की विधि (Planting method for Aloevera)
घृतकुमारी की खेती के लिए, आप 3 से 4 महीने पुराने पौधों (सकर्स) को रोपित कर सकते हैं, जो जून-अगस्त में या फरवरी-मार्च में रोपे जाते हैं। रोपण के समय, पौधों के बीच 60-75 सेमी और पंक्तियों के बीच 75-90 सेमी की दूरी रखें।
सुनिश्चित करें कि मिट्टी अच्छी तरह तैयार है, जिसमें गोबर की खाद मिली हो, और रोपण के तुरंत बाद सिंचाई करें। घृतकुमारी (Aloe Vera) की खेती के लिए पौधारोपण की विधि इस प्रकार है, जैसे-
सही समय चुनें: घृतकुमारी की रोपाई के लिए सबसे अच्छा समय जून से अगस्त है, लेकिन सिंचित क्षेत्रों में सर्दी छोड़कर साल में कभी भी रोपा जा सकता है।
पौधे तैयार करें: 3-4 महीने पुराने, 6-8 इंच लंबे, 4-5 पत्तों वाले सकर्स या पौधे चुनें।
खेत तैयार करें: खेत की 2-3 बार गहरी जुताई करें और अंतिम जुताई के समय 10-15 टन गोबर की खाद प्रति एकड़ मिलाएं।
दूरी बनाए रखें: पौधों के बीच 60-75 सेमी और पंक्तियों के बीच 75-90 सेमी की दूरी रखें।
रोपण करें: पौधों को 15 सेमी गहरे गड्ढों में लगाएं।
घृतकुमारी में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Aloe Vera)
एलोवेरा के लिए सिंचाई प्रबंधन जलभराव को रोकने पर केंद्रित है, क्योंकि यह पौधा सूखा-प्रतिरोधी तो है, लेकिन अत्यधिक पानी के प्रति भी संवेदनशील है। मुख्य उपायों में रोपण के बाद और प्रत्येक कटाई के बाद हल्की सिंचाई करना और शुष्क परिस्थितियों में, शुष्क अवधि या गर्मियों के दौरान हर 2-3 सप्ताह में सिंचाई करना शामिल है।
हालाँकि घृतकुमारी (Aloe Vera) की खेती में सिंचाई की कुल संख्या जलवायु और मिट्टी पर निर्भर करती है, लेकिन आमतौर पर प्रति वर्ष 4-6 चक्र पर्याप्त होते हैं।
घृतकुमारी में खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizers for Aloe Vera)
घृतकुमारी (Aloe Vera) की खेती के लिए 10-15 टन गोबर की खाद प्रति एकड़ खेत की तैयारी के समय डालें। रासायनिक उर्वरकों में, प्रति एकड़ 20-30 किलोग्राम नाइट्रोजन (बुवाई के समय और 30-40 दिन बाद), 25-30 किलोग्राम फॉस्फोरस और 20-25 किलोग्राम पोटाश (बुवाई के समय) डालें। इसके अतिरिक्त, सूक्ष्म पोषक तत्वों के लिए जिंक, मैंगनीज आदि को आवश्यकतानुसार छिड़काव करें।
घृतकुमारी में खरपतवार नियंत्रण (Weed Control in Aloe Vera)
एलोवेरा (Aloe Vera) की खेती में प्रभावी खरपतवार नियंत्रण के लिए यांत्रिक, मल्चिंग और कृषि पद्धतियों का संयोजन आवश्यक है। यांत्रिक विधियों में हाथ से निराई और गुड़ाई शामिल है, खासकर रोपण के बाद पहले महीने में और फिर पूरे वर्ष में समय-समय पर। एलोवेरा की पत्तियों के अवशेष या प्लास्टिक जैसी सामग्री से मल्चिंग करने से खरपतवारों को दबाया जा सकता है और मिट्टी की नमी बरकरार रखी जा सकती है।
खरपतवारों को फूल आने से पहले ही नष्ट करके उन्हें बीज बनने से रोकना भी महत्वपूर्ण है। कुछ मामलों में, रासायनिक शाकनाशकों का उपयोग भी किया जा सकता है, लेकिन उनका उपयोग सावधानीपूर्वक और सही समय पर किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, ट्राइफ्लुरालिन और पेंडिमेथालिन जैसे शाकनाशकों का प्रयोग कर सकते हैं, जो अंकुरण से पहले खरपतवार को नियंत्रित करते हैं।
घृतकुमारी में कीट और रोग नियंत्रण (Pest and Disease Control in AloeVera)
घृतकुमारी (Aloe Vera) की फसल में साधारण तथा कोई कीड़े अथवा रोग का प्रकोप नही होता है, परन्तु भूमिगत तनो व जड़ों को सतह सड़न से नुकसान पहुचंता है। जिनकी रोकथाम के लिए 60-70 किलोग्राम नीम की खली प्रति हेक्टेयर के अनुसार अथवा 20-25 किग्रा क्लोरोपायरीफास डस्ट प्रति हेक्टेयर का बुरकाव करे।
वर्षा ऋतु में वनों एवं पत्तियों पर सड़न एव काले रंग के धब्बे पाये जाते है जो फंफुद जनित रोग है। जिसके उपचार के लिए मेन्कोजेब (बावस्टिन) 2 – 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना उपयुक्त रहता है।
घृतकुमारी फसल की कटाई (Harvesting of AloeVera Crop)
घृतकुमारी (Aloe Vera) की कटाई आमतौर पर रोपाई के 8-10 महीने बाद की जाती है, जिसके बाद हर 2-3 महीने में कटाई की जा सकती है। कटाई के लिए पौधे के बाहरी और सबसे परिपक्व पत्तों को सावधानीपूर्वक चुना जाता है, एक बार में 3-4 पत्ते तोड़े जाते हैं। कटाई सुबह के समय करने की सलाह दी जाती है, जब पत्तों में नमी अधिक होती है।
घृतकुमारी की फसल से उपज (Yield from Aloe vera crop)
घृतकुमारी (Aloe Vera) की फसल से उपज प्रति हेक्टेयर 15-35 टन तक हो सकती है। उचित देखभाल और प्रबंधन के साथ, सिंचित भूमि में पहले वर्ष में लगभग 35-40 टन प्रति हेक्टेयर और दूसरे वर्ष में 10-15 प्रतिशत अधिक उपज मिल सकती है। अच्छी देखरेख वाली फसल से 25-35 टन प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त हो सकती है, जबकि असिंचित अवस्था में यह लगभग 20 टन प्रति हेक्टेयर होती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
एलोवेरा (Aloe Vera) की खेती के लिए खेत की तैयारी, रोपण, और देखभाल महत्वपूर्ण है। खेत को अच्छी तरह जुताई करके, गोबर की खाद डालकर, और जल निकासी की उचित व्यवस्था कर तैयार करें। 10-15 सेमी के स्वस्थ पौधे या कटिंग को लगभग एक फुट की दूरी पर रोपण करें। इसकी खेती में बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है, और हर 25 दिन में या आवश्यकतानुसार ही सिंचाई करें। खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई आवश्यक है।
एलोवेरा (Aloe Vera) 20°C से 30°C के तापमान वाले गर्म, शुष्क जलवायु में पनपता है। यह अच्छी जल निकासी वाली रेतीली या दोमट मिट्टी को पसंद करता है और इसे कम पानी की आवश्यकता होती है, जिससे यह शुष्क क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है।
एलोवेरा (Aloe Vera) के लिए सबसे आदर्श मिट्टी बलुई दोमट या रेतीली मिट्टी है, जो अच्छी जल निकासी वाली हो। यह मिट्टी जड़ों में पानी जमा होने से रोकती है, जिससे जड़ों के सड़ने का खतरा कम होता है। आप विशेष कैक्टस पॉटिंग मिक्स का भी उपयोग कर सकते हैं।
एलोवेरा (Aloe Vera) की बुवाई के लिए सबसे अच्छा समय मानसून के दौरान जून से अगस्त तक का होता है, क्योंकि इस दौरान पौधों को पर्याप्त नमी मिल जाती है। हालाँकि, अगर आपके पास सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था है, तो आप इसे फरवरी-मार्च में भी लगा सकते हैं और सर्दियों को छोड़कर साल भर किसी भी समय इसकी रोपाई कर सकते हैं।
एलोवेरा (Aloe Vera) की सबसे अच्छी किस्में एलो बारबाडेंसिस मिलर हैं, क्योंकि यह पोषण से भरपूर और त्वचा की देखभाल के लिए सबसे उपयुक्त है। व्यावसायिक खेती के लिए, आईसीसी 1273 जैसी उन्नत किस्मों को भी उगाया जाता है। इसके अतिरिक्त, अन्य किस्में, जैसे कि एलो आर्बोरेसेंस (ज्यादा औषधीय) और एलो फेरोक्स (शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट) विशिष्ट लाभ प्रदान करती हैं।
एलोवेरा (Aloe Vera) के पौधे तैयार करने के लिए “पप्स” (छोटे पौधे) को अलग करना, पत्तियों की कटिंग लगाना या बीज बोना जैसे तरीके अपनाए जा सकते हैं। पप्स से पौधे तैयार करना सबसे आसान और सफल तरीका है। पत्तियों की कटिंग के लिए, स्वस्थ पत्ती को काटें, कुछ दिनों तक सुखाएं, फिर अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में लगाएं। बीजों से पौधे तैयार करना भी संभव है, लेकिन इसमें अधिक समय लगता है।
एलोवेरा (Aloe Vera) की सिंचाई कम पानी के साथ, गहराई तक करें और मिट्टी को हर बार पानी देने के बीच सूखने दें। गर्मियों में लगभग हर 2 सप्ताह में और सर्दियों में महीने में एक बार पानी दें। रोपण के तुरंत बाद पहली सिंचाई करें और बरसात के मौसम में पानी जमा न होने दें क्योंकि इससे जड़ें सड़ सकती हैं।
एलोवेरा (Aloe Vera) की निराई-गुड़ाई पहली बार रोपण के एक महीने बाद करें। इसके बाद, प्रत्येक वर्ष दो से तीन बार हल्की निराई-गुड़ाई करनी चाहिए ताकि खरपतवार हट जाएं और मिट्टी भुरभुरी बनी रहे।
एलोवेरा (Aloe Vera) के लिए कम एनपीके (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम) अनुपात वाला उर्वरक, जैसे कि 2-7-7 या संतुलित उर्वरक (1-1-1) अच्छा होता है। इसके अलावा, जैविक खाद जैसे वर्मी कम्पोस्ट या नीम खली का उपयोग किया जा सकता है।
एलोवेरा (Aloe Vera) को आमतौर पर बढ़ने की स्थिति और प्रदान की गई देखभाल के आधार पर परिपक्व होने में लगभग 6 से 12 महीने लगते हैं। पौधे आमतौर पर कम से कम 12 इंच लंबे होने पर कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं।
सामान्य कीटों में एफिड्स, मीलीबग्स और स्पाइडर माइट्स शामिल हैं। एलोवेरा (Aloe Vera) पत्ती सड़न और काली फफूंदी जैसी बीमारियों के प्रति भी संवेदनशील हो सकता है, जो अक्सर ज्यादा पानी देने या खराब जल निकासी के कारण होती हैं।
एलोवेरा (Aloe Vera) में कीटों और रोगों का प्रबंधन करने के लिए, आप कीटों को पोंछकर हटा सकते हैं, कीटनाशक साबुन या नीम के तेल का छिड़काव कर सकते हैं, या अधिक गंभीर संक्रमण के लिए प्रणालीगत कीटनाशकों का उपयोग कर सकते हैं। फंगल रोगों से बचाव के लिए अच्छी जल निकासी और उचित खाद का प्रयोग करें।
एलोवेरा (Aloe Vera) की कटाई के लिए सबसे अच्छा समय पौधे के रोपण के लगभग 8 से 18 महीने बाद होता है। यह कटाई तब की जाती है जब पत्तियाँ पूरी तरह से परिपक्व, मोटी और सख्त हो जाती हैं, जिनकी लंबाई लगभग 60-80 सेमी (24-32 इंच) तक होती है। कटाई सुबह या शाम को, जब धूप कम हो, की जानी चाहिए, और केवल पुरानी बाहरी पत्तियों को ही काटा जाना चाहिए।
एलोवेरा (Aloe Vera) की खेती से प्रति एकड़ 15-20 टन तक पैदावार हो सकती है, हालांकि उचित देखभाल और प्रबंधन के साथ यह 30-35 टन प्रति एकड़ तक बढ़ सकती है। एक हेक्टेयर में लगभग 40-45 टन मोटी पत्तियां प्राप्त हो सकती हैं, और कुछ स्रोतों के अनुसार, उचित प्रबंधन के साथ प्रति वर्ष प्रति हेक्टेयर 50-60 टन तक का उत्पादन भी संभव है।
हाँ, आप निश्चित रूप से एलोवेरा (Aloe Vera) को घर के बगीचे या गमलों में उगा सकते हैं। इसे उगाना और देखभाल करना आसान है और यह एक आकर्षक, औषधीय पौधा है जिसे घर के अंदर या बाहर दोनों जगह लगाया जा सकता है।
एलोवेरा (Aloe Vera) के मुख्य औषधीय उपयोग त्वचा की समस्याओं, जैसे जलन, कटने, सनबर्न और एक्जिमा से राहत देना है। यह घाव भरने में मदद करता है, त्वचा को नमी देता है और मुंहासों को कम करता है। इसके अलावा, इसका उपयोग कब्ज, पाचन और विभिन्न बीमारियों में भी किया जाता है।
हाँ, एलोवेरा (Aloe Vera) की खेती के लिए जैविक खेती न केवल व्यवहार्य है, बल्कि तेज़ी से लोकप्रिय भी हो रही है। इससे उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है और प्राकृतिक व रसायन-मुक्त उत्पादों की बढ़ती उपभोक्ता माँग को पूरा किया जा सकता है।
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